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Archana Ki Rachna: Preview " मेरी ज़िन्दगी का रावण "

15 अक्टूबर 2019

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अपनी ज़िन्दगी के रावण

अब मुझे जलाने हैं

मान मर्यादा लोक लाज

के बंधन अब मुझे

भुलाने हैं

मैं प्यारी और दुलारी थी
जब तक अपनी
उपेक्षा सेहती रही
तुम्हारे बेटा बेटी के दुर्भाव में
मैं अपने अधिकार छोड़ती रही
तुम्हारी इस मानसिक सोच
से मुखौटे अब हटाने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

तुम माँ तो बहुत अच्छी हो
मगर सिर्फ अपने बेटे की
तुम्हारी पढाई लिखाई को अपनी
तुच्छ सोच के आगे तुमने
तिलांजलि दी
कभी तुमने सोचा के एक बेटी के प्रति
फ़र्ज़ भी तुमको निभाने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

माँ का पंडाल सजाते हो
पर अपनी बेटी के कठिन
जीवन का तनिक भी भान नहीं
औरत हो के औरत का दुख
न समझो तुम इतनी नादान नहीं
ये हाथी के दाँत तुम्हे औरों
को जो दिखाने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

मेरी परवाह में खुलती तो
मेरा जीवन कुछ और ही होता
ये कटु सत्य है मेरे जीवन का
सिर्फ जन्म देने से कोई
माँ बाप नहीं होता
अब इसी कड़वे घूँट
के साथ जीवन मुझे बिताने है
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

तुम धनवान हो के भी
उस से कही गए बीते हो
जिसे निर्धन हो के भी
अपने फ़र्ज़ निभाने आते हैं
जो गरीब हो के भी बेटी को
सारे शगुनों से पालते और ब्याहते हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

जो अपने सिर्फ औपचारिकता
ही निभाते हैं
परायी आग में क्यों कूंदूँ
ये कह कर सिर्फ अपने घरों
में बातें बनाते हैं
अब उनसे नाम के ये रिश्ते
मुझे मिटाने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

जिस राज कुंवर ने अपने पैसों
से एक झोपड़ा तक बनवाया नहीं
सिर्फ चांदी का चमचा ले के
पैदा हुआ
कभी खून पसीना बहाया नहीं
पिता जी ने खूब कमाया
उनका धन संचय उस कपूत के काम आया नहीं
अब उसकी बेगैरत ज़िन्दगी के दर्शन
सबको करवाने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

मैं अपना अधिकार लेने
निकली हूँ
जिसके न मिलने का मुझे
अफ़सोस न होगा
होगा पश्चाताप तुम्हे जिन दिन
अपने कर्मो पर
वो मंज़र कुछ और ही होगा
अब तुम्हारी झूठी दलीलों
से लोगो को उजागर कराने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

जिस कुल की प्रतिष्ठा
को बचाती रही एक बेटी
रही अपनी मर्यादा में
अपने रास्ते खुद तलाशती
रही एक बेटी
अब उसे ये लोक लाज
बंधन तोड़
कुछ फ़र्ज़
खुद के लिए भी निभाने हैं
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं

अब संस्कारों का हवाला
दे मुझे कोई रोके न
शुभ काम पे निकली
हूँ कोई मुझे टोके न
क्योंकि अब संस्कार मुझे
तुम्हारा किरदार देख के
निभाने हैं,
अपनी ज़िन्दगी के रावण
अब मुझे जलाने हैं
मान मर्यादा लोक लाज
के बंधन अब मुझे
भुलाने हैं

Archana Ki Rachna: Preview " मेरी ज़िन्दगी का रावण "

आचार्य अर्जुन तिवारी

आचार्य अर्जुन तिवारी

बहुत ही भावपूर्ण रचना

15 अक्टूबर 2019

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"लाडली"

25 अगस्त 2019
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26 अगस्त 2019
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प्रकृति मानव की

27 अगस्त 2019
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उड़ चला है “दिल “थोड़ा और जी लेने को

29 अगस्त 2019
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मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण

2 सितम्बर 2019
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सिर्फ तुम्हारी

8 सितम्बर 2019
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चलो थोड़ी मनमर्ज़ियाँ करते हैं पंख लगा कही उड़ आते हैंयूँ तो ज़रूरतें रास्ता रोके रखेंगी हमेशापर उन ज़रूरतों को पीछे छोड़थोड़ा चादर के बाहर पैर फैलाते हैंपंख लगा कही उड़ आते हैंये जो शर्मों हया का बंधनबेड़ियाँ बन रोक लेता हैमेरी परवाज़ों कोचलो उसे सागर में कही डूबा आते हैंपंख लगा

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"मैं समंदर हूँ "

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मैं समंदर हूँ ऊपर से हाहाकार पर भीतर अपनी मौज़ों में मस्त हूँ मैं समंदर हूँ दूर से देखोगे तो मुझमें उतर चढ़ाव पाओगे पर अंदर से मुझे शांत पाओगे मैं निरंतर बहते रहने में व्यस्त हूँ मैं समंदर हूँ ऐसा कुछ नहीं जो मैंने भीतर छुपा रखा होजो मुझमे समाया उसे डूबा रखा हो हर बुराई बहार निकाल देने में अभ्यस्त हू

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Archana Ki Rachna: Preview " मेरी ज़िन्दगी का रावण "

15 अक्टूबर 2019
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Archana Ki Rachna: Preview "सपने "

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Archana Ki Rachna: Preview "बदला हुआ मैं "

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