shabd-logo

आज़ादी देने की नहीं, छीनने की आवश्यकता

9 जून 2019

72 बार देखा गया 72



अक्सर में लोगों को ये कहते सुनताहूँ कि महिलाओं या लड़कियों को लड़कों के समान आज़ादी मिलनी चाहिए। शायद आप भी इस बात से हामी भरते होंगे, पर मैं नहीं।


क्योंकि हम लड़कों के लिए जिस आज़ादी शब्द का प्रयोग करते हैं। असल में वो गलत है। मेरे अनुसार इनकी आज़ादी के लिए 'बेलगाम आज़ादी' शब्द अति उपर्युक्त होगा। इसका कारण सपष्ट है, हमारे हाथों या परिवार के हाथों लड़कों को बिना रोक-टोक वाली आज़ादी दे दी गई है।

परिणामतः आज वही लडके रात में मादकों का सेवन कर अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, न केवल यही बल्कि कुछ जाहिल तो अनहोनी वारदातों को भी अंजाम दे देते हैं. ये न केवल रात बल्कि दिन के रेस्टोरेंटों, सड़क इत्यादि स्थानों पर भी वही स्थिति दिखती है.


यही वे वजहें हैं जिनसे हम अपनी बहनों को आज़ादी नहीं दे पा रहे. पर यदि हमे वास्तविक रूप में उन्हें आज़ादी प्रदान करनी है तो हमारे जैसे लड़कों की आज़ादी में छंटाई करनी होगी. छंटाई से तात्पर्य हमारी आज़ादी की सीमा निश्चित होनी चाहिए . जिस दिन से यह हो गया बस उसी दिन से हमारी बहने अपने आपको आज़ाद महसूस करने लगेंगी. क्योंकि माता-पिता की मनोस्तिथि तब स्वतः ही परिवर्तित हो जाएगी. एक सरल भाषा में कहें तो समाज का जो पैर अधिक बढ़ चुका है उसे दूसरे पैर के समतुल्य लाना होगा. तभी एक संतुलित समाज चल सकेगा.


कुल मिलाकर हमें आज़ादी छीनने की आवस्यकता है न कि देने की .

मोहित तिवारी की अन्य किताबें

किताब पढ़िए