कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्ण की पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका है उनके विचरों पर अम्ल करना. मेरे इस विचार से तो सारे हिन्दू ही नहीं हिदुत्ववादी भी सहमत होंगे. कृष्ण को लोग अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से देखते है, किसी के लिए वो माखन चोर है तो किसी के लिए रसिक जो रासलीला करते थे, कोई उन्हें योद्धा मानता है तो कोई उन्हें मानता है कि उन्होंने अर्जुन को युद्ध करने के लिए कहा. ये सब एक झूठ है जो कही भी और कभी भी सच नहीं था. कृष्ण से जुड़ी कहानी और किस्से कवियों की कल्पना है ना की सच. सूरदास की रचनाएँ एक कल्पना है, सूरदास ने अपनी भक्ति में और प्रेम में एक ऐसे व्यक्तित्व की कल्पना की जो बालक है जिसमे चंचलता है, चपलता है. ऐसे ही बहुत सारे कवियों ने जो श्रृंगार रास के कवि थे उन्होंने एक रसिक के रूप में उनकी कल्पना की. युद्ध के समय लोगो ने उनको योद्धा या अपने अधिकारों के लिए युद्ध करने के लिए अर्जुन को प्रेरित करने के रूप की कल्पना की. ये सभी कल्पनाएं है सच से परे है. कृष्ण के विचारों को गीता में देखा जा सकता है. कृष्ण के बारे में महाभारत में काफी कुछ लिखा है, कुछ पुराणों में भी कृष्ण के जीवन का वर्णन है, पर इन में किसी में भी उनकी चोरी या रास लीला का ज़िक्र नहीं है. क्या कृष्ण ने गीता में युद्ध करने का उपदेश दिया है? जिन लोगो का विश्वास हिंसा में है उन्हें ऐसा ही लगता है पर जिनका विश्वास अहिंसा में है उन्हें ऐसा नहीं लगता. गीता को पढ़ने और समझने वालो की सबसे बड़ी कमी यह है कि वो लोग कुछ श्लोको को जानते है और उन्ही कुछ श्लोकों से पूरी गीता को समझ लेने की भूल करते है. यह भूल इसलिए होती है क्योकि कोई भी गीता को पढ़ने और समझने की कोशिश खुद नहीं करता बल्कि पंडितो या धर्माचार्यों से सुन कर मान लेता है कि गीता में ऐसा ही कहा गया और और उस अधूरे ज्ञान को वो सम्पूर्ण ज्ञान मान लेता है. गीता सार के पोस्टर पढ़ कर हम गीता को जानने दावा करने लगते है. गीता के उपदेश के बाद अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो जाता है? यह सच है कि अर्जुन इस उपदेश के बाद ही युद्ध के लिए तैयार होता है, लेकिन महाभारत के युद्ध शुरू होने से पहले जब अर्जुन युद्ध करने कुरुक्षेत्र जाता है उस वक्त का उसका युद्ध का उद्देश्य और कृष्ण के गीता का प्रवचन देने के बाद का युद्ध का उद्देश्य एक नहीं है. अर्जुन कुरुक्षेत्र जिस उद्देश्य से आता है उस के विपरीत उद्देश्य से युद्ध करता है. इस बात को कोई नहीं समझायेगा, क्योकि धर्माचार्य और पंडित जिस उद्देश्य से भक्तो को गीता सुनाते है वो कृष्ण के उद्देश्य के विपरीत है , वो गीता के कुछ श्लोक सुना कर अपने उद्देश्य की पूर्ति करते है, ना कि सही गीता का ज्ञान देते है. महात्मा गांधी को गीता अहिंसा का ज्ञान देने वाली लगती थी तो हिन्दुत्वादी हिंसात्मक लोगो को गीता से हिंसा की प्रेणना मिलती थी. धर्माचार्य और पंडित भक्तों को समझाते है क्या लेकर आये थे क्या लेकर जाएंगे, जो लिया यही लिया जो दिया यही दिया और उसके बाद वो दक्षिणा मांगेगे, चढ़ावा मांगेगे, क्यों? क्योकि उनका घरबार इससे चलता है, उनका यह कारोबार है, आज हर धर्माचार्य के पास सहूलियत के सब साधन मौजूद है, उनकी ज़िंदगी बिना मेहनत किये आराम से चल रही है, तो वो वही बताते है जिससे उनका धंधा चलता रहे. योगी भोगी बन रहे है और भक्तों को योगी बनने की सलाह दे रहे है. गीता में योग के बारे में विस्तार से बताया है क्या किसी ने गीता में जानने की कोशिश की कि योग क्या है? योग कितने प्रकार के होते है? योगी के लिए क्या ज़रूरी है? कृष्ण ने अर्जुन को योगी बनने को कहा, तो क्या योगी को युद्ध करना चाहिए? इस सवाल का जवाब भी गीता में ही है. कृष्ण को देशभक्त या राष्ट्र भक्त बताया जाता है? जो तीनो लोकों का स्वामी हो उसके कौनसा राष्ट्र उसका है और कौनसा उसका नहीं है? ( भाग 2 को भी ज़रूर पढ़े,आलिम )