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मन को खुश रखो तन खिल उठेगा

12 जुलाई 2019

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Age is just figur not our intro forget it मैंने उम्र को कभी कोई तवज्जों नहीं दी, ना ही महसूस किया, ना ही गिना..! वक्त का काम है बहना बहता रहेगा दिन, महीने, साल ये सब वाकिये याद रखने के लिए है ना की हमारा घड़ीया गिनना..! दिल में एक उम्र बिठा ली है मैंने जवाँ, खूबसूरत सी जिसमें आख़री साँस तक रहना है ज़िंदगी के हर पल को हंसी खुशी नशीली बना कर जीना है..! मैं अब इतने साल की हो गई अब ये क्या करना, वो क्या करना, ये मुझे शोभा नहीं देता, ये कलर मुझ पर अच्छा नही लगता एसी नकारात्मक बातें तन पर वैसा ही प्रभाव छोड़ती है एसी बातें करना मतलब ज़िंदगी के सुहाने सफ़र को मरमर कर काटना..!

तन पर झुर्रियां दस्तक देने लगेगी 40 साल की उम्र में ही, सोचते रहो अभी मेरी उम्र ही क्या है अभी तो ये करना है, अभी तो वो बाकी है हर फैशन को अपनाओ, पार्लर जाओ जिम जाओ खुद को मेइन्टेइन रखो, स्लीवलैस पहनो, लिपस्टिक लगाओ एन्जॉय करो..! past को भूल जाओ present में जीओ ज़िंदगी की बदलती हर तान के साथ ताल मिलाते ओर future हमें पता नही तो उसके बारे में क्यूँ सोचना, जो बच्चे करते है आप भी सब करो..! Music is the best way of joy संगीत मन को साता देता है जब भी नकारात्मक खयालों का आक्रमण हो संगीत सुनो..! शौक़ को मार देना कहाँ का न्याय है ओर किस ग्रंथ में ये लिखा है की एक उम्र के बाद सब छोड़ छाड़ कर तंबूरा हाथ में ले लेना चाहिए..! जैसा मन सोचेगा वैसा रिप्ले तन देगा तो उम्र की गिनती को गोली मारो एक खूबसूरत खयाल को दिल में बसा कर उसे सहलाते रहो, उसी में जीओ, उसी में रहो ताउम्र जवाँ खूबसूरत।। मन को खुश रखो तन खिल उठेगा।। भावु।

प्रिया पटेल

प्रिया पटेल

हाँ मन और तन एक दूसरे के साथ चलते हैं

15 जुलाई 2019

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ए ज़िंदगी

12 जुलाई 2019
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ए ज़िन्दगी कभी तो मेरे ढंग में ढ़लकर देख,मेरी सोच में बसकर देख,मुझे जी कर देखले फ़िर मजे चुनौतियों की रंगीनीयों का,हो जाएगी खुद से ख़फ़ादेख खुद ही खुद की ज़ालिम अदा..!क्यूँ ज़िंदगी की कुछ ताने क्षुब्ध कर देती है हमें,जरूरी तो नहीं की उसका हर फैसला हमें मंज़ूर हो..! उसकी ताल पे नाचते पैर जो पकड़ ले द

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मेरा संसार

12 जुलाई 2019
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6:30 बज गए वो आते ही होंगे मैंने बाल ठीक किएकमर से लिपटा साडी का पल्लू खोल दिया डोरबेल बजी वो आ गए उनकी आँखों में खुद को देखना चाहती हूँ उनके होंठों पर हंमेशा मैं गुनगुनाती हूँ..! उनके दहलीज़ पर कदम रखते ही मेरा दरवाज़ा खोलना मैं देखना चाहती हूँमेरे सत्कार से उनकी मौजूदगी से बिखेरते हुए घर में पति क

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कहाँ ढ़ालने पाओगे शब्दों में

12 जुलाई 2019
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कहाँ समेटे जाती है संवेदना की सरिता, शब्दों का समुंदर भी उमटे कागजी केनवास पर फिर भी स्त्री के असीम रुप को ताद्रश करना मुमकिन कहाँ..!देखा है कभी गौर से ज़िंदगी के बोझ की गठरी के हल्के हल्के निशान, औरत की पीठ पर गढ़े होते हैं अपनी छाप छोड़े..!हर अहसास, हर ठोकर, ओर स्पर्श के अनगिनत किस्से छपे होते है.

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खुद को पाया आज

12 जुलाई 2019
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मोह के धागे की गांठ खोल दी है मैंने जो सालों से बँधी थी तुमसे,सालों से तुमने चुने इस पेड़ो की शाखाओं से फल, फूल मैं अनमनी सी देती रही घाव झेलते, बिखरे पत्तों सी की अब मुमकिन नहीं कुछ तुम्हें दे सकूँ संभलना जो सीख लिया है..!मत खिंचो अपनी ओरबहती रही उस दिशा में नाव सी खिंचा तुमने जिस तरफ़ अब साहिल खुद

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मन को खुश रखो तन खिल उठेगा

12 जुलाई 2019
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Age is just figur not our intro forget itमैंने उम्र को कभी कोई तवज्जों नहीं दी, ना ही महसूस किया, ना ही गिना..!वक्त का काम है बहना बहता रहेगा दिन, महीने, साल ये सब वाकिये याद रखने के लिए है ना की हमारा घड़ीया गिनना..!दिल में एक उम्र बिठा ली है मैंने जवाँ, खूबसूरत सी ज

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आभासी प्यार

12 जुलाई 2019
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मोबाइल की दुनिया में आभासी प्यार का रकास ☺️तलाशती है अब नज़रे तुम्हें सिर्फ़ हरे बिंदु की उम्र में,जब तक इस छोटी-सी मशीन में तुम्हारी प्रोफाइल पर ये हरा बिंदु दिखता है हम तुम्हें अपने करीब महसूस करते है जब की जानता है दिल की तुम मिलों दूर होतुम्हारे अहसास में भी हम नहीं..!पर इस पागल दिल का कोई इलाज भ

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गुफ़्तगु

14 जुलाई 2019
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गुफ़्तुगू...! अपने आशियाने की गरिमा है तुम्हारे मौन में दबी असंख्य अहसासों की गूँज, क्या मन नहीं करता तुम्हारा की इस मौन के किल्ले को तोड़ कर अपने अंदर छुपी हर अच्छी बुरी संवेदना को बाँट कर नीज़ात पा लो..!चलो आज तुम मेरे सारे सुख बाँट लो मैं तुम्हारे सारे गम बाँट लूँ..स

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बेटी की चित्कार

14 जुलाई 2019
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सपनें में भी सहम गयी वंदना सुन अपनी बेटी की चित्कार मानों पिंकी झकझोर रही है,कुछ समय पहले एक राक्षने दबोच लिया था स्कूल जाती हुई पिंकी को,ओर मसल दिया था मासूम कली को..! वंदना कुछ नहीं कर पाई थी, अभी तक न्याय नहीं मिला तो सपने में माँ से मानों असंख्य सवालों की गठरी खो

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तो क्या हुआ की

1 फरवरी 2022
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"तो क्या हुआ की"मेरी आँखें एक सुहाना सफ़र मेरे घर की दहलीज़ से उसके घर की खिड़की तक हररोज़ तय करती है, क्यूँकी मेरे सामने वाली खिड़की में इक चाँद का टुकड़ा रहता है। उस हूर परी की एक झलक पा लूँ तो आशिक नह

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