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ghazal

25 जुलाई 2019

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लरज़ के आंख का मिलना तिलमिलाना भी

बहुत नफ़ीस हैं तेरी तरह बहाने भी


अदाए शोख़ से न कहना मुस्कुराना फिर

इशारे देख समझ लेते हैं सब दिवाने भी


वो एक लम्हा शबे वस्ल की इनायत का

तवील ख्वाब के कम हैं जिसे ज़माने भी


हया से आंख का झुकना मचलना दिल का

छुपाये छुपते कहां इश़क़ के ख़ज़ाने भी


कभी ये दिल है मेरा और मेरा दिल ही कभी

बड़ै सटीक उदू के मगर निशाने भी


तुम्हें ए शाह सितमगर लगे है ये दुनिया

चराग़ जलने न पाया लगे बुझानेभी


शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी

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प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

तुम्हें ए शाह सितमगर लगे है ये दुनिया , चराग़ जलने न पाया लगे बुझानेभी ........ बहुत खूब

26 जुलाई 2019

anubhav

anubhav

गजल को सुनने में जो आनंद आता है वो किसी गीत को सुनने में नहीं आता है। और आपकी पंक्तियां बहुत प्यारी लिखी गई हैं।

26 जुलाई 2019

सौरभ श्रीवास्तव

सौरभ श्रीवास्तव

दीवानों को इशारे सही समझ आते हैं ......

26 जुलाई 2019

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