आज फिर मन हुआ कुछ लिखा जाए ... क्या क्यों किस लिए पता नहीं...... खाली कागज खाली जिंदगी... ना कोई खाका ना पैमाना ना ही शब्दों का सुनहरा जाल... खाली आसमान खाली मैदान.... कल्पना के घोड़े यूं ही छोड़े... दिशाहीन हो सरपट सरपट भागा जाए.. आज फिर मन हुआ कुछ लिखा जाए.... बात नहीं लम्हा नहीं.... एहसासों को फिर क्यों कैसे लफ्ज़ों में फिर ढाला जाए... आंखें बंद तो अंधेरा दिखता... आंखें खोलूं तो क्या निहारा जाए... सपनों की अब उम्र हो चली... कौन सा सपना पाला जाए.... जाने अनजाने देखें बहुतेरे.... किसका नाम पुकारा जाए... खामोशी भी अजब नशा है.. छलका छलका यह पैमाना जाए... यू भी तकदीर तो सब कुछ जानती है... अनुमान जिंदगी का क्यों लगाया जाए... आज फिर मन हुआ कुछ लिखा जाए... शिप्रा राहुल चंद्र