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तब क्यों नहीं

18 अगस्त 2019

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तब क्यों नहीं ,(व्यंग्य)

"ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी

पाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमने

इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर

उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने "


ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल पड़े जो अपने घर वापसी के लिये दिल्ली से जम्मू की ट्रेन में बैठ रहा था।मैंने उनसे पूछा-

" कि आप अपना घर पहचान लेंगे,वहाँ तक पहुँच जाएंगे और सबसे ख़ास बात क्या आपका घर ,घर की शक्लोसूरत में होगा भी या नहीं "।

उस बेघर, बेवतन पीड़ित ने एक फोटो दिखाई अपने घर की, फिर निहायत अफसोस स्वर में बोले -


"घर तो घर का निशाँ तक बाकी नहीं सफदर

अब कभी वतन में जाएंगे तो मेहमाँ होंगे "

वो चले गए तो लुटियंस जोन के एक मीडिया मुग़ल मिल गए ।जो फिलहाल बेरोजगार हैं हाल ही में एक टीवी चैंनल से निकाले जाने से, स्कॉच से सीधे ठर्रे पर आ गए अब फेसबुक पर वीडियो बनाकर डालते हैं और ट्विटर पर चहचाहते हुए काट खाने को दौड़ते हैं ।हजरत सो काल्ड "सेक्युलर वॉइस "के चैंपियन मानते हैं खुद को ।सूक्ष्म और सेलेक्टिव मसलों पर अपनी राय रखने वाले ये हजरत बड़े बड़े मामलों पर चुप रहते हैं ।ये जहाँ भी जाते हैं और जैसे ही बोलना शुरू करते हैं लोग उनसे एक ही सवाल करते हैं कि

"तब क्यों नहीं" ना बोले,ना लिखे,ना धरने पर बैठे ना देश छोड़ने की बात की जब कत्लो गारद बहुत बड़े पैमाने पर हुई थी"।

क्योंकि तब दौरों पर सब्सिडी बहुत थी,मुफ्त सहूलियतें बहुत थीं अब तो मुफ्त के मुशायरों में भी लोग सवाल उठाते हैं कि तब क्यों नहीं।

इधर देश के सियासी हलचल में उठा पटक हुई तो बहुतेरे समीकरण बदल गए जिन्हें दिल्ली में बिरयानी ऑफर होती थी अब जेल में खिचड़ी और पोहे पर गुजारा करना पड़ रहा है ।चार्टेड प्लेन से घूमने वाले लोग घरों में नजरबंद हैं ।उनके आका खुद बेचारे आलू टमाटर को मोहताज हैं उनको क्या देंगे ।उनकी हालत मोहल्ले के उस बच्चे की तरह है जो अपने से ताकतवर लड़के से भिड़ता है,एक बार पीटे जाने पर फिर ललकारता है कि हिम्मत है तो अबकी हाथ लगाकर दिखाओ ,वो फिर पिटता है,वो बार बार ऐसे ही ललकारता है और पिटता चला जाता है।उस पार वालों को और उस पार वालों से सहानभूति रखने वालों को अब समझना पड़ेगा कि ये न्यू इंडिया अब परमवीर चक्र विजेता विक्रम बत्रा की लाइन पर काफी पसंद करता है और अपना सब कुछ हासिल करने के लिये" ये दिल मांगे मोर " कहता है ।अभी आवाज़ें उठी हैं, तो ये तिलमिलाहट है ,एक्शन होगा तब तो माशा अल्लाह,,,,

"आवाजे खल्क को नक्कारा -ए-खुदा समझो

जिसे आलम बजा कहे,उसे हक बजा समझो "


इन बदले समीकरणों में वीर रस के कवियों को थोड़ी मेहनत करनी पड़ रही है ,पिछले बीस सालों से सिर्फ कश्मीर में तिरंगा लहराने की कविताएं कंठस्थ करके गा रहे थे ,अब मुज़फ्फराबाद पर तिरंगे के लिये कविताएं लिखनी पड़ेगी ।पैरोडी वाले पहले फ़िल्मी गानों पर पैरोडी लिखते थे ,अब "तब क्यों नहीं"वालों पर पैरोडी लिख रहे हैं जैसे एक उत्साही युवा कवि ने पोस्ट किया कि

"पटक के मारो जो देश के खिलाफ बोले

हमारा मुल्क है किसी काले कौए की मचान थोड़े ही है"

मैं इसका कुछ मतलब समझ पाता तब तक एक दूसरे युवा कवि ने एक पैरोडी सुनायी

"ना जाने चाशनी क्यों रुक गयी है मेरी शायरी की

ये टीवी चैनल में ये बात बेहतर समझायी जाती है

दिन ब दिन हमारी कमाई क्यों गिरती चली गयी

क्यों शायरी में अब मलाई की शॉर्टेज पायी जाती है "


ऐसा ही कुछ हाल समीकरणों के बनने -बिगड़ने का है ।फ़िल्मी दुनिया में देश भक्ति की दो चार फ़िल्में हिट हुईं तो ट्रेड पर बारीक नजर रखने वाले सहम गये ।,कुछ साल पहले देश के छोटे छोटे मसलों पर बोलते थे और उससे पहले देश के बड़े बड़े मसलों पर बिलकुल नहीं बोलते थे अव्वल तो पहले खुद को कलाकार मानते थे ,नागरिक नहीं और दूसरे इस बात का भी ख्याल रखते थे कि बोलने से कहीं ऐसा ना हो कि जो मिलने वाला था,कहीं वो ना मिले तो ?

इस स्वर्णिम चुप्पी की उन्होंने खासी कीमत वसूली और सब कुछ हासिल किया जो उन्हें करना था।दुनिया भर में लोग बोल कर कुछ हासिल करते हैं हमारे देश में अतीत में लोगों ने चुप रहकर बहुत कुछ हासिल किया ।इसी स्वर्णिम चुप्पी से काफी कुछ बटोरने के बाद अब वो नागरिक बन चुके हैं और संविधान की दुहाई दे रहे हैं ।इस सेकुलरिज्म और संविधान के एक चैंपियन की अभिनेत्री बेटी ने कुछ साल पहले एक टीवी कार्यक्रम में प्रणव मुखर्जी को भारत का प्रधान मंत्री बताया था ।और तीन शादियां कर चुके तीन तलाक के प्रबल विरोधी इन हजरात के लख्ते जिगर मुम्बई बम हमले के अभियुक्त के मित्र बताये गये थे मीडिया रिपोर्ट्स में ।घर नहीं सम्भलता देश सम्भालने का ठेका ले रखा है ,एक मशहूर शेर इनकी हालत बताता है

"घर को सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है

पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएं कैसे "।

सो नागरिक बनते ही इन्होंने देश की दुखती रग को छेड़ दिया ,लोगों के गुस्से को हवा दे दी लेकिन नफरतों की खेती कब तक ।जनता ने इनके काम का बहिष्कार किया ,तो इन्हें काम मिलना बन्द हो गया ये लोग भूल गए थे कि जो जनता सर माथे पर बिठाती है वही उतार भी देती है और लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है ,जलसों और मुशायरों में बोलने के अवसर से नहीं कोई बड़ा बन सकता है ।

सबके अपने अपने फलसफे हैं आजकल अमिताभ बच्चन साहब फरमा रहे हैं कि "हमें अपने लड़कों की परवरिश ऐसे करनी चाहिये कि वे अपने गुस्से पर काबू पा सकें "।फेसबुक पर किसी ने उन्हें टैग करते हुए दीवार,त्रिशूल और अग्निपथ का पोस्टर टैग करते हुए पूछा है "सर,

तब क्यों नहीं "☺️

समाप्त


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कागज़ नहीं दिखाएंगे

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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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ब्लैक स्वान इवेंट

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कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

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वर्क फ्रॉम होम

10 मार्च 2020
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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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21 मार्च 2020
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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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