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!! साक्षात दर्शन !!

1 अगस्त 2019

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 मुम्बई शहर मे एक सम्पन्न अरबपति धार्मिक व्यवसायी परिवार रहता था जीनका कारोबार पुरे भारत देश मे फैला हुआ था परिवार मे सेठ भवानीप्रसाद उनकी माता शकुन्तला पत्नी रुकमणी तथा दो होनहार बेटे अजय व विजय थे।भवानीप्रसाद की माँ शकुन्तला बहुत पुजा पाठ करती थी तथा संतोषी माँ की परम भक्त थी । भवानीप्रसाद की गरिबी से अमिर बनने की कहानी इस प्रकार है-भवानीप्रसाद इक्कीस वर्ष की उम्र मे उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव रामपुर मे अपना परिवार छोड मुम्बई काम की तलाश मे 5000 रूपये घर से लेकर  सन  1970 मे आए थे।मुम्बई मे शुरू के कुछ दिन काम की दिनभर तलाश करते ,काम ना मिलने से निराश होते तथा दिन भर में हल्का फुल्का खाकर रात होने पर रेल्वे स्टेशन/पार्क /फुटपाथ मे सो जाते थे। भवानीप्रसाद को पन्द्रह दिनो मे कोई अच्छा काम नही मिला तो वे व्यवसाय करने का सोचे तथा अपने साथ लाए पैसो से कपडा का दुकान फुटपाथ मे लगाने लगे दुकान चल निकली, साल भर मे ही वो मुम्बई मे अपने लिए छोटा सा मकान व दुकान खरिद लिए तथा उत्तरप्रदेश से पुरे परिवार को मुम्बई ले आए कुछ वर्षो की कडी मेहनत मे उनकी कपडे की कई फैक्ट्रियां तथा आलीशान कई बंगले हो गए। मुम्बई मे ही अपने दोनो लडके अजय विजय का विवाह सम्पन्न व्यवसायी परिवार की सगी दो बहनो रीता रीमा  से कर दिए जो कि बहुत खुबसूरत व शिक्षित होनहार लडकी थी। अजय विजय के एक एक लडके हुए जो कि प्रारंभिक शिक्षा मुम्बई मे प्राप्त कर उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु अमेरिका चले गए तथा पुरे बिजनेस को दोनो लडके अजय विजय अच्छी तरह सम्भालने लगे तब भवानीप्रसाद पुरी तरह फ्री हो गए। भवानीप्रसाद अपनी जींदगी का पचास वर्ष कारोबार बढाने व  अपने परिवार के प्रति सभी उत्तरदायित्वो को पुरा करने मे बिता देते है। भवानीप्रसाद शांति के तलाश व ईश्वर देखने की लालशा मे भारत के सभी तीर्थ स्थानों में अपनी पत्नी रूकमणी के साथ जाने का फैसला करते हैं। भवानीप्रसाद व रूकमणी भारत के सभी तीर्थ स्थल का महिनों यात्रा करते है तथा हर छोटा बडा तीर्थ स्थल जाते है माथा टेकते है किंतू भवानीप्रसाद को शांति व ईश्वर दर्शन.नही होता है। भवानीप्रसाद को मुम्बई मे अपने विद्वान पंडित जी से पता चलता है कि असली साधु संत हिमालय मे रहते हैं तथा उनके मार्ग दर्शन मे शांति व ईश्वर दर्शन संभव है तो भवानीप्रसाद शांति और ईश्वर दर्शन के लिए हिमालय पर्वत जाने का फैसला करते हैं। हिमालय मे उन्हेँ कई साधु संत पुजा पाठ करते,विचरते तथा सीमित साधन मे रहते हुए दिखते है।उन्होनें एक साधु से ईश्वर दर्शन करने की अपनी मंशा बताई।साधु ने कहा ईश्वर दर्शन ध्यान के माध्यम से ही संभव है और वह आप इस उम्र मे नही कर पाओगे। भवानीप्रसाद ने कहा आप रास्ता दिखाईये मै कर लुंगा जिसपर साधु ने भवानी प्रसाद को कहा आप हिमालय पर्वत मे चढिए वहा आपको एक साधु ध्यान करते हुए मिलेंगे आप उनको देखकर स्वयं फैसला करना कि क्या आप ईश्वर दर्शन के लिए कठोर तपष्या और ध्यान करने को तैयार है। भवानीप्रसाद हिमालय पर्वत मे पत्नी रूकमणी को निचे छोड अकेले चढने का फैसला करते हैं,जब पर्वत के कुछ उपर पहुँचते है तो उन्हें एक साधु दिखाई देता है तो भवानीप्रसाद उन्हें ईश्वर दर्शन करने की बात बताई तो इसपर साधु हँसने लगता है तथा कहता है लौट जाओ तुम इतनी कठिन तपस्या/ध्यान नही कर सकते हो जिसपर भवानीप्रसाद ने कहा मै ईश्वर देखने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। साधु भवानीप्रसाद को लेकर हिमालय पर्वत के और ऊपर चढता है तो भवानीप्रसाद देखते हैं एक आदमी के उपर लाखो कीडे मकोड़े और जीव चीपके हुए हैं और वह शांत बैठा हुआ है तथा हिल डुल भी नही रहाँ है। भवानीप्रसाद साधु से पुछते है कि ये क्या कर रहे हैं तब साधु कहता है कि ये महिनो से ध्यान मे लीन हैं और इनके उपर कीडे मकोड़े चीपक गए हैं तथा ये साधु इस कारण हिल नही रहा है कि कही कोई जीव मर ना जाए। साधु भवानीप्रसाद को कहता है तुम इतनी कठिन तपस्या/ध्यान नही कर सकते हो इसलिए वापस घर जाओ और दीन दुखियों जरूरतमंदों की सेवा करो उससे तुम्हें शांति मिलेगी तथा ईश्वर दर्शन भी संभव है। भवानीप्रसाद मुम्बई वापस अपनी पत्नी रूकमणी के साथ आ जाता है तथा खुब मन लगाकर व खुशी से दिन दुखियों जरूरतमंदों की सेवा करता है व जगह जगह तालाब मंदिर बनवाता है आनाथो की शिक्षा की व्यवस्था करता है विधवाओं को आर्थिक सहायता देकर आत्मनिर्भर करता है गरिब कन्याओं की शादी कराता है।धर्मशाला /अनाथालय/वृद्धाश्रम बनवाता है। परोपकार कार्य करने से भवानीप्रसाद को शकुन व शांति का एहसास होने लगता है तथा सुख शांति समृद्धि यश किर्ति सभी  दिन दुनी रात चौगनी बढने लगती है। एक रात भवानीप्रसाद को सुबह सुबह ब्रम्हमुहूर्त मे संतोषी माँ का भव्य और दिव्य स्वरूप मे सपना आता है माँ कहती है भवानीप्रसाद उठ मै तेरे घर मे ही रहती हूं और तु मुझे मंदिर मंदिर खोज रहा है भवानीप्रसाद कहता है माँ मेरे घर मे कहाँ रहती हो मैने तो कभी आपको नही देखा है जिसपर संतोषी माँ कहती है मैं तो तेरे घर में दिन रात तेरे साथ ही वर्षो से रहती आयी हूं और रहुंगी इसपर भवानीप्रसाद कहता है माँ बताओना कहाँ रहती हो, माँ बताओना कहाँ रहती हो तो माँ संतोषी कहती है तेरी माँ शकुंतला के अंदर शुरू से ही रहती हूं और चली जाती है। भवानीप्रसाद सुबह उठता है और अपनी माँ शंकुतला के कमरे में जाता है और माँ को ध्यान से देखते ही उसे संतोषी माँ का दिव्य व भव्य स्वरूप तथा पुरा ब्रम्हांड नजर आता है तथा वह देखता ही रह जाता है और वो माँ की चरणो मे गिर जाता है माँ से आशीर्वाद माँगता है माँ शकुन्तला अपने बेटे को उठाती है और कहती है बेटा मेरा आशीर्वाद सदैव तेरे साथ था, है और सदैव रहेगा अपनी माँ के अंदर ब्रम्हांड तथा संतोषी माँ का दिव्य व भव्य स्वरूप के साक्षात दर्शन करते ही उसे परम शांति परम आनंद और मोक्ष का एहसास होता है।....जय माँ संतोषी.....  ईश्वर एक है रूप अनेक है आप जिस रूप में देखोगे उसी रूप मे उनके आपको दर्शन होंगे। नोट--ये कहानी काल्पनिक है स्थान और व्यक्तियों के नाम का कोई सम्बंध नही है कहानी के लिए जगह और नाम का उपयोग किया गया है। स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित प्रतीक अवस्थी "समीर" !! अधिवक्ता !! लेखक !!

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मुम्बई शहर मे एक सम्पन्न अरबपति धार्मिक व्यवसायी परिवार रहता था जीनका कारोबार पुरे भारत देश मे फैला हुआ था परिवार मे सेठ भवानीप्रसाद उनकी माता शकुन्तला पत्नी रुकमणी तथा दो होनहार बेटे अजय व विजय थे।भवानीप्रसाद की माँ शकुन्तला बहुत पुजा पाठ करती थी तथा संतोषी माँ की परम भक्त थी ।भवानीप्रसाद की गरिबी

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1 अगस्त 2019
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भारत के महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से शहर में एक गरीब परिवार रहता था उस परिवार में कुल चार सद्स्य मुखिया जयचंद्र उसकी धर्म पत्नी रूकमणी तथा बेटा हर्ष व बेटी हर्षिता थी।जयचंद्र के पास चार बीघा जमीन थी उसी की आय से मुश्किल से परिवार का खर्च चलता था क्योंकि जयचंद्र का पुत्र हर्ष इंजीनियरिंग की पढाई क

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!! फस्ट नाईट !!

1 अगस्त 2019
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महराष्ट्र के एक छोटे से शहर में एक प्रतिष्ठित व्यवसायी परिवार रहता था उस परिवार में कुल तीन सदस्य थे परिवार के प्रमुख सेठ करोणी मल उनकी पत्नी कावेरी तथा बहुत ही खूबसूरत होनहार इकलौती पुत्री 20 वर्षीय सुमन रहती थी।सुमन बी0ए0 अंतिम की परिक्षा दी थी तथा उसके पिता करोणी मल उसके लिए एक योग्य लडके की तला

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