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लेखक का मौत से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2019

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प्रकाश एक बेहतरीन लेखक था,पाठक उसकी रचनाओ की प्रतीक्षा करते थे। कहानी हो या उपन्यास या फिर कविता उसकी लेखनी कमाल की थी और पात्र-चयन तो और भी उत्तम।पिछले कुछ दिनों से वित्तीय समस्या के कारण वह तनाव में चल रहा था ,इससे उसका लेखन भी अछूता नहीं रहा था।वह एक कहानी लिख रहा था ,जो अभी अधूरी थी।


एक दिन प्रकाश किसी काम से जा रहा था।उसका ध्यान भटका हुआ था,अचानक एक कार तेजी से आई और उसने प्रकाश को टक्कर मार दी।प्रकाश उछलकर दूर गिरा और बेहोश हो गया।उसे अस्पताल ले जाया गया।सिर में चोट लगी थी। डाक्टर्स जांच कर रहे थे।परिजन अस्पताल पहुंच चुके थे। डाक्टर ने सभी को बता दिया था कि हालत सीरियस है , आपरेशन होगा ,उसके बाद भी कुछ कहा नहीं जा सकता।परिजन दुखी थे,डाक्टरों ने ईश्वर पर विश्वास रखने और दुआ करने के लिए बोल दिया था।

आपरेशन सफल रहा था लेकिन प्रकाश कोमा में चला गया था,कोमा में व्यक्ति का शरीर निष्क्रिय हो जाता है, क्योंकि उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है,लेकिन बाहर होने वाली बातचीत कभी-कभी दिमाग को सक्रिय कर देती है और व्यक्ति को कोमा से बाहर आने में मदद करती है।


परिजनों को डाक्टर बोल चुके थे कि यह नींद दो दिन की भी हो सकती है और दो साल की।सभी दुखी थे और ईश्वर से उसके शीघ्र ठीक होने की कामना कर रहे थे। समय निकल रहा था। देखते-देखते एक माह हो गया लेकिन प्रकाश की नींद न टूटी।एक दिन उसकी हालत और भी ज्यादा बिगड़ गई,ऐसा लग रहा था कि सब कुछ हाथ से निकल गया है।आत्मा एक पल के लिए शरीर का साथ छोड़ चुकी थी।यह एक लेखक की मौत का सबसे बुरा पल था।ऐसी गहरी नींद सोया लेखक कि उसे इस बात का भी भान नहीं कि उसके आस-पास क्या घट रहा है?सबसे आंखें मूंदें अपनी ही दुनिया में मग्न।


उसकी रचना के पात्र यह देख बहुत दुखी थे कि एक होनहार,युवा ,सत्य को समाज के समक्ष लाने वाला रचनाकार असमय ही संसार से विदा हो जाएगा।हर किसी में तो साहस नहीं होता कि तलवार की धार पर चले, मनोरंजन के लिए तो कोई भी लिख सकता है ,पर सामाजिक कुरीतियों का खंडन करने वाला तो‌ विरला ही होता है।उधर नई कहानी केे पात्र सोच रहे थे कि अगर हमारे जीवन दाता को कुछ हुआ तो हम तो पैदा होने से पहले ही मर जाएंगे, इसलिए अब हमें इन्हें लंबी नींद से उठाना ही होगा।नायक ने कहानी के सभी पात्रों को एकत्र कर उनकाकाम समझा दिया।सारे पात्र प्रकाश के दिमाग में जीवंत हो उठे।सभी सोए हुए दिमाग को जगाना चाहते थे। लेकिन कैसे? एक सभा का आयोजन किया गया।


सभी पात्रों को उपस्थित होने की सूचना दी गई।पहले जो कहानियां लिखी जा चुकी थीं,उनके पात्र भी अपना योगदान देने आ पहुंचे,आखिर उन्हें अपने कर्त्तव्य का बोध था और वे एहसान फरामोश नहीं थे।


सभी ने वर्तमान कहानी के नायक को अपना नेता चुना। कार्ययोजना बनाई गई। सुनिश्चित किया गया कि अब इस
कार्य की सफलता की जिम्मेदारी प्रत्येक पात्र की है।एक
लेखक की मौत ,उसके किरदारों की भी मौत है और अभी
समाज को लेखक की और हम सबकी बहुत जरूरत है।
इसलिए हमें लेखक के दिमाग को इस लंबी नींद से जगाना है ,क्योंकि अभी इनका कर्तव्य अधूरा है।


सभा में शपथ ग्रहण की गई कि चाहे अनशन करना पड़े या आंदोलन या फिर साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनानी पड़े ,अपने जीवनदाता को उठाकर ही दम लेंगे और फिर आंदोलन छिड़ा,लेकिन उसका कोई प्रभाव उनके जीवन-दाता पर दिखाई नहीं दिया।सारे पात्र परेशान थे कि क्या करें,तब यही निष्कर्ष निकला कि आमरण अनशन करके अहिंसात्मक तरीके से अपनी बात मनवाते है।आखिर हिंसात्मक गतिविधियों से समाज का नुक़सान ही होता है,अतः यह बात शायद हमारे जीवन दाता को पसंद नहीं आएगी।अगर सभी पात्र सहमत हों तो ये कार्य प्रारंभ हो,आखिर अपने उपन्यास में लेखक ने इसी अहिंसात्मक तरीके से सरकार के समक्ष अपनी बात रखी थी।सबको ये बात पसंद आई,आखिर रूचि भी तो मायने रखती है।


सभी पात्र आमरण अनशन पर बैठ गए। दिन बीत रहे थे, पात्रों की हालत खराब थी,खासकर नायिकाओं की,वे बेहोश होने की कगार पर थीं,तब एक बुजुर्ग पात्र ने आवाज उठाई और लेखक के दिमाग को झिंझोड़ते हुए कहा-कब तक सोएंगे लेखक महोदय!!समाज को तुम्हारी लेखनी की जरूरत है और तुम लंबी तान के सो रहे हो, तुम्हारी कहानियों के सभी पात्र अब मरणासन्न हो गये है ,ऐसा न हो कि तुम जागो तो तुम्हारे पास लिखने के लिए कुछ भी न हो,कोई लेखक कैसे सो सकता है जब समाज पतन की ओर अग्रसर हो ,उठो और अपने कर्त्तव्य की पूर्ति करो।यदि लेखक ही अपने दायित्वों से मुख मोड़‌ लेगा तो समाज को सत्साहित्य कैसे मिलेगा।तुम्हारी कलम की धार अभी चलनी चाहिए।देखो तुमने कितना सोच रखा था कि भ्रष्टाचार , बेरोजगारी ,बलात्कार ,दहेजप्रथा,मानवतस्करी,बालश्रम शोषण,अन्याय कितने ही विषयों पर लेखन करना है और अब तुम भाग रहे हो ,हम लोगों के विषय में सोचो ,तुम्हारे साथ हमारा भी अंत हो जाएगा।हम किसी के जीवन को रोशन नहीं कर पाएंगे। हमें कोई अपनी रचना में स्थान भी न‌ देगा।हम चमत्कारी पात्र तो हैं नहीं और न प्रेम की धारा में बहने वाले।उठो,बहुत हुआ ,हम सबको तुम्हारी जरूरत है क्यों हमें बेरोजगार कर रहे हो।


उनकी रूआबदार आवाज ने लेखक के दिमाग के तारों को झंकृत कर दिया। दिमाग में हलचल सी हुई।शरीर में हरकत।


डाक्टर दौड़ता हुआ आया।चेकअप करने के बाद बोला-
ये तो चमत्कार हो गया,हमने तो कल से उम्मीद ही छोड़ दी थी। ईश्वर को धन्यवाद दें आप।


उसने आंखें खोली तो सब परिजनों को व्यथित देखा ,उसके होश में आते ही सब खुश हो गए।सबने बताया कि पिछले दो माह से वह कोमा में था , लेकिन उनकी तपस्या सफल‌ हुई।सभी अपना-अपना श्रेय लेना चाह रहे थे।प्रकाश मुस्करा रहा था ,उसके दिमाग में वह बुजुर्ग पात्र अब उससे पूछ रहा था -बरखुरदार!सब ठीक तो है। कब से कलम उठा रहे हो?


प्रकाश मुस्करा दिया।आज उसके पात्रों ने जीवनदान दिया था।दिमागी उथल-पुथल भी शांत हो चुकी थी।अब लेखक अपनी कहानी को पूरा करने के विषय में सोच रहाथा,उसे एहसास हो गया था कि लेखक मर कर भी नहीं मरता बशर्ते उसकी लेखनी सशक्त हो।



अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

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27 जुलाई 2019
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धीमे-धीमे सुलगती,जिंदगी सिगरेट-सी।तनाव से जल रही,हो रही धुआं-धुआं।जिंदगी सिगरेट-सी,दुख की लगी तीली !भभक कर जल उठी,घुलने लगा जहर फिर!सांस-सांस घुट उठी,जिंदगी सिगरेट- सी ।रोग दोस्त बन गए,फिज़ा में जहर मिल गए।ग़म ने जब जकड़ लिया,खाट को पकड़ लिया।मति भ्रष्ट हो चली,जिंदगी सिगरेट- सी।धीमे-धीमे जल उठी,फूंक

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आखिर क्यों..???

27 जुलाई 2019
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तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्

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वो बूढ़ी औरत बड़ी देर से व्याकुल सी स्टेशन पर किसी को ढूंढ रही थी। मालती बड़ी देर से उसे देख रही थी ,उसकी ट्रेन एक घंटा लेट थी । उसने महसूस किया कि वृद्धा का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं था ।दुबली-पतली, झुर्रियों से भरा चेहरा,उलझे हुए से बाल ,अजीब सी चोगे जैसी पोशाक पहने ,हाथ में एक पोटली थामे जमीन पर

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हूं मैं एक अबूझ पहेली

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भीड़ से घिरी लेकिनबिल्कुल अकेली हूं मैंहां, एक अबूझ पहेली हूं मैंकहने को सब अपने मेरेरहे सदा मुझको हैं घेरेपर समझे कोई न मन मेराखामोशियो ने मुझको घेराढूंढूं मैं अपना स्थान...जिसका नहीं किसी को ज्ञानक्या अस्तित्व है घर में मेरा?क्या है अपनी मेरी पहचान?अपने दर्द में बिल्कुल अकेलीहूं मैं एक अबूझ पहेली

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कीमो

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एहसास है मुझे,वह दर्द जो तूने जिया...वह जख्म जो तुझे ,दुनिया ने दिया।एहसास है मुझे,उस अकेलेपन का..उस तड़पते दिल का..जिसे चाह थी,बूंद भर प्यार की..परिवार के दुलार की..!एहसास है मुझे,उन आंसुओं का..जो तेरी आंख से बहे..उस टूटे हृदय का..उस वेदना का..उस तड़प का..।तेरा एहसास,जो दर्द बनकर,जख्म के रूप में जि

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तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,झेलता वह मासूम।सुबकता,सिसकता,आंसू पौंछता।खोजता अपने अपराध,शनै-शनै मरता बचपन!आक्रोश का ज्वालामुखी,उसके अंदर लेता आकार।शरीर पर चोटों की मार,बनाती उसे पत्थर!पनपता एक विष-वृक्षजलती प्रतिशोध की ज्वाला!पी जाती उसकी मासूमियत।वक्त से पहले ही होता बड़ा,समझता शत्रु समाज को,चल पड़ता पाप

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हिन्दी भाषा का मानक रूप आज अशुद्ध शब्दों के प्रयोग के कारण लुप्त सा होता जा रहा है।यह चिंतनीय विषय है।हिंदी विस्तृत भू-भाग की भाषा है। क्षेत्रीय बोलियों के संपर्क में आने से शुद्ध शब्दों का स्वरूप बदल जाता है।अहिंदी भाषियों के द्वारा भी हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में किया जाता हैजिसके कारण श

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*वक्तवक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।*कविताकविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।*भावभाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।*प्रेम प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह

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शिव वंदना

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अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणिविष्णुवल्लभ योगी दिगंबरत्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणिअष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर।ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतरऊर्जित परम करे उत्साहितअनादि अनंत अभेद शाश्वतकण-कण में वह सदा प्रवाहित।।अज सर्व भव शंभू महेश्वरनीलकंठ हे भीम पिनाकीत्रिलोकेश कवची गंगाधरपरशुहस्त हे जगद्वयापीॐ निनाद में शून्य सनातन

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अणु कोरोना हार चलेगा

21 मई 2020
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हाहाकार मचा है जग मेंकैसे बेड़ा पार लगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगालाशों के अंबार लगे हैंबिछड़ रहे अपनों से अपनेसाँसों की टूटी डोरी मेंटूट रहें हैं सपने कितनेबंदी जीवन भय का घेरालेकिन सुख का सूर्य उगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगा।।काल कठोर भयंकर भारीनिर्धन को अब भूख निगल

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और गांव की याद आई

27 मई 2020
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एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ

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14 जून 2020
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पावस*पावस बूंँदों से हुई,शीतल धरती आज।चंचल चपला दामिनी,मेघों का है राज।*मानसून*मानसून ने कर दिया,जग जीवन खुशहाल।कृषक खेत में झूमता,बदला उसका काल।*वारिद*नभ में वारिद छा गए,देख नाचते मोर।विरहिन के नयना झरे,देख घटा घनघोर।*पछुआ*पछुआ ले बादल उड़ी,देख टूटती आस।हलधर बैठा खेत में,होता बड़ा निराश।*कृषक*ऋण के

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