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डाल डाल की दाल (व्यंग्य)

28 जुलाई 2019

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"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "

बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना लोग दाल से ही करते हैं और अप्राप्त चीजों मीनू में दिख रही महंगी बिरयानी की तरह ललचाकर देखते हैं।उसी तरह काली दाल,पीली दाल और तरह तरह की दालें होती हैं लेकिन भारतीय लोग आम तौर पर दाल का मतलब पीली दाल ही समझते हैं।और मूंग की दाल को तभी याद करते हैं जब बाहर की शौकिया बिरयानी लगातार खाकर बीमार पड़ जाते हैं। दालों के रंग ढंग सभी की समझ से बाहर है ।दालें हमारे इतिहास में तो रहीं ,मगर हमारा भूगोल ऐसा है कि दालें हिंदुस्तान में कम पैदा होती हैं ,शायद इसीलिये बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि घर की दाल से काम चलाओ।बहुत दूर तक मत जाओ ।"घर की मुर्गी दाल बराबर" से शायद बुजुर्गों का आशय ये रहा होगा की अगर कभी किसी को बिरयानी की जरूरत हो तो घर के आसपास की मुर्गी देखो ना कि बटेर जो कि ना सिर्फ महंगी है और गैर कानूनी भी । दालों को लेकर अर्थशास्त्र के पंडित भी हैरान हैं कि आखिर दालों की कमी के बावजूद बाजार में दाल की कीमतें बढ़ क्यों नहीं रही हैं।सट्टा वाले,कमोडिटी एक्सचेंज के मार्केट के लोग भी हैरान हैं कि दाल रोटी से खुश रहने वाले लोगों के देश में इतनी बिरयानी की खपत क्यों बढ़ रही है।


"सादा जीवन,उच्च विचार वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों की नयी और मध्य वय की पीढ़ी को अब घर की दाल क्यों रास नहीं आ रही है।वैसे दाल के रंग ढंग सभी की समझ से बाहर है ।इतिहास गवाह है कि हमारे ऊपर जब भी हमले हुए तो मसालों के लिये हुए जो बिरयानी में जायका लाते थे ,दालों हमारे पास कम रहीं लेकिन किसी ने हमसे छीनने की कोशिश भी नहीं की।हमारे देश पर अतीत में मसालों की खुश्बू की वजह से हमले हुए ,प्याज ने सरकारें गिरायी मगर हमारा जुग्राफिया ऐसा है कि दालें हिंदुस्तान में कम पैदा होती रहीं मगर अमीर गरीब सबका पेट पालती रहीं।अमीरों ने दालों को छोड़कर बिरयानी की शरण ली तब तक तो ठीक था लेकिन जब आम आदमी भी दाल छोड़कर बिरयानी की तरफ लपका तो स्यापा खड़ा हो गया। वैसे भी अर्थशास्त्र के पंडित हैरान हैं कि आखिर दालों की कमी के बावजूद बाजार में दाल की कीमतें बढ़ क्यों नहीं रही हैं।सट्टा वाले,कमोडिटी एक्सचेंज के मार्केट पंडित,जमाखोर,आढ़ती सब परेशान हैं कि आखिर कम उत्पादन के बावजूद और हर भारतीय के घर में खायी जाने वाली दाल की कीमत क्यों नहीं बढ़ रही है।दाल की कालाबाज़ारी करने वाले लोग सोने के बिस्किट की तरह दाल को दबाये बैठे हैं ,सूखे की फसल माने जाने वाली दालों की फसल बाढ़ की विभीषिका से हर साल तहस-नहस हो जाती हैं ,फिर आखिर दालों की कालाबाजारी करने वालों की दाल क्यों नहीं गल रही है।आखिर क्या कारण है कि नब्बे रूपये में जो दाल किसानों से सरकार खरीदती है ,वही दाल सत्तर रूपये की खुले बाजार में बिकती पायी गयी।इसके कारण जानने के लिये बॉलीवुड के 49 लोगों ने एक कमेटी बनाई ।


इन लोगों को दालों की ये असहिष्णुता नागवार गुजरी सो इनकी इनर वॉइस (अंतरात्मा की आवाज़) जाग उठी।ये और बात है कि इस कमेटी में ऐसे लोगों को रखा गया जिन्होंने बरसों से दाल नहीं खायी ,कुछ ऐसे हैं जो दाल रोटी भर का भी नहीं कमा पाते सो दालों से निपटने की तैयारी में हैं।कुछ इतने उम्रदराज लोग हैं इस कमेटी में कि उन्हें डॉक्टर ने दाल खाने से मना कर दिया है क्योंकि इस उम्र में अगर उनके शरीर में ज्यादा प्रोटीन जमा हो गया तो फिर उन्हें दादी नानी के संभावित रोल के बजाय घुटना प्रत्यारोपण के लिये अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा।वैसे भी इस कमेटी में देश के उन प्रान्तों के गायक और कलाकार काफी संख्या में हैं जहाँ हाल -फ़िलहाल चुनाव होने वाले हैं ।उन्हें उम्मीद है कि भले ही फिल्म इंडस्ट्री में उनकी दाल नहीं गली ,लेकिन इस दाल के आंदोलन से अगर राज्यों में उनके पसंदीदा दल की सरकार बन गयी तो उनको कोई पद ऐसा जरूर मिल जायेगा कि जिससे ज़िन्दगी भर उनकी दाल रोटी चलती रही।वैसे इस दाल पीड़ित कमेटी में ऐसे लोग हैं जो घर की दाल बरसों से नहीं खाये हैं ,बाहर की बिरयानी ही खाते रहे हैं।अपने घर यदि मजबूरी में कभी दाल खा भी ली तो बाहर की बिरयानी ही खाते रहे हैं।कुछ तो इतने साहसी निकले कि घर पर जब बिरयानी का मनपसन्द लेग पीस नहीं ला सके तो लेगपीस वाली बिरयानी का शौक पूरा करने के लिये दूसरे के घर में ही रहने लगे।जैसे दाल के तड़के की खुश्बू घर की दहलीज के अंदर ही महसूस होती है मगर बिरयानी की जाफरानी खुश्बू दूर से ही आकर्षित कर लेती है ,ठीक उसी तरह इन दाल पीड़ित लोगों की अजब सी अदाएं हैं ये जिस राज्य में रहते हैं वहां की समस्या से ये वाबस्ता नहीं होते बल्कि बहुत दूर की घटनाएं इनको उद्देलित कर देती हैं।मसलन पश्चिम बंगाल में रह रहा गायक उत्तर प्रदेश की घटना से इतना दुखी होता है कि बुक्का फाड़ के रोता है ,दूसरा महाराष्ट्र में रह रहा बन्दा झारखण्ड की घटना से इतना आहत होता है कि भारत उसे सीरिया से भी बदतर नजर आता है लेकिन अपने प्रान्त में" यहां पे सब शांति -शांति है "गाते हैं।


उससे ज्यादा ख़ास बात ये है कि इस "पावर ऑफ़ 49"में ऐसे ऐसे लोग भी हैं जो आठ -दस बाउंसर के साथ चलते हैं मगर जब तब उनको देश में बमुश्किल दो वक्त की दाल रोटी कमा पाने वाले व्यक्तियों से डर लगने लगता है ।कुछ ऐसी भी वीरांगनायें हैं जो राम राम करने की उम्र में देश के हालात सुधारने का बीड़ा उठा चुकी हैं। उम्र के सारे बन्धन टूट चुके हैं जिन्होंने इस मुल्क में सब दिन देखे हैं तब या तो वे अपनी घर गृहस्थी की दाल रोटी चला रही थीं या सिंगार -पटार कर गुमनामी की ज़िन्दगी जी रही थीं।लेकिन अब वो सबको बता रही हैं ना दाल खाओ,ना बिरयानी खाओ और प्रभु के गुण तो हर्गिज़ ना गाओ ।क्योंकि प्रभु पर एक पार्टी का पेटेंट हो चुका है ।उधर प्रभू भी परेशान होंगे कि पहले उनके रहने की जगह को लेकर मुकदमेबाजी हो रही थी ,अब उनके नाम को लेकर भी बवाल शुरू हो गया है ।इस पावर ऑफ़ 49 को लेकर एक ज्योतिषी ने कहा है कि विषम संख्या दालों की कालाबाज़ारी बढ़ा ना सकेगी इसलिये किसी ऐसे बिरयानी प्रेमी को इस लिस्ट में शामिल कर लिया जाए जिसने लंबे समय तक घर की दाल रोटी की सुधि ना ली हो ,बीवी बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया है ।इस 49 की विषम संख्या को सम करने के लिये एक अवार्डधारी की खोज शुरू हुई ।एक ऐसा व्यक्ति जो तुरंत अवार्ड लौटा सके ,अपने बाप -दादा की कुर्बानियों का सिला देकर इस मुल्क में रहने को अपना एहसान माने ,मुल्क से ज़िन्दगी भर कमाया हो ,मुल्क को दिन भर कोसे, मगर मुल्क को छोड़ कर भी ना जाये। सबसे पहले एक बड़े फिल्म स्टार से सम्पर्क किया गया ।उन साहब की खासियत ये थी कि जिस महिला को ज़िन्दगी भर दो जून की दाल रोटी देने का वादा किया था उसको दाना पानी देने के लिये हाथ झटक लिया।सबको भारत के टूरिस्ट स्पॉट्स की विशेषता बताते बताते अचानक उनको भारत में डर लगने लगा ,अपने आठ -दस बाउंसर और वाई श्रेणी की सुरक्षा के बावजूद।बेचारे इतना डरे कि किसी और देश में जाकर बसने का इरादा कर बैठे।लोग भी अपने इस चहेते फिल्म स्टार से इतना डरने लगे कि उनके द्वारा बेचे जाने वाले सामानों की खरीदारी से डरना शुरू कर दिया ।


सिर्फ दसवीं तक पढ़े इस फिल्मवाले को बांधों की ऊंचाई की खासी समझ है इसलिये लोगों ने इनकी फिल्मों और इनके द्वारा विज्ञापित सामानों को समझना बन्द कर दिया।व्यापारिक वेबसाइट ने इन्हें निकाला और काम मिलना कम हो गया तब से बेचारे सिर्फ अपनी फिल्मों या विज्ञापनों की चिंता करते हैं।आजकल देश की चिंता कम करते हैं ,लोगों से पानी बचाने की अपील कर रहे हैं क्योंकि पानी तो दाल में भी पड़ता है और बिरयानी में भी।सो उन्होंने कहा कि फिलहाल दाल पकने दो सही समय पर मैं पानी लेकर हाज़िर हो जाऊँगा।लेकिन पचासवें नाम के लिए दो अदद नाम सामने तो आये लेकिन उनके अपने ईगो थे ,इस पचासवें दस्तखती बनने की सारी योग्यता होने के बावजूद उन्होंने इस ग्रुप के अगुआ के पीछे चलने से इंकार कर दिया आखिर उनकी भी सीनियोरिटी है ,वो दगे कारतूस ही सही मगर उनकी नजरों में उनका स्टार स्टेटस है ।सो वो इस मुहिम को चलायेंगे जरूर मगर एकला चलो रे के सिद्धांत पर।


चुनांचे कि एक ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में अगर वो भी बैठते, गोया कि उनकी स्टार स्टेटस की इमेज को धक्का पहुंच सकता था।सो वो कुछ दिन बाद डरेंगे बाउंसरों से घिरे रहने के बाद भी,वो कुछ दिन बाद मुल्क के आम आदमी के दाल रोटी की चिंता करेंगे बिरयानी खाते हुए ग्लिसरीन लगाकर आंसू बहाएंगे।इधर हिंदी बेल्ट के एक हिंदी लेखक जो हर किस्म की दाल और हर किस्म की बिरयानी खा चुके हैं बेचारे हिंदी में उनकी अवहेलना से दुखी हैं ।किसी दोस्त ने पूछा इन सभी से कि


"दिले नादान तुझे हुआ क्या है

आखिर इस मर्ज की दवा क्या है "

नेपथ्य में कहीं से एक आम हिंदुस्तानी को दिलासा देती हुई एक आवाज़ आयी

"दोस्त अपने मुल्क की किस्मत पर रंजीदा ना हो

उनके हाथों में है पिंजरा,उनके हाथों में शुआ"

☺️,,समाप्त ,

दिलीप कुमार की अन्य किताबें

anubhav

anubhav

बात तो सर आपकी सही है.....यही हाल रहा तो आम आदमी और किसान दोनों की हालत बद से बद्तर हो जाएगी।

30 जुलाई 2019

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

दिलीप जी , बहुत ही उम्दा लेख . आम आदमी के कष्ट को सही तरीके से और व्यंग्यात्मक रूप में आपने दर्शाया . इतनी महंगाई में आम आदमी के लिए दाल भी बिरयानी ही तो है . बाकी नेता और अमीर बॉलीवुड के लोग बस बातें ही करते हैं किसान पे, मुद्दों पे . लेख का अंत बढ़िया लगा !

29 जुलाई 2019

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जूतों के अच्छे दिन

29 नवम्बर 2018
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ऊँची नाक का सवाल (व्यंग्य)

24 जुलाई 2019
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इस दौर में जब देश में बाढ़ का प्रकोप है तो नाक से सांस लेने वाले प्राणियों में नाक एक लक्ष्मण रेखा बन गयी है ,पानी अगर नाक तक ना पहुंचा तो मनुष्य के जीवित रहने की संभावना कुछ दिनों तक बनी रहती है,बाकी फसल और घर बार उजड़ जाने के बाद आदमी कितने दिन जीवित रहेगा ये उतना ही बड़ा सवाल है जितनी कि हमारे देश म

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डाल डाल की दाल (व्यंग्य)

28 जुलाई 2019
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डाल डाल की दाल (व्यंग्य)

28 जुलाई 2019
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"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना

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अदीब@मेला

30 जुलाई 2019
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पुस्तक मेले में सब हमारी किताबें लपक रहदिल्ली में हर बार की भाँति पुस्तक मेला लगा, दिल्ली देश का दिल है ,अवार्ड वापसी वाले लेखक बहुत परेशान हैं कि जितनी ख्याति उनको अवार्ड लौटाकर नहीं मिली थी उससे ज्यादा प्रचार-प्रसार तो इस मेले में लेखकों का हो रहा है। एक अनुमान के तौर पर सिक्किम की आबादी के जितनी

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हम हिन्दीवाले

4 अगस्त 2019
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हम हिन्दीवाले (व्यंग्य )अपने कुनबे में हमने ही ये नई विधा इजाद की है ।एकदम आमिर खान की मानिंद "परफेक्शनिस्ट",नहीं,नहीं भाई कम्युनिस्ट मत समझिये।भई कम्युनिस्ट से जब जनता का वोट और सहयोग कम होता जा रहा है तब हम जैसा जनता के सरोकारों से जुड़ा साहित्यकार कैसे उनसे आसक्ति रख सकता है ।एक उस्ताद शायर फरमा ग

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अब आगे क्या

11 अगस्त 2019
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"अब आगे क्या "(व्यंग्य) तड़ाक,तड़ाक,तड़ाक ,ये थप्पड़ नहीं एक आवाज है जो कहीं कहीं सुनायी पड़ रहा है। जैैसे हवा भी होती है पर दिखती नहीं है।पिछले हफ्ते देश में पहले तो तीन तलाक पर ये तड़ाक का साया पड़ा और अब जम्मू कश्मीर में ,370,35-A, और स्पेशल स्टेटस

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तब क्यों नहीं

18 अगस्त 2019
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तब क्यों नहीं ,(व्यंग्य)"ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थीपाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमने इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने "ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल पड़े जो अपने घर वापसी के लिये दिल्ली से जम्मू की ट्

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लोहा टू लोहा

25 अगस्त 2019
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लोहा टू लोहा (व्यंग्य )आजकल देश में मोटा भाई कहने का चलन बहुत बढ़ गया है।माना जाता है कि बंधुत्व और दोस्ती का ये रिश्ता लोहे की मानिंद सॉलिड है। पहले ये शब्द भैया कहा जाता था ,लेकिन जब से अमर सिंह ने अमिताभ बच्च्न को भैया कहने के बाद हुए अपने हादसे का दर्द बयान किया तब से लोग भैया के बजाय मोटा भाई ही

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नाट आउट @हंड्रेड

8 सितम्बर 2019
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नॉट आउट @हंड्रेड (व्यंग्य)"ख्वाबों,बागों ,और नवाबों के शहर लखनऊ में आपका स्वागत है" यही वो इश्तहार है जो उन लोगों ने देेखा था जब लखनऊ की सरजमीं पर पहुंचे थे। ये देखकर वो खासे मुतमइन हुए थे । फिर जब जगह जगह उन लोगो ने ये देखा कि "मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं "तो उनकी दिलफ़रेब मुस्कराहटें कान कान

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हैप्पी हिंदी डे

15 सितम्बर 2019
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"हैप्पी हिन्दी डे " (व्यंग्य )हे कूल डूड ऑफ़ हिंदी ,टुडे इज द बर्थडे ऑफ़ हिंदी ,ईट्स आवर मदर टँग एन प्राइड आलसो ,सो लेटस सेलेब्रेट ।यू आर कॉर्डियाली इनवाटेड।लेट्स मीट एट 8 पीएम ,इंडीड देअर विल भी 8 पीएम,वेन्यू,,ब्लैक डॉग हैंग आउट कैफे, ब्लैक डॉग ,,,योर फेवरेट ब्रो "मोबाईल पर ये खबर मिली ज

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तब्दीली आयी रे

22 सितम्बर 2019
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"तब्दीली आयी रे " (व्यंग्य)"हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है तब कहीं जाकर होता चमन में एक बिदनवार पैदा" यही शेर आजकल पाकिस्तान में बच्चा बच्चा कह रहा है क्योंकि जो ऊपर वाले ने ऐसा छप्पर फाड़ कर दिया कि पाकिस्तानियों को अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा है कि "या इलाही ये माजरा क्या है

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बोलो मियां नियाजी

29 सितम्बर 2019
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"बोलो मियां नियाजी " (व्यंग्य)"ख्वाबे गफलत में सोये हुए मोमिनों ऐशो इशरत बढ़ाने से क्या फायदा आँख खोलो याद रब को करो उम्र यूँ ही गंवाने का क्या फायदा "अल्लामा इक़बाल का ये शिकवा आजकल जनाब इमरान खान नियाजी साहब पर खूब सूट करता है जो यूनाइटेड नेशन के मंच से दुनिया भर के लोगों का आह्वन कर रहे हैं कि य

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पानी रे पानी

6 अक्टूबर 2019
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पानी रे पानी (व्यंग्य)"कोस कोस पर बानी बदले चार कोस पर पानी" बानी यानी बोली -भाषा तो हमारे यहाँ बदल ही जाती है। हिंदुस्तानी आदमी अपनी पूरी जिंदगी बोली सीखने में ही लगा देता है फिर भी उसे ये बात खटकती ही रहती है कि काश मुझे ये जुबान भी आती ।अंग्रेजी का स्थायी दुःख तो है ही ,प्रान्तीय भाषा सीख लेने स

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नजर लागी रे

13 अक्टूबर 2019
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नजर लागी राजा (व्यंग्य)"नजर नवाज नजारा ना बदल जाए कहीं जरा सी बात है ,मुँह से ना निकल जाए कहीं "जी हाँ बात जरा सी थी मगर बहुत सुर्खियां बटोर लायी है ।रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल पर नींबू की नजर क्या उतारी ,सोशल मीडिया में एक से एक तमाशे शुरू हो गए।राजनाथ सिंह को लोगो

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गोली नेकी की

20 अक्टूबर 2019
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"गोली नेकी वाली (व्यंग्य)"ये दौरे सियासत भी क्या दौरे सियासत है चुप हूँ तो नदामत है ,बोलूँ तो बगावत है" आम वोटर चुनाव के वक्त ऐसे ही सोचता है कि वो क्या बोले ,सब कुछ तो बोल दिया है नेताजी ने।नेताजी जवान हैं ,स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं ,कभी मीडिया के लाडले हुआ करते थे ,सबको कान के नीचे बजाने की घुड़की दि

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मन का रावण

27 अक्टूबर 2019
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मन का रावण (व्यंग्य)हा, तुम्हारी मृदुल इच्छाहाय मेरी कटु अनिच्छा था बहुत माँगा ना तुमने ,किंतु वह भी दे ना पाया ।था मैंने तुम्हे रुलाया ,,ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया ।इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज

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हैप्पी बर्थ डे

3 नवम्बर 2019
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"हैप्पी बर्थ डे ",,(व्यंग्य)"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला "ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के दिन अब लद गये।अब अल

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मेला आन ठेला

9 नवम्बर 2019
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मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

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तो क्यों धन संचय

16 नवम्बर 2019
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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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अबकी बार तीन सौ पार

24 नवम्बर 2019
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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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ये कैसे हुआ

30 नवम्बर 2019
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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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पापा नहीं मानेंगे

8 दिसम्बर 2019
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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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कौआ कान ले गया

14 दिसम्बर 2019
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"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

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आपको क्या तकलीफ है

21 दिसम्बर 2019
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"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

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डर दा मामला है

29 दिसम्बर 2019
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डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

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लोग सड़क पर

5 जनवरी 2020
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"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूबबड़े बड़े बही जात हैं दूब खूब की खूब "श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,

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मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
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"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

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कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
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"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

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खिचड़ी बनाम बिरयानी

26 जनवरी 2020
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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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अंकल कम्युनलिज़्म

10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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ब्लैक स्वान इवेंट

22 फरवरी 2020
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ब्लैक स्वान इवेंट (व्यंग्य)"तुलसी बुरा ना मानिएजौ गंवार कहि जाय जैसे घर का नरदहाभला बुरा बहि जाय "फ़िलहाल देश की आम सहनशील जनता आजकल एक दूसरे को समझाते हुये यही कहती है कि जो बहुत बोल रहे हैं ,बोलते ही जा रहे हैं ,लगातार बोलते रहने से उन्हें ये इल्हाम हो रहा है कि जब सुनें

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कर्फ्यू

27 फरवरी 2020
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कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

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नीचे का खुदा

3 मार्च 2020
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3- नीचे का खुदादोनों सिपाहियों की ड्यूटी थी ,वो दोनों स्नाइपर थे और वो दोनों दुश्मनों के निशाने पर भी थे ।आबिद और इकबाल।वैसे इकबाल हिन्दू था और नाम था इकबाल सिंह ,जबकि आबिद का नाम आबिद पटेल था ।इकबाल को सब इकबाल कहकर ही बुलाते थे ताकि लोगों को लगे के वो मुसलमान है क्योंकि वो शक्ल सूरत और रव

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वर्क फ्रॉम होम

10 मार्च 2020
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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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घर बैठे बैठे

21 मार्च 2020
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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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