लोकसभा में उदासीन सांसद राहुल
गांधी
डॉ शोभा भारद्वाज
संसद राजनीति की सर्वोत्तम
पाठशाला है पहले सांसद तैयारी से आते थे उनके भाषण सांसद एवं दर्शक मन्त्र मुग्ध
हो कर सुनते थे संसद की कार्यवाही ,भाषण रिसर्च स्कालर के लिए प्राथमिक सोर्स माने
जाते हैं अक्सर उन्हें संसद की लायब्रेरी में संसद में होने वाली चर्चाओं को नोट
करते देखा जा सकता है अपनी थीसिस में उसे कोट करते हैं | काफी समय से नियम कायदों
के बाद भी चलन चल रहा है संसद में आओ शोर मचाओ या वैल में आकर चिल्लाओ संसद चलने न
दो | चुनाव प्रचार में राहुल जी की मेहनत में कहीं कमी नहीं थी ,लेकिन वह अधिकतर
लोकसभा में आना ही नहीं चाहते थे “आये भी तो अपनी बात कहते हैं लेकिन जबाब सुने
बिना चल दिते हैं” अपनी आलोचना सुनना भी सीखने के लिए जरूरी होता है एक बार अपनी
बात प्रभावशाली ढंग से रखी सबने सुनी मोदी जी के पास उनसे गले मिलने गये लेकिन
अपनी सीट पर बैठते ही सिंधिया की तरफ देख कर आँख मारी प्रभाव ही खत्म कर दिया|
प्रश्नोत्तर काल में कभी नजर नहीं आये | यह संस्कृति संसद की कभी नहीं रही है वह
चाटुकारों में घिरे रहे मान कर चले हैं सत्ता पर उनका पैदायशी हक है | कब तक नेहरू
जी ,इंदिरा जी एवं पिता राजीव जी के नाम को भुनाओगे अब समझ जायेंगे संसद से हम
भारत को जानते हैं विचारक देश की समस्याओं को उठाते हैं |काश राहुल ध्यान देते संसद
में उनकी माँ सोनिया जी अधिक समय तक चैतन्य होकर बैठती हैं कभी- कभी पूरे समय तक उनके
चेहरे के भाव बताते हैं वह कहाँ सहमत हैं कहाँ नहीं | हार के बाद भी उनका चेहरा
सामान्य नजर आता है| कांग्रेस की तरफ से कुछ ऐसी आवाजें हैं जो लगातार शोर मचाती
सुनी जा सकती हैं |यह भारतीय संसद की संस्कृति नहीं है | अब तो देश में नजर आते
रहे हैं नहीं तो अक्सर विदेश चले जाते उनके विरोधी उन पर कटाक्ष कसते थे राहुल
नानी के घर गये थें | जिस दिन से राहुल गांधी संसद के निचले सदन में गम्भीर होकर बैठेंगे सांसदों को सुनेंगे वह एक अच्छे स्टेट्समैन एवं अपनी दादी स्वर्गीय इंद्रा जी की तरह कूटनीतिज्ञ हो जायेंगे शायद वह नहीं जानते उनके दादा स्वर्गीय फिरोज गांधी अच्छे सांसद थे उनके भाषणों में सरकार के कामकाज की स्वस्थ आलोचना होती थी |