प्रत्येक नक्षत्र के अनुसार जातक
की चारित्रिक विशेषताएँ तथा उसका व्यक्तित्व
पिछले अध्यायों में हम प्रत्येक
नक्षत्र के नाम की व्युत्पत्ति और उसके अर्थ, नक्षत्रों के आधार वैदिक महीनों
के विभाजन, नक्षत्रों के देवता, अधिपति ग्रह आदि विषयों पर
चर्चा करने के साथ ही इस विषय पर भी प्रकाश डाल चुके हैं कि किस राशि में किस नक्षत्र
का कितने अंशों तक प्रसार होता है | साथ ही नक्षत्रों के गुण (सत्व, रज, तमस), उनके लिंग, जाति अथवा वर्ण, नाड़ी, योनी, गण, वश्य तथा प्रत्येक नक्षत्र के तत्वों पर भी संक्षेप में चर्चा कर चुके
हैं | अब इस अध्याय से इन्हीं समस्त विषयों पर विस्तार से बात करने का प्रयास
करेंगे |
इस अध्याय से हमारा प्रयास होगा
यह बताने का कि इन समस्त नक्षत्रों के देवताओं, अधिपति ग्रहों, गुणों, लिंग, नाड़ी, योनी, गण, वश्य, जाति तथा तत्वों आदि को यदि ध्यान में रखकर किसी कुण्डली का निरीक्षण
परीक्षण किया जाए तो जातक विशेष की Personality और उसका गुण स्वभाव किस प्रकार का
हो सकता है | क्योंकि जैसा कि सदा लिखते आए हैं कि किसी एक ही आधार पर किसी जातक
के गुण स्वभाव तथा व्यक्तित्व का ज्ञान करना अर्थ का अनर्थ भी कर सकता है | इस
प्रक्रिया में कुण्डली का समग्र अध्ययन करने की आवश्यकता होती है | साथ ही
प्रत्येक नक्षत्र से सम्बन्धित पदार्थों और वस्तुओं के विषय में बात करेंगे |
नक्षत्रों के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए Remedies पर चर्चा करेंगे कि किस
नक्षत्र के लिए क्या उपाय किया जाना चाहिए | तो आज सबसे पहले प्रथम नक्षत्र
अश्विनी को लेते हैं:
अश्विनी :
सदैव सेवाभ्युदितो विनीतः
सत्यान्वितः प्राप्तसमस्तसम्पत् |
योषाविभूषात्मजभूरितोष:
स्यादश्विनी जन्मनि मानवस्य ||
अश्विनी नक्षत्र में उत्पन्न
जातक देखने में आकर्षक, भाग्यशाली, चतुर, आभूषणप्रिय, Opposite Sex के लोगों द्वारा प्रेम किया जाने
वाला, बहादुर, बुद्धिमान तथा दृढ़ इच्छाशक्ति
से युक्त होता है | वैज्ञानिक अथवा डॉक्टर हो सकता है | अपने Subordinates तथा
सहकर्मियों के द्वारा सम्मान का पात्र हो सकता है तथा सरकारी तन्त्रों से उसे लाभ
प्राप्त हो सकता है |
राशिचक्र के इस प्रथम नक्षत्र का
अर्थ है अश्वारोही यानी घुड़सवार | पौराणिक कथाओं में अश्विनी का विवरण एक अप्सरा
के रूप में उपलब्ध होता है | उसे विश्वकर्मा की पुत्री तथा सूर्य की पत्नी के रूप
में जाना जाता है | ऐसे विवरण उपलब्ध होते हैं कि जब अश्विनी अपने पति का तेज सहन
नहीं कर सकी तो उसने छाया (शनि की माता) को अपने पति की सेवा के लिए नियुक्त किया और
अपनी पहचान छिपाने के लिए वन में जाकर अश्वि – घोड़ी – का रूप बनाकर रहने लगी |
अश्विनी का दूसरा नाम संज्ञा भी है | जब छाया ने सूर्य को सारी बातें बताईं तो तो
वे भी वन में चले गए और अश्व के रूप में अपनी पत्नी के साथ रहना आरम्भ कर दिया |
यही अप्सरा अश्विनी दोनों अश्विनी कुमारों की माता मानी जाती है | ऐसी भी
मान्यताएँ हैं कि सूर्य का वीर्य इतना बलशाली था कि माँ अश्विनी उसे अपने गर्भ में
धारण नहीं कर सकीं और उन्होंने उसे अपने दोनों नासारन्ध्रों में धारण कर लिया (पौराणिक
कथाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए) | जुडवाँ अश्विनी कुमार देवों
के चिकित्सक माने जाते हैं |
इस नक्षत्र के अन्य नाम तथा अर्थ
हैं नासत्य – जो सत्य न हो, दस्त्रा – असभ्य, आक्रामक, विनाशकारी, गधा, दो की संख्या, चोर, शीत ऋतु, अश्वियुक् – घुड़सवार, तुरग – वाजि – अश्व – हय आदि अश्व के पर्यायवाची |
इस नक्षत्र का प्रतीक है घोड़े का
सर – क्योंकि इस नक्षत्र में तीन तारे अश्व के सर की आकृति बनाते हुए होते हैं |
दोनों अश्विनी कुमार इस नक्षत्र के देवता हैं जिनकी प्रसिद्धि एक सैनिक, अश्वारोही तथा चिकित्सक के रूप में है | इस नक्षत्र का स्वामी है केतु तथा
अधिपति ग्रह है मंगल | लघु संज्ञा वाला यह नक्षत्र वैश्य वर्ग, देव गण, आदि नाड़ी, अश्व योनि तथा चतुष्पद वश्य के अन्तर्गत आता है | पुरुष
प्रकृति का यह नक्षत्र वायु तत्व प्रधान है तथा इसका वर्ण यानी रंग रक्त के समान
लाल माना जाता है |
इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक
अश्वारोही हो सकता है, अश्वों की देखभाल करने वाला हो सकता है, अश्वों की चोरी करने वाला हो सकता है अथवा अश्वों से सम्बन्धित व्यवसाय से
उसे अर्थलाभ हो सकता है | वह एक सैनिक भी हो सकता है अथवा रोगों के निदान की
अद्भुत सामर्थ्य से युक्त एक अच्छा चिकित्सक भी हो सकता है | वह सेना का कोई
अधिकारी भी हो सकता है और कोई सेवक भी हो सकता है | कारागार में किसी पद पर उसकी
नियुक्ति हो सकती है अथवा कोर्ट या पुलिस विभाग में कार्यरत हो सकता है | प्रायः
ऐसा देखा गया है कि जिस जातक के ग्रह इस नक्षत्र में अनुकूल स्थिति में स्थित होते
हैं वह एक सफल चिकित्सक होता है |
इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक
ट्रांसपोर्ट अथवा Travel Agencies से सम्बन्धित किसी विभाग में भी कार्यरत हो सकता
है | किसी आधिकारिक पद पर आसीन हो सकता है | कन्या और कुम्भ लग्नों के लिए इन
राशियों से तीसरे भाव का स्वामी तथा भाई बहनों (Siblings) का कारक मंगल यदि इस
नक्षत्र में विद्यमान हो तो जातक के जुड़वाँ भाई बहन हो सकते हैं | यदि पितृकारक या
सूर्य अथवा गुरु अथवा नवमेश या दशमेश इस नक्षत्र में विद्यमान हो तो जातक के पिता
के Twin Siblings हो सकते हैं |
शेष आगे…
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