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गुफ़्तगु

14 जुलाई 2019

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गुफ़्तुगू...!


अपने आशियाने की गरिमा है तुम्हारे मौन में दबी असंख्य अहसासों की गूँज, क्या मन नहीं करता तुम्हारा की इस मौन के किल्ले को तोड़ कर अपने अंदर छुपी हर अच्छी बुरी संवेदना को बाँट कर नीज़ात पा लो..! चलो आज तुम मेरे सारे सुख बाँट लो मैं तुम्हारे सारे गम बाँट लूँ.. सुनों आज दिल के किवाड़ खोल दो ना सालों से तुम अपने अंदर शब्दों की नगरी बसाए हो.. तो क्या हुआ की तुम मर्द हो, एक दिल तुम्हारे अंदर भी धड़कता है दर्द, खुशी, अहसास महसूस करता है..! ज़िंदगी के हर रंग को क्यूँ घोलते हो अंदर ही अंदर, कब तक चुप रहोगे तुम.? कब तक मौन रहोगे..? और कब तक छुपाते फिरोगे मुझसे अपने अंदर उठते बवंडर को..! अपनी वेदना को, आखिर बहा क्यूँ नहीं देते अपने अंदर उबल रहे ज्वारभाटा को जो अंदर ही अंदर पिघला रहा है निरंतर तुमको..! दो आँसू बहा दो मेरे आँचल में समेट लूँगी तुम्हारे अस्तित्व को अपने अंदर, अर्धांगनी हूँ दे दो ना इतना हक, सुख की छाया में नाजों से रखा पूरे परिवार को..! देखा है मैंने तुम्हें खुद से उलझते, द्वंद्व को पालते, मर्द मानों मौन के लिए जन्मा हो.. सुख बाँटते थक गई हूँ चुटकी भर अब खुद को बाँटो न मेरे साथ, मेरे हर सपने को पूरा किया हम आपकी छत्रछाया में महफ़ूज़ से सुकून सभर ज़िंदगी जीते रहे..! हक अधिकार तुम देते रहे क्यूँ कभी अपेक्षा के हकदार नहीं बने, जानती हूँ आप हमारे अस्तित्व की नींव हो, ढो रहे हो अकेले.. कई बार देखी है मैंने तुम्हारे चेहर पे कुछ चिंतित लकीरें, महसूस की है हरदम हमसे कुछ छुपाने की नाकाम कोशिश..

चलो ना आज सिर्फ तुम कहो और मैं सुनूँ, जान सकूँ तुम्हें,समझ सकूँ तुम्हें तुम्हारी हृदय वेदना को अपने दामन में समेट लूँ, उड़ेल दो सारी वेदनाएँ, सारी संवेदनाएँ अपनी मेरे सामने..! तुम्हारी चुप्पी दर्द देती है मुझे मैं चाहती हूँ तुम्हें सुनना, गुफ़्तगू करना तुम करो गुफ़्तगू मुझसे, एक मर्द के दायरे से बाहर निकलकर मेरे अपने बनकर, मेरी आँखों में झाँककर सब कुछ उड़ेल दो..! कुछ मेरे हिस्से का मुझे भी महसूस करने दो, जैसे रात के आँचल में छुपकर चाँद अपना वजूद सौंप देता है अपनी चाँदनी को..! ओर ओस धुली कायनात जैसे हल्की साफ सुंदर दिखती है ठीक वैसी रोशनी आपके चेहरे पर देखना चाहती हूँ.. सागर भरा है आपके अंदर जो सालों से बस एक कतरा बाँट लो मुझसे, मैं किसीसे नहीं कहूँगी की मेरे वो भी रोना जानते है..! तो क्या हुआ की तुम मर्द हो, मर्द को भी दर्द होता है.. एक दायरे की बंदिश छंटने दो, मासूम बन जाओ मेरी हथेलियों पर रख दो अपना ब्रह्मांड.. हर आधे की भागीदार हूँ तो ये क्यूँ नहीं ? मुस्कुराकर चलो डूब जाएँ गुफ़्तगू में..! सालों से मैं कहती हूँ तुम सुनते हो, आज मैं खामोश हूँ, चुप हूँ तुम कहते रहो इस शाम को मेरे नाम कर दो, ओर ये लम्हें यहीं ठहर जाएँ।। भावु।

प्रिया पटेल

प्रिया पटेल

पत्नी ही पति की मृत्यु तक उसकी साथी होती है

15 जुलाई 2019

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ए ज़िंदगी

12 जुलाई 2019
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ए ज़िन्दगी कभी तो मेरे ढंग में ढ़लकर देख,मेरी सोच में बसकर देख,मुझे जी कर देखले फ़िर मजे चुनौतियों की रंगीनीयों का,हो जाएगी खुद से ख़फ़ादेख खुद ही खुद की ज़ालिम अदा..!क्यूँ ज़िंदगी की कुछ ताने क्षुब्ध कर देती है हमें,जरूरी तो नहीं की उसका हर फैसला हमें मंज़ूर हो..! उसकी ताल पे नाचते पैर जो पकड़ ले द

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मेरा संसार

12 जुलाई 2019
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6:30 बज गए वो आते ही होंगे मैंने बाल ठीक किएकमर से लिपटा साडी का पल्लू खोल दिया डोरबेल बजी वो आ गए उनकी आँखों में खुद को देखना चाहती हूँ उनके होंठों पर हंमेशा मैं गुनगुनाती हूँ..! उनके दहलीज़ पर कदम रखते ही मेरा दरवाज़ा खोलना मैं देखना चाहती हूँमेरे सत्कार से उनकी मौजूदगी से बिखेरते हुए घर में पति क

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कहाँ ढ़ालने पाओगे शब्दों में

12 जुलाई 2019
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कहाँ समेटे जाती है संवेदना की सरिता, शब्दों का समुंदर भी उमटे कागजी केनवास पर फिर भी स्त्री के असीम रुप को ताद्रश करना मुमकिन कहाँ..!देखा है कभी गौर से ज़िंदगी के बोझ की गठरी के हल्के हल्के निशान, औरत की पीठ पर गढ़े होते हैं अपनी छाप छोड़े..!हर अहसास, हर ठोकर, ओर स्पर्श के अनगिनत किस्से छपे होते है.

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खुद को पाया आज

12 जुलाई 2019
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मोह के धागे की गांठ खोल दी है मैंने जो सालों से बँधी थी तुमसे,सालों से तुमने चुने इस पेड़ो की शाखाओं से फल, फूल मैं अनमनी सी देती रही घाव झेलते, बिखरे पत्तों सी की अब मुमकिन नहीं कुछ तुम्हें दे सकूँ संभलना जो सीख लिया है..!मत खिंचो अपनी ओरबहती रही उस दिशा में नाव सी खिंचा तुमने जिस तरफ़ अब साहिल खुद

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मन को खुश रखो तन खिल उठेगा

12 जुलाई 2019
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Age is just figur not our intro forget itमैंने उम्र को कभी कोई तवज्जों नहीं दी, ना ही महसूस किया, ना ही गिना..!वक्त का काम है बहना बहता रहेगा दिन, महीने, साल ये सब वाकिये याद रखने के लिए है ना की हमारा घड़ीया गिनना..!दिल में एक उम्र बिठा ली है मैंने जवाँ, खूबसूरत सी ज

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आभासी प्यार

12 जुलाई 2019
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मोबाइल की दुनिया में आभासी प्यार का रकास ☺️तलाशती है अब नज़रे तुम्हें सिर्फ़ हरे बिंदु की उम्र में,जब तक इस छोटी-सी मशीन में तुम्हारी प्रोफाइल पर ये हरा बिंदु दिखता है हम तुम्हें अपने करीब महसूस करते है जब की जानता है दिल की तुम मिलों दूर होतुम्हारे अहसास में भी हम नहीं..!पर इस पागल दिल का कोई इलाज भ

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सपनें में भी सहम गयी वंदना सुन अपनी बेटी की चित्कार मानों पिंकी झकझोर रही है,कुछ समय पहले एक राक्षने दबोच लिया था स्कूल जाती हुई पिंकी को,ओर मसल दिया था मासूम कली को..! वंदना कुछ नहीं कर पाई थी, अभी तक न्याय नहीं मिला तो सपने में माँ से मानों असंख्य सवालों की गठरी खो

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तो क्या हुआ की

1 फरवरी 2022
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"तो क्या हुआ की"मेरी आँखें एक सुहाना सफ़र मेरे घर की दहलीज़ से उसके घर की खिड़की तक हररोज़ तय करती है, क्यूँकी मेरे सामने वाली खिड़की में इक चाँद का टुकड़ा रहता है। उस हूर परी की एक झलक पा लूँ तो आशिक नह

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