मित्रों ,
मैंने पहले एक लेख में बदलाव के कुछ सरल विषय लिखे थे जिनमें हमारे समाज को बदलने की आवश्यकता है. फिर मैंने ट्रैफिक के केवल तीन बिंदुओं पर आप सब का ध्यान आकर्षित किया था-फालतू हॉर्न बजाना; वाहन ठीक से पार्क करना एवं दायीं और मुड़ना.
मुझे पता नहीं कि क्या आप में से कुछ ने इन बदलावों की कोशिश शुरू करी है. बस शुरू करने की देर है. फिर तो आप निरंतर बढ़ते ही जाएंगे.
हम सभी ट्रैफिक की बिगड़ी हालत से परेशान हैं, और सभी चाहते हैं कि इसमें सुधार हो. परन्तु सुधार कौन करे? बस यही तो पता नहीं.
तो कृपया सुधार आप ही शुरू करें. किसी और लेख में ट्रैफिक के अन्य संभावित सुधारों की बात करेंगे.
एक बड़ा साधारण सा विषय है लाइन बनाना. आप ने देखा होगा (देखा क्या आप भी ऐसे ही करते हैं) कि जब भी हमें किसी सर्विस विंडो के सामने खड़ा होना होता है तो सारा झुण्ड का झुण्ड विंडो के चारों और होता है और सभी अपने हाथ लम्बे करके या अपनी आवाज़ बुलद करके अपना काम कराने की कोशिश कर रहे होते हैं. मुझे, आज तक पहले बार हाल में ही बीकानेरवाला के आउटलेट में एक काउंटर गर्ल ने एक सज्जन जो ऐसे करना चाह रहे थे, को लाइन में लगने के लिए कहा.
तो कृपया ऐसे अवसर पर स्वमं तो लाइन में लगे हीं वरन औरो को भी सीधी लाइन बनाने का निवेदन कीजिये. आप देखेंगे के 80 % व्यक्ति तुरंत मान जाएंगे. कुछ बहस करना चाहेंगे तो उन्हें छोड़ दीजिये. लाइन, फिर भी अच्छी खासो तो बन ही जायेगी.
कुछ तो इम्प्रूवमेंट होगा ना.
जो मित्र ऐसे विचारों के आदान प्रदान से सहमत हों, कृपया कम्युनिकेट करें. यदि अधिक संख्या में ऐसे व्यक्ति हैं तो एक वेबपेज " आइये कुछ बदलें " का बना लेते हैं.
आशा है कि 'रिस्पांस' मिलेगा.
धन्यवाद व सप्रेम,
वीरेंद्र कुमार गुप्ता