*चौरासी लाख योनियों में सबसे अधिक बुद्धिमान , विवेकवान , ऐश्वर्यवान , संपत्तिवान अर्थात सर्वगुण संपन्न होने के बाद भी मनुष्य को गलतियों का पुतला कहां गया है | यहां जाने अनजाने में मनुष्य से नैतिक एवं अनैतिक गलतियां होती रहती हैं | यदि मनुष्य से गलतियां होती रहती है तो उसका प्रायश्चित करने का विधान भी हमारे ऋषि महर्षियों ने बताया है | जहाँ नित्य छोटी-छोटी गलतियां होने पर पंचबलि का विधान बताया गया है वहीं वर्ष में एक बार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को "ऋषि पंचमी" का नाम देकर के व्रत करने का विधान हमारे महर्षियों के द्वारा निर्देशित किया गया है | "ऋषि पंचमी" के व्रत में निर्जल रहकर की अरूंधती के सहित सप्तर्षियों के पूजन का विधान है | इस पूजन को करना क्यों अनिवार्य है , इसके विषय में हमारे पुराणों में एक रोचक कथा प्राप्त होती है | वृत्तासुर का वध करने के बाद इंद्र को ब्रह्महत्या का दोष लग गया , कृत्या का वेश बनाकर के ब्रह्महत्या ने इंद्र का पीछा किया जिससे पीड़ित होकर कि इंद्र सरोवर में छुप गए | स्वर्ग इंद्र के बिना हो गया | तब ब्रह्माजी ने ब्रह्महत्या को चार भागों में बांट दिया | अग्नि , वृक्ष , नदी एवं स्त्रियों में यह भाग बांटा गया | इन चारों ने ब्रह्म हत्या का दोष अपने सर पर ले तो लिया लेकिन ब्रह्मा जी से इसका भार हल्का करने का उपाय भी पूछा तब ब्रह्मा जी ने इन चारों को ब्रह्महत्या के भार को हल्का करने का उपाय बताते हुए वरदान दिया कि :- प्रज्वलित अग्नि मे हविष्यान्न के अतिरिक्त अन्य सामग्री डालने पर , पूर्णिमा , अमावस्या , संक्रांति या अन्य धार्मिक पर्वों पर वृक्ष का भेदन - छेदन करने पर , नदियों में मल - मूत्र का त्याग करने एवं थूकने पर तथा रजस्वला स्त्री को स्पर्श करके मैथुन करने का प्रयास करने पर मनुष्य को ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा | और मनुष्य जाने - अनजाने ऐसा करता ही रहेगा जिससे अग्नि , वृक्ष , नदी तथा स्त्री के ऊपर लगी ब्रह्महत्या का दोष कम होता रहेगा | इस प्रकार चार भागों में विभक्त ब्रह्महत्या ने इन्द्र का पीछा छोड़ दिया | यदि मनुष्य के द्वारा जाने अनजाने में उपरोक्त कर्म अग्नि , वृक्ष , नदी या स्त्री के साथ किया जाता है तो उसका दोष शमन करने के लिए "ऋषि पंचमी" का व्रत रखा जाना अनिवार्य है | इस व्रत को करने से मनुष्य के द्वारा अनजाने में किए पाप का प्रायश्चित हो जाता है | इसीलिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को "ऋषि पंचमी" का व्रत रहने का विधान समस्त मानव जाति के लिए हमारे महर्षियों ने बताया है |*
*आज के आधुनिक युग में जहां मनुष्य सोशल मीडिया एवं आधुनिक साहित्य के मोहजाल में फंसा हुआ है वही वह अपने पर्वों एवं मान्यताओं से अनभिज्ञ होता जा रहा है | क्योंकि आज के युग में अधिकतर मनुष्यों के पास अपने शास्त्रों का , धर्मग्रंथों एवं पुराणों का अध्ययन करने का समय ही नहीं बचा है जो कि हमें इन विधानों के विषय में मार्गदर्शन करते रहते हैं | इसके अतिरिक्त मार्गदर्शन करने वाले हमारे बुजुर्ग भी आज उपेक्षित होते जा रहे हैं | हमारे बुजुर्ग समय-समय पर हम सबको इन सभी विधानों के विषय में बता कर के सावधान किया करते थे एवं कोई भूल हो जाने पर उसके प्रायश्चित के विषय में बताते थे | परंतु आज ना तो हमारे पास धर्मग्रंथों का अध्ययन करने का समय बचा है और न ही बुजुर्गों के पास बैठने का | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूं जहां आज के मनुष्य की व्यस्तताओं उसको अपने धर्म ग्रंथों से दूर कर दिया है वहीं एकल परिवार के चलन के कारण हमारे बुजुर्गों भी दूर हो गए हैं | इसके साथ ही मनुष्य आधुनिकता के चक्कर में अपने धर्म के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास से भी डगमगाया हुआ लग रहा है | यही कारण है कि आज मनुष्य अपने पर्व एवं विशेष दिनों के विषय में अनभिज्ञ रह जा रहा है | आज के कुतर्क भरे युग में जहां सनातन के प्रति नित्य नये कटाक्ष होते रहते हैं वही सनातन धर्मी ज्ञान के अभाव में किसी भी विषय पर उचित उत्तर नहीं दे पाते हैं तो उनको लगता है कि या तो हम दोषी हैं या फिर सनातन धर्म में ही कमियां हैं | जबकि सत्यता यह है कि कमी ना तो सनातन धर्म में और न ही उसकी मान्यताओं में , कमी आज के मनुष्य में हो गई है जो आज अपने धर्म के विषय में अधूरा ज्ञान रखता है | कम से कम प्रत्येक मनुष्य को ज्यादा नहीं तो अपने पर्व - त्योहारों के विषय में एवं धार्मिक तिथियों के विषय में ज्ञान तो होना ही चाहिए , नहीं तो आने वाले दिनों में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या दे करके जाएंगे ? यह विचारणीय है |*
*प्रत्येक मनुष्य को कुछ ना कुछ समय निकालकर अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए | अपने धर्म एवं संस्कृति के विषय में ज्ञानार्जन करने के लिए यह परम आवश्यक है |*