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किस ओर जा रहे हैं हम

11 जुलाई 2019

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सैफीना के बच्चे को जब मीडिया ने खाने-पीने से लेकर, उठने बैठने तक की बे-बुनियादी खबरों में बार-बार दिखाया तो ना जाने क्यों मुझे मरते बच्चों का चेहरा बार-बार याद आया। हां बच्चे ही तो थे, अपने थोड़ी थे, ना उस दोगली मीडिया के थे। ये बच्चे तो वह थे जो सरकार और उसकी दी सुविधाओं का लाभ भी नहीं ले सकते। मीडिया का दोगलापन यही साबित हो जाता है, जब बच्चों की मौत को लेकर उनका कड़ा विरोध सामने नहीं आता है और यह बच्चे जो कल का सुनहरा भविष्य हो सकते थे। यह बच्चे जो देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा हो सकते थे, आज नहीं है। क्यों? यह सवाल सरकार से पहले खुद से पूछना चाहिए।

कभी सोचा क्या यदि शोक मनाने बैठे तो किस किसका शोक मनाएं, टिवंकल का? लीची खाने वाले बच्चों का? दिमागी बुखार में मरे बच्चों का? या आग में झुलसे हुए बच्चों का? एक हो तो शोक मनाएं। कब तक यह रुकेगा, कोई रास्ता सुझाएँ। एक ही रास्ता मुझे दिखा, वह है सरकार के कड़े फैसले का, वह भी अब तक नहीं लिया गया।

आखिर क्यों? जानें इतनी सस्ती हुई कि आये दिन एक नई खबर बस अखबार की हेडलाइन बन जाती है। फर्क नहीं पड़ता अब कोई जिये या मरे। आखिर क्यों ऐसा हुआ कि हम इतने संवेदनहीन हो गए कि पड़ौसी भी मुश्किल में हो तो उसकी मदद नहीं करना चाहते।

बच्चे तो बच्चे, आजकल उनकी जान बचाने वाले डॉक्टर भी अपनी जान की भीख मांगते दिख रहे हैं। पहले हम खुद बीमारियों को बढ़ावा देते हैं फिर मरीज के बच ना पाने का सारा दोष डॉक्टर के सिर पर फोड़ देते हैं। वह भी इंसान है, जो पूरी कोशिश करते हैं मरीज को बचाने के लिए लेकिन जब वह इसमें नाकाम होते हैं तो मरीज के परिवार जन उनका सिर फोड़ देते हैं।

एक समय था जब बलात्कार की एक छोटी सी खबर भी हमें अंदर तक झकझोर देती थी और आज आए दिन बलात्कार की एक खबर आती है, जो खबर ही बनकर रह जाती है और हमें जरा भी फर्क नहीं पड़ता। कितने मतलबी और संवेदनहीन होते जा रहे हैं हम कि परेशानी यदि खुद की हो तो फर्क पड़ता, अगर दूसरे की हो तो कोई मतलब नहीं।

किस ओर जा रहे हैं हम, कभी सोचा है। क्या करने की कोशिश में है, एक तो हम खुद ही अपने परिवार, अपने बच्चों को संभाल नहीं सकते और दोष दूसरों के सिर पर फोड़ देते हैं। अभी भी वक़्त है अगर संभल जाएं तो भविष्य में इन घटनाओं से बच सकते हैं। वरना घोर कलयुग बोलकर खुद को दिलासा देते रहोगे।


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जयति जैन 'नूतन"' --

जयति जैन - नूतन - की अन्य किताबें

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

आपने वो लिखा है जो बड़े लोगों के बारे में हर दिन, हम सब रोज़ अखबार में पढ़ कर भूल जाते है. लेकिन समाज के माध्यम वर्ग में क्या चल रहा है और इसका क्या भविष्य है इसपर ध्यान जाता ही नहीं , जबकि रहते हम इसी समाज में हैं . आप लेख एक सवाल है हम सब के लिए .

12 जुलाई 2019

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लड़का बिकाऊ है

8 मार्च 2017
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मोदी जी अब हमे एक ही वचन चाहिये

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मोदी जी अब हमे एक ही वचन चाहिये अब उ.प्र. भी आरक्षण मुक्त होना चाहिये... ना कोई दलित ना कोई बनिया ना ही ब्राह्मण सारी जातिगत भेदभाव को मिटाईये अब उ.प्र. भी आरक्षण मुक्त होना चाहिये... शिक्षा पर सभी का समान हक होना चाहिये सामान्य भरे 500 तो अन्य के 100 नही होने चाहिये अब उ

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13 मार्च 2017
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आओ बैर मिटाये ... थोडा गुलाल लगाये ! में रंग दू तुझे लाल तू रंग दे मुझे गुलाल लाल पीला हरा गुलाबी जो चाहो ... बस प्यार से लगाये ! आओ बैर मिटायेअपनो को भिगाये ! नाचे ढोल बजाये बस खुशियां लुटाये ! ! जयति' रंग दो गुलाल गले मिलो लाओ बहार !!! त्यौहार है रंगों का द

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आखिर तुम्हारे पास... क्या है मेरे नाम का?

21 मार्च 2017
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लोग पत्नी का मजाक उड़ाते है। बीवी केनाम पर कई MSG भेजते है उन सभी के लीये-------------- Please Read This....A Lady's Simple Questions & Surely It WillTouch A Man's heart... ------------------------ देह मेरी ,हल्दी तुम्हारे नाम की । हथे

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धर्म - आज लोगों को बांटने का का साधन बन गया है !धर्म क्या है ? इसके बारे में क्या जानते हो ? आज लोग ये नहीं कहते कि धर्म हमें शांति के पथ पर अग्रसर करता है, धर्म श्रद्धा-आस्था का प्रतीक है ! धर्म हमें ईश्वर से जोड़ने का काम करता है !आज लोग ये माने या ना माने लेकिन

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90% पुरूषो को ही हार्ट अटैक क्युं आते हैं ? मेरा जबाब- कई वज्ह है : हिचकिचाहट, घबराहट, उनका नाकामयाबी का डर, लोग क्या कहेगे, उनका ईगो, शर्मिन्द्गी, परिवार को क्या लगेगा, उन्हें क्युं परेशान करे , मर्दानिगी को ठेस पहुचेगी ...आदि... सबके साथ अलग अलग स्थिति होती हैं !! सबसे बडा होता है उनका ईगो, कि ह

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