वो बूढ़ी औरत बड़ी देर से व्याकुल सी स्टेशन पर किसी
को ढूंढ रही थी। मालती बड़ी देर से उसे देख रही थी ,
उसकी ट्रेन एक घंटा लेट थी । उसने महसूस किया कि वृद्धा का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं था ।दुबली-
पतली, झुर्रियों से भरा चेहरा,उलझे हुए से बाल ,अजीब सी चोगे जैसी पोशाक पहने ,हाथ में एक पोटली थामे जमीन पर बैठी लगातार कुछ बोल रही थी।
मालती उसकी दशा को देखकर मन ही मन द्रवित हो रही
थी।उसने सोचा कि वह उसके पास जाएं तभी उसने देखा
कि वृद्धा औरतों का एक ग्रुप जो वैसी ही पोशाक पहने
था,प्रतीक्षालय से बाहर आया और ट्रेन में चढ़ गया ,उसने
सोचा वह बूढ़ी औरत भी चली जाएगी।लेकिन ये क्या!वह तो वहीं थी,मालती उठकर उन औरतों के पास जाकर
बोली-आप उनको क्यों छोड़ कर जा रहीं हैं ,देखिए वहां वो बैठी हैं।
"नहीं ,वह हमारे साथ नहीं है। हमारे ग्रुप के सब लोग यहां हैं।"
मालती असंमजस में पड़ी वापस आ गई, अब तो उसकी
भी गाड़ी आने का समय हो गया था।तभी वह वृद्धा उसके
पास आकर अपना टिकट दिखाते हुए बोली-"ये गाड़ी कब आएगी?
मालती टिकट लेकर देखने लगी, ये क्या! ये तो पुराना टिकट है!!
उसने पूछा-आपके पास ये टिकट कहां से आया?
"मेरा बेटा देकर गया है।"कहकर टिकट छीनते हुए बोली-बताना नहीं तो पूछती क्यो है?उसकी अवस्था ,आशा सब
मालती को द्रवित कर रहे थे, इन्सानियत कह रही थी कि मदद करो, स्वार्थ कह रहा था क्या करना है? वह उठी
और वृद्धा के पास जाकर बोली -
-मां जी!आप कहां जा रही हो?
बेटी के पास...
अच्छा आपकी बेटी कहां रहती है?
अहमदाबाद...
आपकी बेटी को पता है कि आप उसके पास जा रही हो?
हां!बेटा बोला ना वो फोन करेगा।
अब मैं वापस नहीं आऊंगी,बहू-बेटा गुस्सा करते हैं।
कहते हुए वे बड़बड़ाने लगी।
फिर पोटली खोल कर टटोलते हुए बोली-"खाना भी
रखना भूल गई,अब क्या खाऊं?
मालती अब और इंतज़ार नहीं कर सकती थी ,वह समझ
गई कि इन्हें त्याग दिया गया है ।उठी और रेलवे पुलिस के
पास जाकर सारा वृत्तांत सुनाया। पुलिस अफसर भला मानुष था।
उसने तुरंत संज्ञान लेते हुए वृद्धा श्रम में फोन किया।
मालती की ट्रेन का एनाउंसमेंट हो चुका था ।उसने देखा कि कुछ लोग आए और वृद्धा को लेकर जाने लगे।
आप निश्चिंत रहिए मैडम!माताजी को भिजवा दिया है ,
कम से कम हम उम्र के लोगों के साथ उनका दुख कम तो होगा।
कलियुगी संतानें,क्या करें हम और आप?बस इतनी मदद
कर सकतें हैं। पुलिस अफसर के ये शब्द मालती के कान
में गूंज रहे थे।मन बड़ा उदास था।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित