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कई किरदार, रोज़ हम जीते हैं

19 सितम्बर 2019

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कई किरदार, रोज़ हम जीते हैं


कई किरदार, रोज़ हम जीते हैं,

मक़सद बदलते भी रहते हैं,

फिर, क्यूँ हम खोजतें हैं राह- मुलाक़ात,

फिर क्यूँ हम, उम्मीदों को देते है तलाक़,


आँखें उस ओर, बेसब्री से, निकल है जाती,

ख़ालीपन पाकर, है लौट आती,

फिर क्यूँ नज़र, बन जाती है एक किरदार,

ओझल हो कर भी, करती है इन्तज़ार,


जब मृत्यु, गले लगने आती है द्वार,

धड़कन, तुझे ही खोजती है बार बार,

एक बात बता, इस किरदार का नाम है क्या,

ज़िंदगी जिसको, अब देगी नहीं पनाह,


वक़्त गया है, छोड़ जाऊँ, अब सब यहाँ,

इन्तज़ार में शायद, है एक किरदार वहाँ,

फिर एक बार, भावनाओं का होगा संगम,

ख़ामोशी और रूह का होगा अब मिलन,


मेरे जाने के बाद, तेरे भी मन में होगी एक तूफ़ान,

याद करोगी मुझे, आँसू करेंगे बयान,

तेरे इस किरदार को, क्या बुलायेगी दुनिया,

चिंतन में मत रहो, संग तेरे रहेगी मेरी दुआ,


कई किरदार रोज़ हम जीते हैं,...


सुमन्त पोद्दार

19.9.19

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