*इस संसार में अनेक प्रकार के देवी - देवताओं की पूजा मनुष्य नित्य करता है परंतु उनके दर्शन करने का सौभाग्य उसे जीवन भर नहीं प्राप्त हो पाता | इस धरती पर जीवित देवी - देवता भी हैं जिनकी कृपा - कटाक्ष से मनुष्य को जीवन प्राप्त होता है ये प्रत्यक्ष देवी - देवता हैं मनुष्य के माता - पिता | बिना माता - पिता के संयोग के जीव इस धरती पर आ ही नहीं सकता है | कहा जाता है कि माँ के पैरों के नीचे स्वर्ग होता है परंतु उस स्वर्ग में पहुँचने का रास्ता जिस व्यक्ति से होकर जाता है उसे "पिता" कहा गया है | माँ का स्थान सृष्टि में सर्वोपरि है तो माँ का जीवन आधार उनका पति अर्थात हमारे पिता होते हैं | इस प्रकार माँ से ऊँचा स्थान पिता का होता है | भले ही एक पिता माँ की तरह अपने बच्चे को अपनी कोख से जन्म न दे , दूध न पिलाये परंतु सत्य तो यह है कि एक बच्चे के जीवन में पिता का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है | पिता ही इस संसार का इकलौता एवं अनोखा व्यक्ति होता है जो यह चाहता है कि हमारी संतान हमसे ज्यादा विद्वान , गुणवान एवं धनवान बने | अपनी संतान को समस्त सुख - ऐश्वर्य दिलाने के लिए एक पिता दिन - रात मेहनत करके अपनी संतान को किसी भी वस्तु का अभाव न होने देने के लिए प्रयासरत रहता है | जिस दिव्यात्मा (पिता) के माध्यम से जीव शरीर धारण करके इस संसार में आता है उसके ऋण से जीवन भर उऋण नहीं हो सकता | पिता विशाल वट वृक्ष की तरह अपनी संतान को चहुँ ओर से छाया प्रदान करने वाला होता है | दुर्भाग्य से जिस में पिता का आकस्मिक निधन हो जाता है उस घर की हालत संसार वाले बद से बदतर कर देते हैं | पिता के न होने का दुष्परिणाम बच्चों को जीवन भर भुगतना पड़ता है | जीवन में पिता का क्या महत्त्व है यह उन बच्चों के हृदय से पूछो जिनके पिता असमय काल के गाल में समा गये हैं | पिता एक पथ प्रदर्शक की तरह अपनी संतान का कंटकमय मार्ग सुगम बनाता रहता है | इस संसार में पिता के बिना बचपन व्यतीत करना बहुत ही मुश्किल भरा कार्य है ` अपने जीवन का सर्वस्व अपनी संतान के ऊपर न्यौछावर कर देने वाला पिता सदैव यही विचार करता है कि कौन सा ऐसा उद्योग किया जाय जिससे कि संतान का भविष्य उज्ज्वल एवं जीवनपथ आलोकित होता रहे |*
*आज के युग में जहाँ संतान आधुनिकता की चकाचौंध में अपने माता पिता का महत्त्व नहीं समझ पा रहे हैं वहीं उनका जीवन भी कंटकमय होता जा रहा है | एक छोटे बालक को वैसे तो सभी प्रेम करते हैं परंतु जो प्रेम पिता से प्राप्त होता है वह अन्यत्र नहीं मिल सकता | अपनी संतान को प्रेम करने वाला पिता समय पड़ने पर संतान को दण्ड भी देता है इस दण्ड के पीछे भी संतान के भविष्य निर्माण की ही मंशा होता है | आज हमारे गोलोकवासी परमपूज्य "पिता जी" की पाँचवीं पुण्यतिथि पर उनके द्वारा मिले ज्ञान के माध्यम से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" प्रत्येक व्यक्ति से यही कहना चाहूँगा कि जब तक पिता हैं तब तक उनका सम्मान एवं सेवा करते रहें क्योंकि जिस दिन पिता नहीं रहते हैं तब उनकी रिक्तता का एहसास होता है | आज समाज में स्वयं को आधुनिक कहने वाली कुछ संतानें अपने पिता के त्याग - बलिदान को भूलकर उनको उपेक्षित दृष्टु से देखने लगते हैं | आज की संतानें यह भूल जाती हैं कि यही वह दिव्यात्मा (पिता) है जिनकी त्याग एवं तपस्या के बल पर ही वह आज सफलता के पायदान पर पहुँचा है | जो पिता अपनी संतान को अपने कंधे पर बिठाकर पूरे गाँव का चक्कर लगाता है वही पिता वृद्धावस्था में अपनी संतान के कंधों का सहारा न पाकरके वृद्धाश्रम में रहने को विवश हो रहे हैं | अपने जन्मदाता पिता के साथ ऐसा करने वालें यह विचार अवश्य कर लें कि यह संसार कर्मप्रधान है यहाँ जो जैसा करता है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता | आज जो अपने पिता के साथ ऐसा कर रहे हैं कल उनकी संताने उनके साथ इससे भी बुरा व्यवहार करने को तैयार बैठी हैं क्योंकि आज आप आधुनिक हैं तो आने वाली पीढ़ियाँ अत्याधुनिक होंगी |*
*इस संसार में वह सबसे बड़ा भाग्यशाली है जिसके सर पर पिता की छत्रछाया बनी हुई है | जो अपने वृद्ध पिता का अनादर कर रहे हैं वे सावघान हो जायं क्योंकि इतिहास स्वयं को दोहराता है |*