shabd-logo

शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019

194 बार देखा गया 194
शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः प्रमाणित हुआ है। कि जिस वर्ण व्यवस्था को मनु का विधान कह कर रूढ़िवादी पुरोहितों ने  भारतीय संस्कृति के प्राणों में प्रतिष्ठित किया गया था ; उसकी प्राचीनता भी पूर्णतः संदिग्ध ही है , मिथ्या वादीयों ने वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय विधान तक भी  घोषित भी किया । भारत में वर्ण-व्यवस्था की प्राचीनता केवल ई०पू० सप्तम सदी के समकक्ष है । लगभग 2050 से ई०पू०1500 तक के काल खण्ड में देव संस्कृति के अनुयायी ईजियन सागर के तटवर्ती स्थलों कहते थे । ईजियन सभ्यता 12वीं सदी ई.पू. से पहले दोरियाई ग्रीकों के आयोनिया द्वीप पर आक्रमण के पूर्व क्रीट और निकटवर्ती द्वीपों,  की सागरवर्ती भूमि, उसके मिकीनी केंद्रीय प्रान्तों तथा इतिहासप्रसिद्ध शहर ट्रॉय( वर्तमान तुर्किस्तान )में विकसित हुई और और वहीं से पूर्वी देशों में प्राप्त हुई यूरोपीय इतिहास वेत्ताओं ने इसे (Aegean civilizations) नाम दिया । पुरातात्विक अनुसंधानों और खुदाइयों से क्रीट, मिज्नी और अनातोलिया के ट्रॉय नगर में जिन खंडहरों के दर्शन हुए हैं। वे मिस्री, सुमेरी और सैंधव सभ्यता के समकालीन तो माने ही जाते हैं। और भारत में ई०पू० बारहवीं सदी में आये देव संस्कृति के अनुयायीयों सांस्कृतिक तत्व भी आयोनिया और ट्रॉय वासीयों के समान थे । जैसे मृतक के दाह-संस्कार के उपरान्त बारह दिनों तक शोक और देवर के साथ विधवा का विवाह द्वित्तीयो वर देवर की प्रथा यहूदीयों और भारत में आगत देव संस्कृति के अनुयायीयों में भी थी। जब ईरानी और भारतीय आर्य समान रूप से एक साथ अजर-बेजान (आर्यन- आवास) में निवास कर रहे थे । तब समाज के सम्यक् उत्थान के लिए  वर्ग व्यवस्था की प्रस्तावना बनी थी । तव वर्ग ही था न कि वर्ण - वर्ण व्यवस्था के विषय में आज जैसा आदर्श प्रस्तुत किया जाता है। कुछ तथाकथित रूढ़वादियों द्वारा वह आदर्श यथार्थ की सीमाओं में नहीं है । वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का स्वरूप स्वभाव प्रवृत्ति और कर्म गत भले ही हो ! परन्तु कालान्तरण में यह जाति अर्थात् जन्म गत हो गया और एक आयर लेण्ड तथा स्कोट लेण्ड की द्रयूड जन-जाति शुट्र के रूप में वस्त्र सीवन तथा शीत के प्रभाव को कम करने वाले वस्त्रों कलात्मक ढ़ग से निर्माण करते थे । कालान्तरण में वही  भारतीय समाज व्यवस्था में चतुर्थ वर्ण या जाति के रूप में शूद्र संज्ञा से अभिहित हुए। अत: उत्पत्ति की दृष्टि से शूद्र शब्द मूलत: वि देशी है । अर्थात् ये भी स्कॉटलेण्ड के निवासी तथा ड्रयूड (Druids) कबीले से सम्बद्ध है । यूरोपीय भाषाओं में शूद्र शब्द शुट्र के रूप में विद्यमान है। आयर लोग द्रविडों से संबद्ध थे । आयरिश भाषा में आयर शब्द का अर्थ स्वतन्त्र है । आयर ही ईरान और रूस के मध्यवर्ती देशों दाहिस्तान आदि में अवर के रूप में है । आयबेरिया या गुर्जिस्तान के विषय में तो सर्वविदित है । हिन्दस्तान  में अहीर जन-जाति यहूदीयों की शाखा रूप में यादवों के रूप में मान्य है । द्रविडों के विषय में भारतीय इतिहास वेत्ताओं की कोई यथार्थ जानकारी नहीं। परन्तु जूलियस सीजर रोमन सम्राट को इनकी प्राचीन शाखा ड्रयूड Druid के विषय में बहुत जानकारी थी। जिन्हें भारतीय पुराणों में द्रविड कहा गया । और संभवत: एक पराजित अदेव संस्कृति के अनुयायीयों की जन जाति का मूल नाम था। अब पराजित कैसे हुए यह भी एक रहस्य है । यद्यपि द्रविड संस्कृति और ज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन विश्व में द्रविड सर्वोपरि व अद्वितीय थे । द्रव वेत्ताओं में ये सर्वप्रथम मानव थे । इसी लिए इन्हें द्रविद ( द्रव विद ) कहा गया। देव संस्कृति के अनुयायीयों की बहुतायत शाखा जर्मन जाति से सम्बद्ध है; यह तथ्य भी प्रमाणिकता के दायरे में आ गयें हैं । जिन्हें कालान्तरण में भ्रान्तिवश आर्य्य नाम दे दिया गया। परन्तु इन जर्मन आर्यों और द्रविडों (ड्रयूडों Druid )की देव सूची समान ही थी । और पूर्वज भी ! भारतीय पुराणों में वर्णित शूद्र शब्द की काल्पनिक व्युत्पत्ति भी विवेचनीय है भारतीय पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार वायु पुराण का कथन है कि " शोक करके द्रवित होने वाले परिचर्यारत व्यक्ति शूद्र हैं "भविष्यपुराण में " श्रुति की द्रुति (अवशिष्टांश) प्राप्त करने वाले शूद्र कहलाए" वैदिक परम्पराअथर्ववेद में कल्याणी वाक (वेद) का श्रवण शूद्रों को विहित था। इस प्रकार के वर्णन भी मिलते हैं । परम्परा है कि ऐतरेय ब्राह्मण का रचयिता महीदास इतरा (शूद्र) का पुत्र था। किन्तु बाद में वेदाध्ययन का अधिकार शूद्रों से ले लिया गया। ये तथ्य कहाँ तक सत्य हैं कहा नहीं जा सकता है । शूद्र जनजाति का उल्लेख;- विश्व इतिहास कार डायोडोरस, टॉल्मी और ह्वेन त्सांग भी करते हैं। आर्थिक स्थिति उत्तर वैदिक काल में शूद्र की स्थिति दास की थी अथवा नहीं। इस विषय में निश्चित नहीं कहा जा सकता। वह कर्मकार और परिचर्या करने वाला वर्ग था। ज़िमर और रामशरण शर्मा क्रमश: शूद्रों को मूलत: भारतवर्ष में प्रथमागत आर्यस्कंध, क्षत्रिय, ब्राहुई भाषी और आभीर संबद्ध मानते हैं। सम्भवत: इन मान्यताओं का श्रोत यहूदीयों से सम्बद्ध ईरानी परिवार की दाहिस्तान Dagestan ने आबाद अवर (Avars) जन जाति है । जो क़जर (Khazar) अथवा अख़जई जन-जाति के सहवर्ती है । यद्यपि दौनो जन-जातियाँ यहूदीयों से सम्बद्ध हैं । परन्तु जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध ब्राह्मणों से ये जन-जातियाँ भारत में पूर्वागत हैं । यद्यपि ब्राह्मण पुरोहित होने से कभी भी आर्य्य विशेषण के भागी वहीं रहे । क्योंकि आर्य्य नाम यौद्धाअथवा वीर का वाचक है आर्य्य नाम अहीर आयर अफर आयबेरिया आर आदि का रूपान्तरण है । जिन्हें भारतीय पुराणों में गुर्जर और आभीर तथा जाट रूप में  में वर्णित किया गया है । ये पूर्व में चरावाहे थे ।जो कालान्तरण में सबसे बड़े कृषक भी बने । भारतीय वर्ण व्यवस्था में, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय,तथा चर्मकार, मीणा, कुम्हार, दास, भील, बंजारा अन्य लोग शूद्रों के रूप में पद से उत्पन्न होने के कारण पदपरिचर्या तक सीमित कर दिए। पदचर्या शूद्रों का विशिष्ट व्यवसाय निर्धारित कर दिया । वस्तुत  ब्राह्मण -व्यवस्था ने ये मन: कल्पित परिभाषाऐं स्वार्थ की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर बनायीं , शूद्रों के लिए कोई अधिकार नहीं था सिवाय कर्तव्यों के यहाँ तक कि " द्विजों के साथ आसन, शयन वाक और पथ में समता की इच्छा रखने वाला शूद्र दंड्य है। शूद्र शब्द का व्युत्पत्यर्थ निकालने के जो प्रयास भारतीय पुरोहितों द्वारा  हुए हैं, वे अनिश्चितताओं से युक्त लगते हैं ; और उनसे वर्ण की समस्या को सुलझाने में शायद ही कोई सहायता मिलती हो। पुष्य-मित्र शुँग कालीन पुरोहितों ने बादरायण का काल्पनिक आरोपण करके शूद्र शब्द की काल्पनिक व अव्याकरणिक व्युत्पत्ति- करने की असफल चेष्टा भी की है जो दर्शनीय है :-- सबसे पहले 'वेदान्त सूत्र' में बादरायण ने इस दिशा में प्रयास किया था। इसमें 'शूद्र' शब्द को दो भागों में विभक्त कर दिया गया है- 'शुक्’ और ‘द्र’, जो ‘द्रु’ धातु से बना है और जिसका अर्थ है, दौड़ना। इसकी टीका करते हुए :-शंकर ने इस बात की तीन वैकल्पिक व्याख्याएँ की हैं कि जानश्रुति शूद्र क्यों कहलाया - __________________________________________ 'वह शोक के अन्दर दौड़ गया’, - ‘वह शोक निमग्न हो गया’:--- (शुचम् अभिदुद्राव) ‘उस पर शोक दौड़ आया’, - ‘उस पर सन्ताप छा गया’ (शुचा वा अभिद्रुवे) ‘अपने शोक के मारे वह रैक्व दौड़ गया’ (शुचा वा रैक्वम् अभिदुद्राव)। शंकर का निष्कर्ष है कि शूद्र, शब्द के विभिन्न अंगों की व्याख्या करने पर ही उसे समझा जा सकता है, अन्यथा नहीं। बादरायण द्वारा 'शूद्र' शब्द की व्युत्पत्ति और शंकर द्वारा उसकी व्याख्या दोनों ही वस्तुत: असंतोषजनक हैं। केवल काल्पनिक उड़ाने मात्र हैं । कहा जाता है कि शंकर ने जिस जानश्रुति का उल्लेख किया है, वह अथर्ववेद में वर्णित उत्तर - पश्चिम भारत के निवासी महावृषों पर राज्य करता था। यह अनिश्चित है कि वह 'शूद्र वर्ण' का था। वह या तो 'शूद्र जनजाति' का था या उत्तर-पश्चिम की किसी जाति का था, जिसे ब्राह्मण लेखकों ने शूद्र के रूप में चित्रित किया है। पाणिनि के अनुसार पाणिनि के व्याकरण में 'उणादिसूत्र' के लेखक ने इस शब्द की ऐसी ही व्यत्पत्ति की है, जिसमें शूद्र शब्द के दो भाग किए गए हैं, अर्थात् धातु 'शुच्' या में रक् प्रत्यय ( शुक् र) की व्याख्य के रूप में परन्तु यह व्युत्पत्ति भी नियम-विरुद्ध और कठिन है और यह व्युत्पत्ति भी काल्पनिक और अस्वाभाविक से पूर्ण  है। पुराणों के अनुसार पुराणों में जो परम्पराएँ हैं, उनसे भी शूद्र शब्द 'शुच्' धातु से सम्बद्ध जान पड़ता है, जिसका अर्थ होता है, संतप्त होना। कहा जाता है कि ‘जो खिन्न हुए और भागे, शारीरिक श्रम करने के अभ्यस्त थे तथा दीन-हीन थे, उन्हें शूद्र बना दिया गया’। किन्तु शूद्र शब्द की ऐसी व्याख्या उसके व्युत्पत्यर्थ बताने की अपेक्षा परवर्ती काल में शूद्रों की स्थिति पर ही प्रकाश डालती है। ये व्युत्पत्तियाँ पूर्व -दुराग्रहों से ग्रसित अधिक हैं । बौद्धों द्वारा प्रस्तुत व्याख्या भी ब्राह्मणों की व्याख्या की ही तरह काल्पनिक मालूम होती है। क्योंकि यहाँ भी ब्राह्मण वाद का संक्रमण हो गया था बुद्ध के अनुसार जिन व्यक्तियों का आचरण आतंकपूर्ण और हीन कोटि का था वे सुद्द[कहलाने लगे और इस तरह सुद्द, संस्कृत-शूद्र शब्द बना। परन्तु बुद्ध ने कभी ऐसा नहीं कहा । यदि मध्यकाल के बौद्ध शब्दकोश में शूद्र शब्द क्षुद्र का पर्याय बन गया,और इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि शूद्र शब्द क्षुद्र से बना है। परन्तु ये सभी सम्भावनाऐं मात्र हैं । शूद्र शब्द की सॉग्डियन से साम्य दर्शनीय है। यद्यपि ब्राह्मणों और परवर्ती ब्राह्मण संक्रमण से ग्रसित बौद्धों की दोनों ही व्युत्पत्तियाँ भाषाविज्ञान की दृष्टि से असंतोषजनक हैं । किन्तु फिर भी महत्त्वपूर्ण इस लिए हैं ,( क्योंकि उनसे प्राचीन काल में 'शूद्र वर्ण' के प्रति प्रचलित भारतीय ब्राह्मण समाज की धारणा का सम्यक् ज्ञान मिलता है) तत्कालीन समाज का प्रभाव:- ब्राह्मणों द्वारा प्रस्तुत व्युत्पत्ति में शूद्रों की दयनीय अवस्था का चित्रण किया गया है, किन्तु बौद्ध व्युत्पत्ति में समाज में उनकी हीनता और न्यूनता का ) पर कालान्तरण में भारतीय समाज में वर्ण व्यवस्था की विकृति -पूर्ण परिणति जाति वाद के रूप में हुई। जिसके सूत्र ऋग्वेद के प्रारम्भिक व प्राचीन सूक्तों में नहीं प्राप्त होते हैं । (ऋग्वेद के नवम मण्डल में एक ऋचा है - कारुर् अहम् ततो भिषग् उपल प्रक्षिणी नना) ऋग्वेद ९ । ११२ । ३ “नना माता दुहिता वा नमनक्रियायोग्यत्वात् । माता खल्वपत्यं प्रति स्तनपानादिना नमनशीला भवति । दुहिता वा शुश्रूषार्थम्” सायण-भाष्य । २ मातरि ३ दुहितरि च स्त्री ये नना। सुमेरियन देवी इनन्ना और नना ही है । ऋचा का अर्थ है 👇 अर्थात् "मैं करीगर हूँ पिता वैद्य और माता पीसने वाली है- यह ऋचा इस तथ्य की सूचक है , कि आर्यों का प्रवास जब मैसॉपोटामियन संस्कृतियों के सम्पर्क में था । मैसॉपोटामिया की पुरातन कथाओं का समायोजन ईरानी आर्यों की कथाओं से हो जाता है । ये दौनों आर्य ही कालान्तरण में असुर और देव कहलाए । ;तब तक कोई वर्ण-व्यवस्था नहीं थी । वर्ग अवश्य था । हाँ गॉलों की ड्रयूड( Druids ) संस्कृति के चिर प्रतिद्वन्द्वी जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध आर्यों का जब भू-मध्य-रेखीय देश भारत में प्रवेश हुआ तो यहाँ गॉल जन-जाति के अन्य रूप भरत (Britons) और स्वयं गॉल जन-जाति के लोग कोेल (कोरी) पहले से रहते थे । मनु -स्मृति तथा आपस्तम्ब गृह्य शूत्रों ने भी प्रायः जाति गत वर्ण व्यवस्था का ही अनुमोदन किया है। इन ग्रन्थों का लेखन कार्य तो अर्वाचीन ही है । प्राचीन नहीं । क्योंकि मनु सम्पूर्ण द्रविड और जर्मनिक जन-जातियाँ के आदि पुरुष थे । वर्तमान में मनु के नाम पर ग्रन्थ मनु-स्मृति जो शूद्रों को लक्ष्य करके योजना बद्ध तरीके से लिपिबद्ध है । केवल पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के समकालिक रचना है । शूद्रों के अधिकारों को समाप्त करने तथा उन्हें सदैव हीन बना करने के लिए पुष्य-मित्र शुँग कालीन में मनु: स्मृति की रचना हुई । प्रस्तुत हैं मनु: स्मषति के कुछ नकारात्मक पक्ष । मनु स्मृति के कुछ अमानवीय रूप भी आलोचनीय हैं । " शक्तिनापि हि शूद्रेण न कार्यो धन सञ्चय: शूद्रो हि धनम् असाद्य ब्राह्मणानेव बाधते ।। १०/१२६ अर्थात् शक्ति शाली होने पर भी शूद्र के द्वारा धन सञ्चय नहीं करना चाहिए ; क्योंकि धनवान बनने पर शूद्र ब्राह्मणों को बाधा पहँचा के हैं । ------------------------------------------------------------------ विस्त्रब्धं ब्राह्मण: शूद्राद् द्रव्योपादाना माचरेत् । नहि तस्यास्ति किञ्चितस्वं भर्तृहार्य धनो हि स:।। ८/४१६ अर्थात् शूद्र द्वारा अर्जित धन को ब्राह्मण निर्भीक होकर से सकता है । क्योंकि शूद्र को धन रखने का अधिकार नहीं है । उसका धन उसको स्वामी के ही अधीन होता है ----------------------------------------------------------------- नाम जाति ग्रहं तु एषामभिद्रोहेण कुर्वत: । निक्षेप्यो अयोमय: शंकुर् ज्वलन्नास्ये दशांगुल : । ।८/२१७ अर्थात् कोई शूद्र द्रोह (बगावत) द्वारा ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य वर्ग का नाम उच्चारण भी करता है तो उसके मुंह में दश अंगुल लम्बी जलती हुई कील ठोंक देनी चाहिए । ------------------------------------------------------------------- एकजातिर्द्विजातिस्तु वाचा दारुण या क्षिपन् । जिह्वया: प्राप्नुयाच्छेदं जघन्यप्रभवो हि स:।८/२६९ अर्थात् ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य वर्ग को यदि अप शब्द बोले जाएें तो उस शूद्र की जिह्वा काट लेनी चाहिए । तुच्छ वर्ण का होने के कारण उसे यही दण्ड मिलना चाहिए । ----------------------------------------------------------------- पाणिमुद्यम्य दण्डं वा पाणिच्छेदनम् अर्हति । पादेन प्रहरन्कोपात् पादच्छेदनमर्हति ।।२८०। अर्थात् शूद्र अपने जिस अंग से द्विज को मारेउसका वही अंग काटना चाहिए । यदि द्विज को मानने के लिए हाथ उठाया हो अथवा लाठी तानी हो तो उसका हाथ काट देना चाहिए और क्रोध से ब्राह्मण को लात मारे तो उसका पैर काट देना चाहिए । ------------------------------------------------------------------- ब्राह्मणों के द्वारा यदि कोई बड़ा अपराध होता है तो तो उसका केवल मुण्डन ही दण्ड है । बलात्कार करने पर भी ब्राह्मण को इतना ही दण्ड शेष है । __________________________________________ "मौण्ड्य प्राणान्तिको दण्डो ब्राह्मणस्य विधीयते। इतरेषामं तु वर्णानां दण्ड: प्राणान्तिको भवेत् ।।३७९।। न जातु ब्राह्मणं हन्यात् सर्व पापेषु अपि स्थितम् । राष्ट्राद् एनं बाहि: कुर्यात् समग्र धनमक्षतम् ।।३८०।। अर्थात् ब्राह्मण के सिर के बाल मुड़ा देना ही उसका प्राण दण्ड है । परन्तु अन्य वर्णों को प्राण दण्ड देना चाहिए । सब प्रकार के पाप में रत होने पर भी ब्राह्मण का बध कभी न करें।उसे धन सहित बिना मारे अपने देश से विकास दें । ------------------------------------------------------------------- ब्राह्मणों द्वारा अन्य वर्ण की कन्याओं के साथ व्यभिचार करने को भी कर्तव्य नियत करने का विधान घोषित करना :---- "उत्तमां सेवमानस्तु जघन्यो वधमर्हति ।। शुल्कं दद्यात् सेवमानस्तु :समामिच्छेत्पिता यदि।।३६६। अर्थात् उत्तम वर्ण (ब्राह्मण)जाति के पुरुष के साथ सम्भोग करने की इच्छा से उस ब्राह्मण आदि की सेवा करने वाली कन्या को राजा कुछ भी दण्ड न करे । पर उचित वर्ण की कन्या का हीन जाति के साथ जाने पर राजा उचित नियमन करे । उत्तम वर्ण की कन्या के साथ सम्भोग करने वाला नीच वर्ण का व्यक्ति वध के योग्य है ।। समान वर्ण की कन्या के साथ सम्भोग करने वाला , यदि उस कन्या का पिता धन से सन्तुष्ट हो तो पुरुष उस कन्या से धन देकर विवाह कर ले । ------------------------------------------------------------------- पुष्य मित्र सुंग काल का सामाजिक विधान देखिए:- " सह आसनं अभिप्रेप्सु: उत्कृष्टस्यापकृष्टज: कटयां कृतांको निवास्य: स्फिर्च वास्यावकर्तयेत्।।२८१।। अवनिष्ठीवती दर्पाद् द्वावोष्ठौ छेदयेत् नृप: । अवमूत्रयतो मेढमवशर्धयतो गुदम् ।।२८२।। _______________________________________ अर्थात् जो शूद्र वर्ण का व्यक्ति ब्राह्मण आदि वर्णों के साथ आसन पर बैठने की इच्छा करता है तो राजा उसके तो राजा उसके कमर मे छिद्र करके देश से निकाल दे । अथवा उसके नितम्ब का मास कटवा ले राजा ब्राह्मण के ऊपर थूकने वाले अहंकारी के दौनों ओष्ठ तथा मूत्र विसर्जन करने वाला लिंग और अधोवायु करने वाला मल- द्वार कटवा दे ------------------------------------------------------------------- समस्या यह है कि हमारा दलित समाज मनु-स्मृति को मनु द्वारा लिखित मानता है । जबकि मनु का प्रादुर्भाव भारतीय धरा पर हुआ ही नहीं:-देखें , क्योंकि पुष्यमित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मण समाज ने उसे मनु के नाम पर रच दिया है । अब इन लोगों ने राम और कृष्ण को भी ब्राह्मण समाज द्वारा बल-पूर्वक आरोपित वर्ण व्यवस्था का पोषक वर्णित कर दिया है । जबकि वस्तु स्थिति इसको विपरीत है । कृष्ण को ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ९६ वें सूक्त में असुर के रूप में वर्णित किया गया है । मनु के विषय में सभी धर्म - मतावलम्बी अपने अपने पूर्वाग्रह से ग्रस्त मिले , किसी ने मनु को अयोध्या का आदि पुरुष कहा , तो किसी ने हिमालय का अधिवासी कहा है । ________________________________________ परन्तु सत्य के निर्णय निश्पक्षता के सम धरातल पर होते हैं , न कि पूर्वाग्रह के -ऊबड़ खाबड़ स्थलों पर " -------------------------------------------------------------- विश्व की सभी महान संस्कृतियों में मनु का वर्णन किसी न किसी रूप में अवश्य हुआ है ! परन्तु भारतीय संस्कृति में यह मान्यता अधिक प्रबल तथा पूर्णत्व को प्राप्त है । इसी आधार पर काल्पनिक रूप से ब्राह्मण समाज द्वारा वर्ण-व्यवस्था का समाज पर आरोपण कर दिया गया , जो.. वैचारिक रूप से तो सम्यक् था । परन्तु जाति अथवा जन्म के आधार पर दोष-पूर्ण व अवैज्ञानिक ही था । इसी वर्ण-व्यवस्था को ईश्वरीय विधान सिद्ध करने के लिए काल्पनिक रूप से ब्राह्मण समाज ने मनु-स्मृति की रचना की  जिसमें तथ्य समायोजन इस प्रकार किया गया कि स्थूल दृष्टि से कोई बात नैतिक रूप से मिथ्या प्रतीत न हो । यह कृति पुष्यमित्र सुंग (ई०पू०१८४) के समकालिक, उसी के निर्देशन में ब्राह्मण समाज द्वारा रची गयी है । परन्तु... मनु भारतीय धरा की विरासत नहीं थे । और ना हि अयोध्या उनकी जन्म भूमि थी । प्राचीन काल में एशिया - माइनर ---(छोटा एशिया), जिसका ऐतिहासिक नाम करण अनातोलयियो के रूप में भी हुआ है । यूनानी इतिहास कारों विशेषत: होरेडॉटस् ने अनातोलयियो के लिए एशिया माइनर शब्द का प्रयोग किया है । जिसे आधुनिक काल में तुर्किस्तान अथवा टर्की नाम से भी जानते हैं । यहाँ की पार्श्व -वर्ती संस्कृतियों में मनु की प्रसिद्धि उन सांस्कृतिक-अनुयायीयों ने अपने पूर्व- जनियतृ { Pro -Genitor }के रूप में स्वीकृत की है ! मनु को पूर्व- पुरुष मानने वाली जन-जातियाँ प्राय: भारोपीय वर्ग की भाषाओं का सम्भाषण करती रहीं हैं । ___________________________________________ वस्तुत: भाषाऐं सैमेटिक वर्ग की हो अथवा हैमेटिक वर्ग की अथवा भारोपीय , सभी भाषाओं मे समानता का कहीं न कहीं सूत्र अवश्य है । जैसा कि मिश्र की संस्कृति में मिश्र का प्रथम पुरूष जो देवों का का भी प्रतिनिधि था , वह मेनेस् (Menes)अथवा मेनिस् Menis संज्ञा से अभिहित था मेनिस ई०पू० 3150 के समकक्ष मिश्र का प्रथम शासक था , और मेंम्फिस (Memphis) नगर में जिसका निवास था , मेंम्फिस प्राचीन मिश्र का महत्वपूर्ण नगर जो नील नदी की घाटी में आबाद है । तथा यहीं का पार्श्वर्ती देश फ्रीजिया (Phrygia)के मिथकों में मनु का वर्णन मिअॉन (Meon)के रूप में है। मिअॉन अथवा माइनॉस का वर्णन ग्रीक पुरातन कथाओं में क्रीट के प्रथम राजा के रूप में है , जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र है । और यहीं एशिया- माइनर के पश्चिमीय समीपवर्ती लीडिया( Lydia) देश वासी भी इसी मिअॉन (Meon) रूप में मनु को अपना पूर्व पुरुष मानते थे। इसी मनु के द्वारा बसाए जाने के कारण लीडिया देश का प्राचीन नाम मेअॉनिया Maionia भी था . ग्रीक साहित्य में विशेषत: होमर के काव्य में --- मनु को (Knossos) क्षेत्र का का राजा बताया गया है। कनान देश की कैन्नानाइटी(Canaanite ) संस्कृति में बाल -मिअॉन के रूप में भारतीयों के बल और मनु (Baal- meon)और यम्म (Yamm) देव के रूप मे वैदिक देव यम से साम्य विचारणीय है- यम:- यहाँ भी भारतीय पुराणों के समान यम का उल्लेख यथाक्रम नदी ,समुद्र ,पर्वत तथा न्याय के अधिष्ठात्री देवता के रूप में हुआ है कनान प्रदेश से ही कालान्तरण में सैमेटिक हिब्रु परम्पराओं का विकास हुआ था । स्वयम् कनान शब्द भारोपीय है , केन्नाइटी भाषा में कनान शब्द का अर्थ होता है मैदान अथवा जड्.गल यूरोपीय कोलों अथवा कैल्टों की भाषा पुरानी फ्रॉन्च में कनकन (Cancan)आज भी जड्.गल को कहते हैं । और संस्कृत भाषा में कानन =जंगल.. परन्तु कुछ बाइबिल की कथाओं के अनुसार कनान हेम (Ham)की परम्पराओं में एनॉस का पुत्र था । जब कैल्ट जन जाति का प्रव्रजन (Migration) बाल्टिक सागर से भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में हुआ। तब  मैसॉपोटामिया की संस्कृतियों में कैल्डिया के रूप में इनकी दर्शन हुआ तब यहाँ जीव सिद्ध ( जियोसुद्द )अथवा नूह के रूप में मनु की किश्ती और प्रलय की कथाओं की रचना हुयी और तो क्या ? यूरोप का प्रवेश -द्वार कहे जाने वाले ईज़िया तथा क्रीट( Crete )की संस्कृतियों में मनु आयॉनिया के आर्यों के आदि पुरुष माइनॉस् (Minos)के रूप में प्रतिष्ठित हए । भारतीय पुराणों में मनु और श्रृद्धा का सम्बन्ध वस्तुत: मन के विचार (मनु) और हृदय की आस्तिक भावना (श्रृद्धा ) का मानवीय-करण (personification) रूप है। शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मनु को मनु के विषय में सभी धर्म - मतावलम्बी अपने अपने पूर्वाग्रह से ग्रस्त मिले , किसी ने मनु को अयोध्या का आदि पुरुष कहा , तो किसी ने हिमालय का अधिवासी कहा है । ____________________________________________ परन्तु सत्य के निर्णय निश्पक्षता के सम धरातल पर होते हैं , न कि पूर्वाग्रह के -ऊबड़ खाबड़ स्थलों पर " ------------------------------------------------------------------ विश्व की सभी महान संस्कृतियों में मनु का वर्णन किसी न किसी रूप में अवश्य हुआ है ! परन्तु भारतीय संस्कृति में यह मान्यता अधिक प्रबल तथा पूर्णत्व को प्राप्त है । इसी आधार पर काल्पनिक रूप से ब्राह्मण समाज द्वारा वर्ण-व्यवस्था का समाज पर आरोपण कर दिया गया , जो.. वैचारिक रूप से तो सम्यक् था । परन्तु जाति अथवा जन्म के आधार पर दोष-पूर्ण व अवैज्ञानिक ही था । इसी वर्ण-व्यवस्था को ईश्वरीय विधान सिद्ध करने के लिए काल्पनिक रूप से ब्राह्मण समाज ने मनु-स्मृति की रचना की जिसमें तथ्य समायोजन इस प्रकार किया गया कि स्थूल दृष्टि से कोई बात नैतिक रूप से मिथ्या प्रतीत न हो । यह कृति पुष्यमित्र सुंग (ई०पू०१८४) के समकालिक, उसी के निर्देशन में ब्राह्मण समाज द्वारा रची गयी है । परन्तु... मनु भारतीय धरा की विरासत नहीं थे । और ना हि अयोध्या उनकी जन्म भूमि थी । प्राचीन काल में एशिया - माइनर ---(छोटा एशिया), जिसका ऐतिहासिक नाम करण अनातोलयियो के रूप में भी हुआ है । यूनानी इतिहास कारों विशेषत: होरेडॉटस् ने अनातोलयियो के लिए एशिया माइनर शब्द का प्रयोग किया है । जिसे आधुनिक काल में तुर्किस्तान अथवा टर्की नाम से भी जानते हैं । यहाँ की पार्श्व -वर्ती संस्कृतियों में मनु की प्रसिद्धि उन सांस्कृतिक-अनुयायीयों ने अपने पूर्व- जनियतृ { Pro -Genitor }के रूप में स्वीकृत की है ! मनु को पूर्व- पुरुष मानने वाली जन-जातियाँ प्राय: भारोपीय वर्ग की भाषाओं का सम्भाषण करती रहीं हैं । वस्तुत: भाषाऐं सैमेटिक वर्ग की हो अथवा हैमेटिक वर्ग की अथवा भारोपीय , सभी भाषाओं मे समानता का कहीं न कहीं सूत्र अवश्य है । जैसा कि मिश्र की संस्कृति में मिश्र का प्रथम पुरूष जो देवों का का भी प्रतिनिधि था , वह मेनेस् (Menes)अथवा मेनिस् Menis संज्ञा से अभिहित था मेनिस ई०पू० 3150 के समकक्ष मिश्र का प्रथम शासक था , और मेंम्फिस (Memphis) नगर में जिसका निवास था , मेंम्फिस... प्राचीन मिश्र का महत्वपूर्ण नगर जो नील नदी की घाटी में आबाद है । तथा यहीं का पार्श्वर्ती देश फ्रीजिया (Phrygia)के मिथकों में ....मनु का वर्णन मिअॉन (Meon)के रूप में है ,। मिअॉन अथवा माइनॉस का वर्णन ग्रीक पुरातन कथाओं में क्रीट के प्रथम राजा के रूप में है , जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र है । तथा उनके पूर्वज यदु को दास अथवा शूद्र कहा गया है:-- देखें--- उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे----अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनो दास गायों से घिरे हुए हैं हम उन मुस्कराहठ से पूर्ण दृष्टि वाले यदु और तुर्वसु नामक दौनो दासों की सराहना करते हैं । वाल्मीकि-रामायण में राम के मुख से तथागत बुद्ध को चोर और नास्तिक कहलवाया गया है। यथा ही चोर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि । राम सम्बूक का वध केवल शूद्र होकर तपस्या करने पर कर देते हैं । केवल पुष्यमित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मण समाज द्वारा बनाया गया कल्पित उपाख्यान है । शूद्रों की तप साधना को प्रतिबन्धित करने के लक्ष्य से -- वर्ण-व्यवस्था वस्तुत वर्ग व्यवस्था थी । जो व्यक्ति के स्वेैच्छिक व्यवसाय पर आधारित थी । परन्तु आर्यों की सामाजिक प्रणाली में वर्ण व्यवस्था का प्रादुर्भाव कब हुआ ? और कहाँ से हुआ ? काल्पनिक रूप से शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति बौद्ध काल के परवर्ती चरण में की गयी -- _______________________________________ जो इस प्रकार है " शुच--रक् पृषो० चस्य दः दीर्घश्च । १ चतुर्थे वर्णे स्त्रियां टाप् । सेवक शब्द का मूल अर्थ भी देखें:--- सीव्यति सिव--ण्वुल् । १ सीवनकर्त्तरि (दरजी) सेव--ण्वुल् । २ भृत्ये ३ दासे ४ अनुचरे च त्रि० मेदिनी कोश । यद्यपि शुच् धातु का एक अर्थ शूचिकर्मणि भी है । शूद्रा शूद्रजातिस्त्रियाम् । पुंयोगे ङीष् । शूद्री शूद्रभार्य्यायाम् । शुचा द्रवति द्रु० ड पृषो० । इस यथार्थ के धरातल पर शूद्र कौन थे ? तथ्य को मेेेैंने अपने अनुसन्धान का विषय बनाया है ....मनस्वी पाठकों से मैं यही निवेदन करता हूँ ,हमारे इन तथ्यों की समीक्षा कर अवश्य प्रतिक्रियाऐं प्रेषित करें । वर्ण व्यवस्था का वैचारिक उद्भव अपने बीज - वपन प में आज से सात हज़ार वर्ष पूर्व बाल्टिक सागर के तट- वर्ती स्थलों पर होगया था । जहाँ जर्मन के आर्यों तथा यहीं बाल्टिक सागर के दक्षिण -पश्चिम में बसे हुए ..गोैलॉ (कोलों) .वेल्सों .ब्रिटों (व्रात्यों ) के पुरोहित ड्रयडों (Druids )के सांस्कृतिक द्वेष के रूप में हुआ था ...यह मेरे प्रबल प्रमाणों के दायरे में है.। प्रारम्भ में केवल दो ही वर्ण थे ! आर्य और ड्रयूड (द्रविड).जिन्हें यूरोपीयन संस्कृतियों में क्रमशः ------------------------------------------------------------ Ehre (एर )"The honrable people in Germen tribes who fights whith Druids prophet "....... जर्मन भाषा में आर्य शब्द के ही इतर रूप हैं ...Arier तथाArisch आरिष यही एरिष Arisch शब्द जर्मन भाषा की उप शाखा डच और स्वीडिस् में भी विद्यमान है। और दूसरा शब्द शुट्र( Shouter.) है । शुट्र शब्द का परवर्ती उच्चारण साउटर Souter शब्द के रूप में भी है, शाउटर यूरोप की धरा पर स्कॉटलेण्ड के मूल निवासी थे ., इसी का इतर नाम आयरलेण्ड भी था। (Definition of souter) chiefly Scotland :shoemaker People Are Reading 'Muster' or 'Mustard': Which Gets a Pass? Trending: Kim Jong Un: Trump a 'Dotard' September 2017 Words of the Day Quiz Origin and Etymology of souter Middle English, from Old English sūtere, from Latin sutor, from suere to sew — more at sew Souterplay biographical name Sou·ter \ ˈsü-tər \ Definition of Souter David 1939–      American jurist Learn More about souter See words that rhyme with souter Seen and Heard What made you want to look up souter? Please tell us where you read or heard it (including the quote, if possible). SHOW Love words? Need even more definitions? Subscribe to America's largest dictionary and get thousands more definitions and advanced search—ad free! *syu- syū-, also sū:-, Proto-Indo-European root meaning "to bind, sew." It forms all or part of: accouter; couture; hymen; Kama Sutra; seam; sew; souter; souvlaki; sutra; sutile; suture. It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by: Sanskrit sivyati "sews," sutram "thread, string;" Greek hymen "thin skin, membrane," hymnos "song;" Latin suere "to sew, sew together;" Old Church Slavonic šijo "to sew," šivu "seam;" Lettish siuviu, siuti "to sew," siuvikis "tailor;" Russian švec "tailor;" Old English siwian "to stitch, sew, mend, patch, knit together .. ________________________________________ आयर लोग आयबेरिया अर्थात् वर्तमान स्पेन और पुर्तगाल का क्षेत्र ही था । यही जॉर्जिया (गुर्जिस्तान) भी कहलाया । जिसके पश्चिम में फ्राँस की सीमाऐं है । जिसे प्राचीन गॉल देश कहा जाता था । . . शुट्र लोग गॉल अथवा ड्रयूडों की ही एक शाखा थी जो परम्परागत से चर्म के द्वार वस्त्रों का निर्माण और व्यवसाय करती थी ... (.Shouter a race who had sewed Shoes and Vestriarium..for nordic Germen tribes is called Souter or shouter . souter souter "maker or mender of shoes," O.E. sutere, from L. sutor "shoemaker," from suere "to sew, stitch" (see SEW (Cf. sew)). souteneursouth Look at other dictionaries: Souter — is a surname, and may refer to:* Alexander Souter, Scottish biblical scholar * Brian Souter, Scottish businessman * Camille Souter, Irish painter * David Souter, Associate Justice of the Supreme Court of the United States * David Henry Souter,… … Wikipedia souter — ● souter verbe transitif (de soute) Fournir ou recevoir à bord le combustible nécessaire aux chaudières ou aux moteurs d un navire. ⇒SOUTER, verbe trans. Souter — Sou ter, n. [AS. s?t?re, fr. It. sutor, fr. suere to sew.] A shoemaker; a cobbler. [Obs.] Chaucer. [1913 Webster] There is no work better than another to please God: . . . to wash dishes, to be a souter, or an apostle, all is one. Tyndale. [1913… … The Collaborative International Dictionary of English … English World dictionary Souter — This unusual and interesting name is of Anglo Saxon origin, and is an occupational surname for a shoemaker or a cobbler. The name derives from the Old English pre 7th Century word sutere , from the Latin sutor , shoemaker, a derivative of suere … Surnames reference souter — noun Etymology: Middle English, from Old English sūtere, from Latin sutor, from suere to sew more at sew Date: before 12th century chiefly Scottish shoemaker … New Collegiate Dictionary Souter — biographical name David 1939 American jurist … New Collegiate Dictionary souter — /sooh teuhrdd/, n. Scot. and North Eng. a person who makes or repairs shoes; cobbler; shoemaker. Also, soutter. [bef. 1000; ME sutor, OE sutere < L sutor, equiv. to su , var. s. of su(ere) to SEW1 tor TOR] * * * … Universalium Souter — /sooh teuhr/, , MODx. *eu-(vest) संस्कृत भाषा में वस्त्र शब्द का विकास - इयु (उ) व का सम्प्रसारण रूप है । Proto-Indo-European root meaning "to dress," with extended form *wes- (2) "to clothe." It forms all or part of: divest; exuviae; invest; revetment; transvestite; travesty; vest; vestry; wear. संस्कृत भाषा में भृ धारण करना । It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by: Hittite washshush "garments," washanzi "they dress;" Sanskrit vaste "he puts on," vasanam "garment;" Avestan vah-; वह (वस) Greek esthes "clothing," hennymi "to clothe," eima "garment;" Latin vestire "to clothe;" Welsh gwisgo, Breton gwiska; Old English werian "to clothe, put on, cover up," wæstling "sheet, blanket." ..... ...यूरोप की संस्कृति में वस्त्र बहुत बड़ी अवश्यकता और बहु- मूल्य सम्पत्ति थे . ..क्यों कि शीत का प्रभाव ही यहाँ अत्यधिक था.... उधर उत्तरी-जर्मन के नार्वे आदि संस्कृतियों में इन्हें सुटारी (Sutari ) के रूप में सम्बोधित किया जाता था । यहाँ की संस्कृति में इनकी महानता सर्व विदित है यूरोप की प्राचीन सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह शब्द ...सुटॉर.(Sutor ) के रूप में है ...तथा पुरानी अंग्रेजी (एंग्लो-सेक्शन) में यही शब्द सुटेयर -Sutere -के रूप में है.. जर्मनों की प्राचीनत्तम शाखा गॉथिक भाषा में यही शब्द सूतर (Sooter )के रूप में है... विदित हो कि गॉथ जर्मन आर्यों का एक प्राचीन राष्ट्र है । जो विशेषतः बाल्टिक सागर के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है । बाल्टिक सागर को स्केण्डिनेविया भी कहते हैं । बहुत बाद में ईसा की तीसरी शताब्दी में डेसिया राज्य में इन शुट्र लोगों ने प्रस्थान किया। डेसिया का समावेश इटली के अन्तर्गत हो गया ! क्योंकि रोमन जन-जाति के यौद्धा यूरोप में सर्वत्र अपना सामाज्र्य विस्तार कर रहे थे । गॉथ राष्ट्र की सीमाऐं दक्षिणी फ्रान्स तथा स्पेन तक थी । रोमन सत्ता ने यहाँ भी दस्तक दी उत्तरी जर्मन में यही गॉथ लोग ज्यूटों के रूप में प्रतिष्ठित थे । और भारतीय आर्यों में ये गौडों के रूप में परिलक्षित होते हैं। ये बातें आकस्मिक और काल्पनिक नहीं हैं , क्यों कि यूरोप में जर्मन आर्यों की बहुत सी शाखाऐं प्राचीन भारतीय गोत्र-प्रवर्तक ऋषियों के आधार पर हैं, जैसे अंगिरस् ऋषि के आधार पर जर्मनों की ऐञ्जीलस् Angelus या Angle. जिन्हें पुर्तगालीयों ने अंग्रेज कहा था । ईसा की पाँचवीं सदी में ब्रिटेन के मूल वासीयों को परास्त कर ब्रिटेन का नाम- करण इन्होंने आंग्ल -लेण्ड कर दिया था... जर्मन आर्यों में गोत्र -प्रवर्तक भृगु ऋषि के वंशज (Borough)...उपाधि अब भी लगाते हैं और वशिष्ठ के वंशज बेस्त कह लाते हैं समानताओं के और भी स्तर हैं । .परन्तु हमारा वर्ण्य विषय शूद्रों से ही सम्बद्ध है लैटिन भाषा में शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन क्रिया स्वेयर -- Suere = to sew( सीवन करना )- सिलना अथवा ,वस्त्र -वपन करना . विदित हो कि संस्कृत भाषा में भी शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति शुट्र शब्द के समान है देखें (श्वि द्रा क )= शूद्र .. अर्थात् श्वि धातु संज्ञा करणे में द्रा क प्रत्यय परे करने पर शूद्र शब्द बनता है ! कहीं कहीं भागुरि आचार्य के मतानुसार कोश कारों ने ....शुच् = शूचि कर्मणि धातु में संज्ञा भावे रक् प्रत्यय करने पर दीर्घ भाव में इस शब्द की व्युत्पत्ति-सिद्ध की है । और इस शब्द का पर्याय सेवक शब्द है .......जिसका भी मूल अर्थ होता है... वस्त्रों का सीवन sewing ..करने वाला .. souter (n.)सुट्र --- "maker or mender of shoes," Old English sutere, from Latin sutor "shoemaker," from suere "to sew, stitch" (from PIE root *syu- "to bind, sew"). ----------------------------------------------------------------- विचार केवल संक्षेप में ही व्यक्त करुँगा ! भारतीय आर्यों ने अपने आगमन काल में भारतीय धरा पर द्रविडों की शाखा कोलों को ही शूद्रों की प्रथम संज्ञा प्रदान की थी जिन्हें दक्षिण भारत में चोल .या चौर तथा चोड्र भी कहा गया था कोरी- जुलाहों के रूप में आज तक ये लोग वस्त्रों का परम्परागत रूप से निर्माण करते चले आरहे हैं । बौद्ध काल के बाद में लिपि- बद्ध ग्रन्थ पुराणों आदि में शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति- करने के काल्पनिक निरर्थक प्रयास भी किये गये --- जो वस्तुत असत्य ही हैं क्योंकि सत्य केवल एक रूप में होता है । और असत्य अनेक वैकल्पिक रूपों में होता है । जैसे वायु -पुराण में कहा कि " शोक करके द्रवित होने वाले परिचर्यारत व्यक्ति शूद्र कहलाया" इधर भविष्य-पुराण इससे भिन्न व्युत्पत्ति- करता है । कि "श्रुतियों अर्थात् वेद की द्रुति (अवशिष्ट अंश प्राप्त करने वाले शूद्र कहलाए " वस्तुत: ये व्युत्पत्ति की काल्पनिक उड़ाने मात्र हैं । शूद्रों का उल्लेख यूनानी इतिहास- कार डायोडॉरस तथा टॉल्मी ने भी किया है । तथा चीन के इतिहास- कार ह्वेन-सांग भी करता है । शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति-करने के जो भी प्रयास आज तक हुए हैं । वे सभी अनिश्चित तथा सन्दिग्ध ही हैं । बादरायण जिनका समय लगभग ई०पू० २००० के समकक्ष है। उनका नाम आरोपित करके किसी ने इन्हीं के नाम पर शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति-करने की असफल चेष्टा की है। जिनमें शूद्र शब्द को दो भागों मे विभक्त कर शुक् और द्र पदों से व्युत्पत्ति- दर्शायी है । अर्थात् दो धातुऐं शुच् धातु तथा द्रु धातु अर्थात् शोक करना और दौड़ना आचार्य शंकर ने अपने वेदान्त सूत्र के शारीरिक भाष्य में इस शब्द की व्युत्पत्ति- की टीका करते हुए - तीन वैकल्पिक व्याख्याऐं दी हैं । जो आनुमानिक ही हैं । कि जानाश्रुति राजा शूद्र क्यों कहलाया --- १---" वह शोक के अन्तर दौड़ गया "" स: शुचमभिदुद्राव तस्मात् कारणात् शूद्र: कथ्यते " २-"उस पर शोक दौड़ गया अथवा उस पर सन्ताप आच्छादित हो गया .. तेषुशुचा वा अभिद्रुवे... ३"अपने शोक के कारण वह रैक्व में दौड़ गया । शंकराचार्य का निष्कर्ष है , कि शूद्र शब्द के विभिन्न अंगों की व्याख्याऐं करने पर ही ,उसका व्युत्पत्ति- को समझा जा सकता है अन्यथा नहीं... वस्तुत: यहाँ बादरायण द्वारा शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति- तथा शंकराचार्य द्वारा उसका व्याख्याऐं दौनों ही असन्तोष जनक हैं । कहा जाता है कि शंकराचार्य ने जिस जानाश्रुति राजा का उल्लेख किया है , वह उत्तरी पश्चिम के निवासी महावृषों पर राज करता था । पाणिनीय व्याकरण के अनुसार उणादि सूत्र के लेखक ने शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति- तो कुछ सही की है ,परन्तु अर्थ सही नहीं किया है । शुच् धातु तथा रक् प्रत्यय परक की है । पुराणों आदि में शूद्र शब्द की जो व्युत्पत्ति- करने की चेष्टा की है । वह सत्य भले ही न हो परन्तु शूद्रों के प्रति तत्कालीन ब्राह्मण समाज की कुत्सित मानसिकता को अवश्य ध्वनित करता है । बौद्ध काल में भी इसी शब्द की व्युत्पत्ति- पर कोई सत्य प्रकाश नहीं पड़ता है । वे शूद्र को सुद्द कहते थे .. कहीं क्षुद्र शब्द से इसका तादात्म्य स्थापित करने की चेष्टा की गयी यह बहुत ही विस्मय पूर्ण है कि यहाँ दो धातुऐं के योग से शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति-की गयी है । जो कि पाणिनीय व्याकरण के सिद्धान्तों के प्रतिकूल है क्योंकि कृदन्त शब्द पदों की व्युत्पत्ति- एक ही धातु से होती है , दो धातुओं से नहीं .. संस्कृत में भी इसी शब्द का कोई व्युत्पत्ति-परक (Etymological)--प्राचीन आधार नहीं है । वस्तुत: ब्राह्मण समाज के लेखक इस शब्द को जो अर्थ देना चाहते हैं , वह केवल प्रचलित समाज में शूद्रों के प्रति परम्परागत मनोवृत्ति का प्रकाशन मात्र है । इतना ही नहीं विकृितियों की सरहद तो यहाँ पर पार हो गयी जब शूद्रों की ईश्वरीय उत्पत्ति का वैदिक सिद्धान्त भी सृजित कर लिया गया .. देखें ---- ब्राह्मणोsस्य मुखं आसीद् , बाहू राजन्य:कृत: । उरू तदस्ययद् वैश्य: पद्भ्याम् शूद्रोsजायत ।। ________________________________________ ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ९०वें सूक्त का १२वाँ श्लोक .. शूद्रों की उत्पत्ति ईश्वर के पैरों से करा कर उनके लिए आजीवन ब्राह्मण के पैरों तले पड़े रहने का कर्तव्य नियत कर दिया गया निश्चित रूप से इससे बड़ा संसार का कोई जघन्य पाप कर्म नहीं था । शूद्रों के लिए धार्मिक मान्यताओं की मौहर लगाकर ब्राह्मणों की पद-प्रणतिपरक दासता पूर्ण विधान पारित किये गये थे । कि शूद्र आजीवन ब्राह्मण तथा उनके अंग रक्षक क्षत्रियों के पैरों की सेवा करते रहें उनके पैरों के लिए जूते चप्पल बनाते रहें यह निश्चित रूप से ब्राह्मण की बुद्धि महत्ता नहीं था अपितु चालाकी से पूर्ण कपट और दोखा था । इस कृत्य के लिए ईश्वर भी क्षमा नहीं करेंगे । और कदाचित वो दिन अब आ चुके हैं । भारत में आगत आर्यों का प्रथम समागम द्रविड परिवार की एक शाखा कोलों से हुआ था । जो वस्त्रों का निर्माण कर लेते थे उन्हें ही आर्यों ने शूद्र शब्द से सम्बोधित किया था । ईरानी आर्यों ने इन्हीं वस्त्र निर्माण कर्ता शूद्रों को वास्तर्योशान अथवा वास्त्रोपश्या के रूप में अपनी वर्ण व्यवस्था में वर्गीकृत किया था । फारसी धर्म की अर्वाचीन पुस्तकों में भी आर्यों के इन चार वर्णों का वर्णन कुछ नाम परिवर्तन के साथ है। ---जैसे देखें नामामिहाबाद पुस्तक के अनुसार १ ---- होरिस्तान. जिसका पहलवी रूप है अथर्वण जिसे वेदों मैं अथर्वा कहा है .. २-----नूरिस्तान ..जिसका पहलवी रूप रथेस्तारान ...जिसका वैदिक रूप रथेष्ठा तथा ३---रोजिस्तारान् जिसका पहलवी रूप होथथायन था तथा ४---चतुर्थ वर्ण पोरिस्तारान को ही वास्तर्योशान कहा गया है। यही लोग द्रुज थे जिन्हे कालान्तरण में दर्जी भी कहा गया है । ये कैल्ट जन जाति के पुरोहितों ड्रयूडों (Druids) की ही एक शाखा थी । वर्तमान सीरिया , जॉर्डन पैलेस्टाइन अथवा इज़राएल तथा लेबनान में द्रुज लोग यहूदीयों के सहवर्ती थे । यहीं से ये लोग बलूचिस्तान होते हुए भारत में भी आये । विदित हो कि बलूचिस्तान की ब्राहुई भाषा शूद्रों की भाषा मानी जाती है । अत: इतिहास कार शूद्रों को प्रथम आगत द्रविड स्कन्द आभीरों अथवा यादवों के सहवर्ती मानते हैं ये आभीर अथवा यादव इज़राएल में अबीर कहलाए जो यहूदीयों का एक यौद्धा कब़ीला है । शूद्रों को ही युद्ध कला में महारत हासिल थी । पुरानी फ्रेंच भाषा में सैनिक अथवा यौद्धा को सॉडर Souder (Soldier )कहा जाता था । व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से -- One tribe who serves in the Army for pay is called Souder वास्तव में रोमन संस्कृति में सोने के सिक्के को सॉलिडस् (Solidus) कहा जाता था । इस कारण ये सॉल्जर कह लाए .. ये लोग पिक्टस (pictis) कहलाते थे। जो ऋग्वेद में पृक्त कहे गये । जो वर्तमान पठान शब्द का पूर्व रूप है । फ़ारसी रूप पुख़्ता ---या पख़्तून ... क्योंकि अपने शरीर को सुरक्षात्मक दृष्टि से अनेक लेपो से टेटू बना कर सजाते थे । ये पूर्वोत्तरीय स्कॉटलेण्ड में रहते थे । ये शुट्र ही थे जो स्कॉटलेण्ड में बहुत पहले से बसे हुए थे The pictis were a tribal Confederadration of peoples who lived in what is today Eastern and northern Scotland.. . ये लोग यहाँ पर ड्रयूडों की शाखा से सम्बद्ध थे । भारतीय द्रविड अथवा इज़राएल के द्रुज़ तथा बाल्टिक सादर के तटवर्ती ड्रयूड (Druids) एक ही जन जाति के लोग थे । मैसॉपोटामिया की संस्कृतियों एक संस्कृति केल्डियनों (Chaldean) सेमेटिक जन-जाति की भी है । जो ई०पू० छठी सदी में विद्यमान रहे हैं । बैवीलॉनियन संस्कृतियों में इनका अतीव योगदान है । यूनानीयों ने इन्हें कालाडी (khaldaia ) कहा है । ये सेमेटिक जन-जाति के थे । अत: भारतीय पुराणों में इन्हें सोम वंशी कहा । जो कालान्तरण में चन्द्र का विशेषण बनकर चन्द्र वंशी के रूप में रूढ़ हो गया । पुराणों में भी प्राय: सोम शब्द ही है । चन्द्र शब्द नहीं ... वस्तुत ये कैल्ट लोग ही थे । जिससे द्रुज़ जन-जाति का विकास पैलेस्टाइन अथवा इज़राएल के क्षेत्र में हुआ । मैसॉपोटामिया की असीरियन अक्काडियन हिब्रू तथा बैवीलॉनियन संस्कृतियों की श्रृंखला में केल्डिय संस्कृति भी एक कणिका थी । इन्हीं के सानिध्य में एमॉराइट तथा कस्साइट्स (कश या खश) जन-जातीयाँ भारत की पश्चिमोत्तर पहाड़ी क्षेत्रों में प्रविष्ट हुईं । महाभारत में खश जन-जातीयाँ बड़ा क्रूर तथा साहसी बताया गयीं हैं । भारतीय आर्यों ने इन्हें किरात संज्ञा दी ..यजुर्वेद में किरातों का उल्लेख है । जाति शब्द ज्ञाति का अपभ्रंश रूप है । ये थे तो एक ही पूर्वज की सन्तानें परन्तु इनमें परस्पर सांस्कृतिक भेद हो गये थे । केल्डियनों का उल्लेख ऑल्ड- टेक्ष्टामेण्ट (Old-textament) में सृष्टि-खण्ड (Genesis) 11:28 पर है । मैसॉपोटामिया के सुमेरियन के उर नामक नगर में जहाँ हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम का जन्म हुआ था । chesed कैसेड से जो हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम का भतीजा था । ये लोग आज ईसाई हैं । परन्तु यह अनुमान मात्र है । प्रमाणों के दायरे में नहीं है यह भेद कारक ज्ञान ही इनकी ज्ञाति थी । सम्भवत: ईरानी संस्कृति में इन्हें कुर्द़ कहा गया है ... जो अब इस्लाम के अनुयायी हैं । .....इसी सन्दर्भ में तथ्य भी विचारणीय है कि ईरानी आर्यों का सानिध्य ईरान आने से पूर्व आर्यन -आवास अथवा (आर्याणाम् बीज). जो आजकल सॉवियत -रूस का सदस्य देश अज़र -बेजान है एक समय यहीं पर सभी आर्यों का समागम स्थल था जिनमें जर्मन आर्य ,ईरानी आर्य ,तथा भारतीय आर्य भी थे। उत्तरीय ध्रुव के पार्श्व -वर्ती स्वीडन जिसे प्राचीन नॉर्स भाषा में स्वरगे .Svirge कहा गया है । भारतीय आर्यों का स्वर्ग ही था । यूरोप में जिस प्रकार जर्मन आर्यों का सांस्कृतिक युद्ध पश्चिमी यूरोप में गोल Goal ..केल्ट ,वेल्स ( सिमिरी )तथा ब्रिटॉनों से निरन्तर होता रहता था. जिनके पुरोहित ड्रयूड Druids -थे शुट्र( Souter)भी गॉलो की शाखा थी ..वास्तव में भारत में यही जन जातियाँ क्रमशः .कोल ,किरात तथा भिल्लस् और भरत कह लायीं । ये भरत जन जाति भारत के उत्तरी-पूर्व जंगलों में रहने वाली थी और ये वृत्र के अनुयायी व उपासक थे । जिसे केल्टिक माइथॉलॉजी मे ए-बरटा (A- barta) कहा गया है । भारत में भी इन जन -जातियों के पुरोहित भी द्रविड ही थे यह एक अद्भुत संयोग है ! शूद्र शब्द का प्रथम प्रयोग कोलों के लिए हुआ था इसी सन्दर्भ में आर्यों का परिचय भी स्पष्टत हो जाय :-आर्य कौन थे। ? यह एक शोध - लिपि है जिसके समग्र प्रमाण :- यादव योगेश कुमार रोहि के द्वारा अनुसन्धानित है । अत: कोई जिज्ञासु इस विषय में इन से विचार- विश्लेषण कर सकता है । भारत तथा यूरोप की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में आर्य शब्द यौद्धा अथवा वीर के अर्थ में व्यवहृत है ! पारसीयों पवित्र धर्म ग्रन्थ अवेस्ता में अनेक स्थलों पर आर्य शब्द आया है जैसे –सिरोज़ह प्रथम- के यश्त ९ पर, तथा सिरोज़ह प्रथम के यश्त २५ पर …अवेस्ता में आर्य शब्द का अर्थ है ——-€ …तीव्र वाण (Arrow ) चलाने वाला यौद्धा —यश्त ८. स्वयं ईरान शब्द आर्यन् शब्द का तद्भव रूप है .. परन्तु भारतीय आर्यों के ये चिर सांस्कृतिक प्रतिद्वन्द्वी अवश्य थे !! ये असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे. देव शब्द का अर्थ इनकी भाषाओं में निम्न व दुष्ट अर्थों में है । परन्तु अग्नि के अखण्ड उपासक आर्य थे ये लोग… स्वयं ऋग्वेद में असुर शब्द उच्च और पूज्य अर्थों में है । —-जैसे वृहद् श्रुभा असुरो वर्हणा कृतः ऋग्वेद १/५४/३. तथा और भी महान देवता वरुण के रूप में …त्वम् राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन पाहि .असुर त्वं अस्मान् —ऋ० १/१/७४ तथा प्रसाक्षितः असुर यामहि –ऋ० १/१५/४. ऋग्वेद में और भी बहुत से स्थल हैं जहाँ पर असुर शब्द सर्वोपरि शक्तिवान् ईश्वर का वाचक है .. पारसीयों ने असुर शब्द का उच्चारण ..अहुर के रूप में किया है। अतः आर्य विशेषण.. असुर और देव दौनो ही संस्कृतियों के उपासकों का था और उधर यूरोप में द्वित्तीय महा -युद्ध का महानायक ऐडोल्फ हिटलर Adolf-Hitler स्वयं को शुद्ध नारादिक nordic आर्य कहता था और स्वास्तिक का चिन्ह अपनी युद्ध ध्वजा पर अंकित करता था विदित हो कि जर्मन भाषा में स्वास्तिक को हैकैन- क्रूज. Haken- cruez कहते थे …जर्मन वर्ग की भाषाओं में आर्य शब्द के बहुत से रूप हैं । ऐरे Ehere जो कि जर्मन लोगों की एक सम्माननीय उपाधि है ..जर्मन भाषाओं में ऐह्रे Ahere तथा Herr शब्द स्वामी अथवा उच्च व्यक्तिों के वाचक थे और इसी हर्र Herr शब्द से यूरोपीय भाषाओं में..प्रचलित सर Sir शब्द का विकास हुआ. और आरिश Arisch शब्द तथा आरिर् Arier स्वीडिश डच आदि जर्मन भाषाओं में श्रेष्ठ और वीरों का विशेषण है इधर एशिया माइनर के पार्श्व वर्ती यूरोप के प्रवेश -द्वार ग्रीक अथवा आयोनियन भाषाओं में भी आर्य शब्द आर्च Arch तथा आर्क Arck के रूप मे है जो हिब्रू तथा अरबी भाषा में आक़ा होगया है । ग्रीक मूल का शब्द हीरों Hero भी वेरोस् अथवा वीरः शब्द का ही विकसित रूप है और वीरः शब्द स्वयं आर्य शब्द का प्रतिरूप है जर्मन वर्ग की भाषा ऐंग्लो -सेक्शन में वीर शब्द वर Wer के रूप में है ..तथा रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह वीर शब्द Vir के रूप में है । ईरानी आर्यों की संस्कृति में भी वीर शब्द आर्य शब्द का विशेषण है यूरोपीय भाषाओं में भी आर्य और वीर शब्द समानार्थक रहे हैं !….हम यह स्पष्ट करदे कि आर्य शब्द किन किन संस्कृतियों में प्रचीन काल से आज तक विद्यमान है। लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्रान्च में…Arien तथा Aryen दौनों रूपों में …इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेन भाषाओं में यह शब्द आरियो Ario के रूप में है पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ Ariano भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen ऐरियल-ऐनन के रूप में है .. रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में Aryika के रूप में है.. कैटालन भाषा में Ari तथा Arica दौनो रूपों में है स्वयं रूसी भाषा में आरिजक Arijec अथवा आर्यक के रूप में है इधर पश्चिमीय एशिया की सेमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः Ariacoi तथाAri तथा अरबी भाषा मे हिब्रू प्रभाव से म-अारि. M(ariyy तथा अरि दौनो रूपों में.. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी Oriyoyi रूप इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् Arice के रूप में है .वेलारूस की भाषा मेंAryeic तथा Aryika दौनों रूप में..पूरबी एशिया की जापानी कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द .Aria–iin..के रूप में है । आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं…. परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव आर्यों की संस्कृति से हुआ । उस के विषय में हम कुछ कहते हैं ….विदित हो कि यह समग्र तथ्य यादव योगेश कुमार "रोहि" के शोधों पर आधारित भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ Rootnal-Mean ..आरम् धारण करने वाला वीर .संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा अथवा वीरः | आर्य शब्द की व्युत्पत्ति Etymology संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है—अर् धातु के तीन अर्थ सर्व मान्य है । १–गमन करना Togo २– मारना to kill ३– हल (अरम्) चलाना …. Harrow मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना… ..प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही थे। इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं ! पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कात्स्न्र्यम् धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च..परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा .अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. identity.यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =togo के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर Err है …….इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशःAraval तथा Aravalis हैं अर्थात् कृषि कार्य.सम्बन्धी …..आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य ही थे …सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था । आर्य स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे ….यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था । अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए .जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी(घास के मैदान )देखते उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे …क्यों किअब भी . संस्कृत तथा यूरोप की सभी भाषाओं में…. ग्राम शब्द का मूल अर्थ ग्रास-भूमि तथा घास है …..इसी सन्दर्भ यह तथ्य भी प्रमाणित है कि आर्य ही ज्ञान और लेखन क्रिया के विश्व में प्रथम प्रकासक थे । …ग्राम शब्द संस्कृत की ग्रस् …धातु मूलक है..—–ग्रस् मन् प्रत्यय..आदन्तादेश..ग्रस् धातु का ही अपर रूप ग्रह् भी है जिससे ग्रह शब्द का निर्माण हुआ है अर्थात् जहाँ खाने के लिए मिले वह घर है इसी ग्रस् धातु का वैदिक रूप… गृभ् …है गृह ही ग्राम की इकाई रूप है ..जहाँ ग्रसन भोजन की सम्पूर्ण व्यवस्थाऐं होती हैं । सर्व प्रथम आर्यों ने घास केे पत्तों पर लेखन क्रिया की थी.. क्यों कि वेदों में गृभ धातु का प्रयोग ..लेखन उत्कीर्णन तथा ग्रसन (काटने खुरचने )केेे अर्थ में भी प्रयुक्त है। … यूरोप की भाषाओं में देखें–जैसे ग्रीक भाषा में ग्राफेन Graphein तथा graphion = to write वैदिक रूप .गृभण..इसी से अंग्रेजी मेंGrapht और graph जैसे शब्दों का विकास हुआ है पुरानी फ्रेन्च मेंGraffe लैटिन मेंgraphiumअर्थात् लिखना .ग्रीक भाषा मेंgrammaशब्द का अर्थ वर्ण letter रूढ़ हो गया . जिससे कालान्तरण में ग्रामर शब्द का विकास हुआ.. आर्यों ने अपनी बुद्धिमता से कृषि पद्धति का विकास किया अनेक ध्वनि संकेतों काआविष्कार कर कर अनेक लिपियों को जन्म दिया । …अन्न और भोजन के अर्थ में भी ग्रास शब्द यूरोप की भाषाओं में है पुरानी नॉर्स ,जर्मन ,डच, तथा गॉथिक भाषाओं में Gras .पुरानी अंग्रेजी मेंgaers .,green ग्रहण तथा grow, grasp लैटिनgranum- grain स्पेनिस् grab= to seize.यहाँ एक तथ्य और स्पष्ट कर दें कि इतिहास वस्तुतः एकदेशीय अथवा एक खण्ड के रूप में नहीं होता , बल्कि अखण्ड और सार -भौमिक होता है छोटी-मोटी घटनाऐं इतिहास नहीं, .तथ्य- परक विश्लेषण इतिहास कार की आत्मिक प्रवृति है , और निश्पक्षता उस तथ्य परक पद्धति का कवच है। ------------------------------------------------------------ सत्य के अन्वेषण में प्रमाण ही ढ़ाल हैं ,जो वितण्डावाद के वाग्युद्ध हमारी रक्षा करता है । अथवा हम कहें कि विवादों के भ्रमर में प्रमाण पतवार अथवा पाँडित्यवाद के संग्राम में सटीक तर्क रोहि किसी अस्त्र से कम नहीं हैं। मैं दृढ़ता से अब भी कहुँगा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ,गतिविधियाँ कभी भी एक-भौमिक नहीं, अपितु विश्व-व्यापी होती है ! क्यों कि इतिहास अन्तर्निष्ठ प्रतिक्रिया नहीं है. इतिहास एक वैज्ञानिक व गहन विश्लेषणात्मक तथ्यों का निश्पक्ष विवरण है विद्वान् इस तथ्य पर अपनी प्रतिक्रियाऐं अवश्य दें ... ------------------------------------------------ यह एक शोध - लिपि है जिसके समग्र प्रमाण । यादव योगेश कुमार 'रोहि' के द्वारा अनुसन्धानित है । अत: कोई जिज्ञासु इस विषय में इन से विचार- विश्लेषण कर सकता है । सम्पर्क - सूत्र ----8077160219...

Yadav Yogesh kumar -Rohi- की अन्य किताबें

1

अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश

10 फरवरी 2018
4
0
0

अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश ____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात्  उन पापकर्म करनेवाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले ! अशुभ -दर्शी अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। बौद्ध

2

सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण

10 फरवरी 2018
1
0
0

सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण । कृष्ण का वास्तविक वंश ---____________________________________कृष्ण वास्तविक रूप में आभीर (गोप) ही थे ।क्योंकि महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है ।और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर ) परिवार में हुआ यादव

3

कृष्ण का यथार्थ जीवन-दर्शन

10 फरवरी 2018
0
0
0

श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से भी है । द्रविड (तमिल) रूप अय्यर अहीर से विकसित रूप है।_________________________________________कृष्ण का स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक श्लोक में मिलता है। छान्दोग्य उपनिषद  :--(3.17.6 ) कल्पभेदादिप्रायेणैव “

4

यदुवंशी क्षत्रिय नहीं अपितु शूद्र होते हैं ; ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार और क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं ।

13 फरवरी 2018
2
0
0

यदुवंशी क्षत्रिय नहीं शूद्र हैं ; क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं_________________________________________जब यदु को ही वेदों में दास अथवा शूद्र कहा है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।  वह भी गोपों को र

5

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--

13 फरवरी 2018
0
1
1

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________(यादव योगेश कुमार'रोहि)'शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ....-यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषणनवीन गवेषणाओं पर आधारित  🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🌃🌃🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🗼🌅🌅🎠🎠🎠🎠      शूद्र कौन थे ? और इनक

6

प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।

13 फरवरी 2018
2
0
0

प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थ

7

आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

16 फरवरी 2018
0
0
0

आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________सृष्टि -सञ्चालन का सिद्धान्त बडा़ अद्भुत है ।जिसे मानवीय बुद्धि अहंत्ता पूर्ण विधि से कदापि नहीं समझ सकती है ।विश्वात्मा ही सम्पूर्ण चराचर जगत् की प्रेरक सत्ता है । और आत्मा प्राणी जीवन की , इसी सन्दर्

8

अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
1
0
0

---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

9

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
0
0
0

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ______________________________________________गोपों ने प्रभा

10

गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
1
0
0

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

11

स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
1
0
0

स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

12

आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
1
1
0

आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

13

सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
1
0
0

स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

14

भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
0
0
0

टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

15

असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
1
0
0

इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

16

असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
2
1
0

असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

17

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
0
1
0

शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

18

ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
0
0
0

वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

19

गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
0
0
0

यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

20

क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
0
0
0

-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

21

शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
0
0
0

शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

22

भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
0
0
0

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

23

इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
0
0
0

यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

24

करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
1
1
0

प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

25

भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
0
0
0

प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

26

यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
0
0
0

________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

27

संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
0
0
0

माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

28

हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
0
0
0

माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

29

कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
1
0
0

कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

30

यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
0
0
0

प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

31

अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
0
0
0

अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

32

अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
0
0
0

अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

33

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
0
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

34

💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
1
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

35

मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
0
0
0

सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

36

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

37

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

38

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

39

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

40

योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

41

योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

42

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

43

सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
0
0
0

राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

44

धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
0
0
0

आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

45

पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
0
0
0

जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

46

"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
1
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

47

"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
0
0
0

चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

48

भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
2
1
0

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

49

ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
0
0
0

_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

50

गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
0
0
0

गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

51

अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
0
0
0

अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

52

घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
0
0
0

यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

53

मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
0
0
0

''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

54

वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
0
0
0

वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

55

व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
0
0
0

भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

56

चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
0
0
0

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

57

पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
0
0
0

पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

58

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
0
0
0

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

59

समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
0
0
0

"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

60

भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
1
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

61

जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
0
0
0

__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

62

कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
0
0
0

एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

63

जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
0
0
0

__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

64

जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
0
0
0

__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

65

महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
0
1
0

महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

66

शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
0
0
0

रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

67

जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
0
0
0

जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

68

मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
0
0
0

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

69

कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
0
1
0

एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

70

भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
0
0
0

वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

71

गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
0
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

72

गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
0
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

73

गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
0
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

74

आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
0
1
0

आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

75

भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

14 जून 2019
0
0
0

भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

76

कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
0
0
0

भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

77

कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

15 जून 2019
0
0
0

कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

78

कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
0
0
0

गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

79

कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
0
1
0

कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

80

अहीर ही यादव होते हैं !

20 जून 2019
1
0
0

यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

81

साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
0
1
0

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

82

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
1
1
1

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

83

वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
1
0
0

वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

84

श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

30 जून 2019
0
0
0

कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

85

"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
0
0
0

राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

86

आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
0
0
0

आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

87

हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
0
0
0

हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

88

इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
1
0
0

यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

89

शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
0
0
0

शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

90

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
0
0
0

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

91

राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
0
0
0

राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

92

राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
1
0
0

आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

93

राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
0
0
0

आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

94

मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
0
0
0

ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

95

अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
0
0
0

अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

96

अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
0
0
0

अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

97

कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
0
0
0

कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

98

ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
0
0
0

ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

99

ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
4
0
0

महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

100

अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
0
0
0

आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

101

कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
0
0
0

महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

102

तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
0
0
0

जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

103

कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
0
0
0

एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

104

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

19 सितम्बर 2019
0
0
0

१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

105

आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
0
0
0

आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

106

योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
0
0
0

_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

107

भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
0
0
0

भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

108

चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
0
0
0

पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

109

यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
0
0
0

यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

110

"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
0
0
1

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

111

ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
0
0
0

ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

112

मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
0
0
0

हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

113

अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
0
0
0

गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

114

मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
0
0
0

मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

115

मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
0
0
0

मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

116

उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
0
0
0

धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

117

"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
0
0
0

किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

118

छलावा ...

18 फरवरी 2020
1
0
0

धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

119

अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
0
0
0

कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

120

अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
1
0
0

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

121

"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
0
0
0

घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

122

गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
0
0
0

यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

123

देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
0
0
0

देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

124

बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
0
0
0

होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

125

हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
0
0
0

हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

126

"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
0
0
0

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

127

कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
1
0
0

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

128

भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
0
0
0

सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

129

भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
0
0
0

श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

130

लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
0
0
0

अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

131

नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
0
0
0

यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

132

इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
3
0
0

यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

133

अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
0
0
0

the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

134

इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
0
0
0

प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

135

जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
0
0
0

जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

136

दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
0
0
0

दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

137

दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
0
0
0

दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

138

आज का ये हाल है ...

16 अप्रैल 2020
1
0
0

अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

139

अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
0
0
0

____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

140

मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
0
0
0

प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

141

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
0
0
0

कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

142

प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
0
0
0

प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

143

गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
2
1
0

ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

144

भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
1
0
0

जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

145

गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
1
0
0

गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

146

चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
0
0
0

चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

147

वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
0
0
0

ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

148

हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
0
0
0

हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

149

कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
1
0
0

कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

150

यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

5 जून 2020
3
0
0

कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

151

भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
0
0
0

हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

152

भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
0
0
0

हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

153

यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
0
0
0

यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

154

यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
2
0
0

यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

155

भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
0
0
0

भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

156

सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
0
0
0

महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

157

पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
0
0
0

महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

158

दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
0
0
0

यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

159

गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
0
0
0

गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

160

यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
1
0
0

यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

161

🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
0
0
0

यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

162

कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
0
0
0

भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

163

यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
0
0
0

प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

164

शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
0
0
0

  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

165

ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
0
0
0

कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

166

शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

29 जुलाई 2020
0
0
0

  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

167

भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
0
0
0

भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

168

कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
0
0
0

पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

169

कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
1
0
0

पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

170

नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
0
0
0

नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

171

सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
0
0
0

(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

172

सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
0
0
0

(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

173

दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
1
0
0

भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

174

देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
1
0
0

महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

175

ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
1
0
0

ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

176

गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
2
0
0

यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

177

यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
2
0
0

यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

178

पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
0
1
0

पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए