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बताओ ना मां क्या मैं सुंदर नहीं हूं ?

9 जुलाई 2019

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मैं सुन्दर नहीं हूँ

'आज घंटों से आइने में खुद को निहार रही थी अंशिका, कभी अपनी आँखों को देखती, कभी अपने गालों को, कभी होंठो को तो कभी नाक को। 'अरे! क्या घंटों से आइने में निहार रही हो अंशी', माँ ने जोर से आवाज लगायी। अंशिका माँ के पास जाकर बैठ जाती है, "माँ क्या मैं सुंदर नहीं हूँ"? 'क्यों बेटा क्या हुआ किसी ने कुछ कहा क्या?' 'नहीं मां बताओ न क्या मैं सुंदर नहीं हूं?' "हर इंसान में सुंदरता के पैमाने अलग-अलग होते हैं, और प्रत्येक इंसान में सुंदरता देखने के लिये प्रत्येक व्यक्ति का नजरिया भी अलग-अलग होता है । कुदरत की बनाई हर चीज सुंदर और अपने आप में खास होती है उसकी किसी और व्यक्ति या किसी वस्तु से तुलना नहीं की जा सकती है। अंशिका अतीत की कुछ पर्तों को हटाती है, मां बात उन दिनों की है जब मैं काॅलेज के लास्ट ईयर में थी, और फेयरवेल पार्टी की तैयारी चल रही थी, मैंने भी अपनी फ्रैंड्स के कहने पर एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिये सोचा, तब मुझे ना तो फैशन की इतनी जानकारी थी और ना ही चेहरे को इतना सजाना और संवारना जानती थी। बस, उस समय तो सिर्फ पढ़ाई की धुन सवार थी। पर प्रैक्टिस के समय एक सीनियर दीदी आईं और उन्होंने मुझे ये कहकर रिप्लेस कर दिया कि नैन-नक्श तो अच्छे होने चाहियें, और मेरी जगह एक मुझसे भी सांवली लड़की को रख दिया। मुझे बहुत बुरा लगा मां, पर मैं कुछ बोल नहीं सकी , उस समय सिर्फ इतना ही सोच पायी कि मेरे नैन-नक्श में कमी क्या थी? हां रंग जरूर गेहुंआ था। पर मां मैं इतनी भी तो बदसूरत नहीं थी कि पार्टिसिपेट न कर सकूं। खैर, उस समय तो पढ़ाई करना जरूरी था सो बात आयी गयी हो गयी।"


"कुछ समय पश्चात हमारे काॅलेज का टूर जाना था उसमें मैं भी गयी थी, वहां पहुंचकर कुछ छात्र-छात्रायें अपनी तस्वीर ले रहे थें, उस समय सेल्फी और मोबाइल का इतना चलन नहीं था, पर कुछ के पास मोबाइल और कुछ के पास कैमरे थे, मेरी एक फ्रैण्ड मुझे भी ले गयी फोटो खिंचवाने के लिये,पर मैंने मना कर दिया ये कह कर कि मुझे पसंद नहीं है फोटो खिंचवाना,ये सुनकर ग्रुप में से आवाज आयी कि अरे! अंशिका सुंदर नहीं हो तो क्या हुआ इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम फोटो ही मत खिंचवाओ। उस समय उनकी ये बातें सीधे तीर की तरह चुभ गयीं और मैं चुपचाप वहां से आंखों में आंसू लेकर चली गयी।" 'आज आइना लेकर बैठी तो अचानक से पुराने दिन याद आ गये, बस आइने में उसी कमी को ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थी मां।' 'अंशी बेटा, सुंदरता चेहरे की नहीं मन की मायने रखती है, और चेहरे की सुंदरता समय के साथ बदल भी सकती है पर मन की सुंदरता कभी नहीं बदलती। और तुम्हारा मन सुंदर है अंशी, इसीलिये तुम मेरी सुंदर बेटी हो। इंसान के जीवन में निखार उसके व्यक्तित्व से आता है ना कि चेहरे से। हमारा व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिये जो हमारे चेहरे पर झलके। और जब व्यक्तित्व ऊंचा और अच्छा होता है तो चेहरे पर निखार और चमक स्वयं आ जाती है।'समझी? "अंशिका एक सीधी-साधी,रंग गेंहुआ, सादगी से परिपूर्ण ,शर्मीली और बेहद ही रिजर्व नेचर की लड़की थी। अंशिका हमेशा ही स्वयं को सुंदरता में भी औरों से कम ही आंकती थीं और इसलिये उसके आत्मविश्वास में भी एक कमी नजर आती थी। पर क्या सुंदरता का मापदण्ड सिर्फ चेहरे की सुंदरता से ही है। हां चेहरे की बनावट ,रंग और नैन-नक्श सभी के अलग और कम ज्यादा रहते हैं पर इसका मतलब ये तो नहीं कि हम किसी की भावनाओं की कद्र ही ना करें।" "अंशिका की मां ने अंशिका को बहुत ही अच्छी बात समझायी कि हमारा व्यक्तित्व ही हमारे चेहरे पे निखार लाता है। और मां की बातों से अंशिका के मानसिक पटल पर गहरा प्रभाव पड़ता है।


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अंशिका का पोस्ट ग्रेजुएशन कम्पलीट हो चुका था। उसने सोशल साइंस में डिप्लोमा भी कम्प्लीट कर लिया। 'एक दिन अंशिका कहीं जा रही थी ,उसे रास्ते में सड़क के किनारे कुछ बच्चे पढ़ाई करते हुये दिखे।अंशिका उनके पास गयी और उनके इस तरह पढ़ने का कारण पूछी उन बच्चों ने अपने बारे में बताया कि उनके पास पढ़ने का न तो कोई ठिकाना है और ना ही कोई सुविधा वो तो हमें एक एनजीओ की मैडम पढ़ाती है सो हम भी पढ़ लेते हैं । अंशिका उन बच्चों के साथ उस एनजीओ में पहुंचती है,वहां पहुंच कर उसे पता चलता है कि वो एनजीओ ऐसे बच्चों को पढ़ाने में सपोर्ट करता है जिनके पास पढ़ने और स्कूल जाने की सुविधा नहीं है और अंशिका उनके इस अभियान में शामिल होने की इच्छा जाहिर करती है।' 'अंशिका उस एनजीओ से जुड़ जाती है और अपने काम में पूरी ईमान दारी से रम जाती है कुछ दिनों के बाद पूरा एनजीओ अंशिका की मेहनत का कायल हो जाता है और वंहा के बच्चे भी अंशिका के गुणगान करते नहीं थकते।कुछ ही समय में अंशिका बच्चों की फेवरेट टीचर बन गयी। धीरे-धीरे अंशिका के अंदर एक नया आत्म विश्वास आने लगा।अंशिका को उसकी मां और घर के सभी लोगों का सपोर्ट था जैसे-जैसे समय गुजरा अंशिका का व्यक्तिव भी निखरने लगा।अंशिका को जब भी उसके इस काम के लिये बधाई और शबासी मिलती विश्वास आने लगा।अंशिका को उसकी मां और घर के सभी लोगों का सपोर्ट था जैसे-जैसे समय गुजरा अंशिका का व्यक्तिव भी निखरने लगा।अंशिका को जब भी उसके इस काम के लिये बधाई और शबासी मिलती अंमिलती अंशिका का आत्म विश्वास और बढ़ जाता। अंशिका अब जब भी अपने को आइने में देखती उसको एक अलग चमक अपने चेहरे पे दिखाई पड़ती।उसके काम की छाप उसके चेहरे पे साफ झलकने लगी। कई लोग अंशिका को ऐसे मिले जो उसके काम के साथ-साथ उसके सुंदर मन और सुंदर रूप की भी तारीफ करते। अब अंशिका को अपने मां की बात सही लगने लगी और उसको अहसास होने लगा कि कमी उसके नैन-नक्स में नहीं लोगों की नजरों और उस समय में था।'


"अब अंशिका को लोग उसके व्यक्तितव से जानने लगे थे,उसकी अपनी एक पहचान हो गयी,और उसका आत्म विश्वास दिन ब दिन बढ़ता गया।उसके हौसलों के पंखों से उसे एक नयी उड़ान मिल गयी। 'उधर अंशिका काम में तल्लीन रही इधर उसके घर वाले अंशिका की शादी की सोचने लगे,पर अंशिका शादी के लिये तैयार नहीं थी,लेकिन घर वालों की जिद और इस शर्त पे कि वो शादी के बाद भी अपना काम नहीं छोड़ेगी शादी के लिये तैयार हो गयी और लड़के वाले भी मान गये। अंशिका और मानव की शादी हो जाती है।' "इस तरह अंशिका ने एक राह चुनी अपने लिये, और उस रास्ते पे चलकर अपने आत्म विश्वास को मजबूत किया ,अपने व्यक्तित्व को निखारा ।जिसकी चमक उसके चेहरे पर भी साफ झलकने लगी। अंशिका को इस बात का अहसास हो गया कि चेहरे की सुंदरता हमारा व्यक्तिव नहीं बना सकता लेकिन हमारा व्यक्तिव हमें सुंदर जरूर बना सकता है।" "यदि मन में विश्वास हो,इरादें मजबूत हो,और हौसले बुलंद हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं होती है।

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प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

नमस्कार वंदना जी , आपका स्वागत है मंच पर . बहुत ख़ुशी हुई आपने मंच को अपने इस लेख से सजाया, ऐसे ही प्रेरणात्मक लेखों लिखती रहिये . अति उत्तम !

12 जुलाई 2019

हिना

हिना

पर आज सुंदरता ही बिकती है दुनिया में , अब वो समय नहीं रहा . पढ़ के सुकून मिला पर शायद सच नहीं है ये

10 जुलाई 2019

रवि कुमार

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वंदना जी, इस प्रेरणात्मक कहानी के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूँ . पसंद आई मुझे

10 जुलाई 2019

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