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अँधेरे में नहीं बल्कि अँधेरे से लड़ें ...

14 जुलाई 2019

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अन्धकार से लड़ना और अंधकार में लड़ना दोनों में ज़मीन आसमान का फ़र्क है. आज लोग अँधेरे से नहीं बल्कि अँधेरे में लड़ रहे है. आफ़ताब की रोशनी और चाँद की चाँदनी भी इस अंधकार को खत्म नहीं कर पा रही, मज़हब और जाति ने पुरे हिन्दुस्तान को अन्धकार में धकेल दिया है, जहाँ रोज एक भीड़ किसी को मार रही है, वो भीड़ अँधेरे से नहीं अँधेरे में लड़ रही है. अपने अपने मज़हब से सभी को प्यार है पर ख़ुदा के बनाये इंसान से नहीं. जानवरों की हिफाज़त के नाम पर खुद दरिन्दे बन गए. ये भीड़ गुनहगार है पर इससे ज्यादा गुनहगार है वो लोग जो इस भीड़ को तैयार कर रहे है. ऐसी भीड़ को तैयार मज़हब के ठेकेदार, और सियासत के दावेदार पैदा कर रहे है. इन मज़हबी और सियासी लोगो ने एक ऐसा अँधेरा पैदा कर दिया जहाँ सच्चाई दिख नहीं रही , और उन्होंने एक भीड़ पैदा कर छोड़ दी इस अंधकार में अपने सियासी और मज़हबी मक़सद को पूरा करने. मक़सद है उनकी शैतानी हवस , एक भूख हुकुमरान बनने की. ख़ुदा ने इंसान बनाया ना कि मज़हब, कुछ शैतानो ने अपनी हुकूमत कायम करने के लिए मज़हब इज़ाद कर लिया, जिससे आफ़ताब की रौशनी ढक गई और फ़ैल गया चारो तरफ एक अँधेरा. इस अँधेरे में जला ली इन शैतानो ने अपनी मशाले और बना ली अपनी हुकूमत के लिए एक भीड़. इस भीड़ का मकसद है उन शैतानो की हुकूमत को बनाये रखना. आज ज़रूरत है उन इंसानो की जो अँधेरे में नहीं बल्कि अँधेरे से लड़े. (आलिम)
प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

प्रदीप जी , इसका खामियाज़ा वो लोग नहीं भुगतेंगे जो ठेकेदार हैं भुगत तो हम और आप जैसे आम लोग रहे हैं .... और हम सब वाकई इस अँधेरे से घिरे है तो बुद्धि भी वैसी ही हो गई है , कोई नहीं निकलने की हिम्मत भी कर पा रहा है ... बल्कि जात धर्म के नाम पर बस एक दूसरे को नीचे दिखने के लिए आगे बैठे है

15 जुलाई 2019

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रचनाएँ
aalim
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आज़द ख़्याल में आज़ादी है अपने बेबाक ख़्यालों को पेश करने की. यहाँ ना कोई मज़हबी दिवार है ना ही जाति की ज़ंजीरें .

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