*पूर्वकाल में मनुष्य ने आत्मिक प्रगति की थी | संस्कारों का स्वर्णयुग पूर्वकाल को कहा जा सकता है तो इसका प्रमुख कारण था संयुक्त परिवार | संयुक्त परिवार में सुख शांति एवं व्यवस्था का आधार आत्मीयता एवं पारस्परिक सहयोग ही होता है | जहां एक काम को परिवार के सभी सदस्य मिलकर के पूरा कर लेते थे और सामूहिक धनोपार्जन करके उन्नति के शिखर को प्राप्त करते थे | संयुक्त परिवार में रहकर के मनुष्य संसार की कठिनाइयों से मिल करके तो लड़ता ही था साथ ही सामूहिक श्रम से परिवार रूपी गाड़ी बड़े आराम से चलती थी , जिसके कारण मनुष्य को चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती थी | यह यह सत्य है कि मनुष्य को आर्थिक सहयोग की आवश्यकता तो कभी-कभी पड़ती है परंतु मानवीय सहयोग की आवश्यकता सदैव पड़ती रहती है | हर्ष , उल्लास और विपत्ति आदि के अवसर पर जब परिवार के लोग एक साथ उठ खड़े होते हैं और अपने अपने ढंग से सहायता करते हैं तो उससे होने वाली प्रसन्नता अद्भुत / अविस्मरणीय होती है | परिवार के बीच में रहना अपने आप में रोमांचकारी एवं प्रगति में सहायक सिद्ध हुआ है | संयुक्त परिवार में ही रहकरके अनेकों महापुरुषों ने सफलता के शिखर को प्राप्त किया है | संयुक्त परिवार का आधार आपसी विश्वास एवं निस्वार्थ सहयोग होता था | प्रत्येक घर का एक मुखिया होता था जिसका आदेश घर के सभी लोग मानते थे एवं अपने द्वारा अर्जित की गई धन-संपत्ति ला करके उसको ही सौंपते थे और वह मुखिया पूरे परिवार का ध्यान रखते हुए सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति करता था | सायंकाल के समय परिवार के वृद्ध पूरे परिवार को साथ में लेकर की बैठते थे एवं पूरे परिवार को अपने ज्ञान एवं अनुभव का प्रसाद बाटा करते थे जिसे प्राप्त करके भावी पीढ़ी के हृदय में संस्कार का अंकुर प्रस्फुटित होता था | श्रद्धा , सम्मान , विनम्रता , सौजन्य , संतुलन जैसे सद्गुणों के प्रशिक्षण का सर्वाधिक उपयुक्त स्थल परिवार ही है , बड़ों के प्रति श्रद्धा छोटों के प्रति प्यार - दुलार , शील - संकोच कब और कैसे ? क्या बोलना है ? मनोरंजन के समय कैसे मर्यादा बनाए रखना है यह सब संयुक्त परिवार में दैनिक जीवन में ही सीख लिया जाता है | परंतु आज मानव मात्र संयुक्त परिवार से वंचित सा हो गया है |*
*आज के भागदौड़ भरे जीवन में संयुक्त परिवार एक दिवास्वप्न की भांति लगता है | आज मनुष्य भाई की बात तो छोड़ो अपने माता पिता से भी अलग होकर के रहना चाहता है , उसे ऐसा लगता है कि माता-पिता के साथ में रहने पर हमारा विकास बाधित हो रहा है | संयुक्त परिवारों के टूटने का घातक परिणाम भी हमारे समाज को देखने को मिल रहा है , आज की भावी पीढ़ी परिवार में मिलने वाले संस्कारों से वंचित हो रही है यही कारण है कि कुसंस्कारी हो करके नए-नए कारनामों को अंजाम दे रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि जहां संयुक्त परिवार में आने वाले दु:ख या सुख ज्यादा भारी नहीं प्रतीत होते हैं वही एकाकी परिवार को रोग , विपत्ति , प्रसवकाल , बच्चों के लालन-पालन के समय आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है | यहां यदि पति पत्नी दोनों ही नौकरी करने वाले हैं तो मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं | घर को व्यवस्थित रखने के साथ-साथ बच्चों की सुरक्षा , एकाकीपन , संस्कार सब पर प्रश्नचिन्ह लगता लग जाता है | मनुष्य को एक विचार करना चाहिए कि हमारे घर के बुजुर्गों के पास समय और अनुभव दोनों भरपूर होते हैं , बच्चों को अपने दादा - दादी एवं परिवार के बुजुर्गों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करना चाहिए क्योंकि संरक्षक / मार्गदर्शक का कार्य संयुक्त परिवार के वृद्ध करते हैं , परंतु आज परिवार के वृद्ध अपनी ही संतान के लिए बोझ बनते जा रहे हैं | जहां एकाकी परिवार जरा सा दु:ख आने पर डगमगा जाता है वहीं संयुक्त परिवार बड़े से बड़ा दुख आपस में मिलकर के बांट लेता है , परंतु आज के युग में संयुक्त परिवार एक बीती हुई कहानी से ज्यादा कुछ नहीं लगता है और यही मनुष्य के आत्मिक विकास में सबसे बड़ी बाधा है |*
*संयुक्त परिवार ऐसी प्रणाली है जिस में असमर्थ , असहाय , अयोग्य , अविकसित लोग भी जीवन यापन कर लेते हैं अन्यथा वेद दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं और समाज के नियमों के लिए एक समस्या बने रहते हैं | इस प्रकार यदि देखा जाए तो संयुक्त परिवार हर प्रकार से उपयोगी ही सिद्ध होता है अत: संयुक्त परिवार बनाए रखने का प्रयास करते रहना चाहिए |*