दुनिया में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं जो हर किसी के लिए समझना मुश्किल होता है। हर धर्म की अपनी बातें और कहानियां हैं फिर वो हिंदू हो, मुस्लिम हों या फिर कोई भी लेकिन धर्म को लेकर उनकी कहानियां अलग-अलग हैं। इसी तरह इस्लाम धर्म के शिया लोगों द्वारा मनाया जाने वाला खास पर्व मुहर्रम क्या सच में कोई पर्व है? एक ऐसा समय जिसमें लोग खुद को खून से लथपथ कर देते हैं और अपने हुसैन को याद करते हैं तो ये कोई पर्व तो नहीं हो सकता क्योंकि त्यौहार का मतलब ही खुशी होती है। यहां हम आपको एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं जो मुस्लिम धर्म के मासूम बच्चों खासकर लड़कों को सहनी होती है। ऐसा मुहर्रम के दौरान होता है जब मासूम बच्चों को तलवार की नोक पर रखकर अपने इस रीत को पूरा किया जाता है।
मुस्लिम मासूम बच्चों के साथ क्या होता है?

इराक की राजधानी बगदाद से करीब 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा सा कस्बा है जिसका नाम कर्बला है। यहां पर तारीख-ए-इस्लाम की एक भयंकर जंग छड़ गई थी, इसमें इस्लाम का पूरा इतिहास ही बदल गया था। ये वही कर्बला है जिसके नाम के बने स्थान पर लोग एकट्ठा होकर मुहर्रम मनाते हैं। हिजरी संवत के पहले माह मुहर्रम की 10 तारीख को हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इस दिन को यौम आशुरा के नाम से भी इस्लामिक लोग जानते हैं। मुहर्रम मुस्लिम का कोई त्यौहार नहीं होता बल्कि अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह दिन पैगम्बर मोहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की मौत की याद में मनाया जाता है। उन्हें याद करते हुए मुस्लिम लोग मातम मनाते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने इस्लाम के लिए खुद को कुर्बान कर दिया।

हजारों साल से सिया उपासक उनकी याद में एक बड़ी संख्या में उपस्थित होकर पैगम्बर मोहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली को याद करके उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट करते हैं। अफगानिस्तान के इस शहर में शोक व्यक्त करने का तरीका ही कुछ अलग तरह से होता है। यहां के उपासक इस्लामिक कैलेंडर में पहले महीने के दसवें दिन में आशूरा के दिन अपने शरीर का रक्त निकालकर अपना दुख व्यक्त करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं यहां पर खून की होली खेलने जैसा माहौल भी बनता है लोग अपने बच्चों के सिर पर तलवार चलाकर खून निकालने से भी नहीं चूकते हैं। एक बार तो लेबनान में एक शिया मुस्लिम ने असुरों की याद में अपने सिर को तलवार से ही काट दिया था। 10 अक्टूबर 680AD का दिन मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद दिलाने का दिन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि 10नें मोहर्रम के दिन इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्यागे थे। वैसे तो मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का महीना होता है लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मोहर्रम को सबसे ज्यादा तरीजह देते हैं। इस दिन हर साल अफगानिस्तान, ईरान, इराक, लेबनान, बहरीन और पाकिस्तान में एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश होता है और वे अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं।
क्या होता है आशुरा का महत्व?

आशुरा मुहर्रम के महीने में मुसलमान शोक मनाने को कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर काफी जुल्म किया था। 10 मुहर्रम को इन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया गया था। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था। अधर्म पर धर्म की जीत हासिल करने वाले पैगंबर को इतिहास कभी भी भूल नहीं सकता और शिया लोगों के लिए उनसे अच्छा आजतक कोई नहीं हुआ है।
शोभा भारद्वाज
25 सितम्बर 2019वर्षों ईरान में रही हूँ ें मातमी दिनों शिया हंसना भी पसंद नहीं करते हैं