शतरंज का खेल जाननेवाला ही शतरंज की चाल समझ सकता है. पहली चाल धोखा होती है जो छठी या कभी कभी 10 चाल को कामयाब बनाने के लिए की जाती है. शतरंज में लकड़ी के मोहरे होते है जिनमे भावनाएं नहीं होती, जिनमे आत्मा नहीं होती. अगर कोई जिंदगी में इंसानों के साथ शतरंजी चाले चले तो उसे क्या कहेंगे? चाणक्य ? आज की राजनीति वैसे ही खेली जा रही है. कश्मीर में जो अब हुआ है उसकी पहली चाल कई साल पहले चल दी गई थी, जिसे किसी भी राजनैतिक दल ने नहीं समझा. कश्मीर में पी डी पी के साथ मिलकर सरकार बनाना. लोग हैरान ज़रूर थे पर इस चाल का मतलब नहीं समझ पाए. दो धुरविरोधी दलों का सरकार बनाना. संघ ने यह खेल कोई पहली बार नहीं खेला, 1941 के दौरान भी खेला गया था, जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने मुस्लिम लीग के साथ सरकार बनाई थी. दूसरी चाल तब चली जब सत्यपाल मालिक को राज्य पाल बनाया गया. किसी के दिमांग में नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है, सिर्फ दो लोग जानते थे कि अगली चाल क्या होगी. पहली चाल का मतलब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस को सत्ता से दूर रखना और एक ऐसी सरकार बनाना जिसे कभी भी हटाया जा सकता है क्योकि आपस में इतने भेद है कि किसी एक को कारण बता का सरकार को गिराया जा सकता है. तीसरी चाल यही थी और महबूबा मुफ़्ती की सरकार को गिरा दिया गया. चौथी चाल राज्य पाल का भोलेपन का नाटक जिसमे सभी आ गए और उनका शुक्रिया भी अदा किया, उन्होंने किसी को सरकार बनाने नहीं दी तर्क दिया कि वो ऐसा करते तो बीजेपी वहां सरकार बना लेती और उन पर इलज़ाम लगता. उस वक्त नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी, उन्हें सरकार बनाने से दूर रखा गया. चौथी चाल बहुत आसान थी और वह राष्ट्रपति शासन, और पांचवी चाल चुनाव ना होने देना. छठी चाल राज्य पाल का देश से झूठ बोलना कि 370 धारा हटाने की कोई बात नहीं चल रही, जबकि इसकी सिफारिश ख़ुद की और उनकी सिफारिश को लेकर ही 370 धारा को हटाया गया. अगर आज की स्थिति में वहाँ किसी की भी सरकार होती तो उसकी सहमति के बिना इस धारा को नहीं हटाया जा सकता था. आज क्योकि सरकार नहीं है इसलिए राज्य पाल को सरकार मान कर उनकी सहमति से धारा 370 को हटाया गया है ( क्या राज्य पाल किसी राज्य का प्रतिनिधि होता है या केंद्र सरकार का? इस का फैसला सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लेना होगा कि राज्य पाल की स्थिति राज्य में क्या हो. ). आज भी अगर दूसरे दल इस बात से सबक ले सके तो शायद लोकतंत्र को बचा पाएंगे वरना अब लोक तंत्र 40 -50 साल के लिए इस देश से नदारद होने वाला है. यहाँ एक के बाद एक शतरंजी चाले चली जाएंगी और जनता उनमे ही फंसी रहेगी. पुलवामा, बालाकोट पर जश्न मनेंगे , तीन तलाक पर लड्डू बटेंगे, कश्मीर में प्लाट खरीदने और शादी करने के ख्वाब दिखाए जाएंगे, और ना जाने कहाँ कहाँ से ढूंढ कर देश भक्ति के नारे निकाले जाएंगे. (आलिम)