जाने कैसा घुटन भरा अँधेरा है ,
सकल कारवां विपदाओं ने घेरा है |
पथ दर्शक सब दरबारी चारण हुये ,
किससे पूछें कितनी दूर सवेरा है |
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मैंने उगता छिपता सूरज देखा है ,
क्षितिज नहीं कुछ भी बस भ्रम की रेखा है |
तुम शासन के प्रगति आंकड़े मत बांचो ,
भोग रहे जो बस वो असली लेखा है |