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"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है । मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है। अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है । किन्तु भाषा उसे ही कहते है ,जो बोली और सुनी जाती हो,और बोलने का तात्पर्य मूक मनुष्यों या पशु -पक्षियों का नही ,बल्कि बोल सकने वाले मनुष्यों से लिया जाता है। इस प्रकार - "भाषा वह साधन है" जिसके माध्यम से हम अपने विचारों को वाणी देते हैं । या सोचते हैं तथा अपने भावों को व्यक्त करते है। " मनुष्य ,अपने भावों तथा विचारों को प्राय: तीन प्रकार से ही प्रकट करता है- १-बोलकर (मौखिक ) २-लिखकर (लिखित) तथा ३-संकेत  (इशारों )के द्वारा सांकेतिक। १.मौखिक भाषा :- मौखिक भाषा में मनुष्य अपने विचारों या मनोभावों को मुख से बोलकर प्रकट करते हैं। मौखिक भाषा का प्रयोग तभी होता है,जब श्रोता और वक्ता आमने-सामने हों। इस माध्यम का प्रयोग फ़िल्म,नाटक,संवाद एवं भाषण आदि में अधिक सम्यक् रूप से होता है ।  २.लिखित भाषा:-भाषा के लिखित रूप में लिखकर या पढ़कर विचारों एवं मनोभावों का आदान-प्रदान किया जाता है। लिखित रूप भाषा का स्थायी माध्यम होता है। पुस्तकें इसी माध्यम में लिखी जाती है। ३.सांकेतिक भाषा :- सांकेतिक भाषा यद्यपि भावार्थ वा विचारों की अभिव्यक्ति का स्पष्ट माध्यम तो नहीं है ; परन्तु यह भाषा का आदि प्रारूप अवश्य है । स्थूल भाव अभिव्यक्ति के लिए इसका प्रयोग अवश्य ही सम्यक् होता है । ________________________________________ भाषा और बोली (Language and Dialect) :-भाषा ,जब किसी बड़े भू-भाग में बोली जाने लगती है,तो उससे क्षेत्रीय भाषा विकसित होने लगती है। भाषा के इसी क्षेत्रीय रूप को बोली कहते है। कोई भी बोली विकसित होकर साहित्य की भाषा बन जाती है। जब कोई भाषा परिनिष्ठित होकर साहित्यिक भाषा के पद पर आसीन होती है,तो उसके साथ ही लोकभाषा या विभाषा की उपस्थिति अनिवार्य होती है। कालान्तरण में ,यही लोकभाषा परिनिष्ठित एवं उन्नत होकर साहित्यिक भाषा का रूप ग्रहण कर लेती है।👇 दूसरे शब्दों में भाषा और बोली को क्रमश: प्रकाश और चमक के अन्तर से जान सकते हैं । भाषा हमारे सभा या समितीय विचार-विमर्शण की संवादीय अभिव्यक्ति है । जबकि बोली उपभाषा के रूप में हमारे दैनिक गृह-सम्बन्धी आवश्यकता मूलक व्यवहारों की सम्पादिका है। जो व्याकरण के नियमों में परिबद्ध नहीं होती है । आज जो हिन्दी हम बोलते हैं या लिखते हैं ,वह खड़ी बोली है, इसके पूर्व रूप  "ब्रज ,शौरसेनी प्राकृत अवधी,,मैथिली आदि बोलियाँ भी साहित्यिक भाषा के पद पर आसीन हो चुकी है। हिन्दी तथा अन्य भाषाएँ :- संसार में अनेक भाषाएँ बोली जाती है। जैसे -अंग्रेजी,रुसी,जापानी,चीनी,अरबी,हिन्दी ,उर्दू आदि। हमारे भारत में भी अनेक भाषाएँ बोली जाती है । जैसे -बंगला,गुजराती,मराठी,उड़िया ,तमिल,तेलगु आदि। हिन्दी भारत में सबसे अधिक बोली और समझी जाती है। हिन्दी भाषा को संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया गया है। _________________________________________ लिपि (Script):- लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है - लेपन या लीपना पोतना आदि अर्थात् जिस प्रकार चित्रों को बनाने के लिए उनको लीप-पोत कर सम्यक् रूप दिया जाता है । उसी प्रकार विचारों को साकार रूप लिपिबद्ध कर भाषायी रूप में दिया जाता है। लिखित या चित्रित करना । ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है,वही लिपि कहलाती हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी -अलग लिपि होती है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी के अलावा -संस्कृत ,मराठी,कोंकणी,नेपाली आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है। व्याकरण ( Grammar):- व्याकरण वह विधा है; जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना या लिखना व पढ़ना जाना जाता है। व्याकरण भाषा की व्यवस्था को बनाये रखने का काम करते है। व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं अशुद्ध प्रयोगों पर ध्यान देता है। इस प्रकार ,हम कह सकते है कि प्रत्येक भाषा के अपने नियम होते है,उस भाषा का व्याकरण भाषा को शुद्ध लिखना व बोलना सिखाता है। यह भाषा के नियमों का विवेचन शास्त्र है । व्याकरण के तीन मुख्य विभाग होते है :- १.वर्ण -विचार( Orthography) :- इसमे वर्णों के उच्चारण ,रूप ,आकार,भेद,आदि के सम्बन्ध में अध्ययन होता है। वर्ण -विचार १. वर्ण विचार👇 (Vowels) - स्वराः Sanskrit (Consonants) - व्यंजनानि (३३) अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ऌ, ए, ऐ, ओ, औ (१३) अयोगवाह : अनुस्वार (Nasal) (अं) और विसर्गः (Colon) ( अः) अनुनासिक (Semi-Nasal) चन्द्र-बिन्दु:-(ँ) इसका उच्चारण वाक्य और मुख दौंनो के सहयोग से होता है । Dependent (मात्रा)- ा, ि, ी, ु, ू, ृ, ॄ, े, ै, ो, ौ Simple- अ, इ, उ, ऋ, ऌ Dipthongs:- ए , ऐ , ओ , औ ह्रस्वाः- अ , इ , उ , ऋ , ऌ , दीर्घाः- आ , ई , ऊ , ॠ , ए , ऐ , ओ , औ स्पर्श –                           खर                                मृदु                          अनुनासिकाः Gutturals:कण्ठय          क्         ख्                     ग्             घ्                       ड• Palatals:तालव्य            च्         छ्                     ज्             झ्                       ञ् Cerebrals:मूर्धन्य         ट्          ठ्                      ड्             ढ्                      ण् Dentals:दन्त्य                त्          थ्                      द्             ध्                         न् Labials:ओष्ठय              प्          फ्                     ब्             भ्                       म् _______________________________________                                                                      (ऊष्म-वर्ण ) Sibilant Consonants:-(श्    ष्       स् )        य्     र्           ल्    (Sami Vowels- अर्द्ध स्वर )      व् संयुक्त व्यञ्जन = त्र , क्ष , ज्ञ. व्याख्या – सम्यक् कृतम् इति संस्कृतम्। सम् उपसर्ग के पश्चात् कृ धातु के मध्य सेट् आगम हुआ तब शब्द बना संस्कार भूतकालिक कर्मणि कृदन्त में हुआ संस्कृतम् भाषा :– संस्कृत और लिपि देवनागरी। उच्चारण -स्थान ह्रस्व Short– दीर्घ long– प्लुतlonger – (स्वर) विचार:- कण्ठः – (अ‚ क्‚ ख्‚ ग्‚ घ्‚ ं‚ ह्‚ : = विसर्गः )         (Mute Consonants)               स्पर्श व्यञ्जन तालुः – (इ‚ च्‚ छ्‚ ज्‚ झ्‚ ं‚ य्‚ श् ) मूर्धा – (ऋ‚ ट्‚ ठ्‚ ड्‚ ढ्‚ ण्‚ र्‚ ष्) दन्तः (लृ‚ त्‚ थ्‚ द्‚ ध्‚ न्‚ ल्‚ स्) ओष्ठः – (उ‚ प्‚ फ्‚ ब्‚ भ्‚ म्‚ उपध्मानीय प्‚ फ्) नासिका  – (ं म्‚ ं ‚ण्‚ न्) कण्ठतालुः – (ए‚ ऐ ) कण्ठोष्ठम् – (ओ‚ औ) दन्तोष्ठम् – (व) जिह्वामूलम् – (जिह्वामूलीय क् ख्) नासिका –  (ं = अनुस्वारः) संस्कृत की अधिकतर सुप्रसिद्ध रचनाएँ पद्यमय हैं अर्थात् छन्दबद्ध और गेय हैं। इस लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि इन रचनाओं को पढते या बोलते वक्त किन अक्षरों या वर्णों पर ज्यादा भार देना और किन पर कम। उच्चारण की इस न्यूनाधिकता को ‘मात्रा’ द्वारा दर्शाया जाता है। 🌸↔   जिन वर्णों पर कम भार दिया जाता है, वे हृस्व कहलाते हैं, और उनकी मात्रा १ होती है। अ, इ, उ, लृ, और ऋ ये ह्रस्व स्वर हैं।  🌸↔  जिन वर्णों पर अधिक जोर दिया जाता है, वे दीर्घ कहलाते हैं, और उनकी मात्रा २ होती है। आ, ई, ऊ, ॡ, ॠ ये दीर्घ स्वर हैं। 🌸↔  प्लुत वर्णों का उच्चारण अतिदीर्घ होता है, और उनकी मात्रा ३ होती है जैसे कि, “नाऽस्ति” इस शब्द में ‘नाऽस्’ की ३ मात्रा होगी। वैसे हि ‘वाक्पटु’ इस शब्द में ‘वाक्’ की ३ मात्रा होती है। वेदों में जहाँ 3 संख्या लिखी होती है , उसके पूर्व का स्वर प्लुत बोला जाता है। जैसे ओ३म् 🌸↔  संयुक्त वर्णों का उच्चारण उसके पूर्व आये हुए स्वर के साथ करना चाहिए। पूर्व आया हुआ स्वर यदि ह्रस्व हो, तो आगे संयुक्त वर्ण होने से उसकी २ मात्रा हो जाती है; और पूर्व वर्ण यदि दीर्घ वर्ण हो, तो उसकी ३ मात्रा हो जाती है और वह प्लुत कहलाता है।  🌸↔  अनुस्वार और विसर्ग – ये स्वराश्रित होने से, जिन स्वरों से वे जुडते हैं उनकी २ मात्रा होती है। परन्तु, ये अगर दीर्घ स्वरों से जुडे, तो उनकी मात्रा में कोई फर्क नहीं पडता। 🌸↔  ह्रस्व मात्रा का चिह्न ‘।‘ है, और दीर्घ मात्रा का ‘ऽ‘। 🌸↔  पद्य रचनाओं में, छन्दों के चरण का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरू मान लिया जाता है। समझने के लिए कहा जाय तो, जितना समय ह्रस्व के लिए लगता है, उससे दुगुना दीर्घ के लिए तथा तीन गुना प्लुत के लिए लगता है।  नीचे दिये गये उदाहरण देखिए : राम = रा (२) म (१) = ३   अर्थात्‌ “राम” शब्द की मात्रा ३ हुई। वनम् = व (१) न (१) म् (०) = २ वर्ण विन्यास –  १. राम = र् आ म् अ , २.  सीता = स् ई त् आ, ३. कृष्ण = क् ऋ ष् ण् अ माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य में प्रयुक्त शब्द , आख्यात(क्रिया), उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिंग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश अष्टाध्यायी में किया है। अष्टाध्यायी में ३२ पाद हैं जो आठ अध्यायों मे समान रूप से विभाजित हैं। व्याकरण के इस महद् ग्रन्थ में पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर (शरीर)का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन लगभग 4000 सूत्रों में किया है। जो आठ अध्यायों में (संख्या की दृष्टि से असमान रूप से) विभाजित हैं। तत्कालीन समाज में लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता को दृष्टि गत रखते हुए पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। विदित होना चाहिए कि संस्कृत भाषा का प्रादुर्भाव वैदिक भाषा छान्दस् से ई०पू० चतुर्थ शताब्दी में ही हुआ । तभी ग्रामीण या जनसाधारण की भाषा बौद्ध काल से पूर्व ई०पू० 563 में भी थी । यह भी वैदिक भाषा (छान्दस्)से विकसित हुई। व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। पुनः विवेचन का अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं। जो हिन्दी वर्ण माला का आधार है । माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति-----माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शंकर) के द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य से मानी गयी है। जो कि एक श्रृद्धा प्रवण अतिरञ्जना ही है । रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने इसे आख्यान परक रूप इस प्रकार दिया। 👇 नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्। उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥ अर्थात:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना की उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपञ्च (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी। " डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ। इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है। वस्तुत भारतीय संस्कृति की इस मान्यता की पृष्ठ भूमि में  शिव का ओ३म स्वरूप भी है। उमा शिव की ही शक्ति का रूप है , उमा शब्द की व्युत्पत्ति (उ भो मा तपस्यां कुरुवति । यथा, “उमेति मात्रा तपसो निषिद्धा पश्चादुमाख्यां सुमुखी जगाम ” । इति कुमारोक्तेः(कुमारसम्भव महाकाव्य)। यद्वा ओर्हरस्य मा लक्ष्मीरिव । उं शिवं माति मिमीते वा । आतोऽनुपसर्गेति कः । अजादित्वात् टाप् । अवति ऊयते वा उङ् शब्दे “विभाषा तिलमाषो मेति” । ५।२।४। निपातनात् मक् ) दुर्गा का विशेषण । परन्तु यह पाणिनि के द्वारा भाषा का उत्पत्ति मूलक विश्लेषण है। परन्तु इन सूत्रों में भी अभी और संशोधन- अपेक्षित है। यदि ये सूत्र शिव से प्राप्त होते तो इनमें चार सन्धि स्वर ए,ऐ,ओ,औ का समावेश नहीं होता तथा अन्त:स्थ वर्ण य,व,र,ल भी न होते ! क्यों कि ये भी सन्धि- संक्रमण से व्युत्पन्न स्वर ही हैं। इनकी संरचना के विषय में नीचे विश्लेषण है । ________________________________________ पाणिनि के माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या 14 है ; जो निम्नलिखित हैं: 👇 __________________________________________ १. अइउण्। २. ॠॡक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्। उपर्युक्त्त 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के वर्णों (अक्षरसमाम्नाय) को एक विशिष्ट प्रकार से संयोजित किया गया है। फलतः, पाणिनि को शब्दों के निर्वचन या नियमों मे जब भी किन्ही विशेष वर्ण समूहों (एक से अधिक) के प्रयोग की आवश्यकता होती है, वे उन वर्णों (अक्षरों) को माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बनाकर संक्षेप मे ग्रहण करते हैं। माहेश्वर सूत्रों को इसी कारण ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहते हैं। प्रत्याहार बनाने की विधि तथा संस्कृत व्याकरण मे उनके बहुविध प्रयोगों को आगे  दर्शाया गया है। इन 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के समस्त वर्णों को समावेश किया गया है। प्रथम 4 सूत्रों (अइउण् – ऐऔच्) में स्वर वर्णों तथा शेष 10 सूत्र व्यंजन वर्णों की गणना की गयी है। संक्षेप में स्वर वर्णों को अच् एवं व्यंजन वर्णों को हल् कहा जाता है। अच् एवं हल् भी प्रत्याहार हैं। प्रत्याहार की अवधारणा :--- प्रत्याहार का अर्थ होता है – संक्षिप्त कथन। अष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के प्रथम पाद के 71वें सूत्र ‘आदिरन्त्येन सहेता’ (१-१-७१) सूत्र द्वारा प्रत्याहार बनाने की विधि का पाणिनि ने निर्देश किया है। आदिरन्त्येन सहेता (१-१-७१): (आदिः) आदि वर्ण (अन्त्येन इता) अन्तिम इत् वर्ण (सह) के साथ मिलकर प्रत्याहार बनाता है जो आदि वर्ण एवं इत्संज्ञक अन्तिम वर्ण के पूर्व आए हुए वर्णों का समष्टि रूप में (collectively) बोध कराता है। उदाहरण: अच् = प्रथम माहेश्वर सूत्र ‘अइउण्’ के आदि वर्ण ‘अ’ को चतुर्थ सूत्र ‘ऐऔच्’ के अन्तिम वर्ण ‘च्’ से योग कराने पर अच् प्रत्याहार बनता है। यह अच् प्रत्याहार अपने आदि अक्षर ‘अ’ से लेकर इत्संज्ञक च् के पूर्व आने वाले औ पर्यन्त सभी अक्षरों का बोध कराता है। अतः, अच् = अ इ उ ॠ ॡ ए ऐ ओ औ। इसी तरह हल् प्रत्याहार की सिद्धि ५ वें सूत्र हयवरट् के आदि अक्षर ह को अन्तिम १४ वें सूत्र हल् के अन्तिम अक्षर (या इत् वर्ण) ल् के साथ मिलाने (अनुबन्ध) से होती है। फलतः, हल् = ह य व र, ल, ञ म ङ ण न, झ भ, घ ढ ध, ज ब ग ड द, ख फ छ ठ थ च ट त, क प, श ष स, ह। उपर्युक्त सभी 14 सूत्रों में अन्तिम वर्ण (ण् क्  च् आदि हलन्त वर्णों ) को पाणिनि ने इत् की संज्ञा दी है। इत् संज्ञा होने से इन अन्तिम वर्णों का उपयोग प्रत्याहार बनाने के लिए केवल अनुबन्ध (Bonding) हेतु किया जाता है, लेकिन व्याकरणीय प्रक्रिया मे इनकी गणना नही की जाती है । अर्थात् इनका प्रयोग नही होता है। ________________________________ अइउ ऋलृ मूल स्वर ।  ए ,ओ ,ऐ,औ ये सन्ध्याक्षर होने से मौलिक नहीं अपितु इनका निर्माण हुआ और ये संयुक्त ही हैं । जैसे क्रमश: अ इ = ए  तथा अ उ = ओ संयुक्त स्वरों के रूप में   गुण सन्धि के रूप में उद्भासित होते हैं । अतः स्वर तो केवल तीन ही मान्य हैं । 👇 । अ इ उ । और ये परवर्ती इ तथा उ स्वर भी केवल अ स्वर के उदात्त( ऊर्ध्वगामी ) उ । तथा (निम्न गामी) इ के रूप में हैं । ऋ तथा ऌ स्वर न होकर क्रमश पार्श्वविक तथा आलोडित रूप है। जो उच्चारण की दृष्टि से मूर्धन्य तथा वर्त्स्य ( दन्तमूलीय रूप ) है । अब 'ह' वर्ण महाप्राण है । जिसका उच्चारण स्थान  काकल है । 👉👆👇 मूलत: ध्वनि के प्रतीक तो 28 हैं । परन्तु पाणिनी ने अपने शिक्षा शास्त्र में (64) चतुर्षष्ठी वर्णों की रचना दर्शायी है । स्वर (Voice) या कण्ठध्वनि की उत्पत्ति उसी प्रकार के कम्पनों से होती है जिस प्रकार वाद्ययन्त्र से ध्वनि की उत्पत्ति होती है। अत: स्वरयन्त्र और वाद्ययन्त्र की रचना में भी कुछ समानता के सिद्धान्त हैं। वायु के वेग से बजनेवाले वाद्ययन्त्र के समकक्ष मनुष्य तथा अन्य स्तनधारी प्राणियों में निम्नलिखित अंग होते हैं :👇 _________________________________________ 1. कम्पक (Vibrators) इसमें स्वर रज्जुएँ (Vocal cords) भी सम्मिलित हैं। 2. अनुनादक अवयव (resonators) इसमें निम्नलिखित अंग सम्मिलित हैं : (क.) नासा ग्रसनी (nasopharynx), (ख.) ग्रसनी  (pharynx), ग. मुख (mouth), (घ.) स्वरयंत्र (larynx), (च.) श्वासनली और श्वसनी   (trachea and bronchus) (छ.) फुफ्फुस (फैंफड़ा )(lungs), (ज.) वक्षगुहा (thoracic cavity)। 3. स्पष्ट उच्चारक (articulators)अवयव :- इसमें निम्नलिखित अंग सम्मिलित हैं : (क.) जिह्वा (tongue), (ख.) दाँत (teeth), (ग.) ओठ (lips), (घ.) कोमल तालु (soft palate), (च.) कठोर तालु (मूर्धा )(hard palate)। __________________________________________ स्वर की उत्पत्ति में उपर्युक्त अव्यव निम्नलिखित प्रकार से कार्य करते हैं :- जीवात्मा द्वारा प्रेरित वायु फुफ्फुस जब उच्छ्वास की अवस्था में संकुचित होता है, तब उच्छ्वसित वायु वायुनलिका से होती हुई स्वरयन्त्र तक पहुंचती है, जहाँ उसके प्रभाव से स्वरयंत्र में स्थिर स्वररज्जुएँ कम्पित होने लगती हैं, जिसके फलस्वरूप स्वर की उत्पत्ति होती है। ठीक इसी समय अनुनादक अर्थात् स्वरयन्त्र का ऊपरी भाग, ग्रसनी, मुख तथा नासा अपनी अपनी क्रियाओं द्वारा स्वर में विशेषता तथा मृदुता उत्पन्न करते हैं। इसके उपरान्त उक्त स्वर का शब्द उच्चारण के रूपान्तरण उच्चारक अर्थात् कोमल, कठोर तालु, जिह्वा, दन्त तथा ओष्ठ आदि करते हैं। इन्हीं सब के सहयोग से स्पष्ट शुद्ध स्वरों की उत्पत्ति होती है। स्वरयंत्र--- अवटु (thyroid) उपास्थि वलथ (Cricoid) उपास्थि स्वर रज्जुऐं ये संख्या में चार होती हैं जो स्वरयन्त्र के भीतर सामने से पीछे की ओर फैली रहती हैं। यह एक रेशेदार रचना है जिसमें अनेक स्थिति स्थापक रेशे भी होते हैं। देखने में उजली तथा चमकीली मालूम होती है। इसमें ऊपर की दोनों तन्त्रियाँ गौण तथा नीचे की मुख्य कहलाती हैं। इनके बीच में त्रिकोण अवकाश होता है जिसको कण्ठ-द्वार (glottis) कहते हैं। इन्हीं रज्जुओं के खुलने और बन्द होने से नाना प्रकार के विचित्र स्वरों की उत्पत्ति होती है। स्वर की उत्पत्ति में स्वररज्जुओं की गतियाँ (movements)---- श्वसन काल में रज्जुद्वार खुला रहता है और चौड़ा तथा त्रिकोणकार होता है। श्वाँस लेने में यह कुछ अधिक चौड़ा (विस्तृत) तथा श्वाँस छोड़ने में कुछ संकीर्ण (संकुचित) हो जाता है। बोलते समय रज्जुएँ आकर्षित होकर परस्पर सन्निकट आ जाती हैं ;और उनका द्वार अत्यंत संकीर्ण हो जाता है। जितना ही स्वर उच्च होता है, उतना ही रज्जुओं में आकर्षण अधिक होता है और द्वारा उतना ही संकीर्ण हो जाता है। __________________________________________ स्वरयन्त्र की वृद्धि के साथ साथ स्वररज्जुओं की लम्बाई बढ़ती है ; जिससे युवावस्था में स्वर भारी हो जाता है। स्वररज्जुएँ स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक लंबी होती हैं। इसी लिए पुरुषों का स्वर मन्द्र सप्तक पर अाधारित है  और स्त्रियों का स्वर तार सप्तक पर अाधारित है। _________________________________________ स्वरों की उत्पत्ति का मानव शास्त्रीय सिद्धान्त -- उच्छ्वसित वायु के वेग से जब स्वर रज्जुओं का कम्पन होता है ; तब स्वर की उत्पत्ति होती है। यहाँ स्वर मूलत: एक ही प्रकार का उत्पन्न होता है किन्तु आगे चलकर तालु, जिह्वा, दन्त और ओष्ठ आदि अवयवों के सम्पर्क से उसमें परिवर्तन आ जाता है। ये ही उसके विभिन्न प्रारूपों के साँचें है । स्वररज्जुओं के कम्पन से उत्पन्न स्वर का स्वरूप निम्लिखित तीन बातों पर आश्रित है :👇 ________________________________________ 1. प्रबलता (loudness) - यह कम्पन तरंगों की उच्चता के अनुसार होता है। 2. तारत्व (Pitch) - यह कम्पन तरंगों की संख्या के अनुसार होता है। 3. गुणता (Quality) - यह गुञ्जनशील स्थानों के विस्तार के अनुसार बदलता रहता है; और कम्पन तरंगों के स्वरूप पर निर्भर करता है। "अ" स्वर का उच्चारण तथा ह स्वर का उच्चारण श्रोत समान है । कण्ठ तथा काकल । _________________________________________ नि: सन्देह 'काकल'  'कण्ठ' का पार्श्ववर्ती है और "अ" तथा "ह" सम्मूलक सजातिय बन्धु हैं। जैसा कि संस्कृत व्याकरण में रहा भी गया है  कहा भी गया है । अ कु ह विसर्जनीयीनांकण्ठा । अर्थात् अ स्वर , कवर्ग :- ( क ख ग घ ड्•) तथा विसर्ग(:) , "ह"  ये सभीे वर्ण कण्ठ से उच्चारित होते हैं । अतः "ह" महाप्राण " भी "अ " स्वर के घर्षण से ही विकसित रूप है । _________________________________________                   २.शब्द -विचार (Morphology) :- इसमे शब्दों के भेद ,रूप,प्रयोगों तथा उत्पत्ति का अध्ययन किया जाता है। वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं हिंदी भाषा में शब्दों के भेद निम्नलिखित चार आधारों पर किए जा सकते हैं नंबर 1 उत्पत्ति के आधार पर नंबर दो अर्थ के आधार पर नंबर 3 प्रयोग के आधार पर और नंबर 4 बनावट के आधार पर 🌸↔उत्पत्ति के आधार पर( Based on Origin ) उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के पाँच भेद निर्धारित किये जैसे हैं । (क) ~ तत्सम शब्द Original Words :-  संस्कृत भाषा के मूलक शब्द जो  हिन्दी में यथावत् प्रयोग किये जाते हैं । मुखसेविका । म्रक्षण । लावणी । अग्नि, क्षेत्र, वायु, ऊपर, रात्रि, सूर्य आदि। (ख) ~ तद्भव शब्द Modified Words:-जो शब्द संस्कृत भाषा के मूलक रूप से परिवर्तित हो गये हैं मुसीका ।माखन ।लौनी ।जैसे-आग (अग्नि), खेत (क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य) आदि। (ग) ~  देशज शब्द Native Words :- जो शब्द लौकिक ध्वनि-अनुकरण मूलक अथवा भाव मूलक हों जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आदि। 'झाड़ू' 'लोटा' ,हुक्का, आदि । (घ) ~  विदेशी शब्द Foreign Words:-जो शब्द विदेशी भाषाओं से आये हुए हैं । विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं। जैसे-स्कूल, अनार, आम, कैंची, अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि। ऐसे कुछ विदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है। अंग्रेजी- कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल , फोटो, डाक्टर स्कूल आदि। फारसी- अनार, चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि। अरबी- औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर,रिश्वत,औरत,कैदी,मालिक, गरीब आदि। तुर्की- कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि। पुर्तगाली- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि। फ्रांसीसी- पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि। चीनी- तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि। यूनानी- टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि। जापानी- रिक्शा आदि। डच-बम आदि। (ग)~  संकर शब्द mixed words :- जो शब्द अंग्रेजी और हिन्दी आदि भाषाओं के योग से बने हों । (रेल गाड़ी ) (लाठी चार्ज) आदि ... 🌸↔अर्थात् के आधार पर (Based on meaning) (क) सार्थक शब्द (meaningful Words) :- इनके भी चार भेद हैं :- 1- एकार्थी 2- अनेकार्थी 3- पर्यायवाची 4- विलोम शब्द । (ख) निरर्थक शब्द (meaningless Words):- ये शब्द मनुष्य की गेयता-मूलक तुकान्त प्रवृत्ति के द्योतक हैं । जैसे:- चाय-वाय ।पानी-वानी इत्यादि 🌸↔(प्रयोग के आधार पर Based on usage) (क ) अविकारी शब्द lndeclinableWords:- क्रिया-विशेषण, सम्बन्ध बोधक , समुच्यबोधक, और विस्मयादिबोधक । अविकारी शब्द : जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं। 🌸↔ विकारी शब्द (Declinable words) :- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, और क्रिया' । विकारी शब्द :- जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं। _____________________________________ बनावट के आधार पर ( Based on Construction ):- (क) रूढ़ शब्द :- Traditional words (ख) यौगिक शब्द :-Compound Words (ग) योगरूढ़ शब्द:-(CompoundTraditionalWords) व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के निम्नलिखित भेद हैं- रूढ़, यौगिक तथा योगरूढ़। - रूढ़-जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर। - यौगिक-जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हों, वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-देवालय=देव आलय, राजपुरुष=राज पुरुष, हिमालय=हिम आलय, देवदूत=देव दूत आदि। ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं। -योगरूढ़- वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-पंकज, दशानन आदि। पंकज=पंक ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है। अतः पंकज शब्द योगरूढ़ है। इसी प्रकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ में प्रसिद्ध है। बच्चा समाज में सामाजिक व्यवहार में आ रहे शब्दों के अर्थ कैसे ग्रहण करता है, इसका अध्ययन भारतीय भाषा चिन्तन में गहराई से हुआ है और अर्थग्रहण की प्रक्रिया को शक्ति के नाम से कहा गया है। शक्तिग्रहं व्याकरणोपमानकोशाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च। वाक्यस्य शेषाद् विवृत्तेर्वदन्ति सान्निध Word-Power) - शब्द-शक्ति शब्द-शक्ति (Word-Power) की परिभाषा शब्द का अर्थ बोध करानेवाली शक्ति 'शब्द शक्ति' कहलाती है। शब्द-शक्ति को संक्षेप में 'शक्ति' कहते हैं। इसे 'वृत्ति' या 'व्यापार' भी कहा जाता है। सरल शब्दों में- मिठाई या चाट का नाम सुनते ही मुँह में पानी भर आता है। साँप या भूत का नाम सुनते ही मन में भय का संचार हो जाता है। यह प्रभाव अर्थगत है। अतः जिस शक्ति के द्वारा शब्द का अर्थगत प्रभाव पड़ता है वह शब्दशक्ति है। काव्य में रस का संचार शब्द-शक्तियों के द्वारा होता हैं। यहाँ शब्दों का विशेष महत्त्व माना गया हैं। काव्य-भाषा में वाक्यों की रचना इस बात की सूचक हैं कि उसमें अनेक प्रकार के शब्दों का प्रयोग प्रकरण, प्रसंग और कवि-आशय के अनुसार हुआ हैं। कवियों की कृतियों में शब्दों के अनेक अर्थ ढूँढने की प्रथा उचित नहीं कही जा सकती। देखना यह चाहिए कि कवि ने शब्दों का प्रयोग कर जिन अभीष्ट अर्थों को रखना चाहा हैं, उसमें वह कहाँ तक सफल हुआ हैं। तात्पर्य यह हैं कि 'शब्द की शक्ति उसके अन्तर्निहित अर्थ को व्यक्त करने का व्यापार हैं।'' अर्थ का बोध कराने में 'शब्द' कारण हैं और अर्थ का बोध कराने वाले व्यापार को शब्द-शक्ति कहते हैं। आचार्य मम्मट ने व्यापार शब्द का और आचार्य विश्वनाथ ने शक्ति शब्द का प्रयोग किया हैं। हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य चिन्तामणि ने लिखा है कि ''जो सुन पड़े सो शब्द है, समुझि परै सो अर्थ'' अर्थात जो सुनाई पड़े वह शब्द है तथा उसे सुनकर जो समझ में आवे वह उसका अर्थ है। स्पष्ट है कि जो ध्वनि हमें सुनाई पड़ती है वह 'शब्द' है, और उस ध्वनि से हम जो संकेत या मतलब ग्रहण करते है वह उसका 'अर्थ' है। शब्द से अर्थ का बोध होता है। अतः शब्द हुआ 'बोधक' (बोध करानेवाला) और अर्थ हुआ 'बोध्य' (जिसका बोध कराया जाये)। जितने प्रकार के शब्द होंगे उतने ही प्रकार की शक्तियाँ होंगी। शब्द तीन प्रकार के- वाचक, लक्षक एवं व्यंजक होते हैं तथा इन्हीं के अनुरूप तीन प्रकार के अर्थ- वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ होते हैं। शब्द और अर्थ के अनुरूप ही शब्द की तीन शक्तियाँ- अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना होती हैं। शब्द अर्थ शक्ति वाचक/अभिधेय वाच्यार्थ/अभिधेयार्थ/मुख्यार्थ अभिधा लक्षक/लाक्षणिक लक्ष्यार्थ लक्षणा व्यंजक व्यंग्यार्थ/व्यंजनार्थ व्यंजना वाच्यार्थ कथित होता है, लक्ष्यार्थ लक्षित होता है और व्यंग्यार्थ व्यंजित, ध्वनित, सूचित या प्रतीत होता है। शब्द में अर्थ तीन प्रकार से आता है। अर्थ के जो तीन स्त्रोत हैं उन्हीं के आधार पर शब्द की शक्तियों का नामकरण किया जाता है। शब्द शक्ति के प्रकार:- प्रक्रिया या पद्धति के आधार पर शब्द-शक्ति तीन प्रकार के होते हैं- (1) अभिधा (Literal Sense Of a Word) (2) लक्षणा (Figurative Sense Of a Word) (3) व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word) अभिधा से मुख्यार्थ का बोध होता है, लक्षणा से मुख्यार्थ से संबद्ध लक्ष्यार्थ का, लेकिन व्यंजना से न मुख्यार्थ का बोध होता है न लक्ष्यार्थ का, बल्कि इन दोनों से भित्र अर्थ व्यंग्यार्थ का बोध होता है। (1) अभिधा (Literal Sense Of a Word)- जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का साक्षात् संकेतित (पहला/मुख्य/प्रसिद्ध/प्रचलित/पूर्वविदित) अर्थ बोध हो, उसे 'अभिधा' कहते हैं। जैसे- 'बैल खड़ा है।'- इस वाक्य को सुनते ही बैल नामक एक विशेष प्रकार के जीव को हम समझ लेते हैं, उसे आदमी या किताब नहीं समझते। यहाँ 'बैल' वाचक शब्द है जिसका मुख्यार्थ विशेष जीव है। परंपरा, कोश, व्याकरण आदि से यह अर्थ पूर्वविदित (पहले से मालूम) है। यानी शब्द और उसके अर्थ के बीच किसी प्रकार की बाधा नहीं है। (अभिधा का अर्थ है 'नाम' ।) दूसरे शब्दों में नामवाची अर्थ को बतलानेवाला शक्ति को अभिधा कहते हैं। नाम जाति, गुण, द्रव्य या क्रिया का होता है और ये सभी साक्षात् संकेतित होते हैं। अभिधा को 'शब्द की प्रथमा शक्ति' भी कहा जाता है।) उदाहरण- निराला की 'वह तोड़ती पत्थर' कविता के आरंभ की ये पंक्तियाँ अभिधा के प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं- ''वह तोड़ती पत्थर। देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर।'' इन पंक्तियों में कवि, शब्दों से सीधे-सीधे जो अर्थ प्रकट करता है, वही अर्थ कविता का है- कवि ने पत्थर तोड़ती हुई स्त्री को इलाहाबाद के पथ पर देखा। इस शब्द-शक्ति के द्वारा तीन प्रकार के शब्दों का बोध होता है- रूढ़ शब्द (जैसे-कृष्ण), यौगिक शब्द (जैसे- पाठशाला) एवं योगरूढ़ शब्द (जैसे- जलज) । अभिधा का महत्त्व : अलंकारशास्त्रियों के अनुसार काव्य में अभिधा शब्द-शक्ति का विशेष महत्त्व नहीं है। लेकिन अभिधा एकदम से महत्त्वहीन नहीं है। हिन्दी के रीतिकालीन आचार्य देव का मानना है : ''अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन/अधम व्यंजना रस विरस, उलटी कहत नवीन।'' आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत है : ''वास्तव में व्यंग्यार्थ या लक्ष्यार्थ के कारण चमत्कार आता है; परन्तु वह चमत्कार होता है वाच्यार्थ में ही। अतः इस वाच्यार्थ को देने वाली अभिधा शक्ति का अपना महत्त्व है।'' आचार्य शुक्ल अन्यत्र लिखते हैं : ''जब कविता में कल्पना और सौंदर्यवाद का अतिशय जोर हो जाता तब जीवन की वास्तविकता पर बल देने के लिए काव्य में भी अभिधा शक्ति का महत्त्व बढ़ जाता है।'' अभिधा के प्रकार 'अभिधा' शक्ति द्वारा तीन प्रकार के शब्दों का अर्थ-बोध हैं- (1) रूढ़ शब्द- ये शब्द जातिवाचक होते हैं, जैसे- घोड़ा, मनुष्य आदि; (2) यौगिक शब्द- इन शब्दों का अर्थ बोध अवयवों (प्रकृति और प्रत्ययों) की शक्ति के द्वारा होता हैं, जैसे-दिवाकर, सुधांशु आदि। (3) योगरूढ़ शब्द- इनका अर्थ-बोध समुदाय और अवयवों की शक्ति से होता हैं; ये शब्द यौगिक होते हुए भी रूढ़ होते हैं। जैसे- जलज, वारिज आदि। इनका यौगिक अर्थ जल में उत्पत्र वस्तु हैं पर योगरूढ़ अर्थ केवल 'कमल' हैं। (2) लक्षणा (Figurative Sense Of a Word)- अभिधा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का अर्थ बोध हो, उसे 'लक्षणा' कहते हैं। लक्षणा की शर्ते : लक्षणा के लिए तीन शर्ते है- (i) मुख्यार्थ में बाधा- इसमें मुख्य अर्थ या अभिधेय अर्थ लागू नहीं होता है वह बाधित (असंगत) हो जाता है। (ii) मुख्यार्थ एवं लक्ष्यार्थ में संबंध- जब मुख्य अर्थ बाधित हो जाता है, पर यह दूसरा अर्थ अनिवार्य रूप से मुख्य अर्थ से संबंधित होता है। (iii) रूढ़ि या प्रयोजन- मुख्य अर्थ को छोड़कर उसके दूसरे अर्थ को अपनाने के पीछे या तो कोई रूढ़ि होती है या कोई प्रयोजन। रूढ़ि कहते हैं प्रयोग-प्रवाह, प्रसिद्ध को। अर्थात् वैसा बोलने का चलन है, तरीका है। किसी बात को कहने की जो प्रथा हो जाती है, वह 'रूढ़ि' कहलाती है। जैसे- ''मुझे देखते ही वह नौ दो ग्यारह हो गया।''- इस वाक्य में 'नौ दो ग्यारह होना' (मुहावरा) का अर्थ है- 'भाग जाना।' इसके बदले में यदि कोई कहे कि 'मुझे देखते ही वह दस बीस चालीस हो गया।' या 'मुझे देखते ही वह ग्यारह दो नौ हो गया।' तो इसका कोई अर्थ नहीं होगा क्योंकि ऐसी कोई रूढ़ि नहीं है। यानी भागने की रूढ़ि अर्थात प्रसिद्ध नौ दो ग्यारह में ही है। प्रयोजन कहते है अभिप्राय या मतलब को। अर्थात हमारे मन में कोई ऐसा अभिप्राय है जो प्रयुक्त शब्द से व्यक्त नहीं हो रहा है तब उसके लिए दूसरा शब्द प्रयोग कर अपना अभिप्राय प्रकट करते हैं। जैसे हम किसी को अतिशय मूर्ख कहना चाहते हैं तो ''तुम मूर्ख हो।'' कह देने से मूर्खता की अतिशयता प्रकट नहीं होती, लेकिन यदि हम कहे कि ''तुम बैल हो। '' तो इसका अर्थ है कि तुम अतिशय मूर्ख (बुद्धिमान) हो। यहाँ 'बैल' शब्द का प्रयोग मूर्खता की अतिशयता बताने के प्रयोजन से किया गया है। लक्षणा की शास्त्रीय परिभाषा : मुख्यार्थ के बाधित होने पर जिस शक्ति के द्वारा मुख्यार्थ से संबंधित अन्य अर्थ रूढ़ि या प्रयोजन के कारण लिया जाए, वह 'लक्षणा' है। उदाहरण- (i) सभी मुहावरे व लोकोक्तियाँ- सभी मुहावरों एवं लोकोक्तियों में लक्षणा शब्द-शक्ति के सहारे अर्थ ग्रहण किया जाता है। जैसे- ''उसके लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है। ''- इस वाक्य में 'चुल्लू भर पानी में डूब मरना (मुहावरा)' से हमें शब्दों का मुख्यार्थ अभीष्ट नहीं है। हम इनसे दूसरा अर्थ लेते हैं कि 'बड़ी लज्जा की बात है।' इसी तरह 'राम चरण की जगह उसके भतीजे पिण्टू के घर के मालिक होने पर उसके पड़ोसी ने कहा- हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान।'- इस वाक्य में 'हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान (लोकोक्ति) से हम शब्दों का मुख्यार्थ नहीं लेते, बल्कि हम इनसे दूसरा अर्थ लेते हैं कि उक्त घर में 'सज्जन/योग्य/गुणवान व्यक्ति के स्थान पर दुर्जन/अयोग्य/गुणहीन व्यक्ति का आधिपत्य हो गया है।' (ii) एक पद्यबद्ध उदाहरण- निराला की 'वह तोड़ती पत्थर' कविता की अंतिम पंक्ति- देखा मुझे उस दृष्टि से जो मार खा रोई नहीं। दृष्टि मार नहीं खाती, प्राणी मार खाता है, दृष्टि नहीं रोती प्राणी रोता है। इसलिए दृष्टि 'जो मार खा रोई नहीं'- इस कथन में अभिधेय अर्थ या मुख्य अर्थ लागू नहीं होता, बाधित हो जाता है। तब हम उससे संबंधित अन्य अर्थ दूसरा अर्थ लेते हैं- कवि उस स्त्री की बात कह रहा है जो जीवन संघर्ष में बार-बार मार खाकर या आघात झेलकर रोई नहीं। iii) एक और पद्यबद्ध उदाहरण- दिनकर की काव्य-कृति 'रेणुका' से- विद्युत की इस चकाचौंध में, देख, दीप की लौ रोती है, अरी, ह्रदय को थाम, महल के लिए झोपड़ी बलि होती है। इस पद्य का मुख्यार्थ स्पष्ट है कि विद्युत की इस चकाचौंध में दीप की लौ रोती है। अरी ! हृदय को थाम ले, यहाँ महल के लिए झोपड़ी बलि होती है। किन्तु इसका लक्ष्यार्थ यह है कि महलों में रहनेवाले लोगों को जो वैभव प्राप्त है वह वस्तुतः झोंपड़ी में रहनेवाले मजदूरों के श्रम का ही परिणाम है। इस पद्य में 'महल' का अर्थ महल के निवासी अर्थात 'धनी' और 'झोपड़ी' का अर्थ झोंपड़ी के निवासी अर्थात 'निर्धन' अर्थ भी लक्षणा शब्द-शक्ति से गृहीत होते हैं। इसी प्रकार इस पद्य में प्रयुक्त 'विद्युत की चकाचौंध' का 'वैभव' अर्थ और 'दीपक की लौ का रोना' का 'श्रमिक जीवन' अर्थ भी लक्षणा शब्द-शक्ति द्वारा ज्ञात होते हैं। लक्षणा के भेद लक्षणा के भेद कारण के आधार पर लक्षणा के दो भेद हैं- (1) रूढ़ा लक्षणा (2) प्रयोजनवती लक्षणा (1) रूढ़ा लक्षणा- जहाँ रूढ़ि के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध हो, वहाँ 'रूढ़ा लक्षणा' होती है। उदाहरण : (i) गद्यात्मक उदाहरण : ''आप तो एकदम राजा हरिश्चन्द्र है'' का लक्ष्यार्थ है आप हरिश्चन्द्र के समान सत्यवादी हैं। सत्यवादी व्यक्ति को राजा हरिश्चन्द्र कहना रूढ़ि है। (ii) पद्यबद्ध उदाहरण : 'आगि बड़वाग्नि ते बड़ी है आगि पेट की' (तुलसी) का मुख्यार्थ है- बड़वाग्नि यानी समुद्र में लगने वाली आग से बड़ी पेट की आग होती है। पेट में आग नहीं, भूख लगती है इसलिए मुख्यार्थ की बाधा है। लक्ष्यार्थ है तीव्र और कठिन भूख को व्यक्त करना जो पेट की आग के जरिये किया गया है। तीव्र और कठिन भूख के लिए 'पेट में आग लगना' कहना रूढ़ि है। (2) प्रयोजनवती लक्षणा- जहाँ प्रयोजन के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध हो, वहाँ 'प्रयोजनवती लक्षणा' होती है। उदाहरण : (i) ''शिवाजी सिंह है''- यदि हम कहें कि शिवाजी सिंह हैं। तो सिंह शब्द के मुख्यार्थ (विशेष जीव) में बाधा पड़ जाती है। हम सब जानते है कि शिवाजी आदमी थे, सिंह नहीं लेकिन यहाँ शिवाजी के लिए सिंह शब्द का प्रयोग विशेष प्रयोजन के लिए किया गया है। शिवाजी को वीर या साहसी बताने के लिए सिंह शब्द का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार 'सिंह' शब्द का 'वीर' या 'साहसी' अर्थ लक्ष्यार्थ है। (ii) ''लड़का शेर है''- यदि हम कहें कि 'लड़का शेर है।' तो इसका लक्ष्यार्थ है 'लड़का निडर है।' यहाँ पर शेर का सामान्य अर्थ अभीष्ट नहीं है। लड़के को निडर बताने के प्रयोजन से उसके लिए शेर शब्द का प्रयोग किया गया है। (iii) एक पद्यबद्ध उदाहरण : कौशल्या के वचन सुनि भरत सहित रनिवास। व्याकुल विलप्त राजगृह मनहुँ शोक निवास।। -तुलसी कौशल्या के वचन सुनकर समस्त राजगृह व्याकुल होकर रो रहा है। 'राजगृह' अर्थात राजभवन नहीं रो सकता। 'राजगृह' का लक्ष्यार्थ है 'राजगृह में रहनेवाले लोग' । समस्त राजगृह के रोने से अत्यधिक दुःख को व्यक्त करने का विशेष प्रयोजन है। प्रयोजनवती लक्षणा के भेद:- भेद लक्षण/पहचान-चिह्न परिभाषा एवं उदाहरण (1) गौणी लक्षणा सादृश्य संबंध जहाँ सादृश्य संबंध अर्थात समान गुण या धर्म के कारण लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो। उदाहरण : 'मुख कमल'। सादृश्य संबंध के द्वारा लक्ष्यार्थ का बोध हो रहा है कि मुख कमल के समान कोमल है। (i) सारोपा (स _आरोपा) विषय/उपमेय/आरोप का विषय विषयी/उपमान/आरोप्यमाण (दोनों) जहाँ विषय और विषयी दोनों का शब्द निर्देश करते हुए अभेद बताया जाए। उदाहरण : 'सीता गाय है।' का लक्ष्यार्थ है- सीता सीधी-सादी है। यहाँ गाय (विषयी) का सीधापन-सादापन सीता (विषय) पर आरोपित है। (ii) साध्यावसाना (स अध्यवसाना) अध्यवसान =आत्मसात, निगरण विषयी (केवल) जहाँ केवल विषयी का कथन कर अभेद बताया जाए। उदाहरण : यदि कोई मालिक खीझ कर नौकर को कहे कि 'बैल कहीं का।' तो इस वाक्य में विषय (नौकर) का निर्देश नहीं है, केवल विषयी (बैल) का कथन है। (2) शुद्धा लक्षणा सादृश्येतर संबंध सादृश्येतर = सादृश्य इतर जहाँ सादृश्येतर संबंध (सादृश्य संबंध के अतिरिक्त किसी अन्य संबंध) से लक्ष्यार्थ की प्रतीति हो। सादृश्येतर संबंध हैं- आधार-आधेय भाव, सामीप्य, वैपरीत्य, कार्य-कारण, तात्कर्म्य आदि। उदाहरण : (i) आधार-आधेय संबंध का उदाहरण : 'महात्मा गाँधी को देखने के लिए सारा शहर उमड़ पड़ा।' यहाँ 'शहर' का मुख्यार्थ (नगर) बाधित है, 'शहर' का लक्ष्यार्थ है- 'शहर के निवासी' । शहर है- आधार और शहर का निवासी है- आधेय। (ii) सामीप्य संबंध का उदाहरण : आँचल में है दूध और आँखों में पानी। (यशोधरा) यहाँ आँचल का मुख्यार्थ (साड़ी का छोर) बाधित है, आँचल मैथलीशरण गुप्त का लक्ष्यार्थ है- स्तन। चूँकि आँचल सदा स्तन के समीप रहता है, इसलिए आँचल और स्तन में सामीप्य संबंध है। (iii) वैपरीत्य संबंध का उदाहरण : 'तुम सूख-सूख कर हाथी हुए जा रहे हो।' कोई व्यक्ति सूख-सूखकर हाथी नहीं हो सकता है, लक्ष्यार्थ है- तुम बहुत दुर्बल हो गये हो। (iv) वैपरीत्य संबंध का एक और उदाहरण : 'उधो तुम अति चतुर सुजान' यहाँ जब गोपियाँ उद्धव को चतुर और सुजान बता रही है तो सूरदास वे वस्तुतः उद्धव को सीधा और अजान कह रही है। यहाँ चतुर और सुजान के मुख्यार्थ बाधित है और उनमें चतुरता का अभाव और अज्ञता का बोध कराना लक्ष्यार्थ है। (i) उपादान लक्षणा (उपादान = ग्रहण करना) मुख्यार्थ लक्ष्यार्थ (दोनों) जहाँ मुख्यार्थ के साथ लक्ष्यार्थ का भी ग्रहण हो। उदाहरण : 'पगड़ी की लाज रखिए।' यहाँ 'पगड़ी' का मुख्यार्थ है- पगड़ी, पाग और लक्ष्यार्थ है- 'पगड़ी वाला' । यहाँ लक्ष्यार्थ के साथ-साथ मुख्यार्थ का भी ग्रहण किया गया है। (ii) लक्षण-लक्षणा लक्ष्यार्थ (केवल) जहाँ मुख्यार्थ को छोड़कर (त्याग कर) केवल लक्ष्यार्थ का ग्रहण हो। उदाहरण : (i) 'वह पढ़ाने में बहुत कुशल है।'- इस वाक्य में 'कुशल' का मुख्यार्थ (कुशलाने वाला) बाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (दक्ष) का ग्रहण किया गया है। (ii) 'माधुरी नृत्य में प्रवीण है।'- इस वाक्य में 'प्रवीण' का मुख्यार्थ (वीणा बजाने में निपुण) बाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (कुशल) को ग्रहीत किया गया है। (iii) 'देवदत्त चौकन्ना हो गया।'- इस वाक्य में 'चौकन्ना' का मुख्यार्थ (चार कानों वाला) बाधित है और केवल लक्ष्यार्थ (सावधान) का ग्रहण किया गया है। लक्षणा का महत्त्व : काव्य में लक्षणा के प्रयोग से जीवन के अनुभव को समृद्ध किया जाता है। कल्पना के सहारे सादृश्य और साधर्म्य के अनेकानेक विधानों द्वारा अनुभवों की सूक्ष्मता और विस्तार को प्रकट किया जाता है। इसलिए काव्य में लक्षणा शब्द-शक्ति की प्रबलता है। (3) व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word)- अभिधा व लक्षणा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का अर्थ बोध हो, उसे 'व्यंजना' कहते हैं। दूसरे शब्दों में-शब्द के जिस व्यापार से मुख्य और लक्ष्य अर्थ से भिन्न अर्थ की प्रतीति हो उसे 'व्यंजना' कहते हैं। 'अंजन' शब्द में 'वि' उपसर्ग लगाने से 'व्यंजन' शब्द बना हैं; अतः व्यंजन का अर्थ हुआ 'विशेष प्रकार का व्यंजन'। आँख में लगा हुआ अंजन जिसप्रकार दृष्टि-दोष दूर कर उसे निर्मल बनाता हैं, उसी प्रकार व्यंजना-शक्ति शब्द के मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ को पीछे छोड़ती हुई उसके मूल में छिपे हुए अकथित अर्थ को प्रकाशित करती हैं। अभिधा और लक्षणा अपने अर्थ का बोध करा कर जब अलग हो जाती हैं तब जिस शब्द-शक्ति द्वारा व्यंग्यार्थ का बोध होता हैं उसे व्यंजना-शक्ति कहते हैं। व्यंग्यार्थ के लिए 'ध्वन्यार्थ', 'सूच्यार्थ', 'आक्षेपार्थ', 'प्रतीयमानार्थ' जैसे शब्दों का प्रयोग होता हैं। उदाहरण : (i) प्रसिद्ध उदाहरण : 'सूर्य अस्त हो गया।' इस वाक्य के सुनने के उपरांत प्रत्येक व्यक्ति इससे भिन्न-भिन्न अर्थ ग्रहण करता है। इस वाक्य के सुनने के उपरांत प्रत्येक व्यक्ति इससे भिन्न-भिन्न अर्थ ग्रहण करता है। प्रसंग विशेष के अनुसार इस वाक्य के अनंत व्यंजनार्थ हो सकते हैं। वाक्य प्रसंग विशेष (वक्ता-श्रोता) अर्थ सूर्य अस्त हो गया पिता के पुत्र से कहने पर पढ़ाई-लिखाई शुरू करो। सास के बहू से कहने पर चूल्हा-चौका आरंभ करो। किसान के हलवाहे से कहने पर हल चलाना बंद करो पशुपालक के चरवाहे से कहने पर पशुओं को घर ले चलो। पुजारी के चेले से कहने पर संध्या-पूजन का प्रबंध करो। राहगीर के अपने साथी से कहने पर ठहरने का इंतजाम करो। कारवाँ-प्रमुख के उपप्रमुख से कहने पर पड़ाव की व्यवस्था करो। इस तरह इस एक वाक्य से वक्ता-श्रोता के अनुसार न जाने कितने अर्थ निकल सकते हैं। यहाँ जिसने भी अर्थ दिये गये है वे साक्षात् संकेतित नहीं है, इसलिए इनमें अभिधा शक्ति नहीं है। इनमें लक्षणा शक्ति भी नहीं है, कारण है कि उक्त वाक्य लक्षणा की शर्त मुख्यार्थ में बाधा को पूरा नहीं करता क्योंकि यहाँ सूर्य का जो मुख्यार्थ है वह मौजूद है। साफ है कि इनमें पायी जानेवाली शब्द-शक्ति व्यंजना है। (ii) एक पद्यबद्ध उदाहरण : प्रभुहिं चितइ पुनि चितइ महि राजत लोचन लोल। खेलत मनसिजु-मीन-जुग, जनु विधुमंडल डोल।। - तुलसी यहाँ धनुष-यज्ञ के प्रसंग में सीता की मनोदशा का चित्रण किया गया है। इस पद्य की पहली पंक्ति का वाच्यार्थ/अभिधेयार्थ यह है कि सीता पहले राम की ओर देखती है और फिर धरती की ओर। इससे उनके चपल नेत्र शोभित हो रहे हैं। किन्तु व्यंजनार्थ यह है कि सीता के मन में इस समय उत्सुकता, हर्ष, लज्जा आदि के भाव क्षण-क्षण में प्रकट हो रहे हैं। राम को देखकर उत्सुकता और हर्ष का भाव उत्पन्न होता है, साथ ही दूसरों की उपस्थिति का ध्यान कर उनके मन में तुरंत लज्जा भी आ जाती है, और वे धरती की ओर देखने लगती है। पर हर्ष और उत्सुकता के वशीभूत होने से वे अपने को रोक नहीं पाती और फिर राम की और देखती है, किन्तु लज्जावश फिर धरती की ओर देखने लगती है। इस प्रकार यह चक्र कुछ समय तक चलता रहता है। स्पष्ट है कि उक्त पद्य की पहली पंक्ति से हमें हर्ष, उत्सुकता, लज्जा आदि भावों की जो प्रतीति होती है वह न तो अभिधा शक्ति से होती है और न लक्षणा शक्ति से, बल्कि होती है व्यंजना शक्ति से। (iii) एक और पद्यबद्ध उदाहरण : चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय। दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।। -कबीर यहाँ चलती चक्की को देखकर कबीरदास के दुःखी होने की बात कही गई है। उसके द्वारा यह अर्थ व्यंजित होता है कि संसार चक्की के समान है जिसके जन्म और मृत्यु रूपी दो पार्टों के बीच आदमी पिसता रहता है। व्यंजना के भेद व्यंजना के दो भेद है- (1) शाब्दी व्यंजना (2) आर्थी व्यंजना। (1) शाब्दी व्यंजना- शब्द पर आधारित व्यंजना को 'शाब्दी व्यंजना' कहते है। (2)आर्थी व्यंजना- अर्थ पर आधारित व्यंजना को 'आर्थी व्यंजना' कहते हैं। शब्द दो प्रकार के होते है- एकार्थक एवं अनेकार्थक। जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है, उन्हें 'एकार्थक शब्द' कहते हैं। जैसे- पुस्तक, दवा इत्यादि। जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उन्हें 'अनेकार्थक शब्द' कहते है। जैसे- कलम [अर्थ- (1) लेखनी (2) पेड़-पौधे की टहनी (3) कलमकार की कूची (4) चित्र-शैली (जैसे- पटना कलम) आदि], पानी (अर्थ- (1) जल (2) चमक (3) प्रतिष्ठा आदि) इत्यादि। अनेकार्थक शब्दों पर टिकी व्यंजना को 'शाब्दी व्यंजना' तथा एकार्थक शब्दों पर टिकी व्यंजना को 'आर्थी व्यंजना' कहते हैं। व्यंजना के भेद:- भेद लक्षण/पहचान-चिह्न परिभाषा एवं उदाहरण (1) शाब्दी व्यंजना अनेकार्थक शब्दों का प्रयोग जहाँ अनेकार्थक शब्दों का प्रयोग हो, वहाँ 'शाब्दी व्यंजना' होती है। अनेकार्थक शब्द के अर्थ का निश्चय 14 आधारों में से किसी एक या अधिक आधार पर किया जाता है- संयोग, असंयोग, साहचर्य, विरोध, अर्थ, प्रकरण, लिंग, अन्य-सन्निधि (वक्ता व श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति), सामर्थ्य, औचित्य, देश, काल, व्यक्ति और काकु (स्वर विकार) । शाब्दी व्यंजना के दो भेद हैं- अभिधामूला एवं लक्षणामूला। (i) अभिधामूला शाब्दी व्यंजना अभिधात्मक शब्द पर आश्रित (निर्भर) अभिधात्मक शब्द पर आश्रित (निर्भर) शाब्दी व्यंजना 'अभिधामूला शाब्दी व्यंजना' कहलाती है। उदाहरण : चिर जीवो जोरी जुरै, क्यों न सनेह गँभीर। को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर।। -बिहारी बिहारी के इस दोहे का अभिधेयार्थ है- राधा कृष्ण की यह जोड़ी चिरजीवी हो। इनका गहरा प्रेम क्यों न जुड़े ? दोनों में कौन किससे घटकर है ? ये वृषभानुजा (वृषभानु जा = वृषभानु की जाया/बेटी = राधा) है और वे हलधर (बलराम) के वीर भाई यानी कृष्ण। किन्तु 'वृषभानुजा' एवं 'हलधर के वीर' शब्द अनेकार्थक है, अतः उनसे दूसरा और तीसरा अर्थ भी ध्वनित होता है। दूसरे अर्थ में ये वृषभ अनुजा =बैल की बहन यानी 'गाय' है और वे हलधर = बैल के वीर =भाई यानी 'साँड़' है। तीसरे अर्थ में ये 'वृष राशि में उत्पन्न' है और वे 'शेषनाग के अवतार' । इस दोहे में 'वृषभानुजा' के स्थान पर 'राधा' एवं 'हलधर' के स्थान पर 'बलराम' शब्द का प्रयोग कर दिया जाये तो यह व्यंग्यार्थ नष्ट हो जायेगा। (ii) लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना लाक्षणिक शब्द पर आश्रित (निर्भर) लाक्षणिक शब्द पर आश्रित व्यंजना 'लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना' कहलाती है। उदाहरण : फली सकल मनकामना, लूट्यौ अगणित चैन। आजु अँचे हरि रूप सखि, भये प्रफुल्लित नैन।। इस उदाहरण में लक्षणा के 'फली' का अर्थ है- पूर्ण हुई, 'लूटयौ' का अर्थ है- प्राप्त किया और 'अँचै' का अर्थ है- देखा। किन्तु व्यंजना से संपूर्ण पद का व्यंग्यार्थ है- प्रियतम के दर्शन से अत्यधिक आनंद प्राप्त किया। (2) आर्थी व्यंजना एकार्थक शब्दों का प्रयोग जहाँ एकार्थक शब्दों का प्रयोग हो, वहाँ 'आर्थी व्यंजना' होती है। एकार्थक शब्दों के अर्थ का निश्चय 10 आधारों में से किसी एक या अधिक आधार पर किया जाता है- वक्ता (कहनेवाला), बोधव्य (सुननेवाला), काकु (स्वर विकार), वाक्य, वाच्य, अन्य-सन्निधि (कहनेवाले) और सुननेवाले के अलावा किसी तीसरे शख्स की मौजूदगी), प्रकरण (प्रसंग), देश, काल एवं चेष्टा। उदाहरण : (i) काकु का उदाहरण- मैं सुकुमारि, नाथ वन जोगू। तुमहिं उचित तप, मो कहँ भोगू।। -तुलसी सीता, राम से कहती है कि मैं सुकुमारी हूँ और आप वन जाने के योग्य हैं; आपके लिए तप का रास्ता उचित है और मुझे भोग के रास्ते पर चलने को कह रहे हैं। यहाँ सीता के कहने के विशेष प्रकार यानी स्वर विकार (काकु) के कारण यह ध्वनित हो रहा है कि मैं ही सुकुमारी नहीं हूँ, आप भी सुकुमार हैं। आप वन जाने के योग्य हैं तो मैं भी वन जाने के योग्य हूँ। मैं राजकुमारी हूँ तो आप भी राजकुमार हैं। अतः मेरा भी वन जाना उचित है। चूँकि इसमें प्रयुक्त सभी शब्द एकार्थक हैं इसलिए आर्थी व्यंजना हैं। (ii) अन्य सन्निधि का उदाहरण : ii) अन्य सन्निधि का उदाहरण : एक लड़की किसी लड़के से प्रेम करती है। उससे मिलने को व्याकुल है, पर उसे कोई खबर भी नहीं भिजवा सकती। अचानक एक दिन वह लड़का दिख गया, पर उस समय लड़की की सखी मौजूद थी। लड़की ने होशियारी के साथ अपनी सखी से कहा- ''क्या बताऊँ सखी, दिन भर काम में जुटी रहती हूँ। सिर्फ शाम को थोड़ी फुरसत मिलती है तब कहीं नदी किनारे पानी लाने जाती हूँ, पर उस समय कोई चिड़िया का पूत भी नहीं होता। क्या करूँ, लाचार हूँ।'' इस साधारण वाक्य का अर्थ उस लड़के के नजदीक रहने (अन्य-सन्निधि) से यह हो जाता है कि तुम शाम को नदी किनारे मिलो। (iii) चेष्टा का उदाहरण : कोटि मनोज लजावन हारे। सुमुखि कहहु को अहहिं तुम्हारे।। सुनि स्नेहमय मंजुल बानी। संकुचि सीय मन मँह मुसकानी।। -तुलसी तुलसी के इस चौपाई का मुख्यार्थ है- वनवास के समय राम, सीता एवं लक्ष्मण के दिव्य रूप को देखकर वन की स्त्रियों में सीता से राम की ओर संकेत कर परिचय पूछा तो उनकी स्निग्ध भोली वाणी सुनकर सीता ने संकोच के साथ मुस्कुरा दिया। किन्तु इस चौपाई को व्यंग्यार्थ है- सीता ने कुछ बोलकर उनके (वन के स्त्रियों के) प्रश्न का उत्तर नहीं दिया पर उनकी संकोच भरी मुस्कान ने बता दिया कि 'ये मेरे पति हैं।' चूँकि इस चौपाई में प्रयुक्त सभी शब्द एकार्थक है इसलिए इसमें आर्थी व्यंजना है और आर्थी व्यंजना का आधार आंगिक चेष्टा (संकोच भरी मुस्कान) है। व्यंजना का महत्त्व : काव्य सौंदर्य के बोध में व्यंजना शब्द शक्ति का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यंजना शब्द-शक्ति काव्य में अर्थ की गहराई, सघनता और विस्तार लाता है। काव्यशास्त्रियों ने सर्वश्रेष्ठ काव्य की सत्ता वहीं स्वीकार की है जहाँ रस व्यंग्य (व्यंजित) हो। रीतिकालीन कवि और आचार्य प्रतापसाहि के शब्दों में- व्यंग्य जीव है कवित में शब्द अर्थ गति अंग। सोई उत्तर काव्य है वरणै व्यंग्य प्रसंग।। अभिधा और लक्षणा में अंतर अभिधा और लक्षणा में अंतर इस प्रकार हैं- (i) अभिधा और लक्षणादोनों शब्द-शक्तियाँ हैं। दोनों से शब्दों के अर्थ का बोध होता है, पर अभिधा से शब्द के मुख्यार्थ का बोध होता है, किन्तु लक्षणा से मुख्यार्थ का बोध नहीं होता, बल्कि मुख्यार्थ से संबंधित अन्य अर्थ (लक्ष्यार्थ) का बोध होता है। अभिधा का उदाहरण- 'बैल खड़ा है।'- इस वाक्य में बैल शब्द सुनते ही 'पशु विशेष' का चित्र आँखों के सामने आ जाता है। लक्षणा का उदाहरण- 'सुनील बैल है। '- सुनील को बैल कहने में मुख्यार्थ की बाधा है, क्योंकि कोई आदमी बैल नहीं हो सकता। बैल में जड़ता, बुद्धिहीनता आदि धर्म होते हैं। सुनील में भी बुद्धिहीनता है, इसलिए सादृश्य संबंध से बैल का लक्ष्यार्थ किया गया- बुद्धिहीन। बुद्धिहीनता का बोध हुआ लक्षणा के द्वारा। इसलिए इस वाक्य में लक्षणा है। (ii) अभिधा शब्द-शक्ति तत्काल अपने मुख्यार्थ का बोध करा देती है, पर लक्षणा शब्द-शक्ति अपने लक्ष्यार्थ का बोध तत्काल नहीं करा पाती है। लक्षणा के लिए तीन बातों का होना नितांत आवश्यक है- मुख्यार्थ में बाधा, मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ में संबंध तथा रूढ़ि या प्रयोजन। इस त्रयी के अभाव में लक्षणा की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन अभिधा की जा सकती है। (iii) अभिधा शब्द-शक्ति शब्द की सबसे साधारण शक्ति है। इस शब्द-शक्ति का काव्य में कोई विशेष स्थान नहीं है, क्योंकि वाच्य (अभिधेय) शब्द में कोई चमत्कार नहीं रहता। लक्षक (लाक्षणिक) शब्द में चमत्कार रहता है, इसलिए इसकी काव्य में अधिक उपयोगिता है। (iii) अभिधा शब्द-शक्ति शब्द की सबसे साधारण शक्ति है। इस शब्द-शक्ति का काव्य में कोई विशेष स्थान नहीं है, क्योंकि वाच्य (अभिधेय) शब्द में कोई चमत्कार नहीं रहता। लक्षक (लाक्षणिक) शब्द में चमत्कार रहता है, इसलिए इसकी काव्य में अधिक उपयोगिता है। अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना में अंतर:- अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना के बीच अंतर इस प्रकार हैं- (i) अभिधा किसी शब्द के केवल उसी अर्थ को बतलाती है जो पहले से निश्चित और व्यवहार में प्रसिद्ध हो। यह अर्थ भाषा सीखते समय हमें बताया जाता है। शब्दकोश या व्याकरण से हम इस अर्थ को जानते हैं। किन्तु लक्षणा और व्यंजना से हम शब्दों के जो अर्थ निकालते हैं वे पहले से जाने हुए नहीं होते। लक्षणा से हम शब्दों से ऐसा अर्थ निकालते हैं, जो शब्दों से सामान्यतः नहीं लिया जाता। पर यह अर्थ सदैव मुख्यार्थ से संबंधित ही होगा। व्यंजना के द्वारा हम शब्दों से ऐसा अर्थ भी निकालते हैं जो उनके मुख्यार्थ से संबंधित न हों। दूसरे शब्दों में एक बात के भीतर जो दूसरी बात छिपी रहती है उसे व्यंजना शक्ति के द्वारा निकालते हैं। (ii) अभिधा शक्ति शब्द की सबसे सामान्य शक्ति है। इसके द्वारा व्यक्त अर्थ में चमत्कार नहीं रहता है। दूसरी ओर लक्षणा और व्यंजना के अर्थ में विलक्षणता रहती है, इसलिए काव्य में जितना महत्त्व लक्षणा और व्यंजना का है, उतना अभिधा का नहीं। व्यंजना का काव्यशास्त्र (साहित्यशास्त्र) में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। भले ही वैयाकरण, नैयायिक, मीमांसक, वेदांती आदि अभिधा के महत्त्व से संतुष्ट हो जाये, पर काव्यशास्त्र तो रसप्रधान है, रसास्वादन के बिना, सहृदय की तृप्ति नहीं होती और उस रसाभिव्यक्ति के लिए व्यंजना शक्ति की सत्ता नितांत आवश्यक है। (iii) अभिधा और लक्षणा का व्यापार केवल शब्दों में होता है, किन्तु व्यंजना का व्यापार शब्द और अर्थ दोनों में। (iv) वाचक और लक्षक तो केवल शब्द होते हैं, किन्तु व्यंजक केवल शब्द ही नहीं अपितु वक्ता, श्रोता, देश, काल, चेष्टा प्रकरण आदि भी व्यंजक होते हैं। इस प्रकरण में केवल वाक्य विचार पर विशद् विवेचन  किया जाता है। ३.वाक्य -विचार(Syntax):- इसमें वाक्य निर्माण ,उनके प्रकार,उनके भेद,गठन,प्रयोग, विग्रह आदि पर विचार किया जाता है। वाक्य विचार(Syntax) की परिभाषा:- वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाये, 'वाक्य' कहलाता हैै। दूसरे शब्दों में- विचार को पूर्णता से प्रकट करनेवाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को 'वाक्य' कहते हैं। सरल शब्दों में- सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है। जैसे- विजय खेल रहा है, बालिका नाच रही हैैै। वाक्य के भाग:- वाक्य के दो भाग होते है- (1)उद्देश्य (Subject) (2)विधेय(Predicate) (1)उद्देश्य (Subject):-वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं। इसके अन्तर्गत कर्ता और संज्ञाओं का समावेश होता है। सरल शब्दों में- जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं। जैसे-: सौम्या पाठ पढ़ती है। मोहन दौड़ता है। इस वाक्य में सौम्या और मोहन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है। इसके अन्तर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है। जैसे- 'परिश्रम करने वाला व्यक्ति' सदा सफल होता है। इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार 'परिश्रम करने वाला' है। उद्देश्य के भाग- (parts of  Subject) उद्देश्य के दो भाग होते है- (i) कर्ता (Subject) (ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द। (2) विधेय (Predicate):- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते है। जैसे- सौम्या पाठ पढ़ती है। इस वाक्य में 'पाठ पढ़ती' है विधेय है; क्योंकि यह बात  सौम्या (उद्देश्य )के विषय में कही गयी है। दूसरे शब्दों में- वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है। इसके अन्तर्गत विधेय का विस्तार आता है। जैसे:-    'नीली नीली आँखों वाली लड़की 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई' । इस वाक्य में विधेय (गई) का विस्तार 'अभी-अभी' एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर' है। विशेष:-आज्ञासूचक वाक्यों में विधेय तो होता है किन्तु उद्देश्य छिपा होता है। जैसे- वहाँ जाओ। खड़े हो जाओ। इन दोनों वाक्यों में जिसके लिए आज्ञा दी गयी है; वह उद्देश्य अर्थात् 'वहाँ न जाने वाला '(तुम) और 'खड़े हो जाओ' (तुम या आप) अर्थात् उद्देश्य दिखाई नहीं पड़ता वरन् छिपा हुआ है। विधेय के भाग- (Parts of Predicate) विधेय के छः भाग होते हैं:- (i) क्रिया verb (ii) क्रिया के विशेषण Adverb (iii) कर्म Object (iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द (v) पूरक  Complement (vi)पूरक के विशेषण। नीचे की तालिका से उद्देश्य तथा विधेय सरलता से समझा जा सकता है- वाक्य.  १-उद्देश्य   विधेय. गाय  घास खाती है- सफेद गाय हरी घास खाती है। सफेद -कर्ता विशेषण गाय -कर्ता [उद्देश्य] हरी - विशेषण कर्म घास -कर्म [विधेय] खाती है- क्रिया [विधेय] __________________________________________ वाक्य के भेद:- वाक्य के भेद- रचना के आधार पर रचना के आधार पर. वाक्य के तीन भेद होते हैं- There are three kinds of Sentences. Based on Structure. (i)साधरण वाक्य (Simple Sentence) (ii)मिश्रित वाक्य (Complex Sentence) (iii)संयुक्त वाक्य (Compound Sentence) 👇(i)साधरण वाक्य या सरल वाक्य:-जिन वाक्य में एक ही "समापिका क्रिया" होती है, और एक कर्ता होता है, वे साधारण वाक्य कहलाते है। दूसरे शब्दों में- जिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उन्हें साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते हैं। इसमें एक 'उद्देश्य' और एक 'विधेय' रहते हैं। जैसे:- सूर्य चमकता है', 'पानी बरसता है। इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्य, अर्थात कर्ता और विधेय, अर्थात् क्रिया हैं।  अतः, ये साधारण या सरल वाक्य हैं। (ii)मिश्रित वाक्य:-जिस वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिले हों किन्तु एक "प्रधान उपवाक्य" (Priceple Clouse ) तथा शेष "आश्रित उपवाक्य" (Sub-OrdinateClouse) हों, वह मिश्रित वाक्य कहलाता है। दूसरे शब्दों में- जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ हों, उसे 'मिश्रित वाक्य' कहते हैं। जैसे:- 'वह कौन-सा मनुष्य है,(जिसने)महाप्रतापी राजा चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम न सुना हो । दूसरे शब्दों मेें- जिन वाक्यों में एक प्रधान (मुख्य) उपवाक्य हो और अन्य आश्रित (गौण) उपवाक्य हो तथा जो आपस में 'कि'; 'जो'; 'क्योंकि'; 'जितना'; 'उतना'; 'जैसा'; 'वैसा'; 'जब'; 'तब'; 'जहाँ'; 'वहाँ'; 'जिधर'; 'उधर'; 'अगर/यदि'; 'तो'; 'यद्यपि'; 'तथापि'; आदि से मिश्रित (मिले-जुले) हों उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं। इनमे एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अतिरिक्त एक से अधिक "समापिका क्रियाएँ " होती हैं। जैसे:- मैं जनता हूँ "कि" तुम्हारे वाक्य अच्छे नहीं बनते। "जो" लड़का कमरे में बैठा है वह मेरा भाई है। यदि परिश्रम करोगे "तो" उत्तीर्ण हो जाओगे। 'मिश्र वाक्य' के 'मुख्य उद्देश्य' और 'मुख्य विधेय' से जो वाक्य बनता है, उसे 'मुख्य उपवाक्य' और दूसरे वाक्यों को आश्रित उपवाक्य' कहते हैं। पहले को 'मुख्य वाक्य' और दूसरे को 'सहायक वाक्य' भी कहते हैं। सहायक वाक्य अपने में पूर्ण या सार्थक नहीं होते, परन्तु मुख्य वाक्य के साथ आने पर उनका अर्थ पूर्ण रूप से निकलता हैं। ऊपर जो उदाहरण दिया गया है, उसमें 'वह कौन-सा मनुष्य है' मुख्य वाक्य है और शेष 'सहायक वाक्य'; क्योंकि वह मुख्य वाक्य पर आश्रित है। (iii)संयुक्त वाक्य :- जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य मिले हों, परन्तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते हैं। दूसरे शब्दो में- जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है। सरल शब्दों में- जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल "संयोजक अवयवों "द्वारा होता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे:- 'वह सुबह गया और 'शाम को लौट आया। प्रिय बोलो 'परन्तु 'असत्य नहीं। उसने बहुत परिश्रम किया 'किन्तु' सफलता नहीं मिली। संयुक्त वाक्य उस वाक्य-समूह को कहते हैं, जिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य अथवा मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों । इस प्रकार के वाक्य लम्बे और आपस में उलझे होते हैं। 👇 जैसे:-'मैं ज्यों ही रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगा, और दर्द इतना बढ़ा कि तुरन्त डॉक्टर को बुलाना पड़ा।' इस लम्बे वाक्य में संयोजक 'और' है, जिसके द्वारा दो मिश्र वाक्यों को मिलाकर संयुक्त वाक्य बनाया गया। इसी प्रकार 'मैं आया और वह गया' इस वाक्य में दो सरल वाक्यों को जोड़नेवाला संयोजक 'और' है। यहाँ यह याद रखने की बात है कि संयुक्त वाक्यों में प्रत्येक वाक्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाये रखता है, वह एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होता, केवल संयोजक अव्यय उन स्वतन्त्र वाक्यों को मिलाते हैं। इन मुख्य और स्वतन्त्र वाक्यों को व्याकरण में 'समानाधिकरण' उपवाक्य "भी कहते हैं। _________________________________________ वाक्य के भेद- अर्थ के आधार पर । Kinds of Sentences -based on meaning अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते हैं:-👇 1- स्वीकारात्मक वाक्य (Affirmative Sentence) 2-निषेधात्मक वाक्य (Negative Sentence) 3- प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence) 4-आज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence) 5-संकेतवाचक वाक्य (Conditional Sentence) 6-विस्मयादिबोधक वाक्य                              (Exclamatory Sentence) 7-विधानवाचक वाक्य (Assertive Sentence) 8- इच्छावाचक वाक्य ( ILLative Sentence) (i)सरल वाक्य :-वे वाक्य जिनमे कोई बात साधरण ढंग से कही जाती है, सरल वाक्य कहलाते है। जैसे:- राम ने रावण को मारा। सीता खाना बना रही है। (ii) निषेधात्मक वाक्य:-जिन वाक्यों में किसी काम के न होने या न करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है। जैसे:- आज वर्षा नही होगी। मैं आज घर नहीं जाऊँगा। (iii)प्रश्नवाचक वाक्य:-वे वाक्य जिनमें प्रश्न पूछने का भाव प्रकट हो, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं। जैसे:- राम ने रावण को क्यों मारा ? तुम कहाँ रहते हो ? (iv) आज्ञावाचक वाक्य :-जिन वाक्यों से आज्ञा प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते है। जैसे:- । परिश्रम करो। बड़ों का सम्मान करो। (v) संकेतवाचक वाक्य:- जिन वाक्यों से शर्त (संकेत) का बोध होता है , अर्थात् एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे:- यदि तुम परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होगे। पिताजी अभी आते तो अच्छा होता। अगर वर्षा होगी तो फसल भी होगी। (vi)विस्मयादि-बोधक वाक्य:-जिन वाक्यों में आश्चर्य, शोक, घृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादि-बोधक वाक्य कहते हैं। जैसे- (१)वाह ! तुम आ गये। (२)हाय ! मैं लूट गया। (vii) विधानवाचक वाक्य:- जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते है। जैसे- मैंने दूध पिया। वर्षा हो रही है। राम पढ़ रहा है। (viii) इच्छावाचक वाक्य:- जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का भाव होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं। जैसे- (१)तुम्हारा कल्याण हो। (२)आज तो मैं केवल फल खाऊँगा। (३)भगवान तुम्हें लम्बी आयु दे। वाक्य के अनिवार्य "तत्व " दार्शनिकों के मतानुसार- वाक्य में निम्नलिखित छ: तत्व अनिवार्य है- _______________________________________ (1)Significance (2) Eligibility (3) Aspiration (4) Proximity (5) Grade (6) Unrequited ________________________ (1) सार्थकता (2) योग्यता (3) आकांक्षा (4) निकटता (5) पदक्रम (6) अन्वय (1) सार्थकता- वाक्य में सार्थक पदों का प्रयोग होना चाहिए निरर्थक शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। बावजूद इसके कभी-कभी निरर्थक से लगने वाले पद भी भाव अभिव्यक्ति करने के कारण वाक्यों का गठन कर बैठते है। जैसे- तुम बहुत बक-बक कर रहे हो। चुप भी रहोगे या नहीं ? इस वाक्य में 'बक-बक' निरर्थक-सा लगता है; परन्तु अगले वाक्य से अर्थ समझ में आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है। (2) योग्यता - वाक्यों की पूर्णता के लिए उसके पदों, पात्रों, घटनाओं आदि का उनके अनुकूल ही होना चाहिए। अर्थात् वाक्य लिखते या बोलते समय निम्नलिखित बातों पर निश्चित रूप से ध्यान देना चाहिए-👇 (a) पद प्रकृति-विरुद्ध नहीं हो : हर एक पद की अपनी प्रकृति (स्वभाव/धर्म) होती है। यदि कोई कहे मैं आग खाता हूँ। हाथी ने दौड़ में घोड़े को पछाड़ दिया। उक्त वाक्यों में पदों की "प्रकृतिगत योग्यता" की कमी है। आग खायी नहीं जाती। हाथी घोड़े से तेज नहीं दौड़ सकता। इसी जगह पर यदि कहा जाय- मैं आम खाता हूँ। घोड़े ने दौड़ में हाथी को पछाड़ दिया। तो दोनों वाक्यों में 'योग्यता' आ जाती है। (b) बात- समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि के विरुद्ध न हो : वाक्य की बातें समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि सम्मत होनी चाहिए; ऐसा नहीं कि जो बात हम कह रहे हैं, वह इतिहास आदि के विरुद्ध है। जैसे- दानवीर कर्ण द्वारका के राजा थे। महाभारत 25 दिन तक चला। भारत के उत्तर में श्रीलंका है। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु परस्पर मिलकर कार्बनडाई ऑक्साइड बनाते हैं। (3) आकांक्षा- आकांक्षा का अर्थ है- इच्छा। एक पद को सुनने के बाद दूसरे पद को जानने की इच्छा ही 'आकांक्षा' है। यदि वाक्य में आकांक्षा शेष रह जाती है तो उसे अधूरा वाक्य माना जाता है;  क्योंकि उससे अर्थ पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं हो पाता है। जैसे- यदि कहा जाय। 'खाता है' तो स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या कहा जा रहा है- किसी के भोजन करने की बात कही जा रही है या बैंक (Bank) के खाते के बारे में ? (4) निकटता- बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरन्तर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए वाक्य को स्वाभाविक एवं आवश्यक बलाघात आदि के साथ बोलना पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक है। (5) पदक्रम - वाक्य में पदों का एक निश्चित क्रम होना चाहिए। 'सुहावनी है रात होती चाँदनी' इसमें पदों का क्रम व्यवस्थित न होने से इसे वाक्य नहीं मानेंगे। इसे इस प्रकार होना चाहिए- 'चाँदनी रात सुहावनी होती है'। (6) अन्वय - अन्वय का अर्थ है- मेल। वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, काल, कारक आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिए; जैसे- 'बालक और बालिकाएँ गई', इसमें कर्ता और क्रिया का अन्वय ठीक नहीं है। अतः शुद्ध वाक्य होगा 'बालक और बालिकाएँ गए'। ________________________________________ वाक्य-विग्रह (Analysis)👇 वाक्य-विग्रह (Analysis)- वाक्य के विभिन्न अंगों को अलग-अलग किये जाने की प्रक्रिया को वाक्य-विग्रह कहते हैं। इसे 'वाक्य-विभाजन' या 'वाक्य-विश्लेषण' भी कहा जाता है। सरल वाक्य का विग्रह करने पर एक उद्देश्य और एक विधेय बनते है।👇 संयुक्त वाक्य में से योजक को हटाने पर दो स्वतन्त्र उपवाक्य (यानी दो सरल वाक्य) बनते हैं। मिश्र वाक्य में से योजक को हटाने पर दो अपूर्ण उपवाक्य बनते है।👇 सरल वाक्य= 1 उद्देश्य 1 विधेय संयुक्त वाक्य= सरल वाक्य सरल वाक्य मिश्र वाक्य= प्रधान उपवाक्य आश्रित उपवाक्य 1:-Simple Sentence = 1 Objective 1 Remarkable 2:-Joint (Compound) sentence = simple sentence simple sentence 3:-Mixed (Complexs)entence = principal clause dependent clause _________________________________________ वाक्य का रूपान्तरण-- (Transformation of Sentences) किसी वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में, बिना अर्थ बदले, परिवर्तित करने की प्रकिया को 'वाक्यपरिवर्तन' कहते हैं। हम किसी भी वाक्य को भिन्न-भिन्न वाक्य-प्रकारों में परिवर्तित कर सकते हैं और उनके मूल अर्थ में तनिक विकार या परिवर्तन नहीं आयेगा। हम चाहें तो एक सरल वाक्य को मिश्र या संयुक्त वाक्य में बदल सकते हैं।👇 सरल वाक्य:- हर तरह के संकटो से घिरा रहने पर भी वह निराश नहीं हुआ। संयुक्त वाक्य:- संकटों ने उसे हर तरह से घेरा, (किन्तु) वह निराश नहीं हुआ। मिश्र वाक्य:- यद्यपि वह हर तरह के संकटों से घिरा था, (तथापि) निराश नहीं हुआ। वाक्य परिवर्तन करते समय एक बात विशेषत: ध्यान में रखनी चाहिए कि वाक्य का मूल अर्थ किसी भी हालत में विकृत ( परिवर्तित )न हो जाय। यहाँ कुछ और उदाहरण देकर विषय को स्पष्ट किया जाता है-👇 (क) सरल वाक्य से मिश्र वाक्य <>👇 1-सरल वाक्य- उसने अपने मित्र का मकान खरीदा। मिश्र वाक्य- उसने उस मकान को खरीदा, जो उसके मित्र का था। 2-सरल वाक्य- अच्छे लड़के परिश्रमी होते हैं। मिश्र वाक्य- जो लड़के अच्छे होते है, वे परिश्रमी होते हैं। 3-सरल वाक्य- लोकप्रिय विद्वानों का सम्मान सभी करते हैं। मिश्र वाक्य- जो विद्वान लोकप्रिय होते हैं, उसका सम्मान सभी करते हैं। (ख) सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य<>👇 1- सरल वाक्य- अस्वस्थ रहने के कारण वह परीक्षा में सफल न हो सका। संयुक्त वाक्य- वह अस्वस्थ था और इसलिए परीक्षा में सफल न हो सका। 2-सरल वाक्य- सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा। संयुक्त वाक्य- सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा। 3-सरल वाक्य- गरीब को लूटने के अतिरिक्त उसने उसकी हत्या भी कर दी। संयुक्त वाक्य- उसने न केवल गरीब को लूटा, बल्कि उसकी हत्या भी कर दी। (ग) मिश्र वाक्य से सरल वाक्य<>👇 1-मिश्र वाक्य- उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ। सरल वाक्य- उसने अपने को निर्दोष घोषित किया। 2-मिश्र वाक्य- मुझे बताओ कि तुम्हारा जन्म कब और कहाँ हुआ था। सरल वाक्य- तुम मुझे अपने जन्म का समय और स्थान बताओ। 3-मिश्र वाक्य- जो छात्र परिश्रम करेंगे, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। सरल वाक्य- परिश्रमी छात्र अवश्य सफल होंगे। (घ) कर्तृवाचक से कर्मवाचक वाक्य–><👇 कर्तृवाचक वाक्य- लड़का रोटी खाता है। कर्मवाचक वाक्य- लड़के से रोटी खाई जाती है। कर्तृवाचक वाक्य- तुम व्याकरण पढ़ाते हो। कर्मवाचक वाक्य- तुमसे व्याकरण पढ़ाया जाता है। कर्तृवाचक वाक्य- मोहन गीत गाता है। कर्मवाचक वाक्य- मोहन से गीत गाया जाता है। (ड़) विधिवाचक से निषेधवाचक वाक्य👇 विधिवाचक वाक्य- वह मुझसे बड़ा है। निषेधवाचक- मैं उससे बड़ा नहीं हूँ। विधिवाचक वाक्य- अपने देश के लिए हर एक भारतीय अपनी जान देगा। निषेधवाचक वाक्य- अपने देश के लिए कौन भारतीय अपनी जान न देगा ? वाक्य रचना के कुछ सामान्य नियम👇 ''व्याकरण-सिद्ध पदों को मेल के अनुसार " यथाक्रम" रखने को ही 'वाक्य-रचना' कहते है।'' वाक्य का एक पद दूसरे से लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का जो संबंध रखता है, उसे ही 'मेल' कहते हैं। जब वाक्य में दो पद एक ही लिंग-वचन-पुरुष-काल और नियम के हों तब वे आपस में (मेल, समानता या सादृश्य) रखने वाले कहे जाते हैं। निर्दोष वाक्य लिखने के कुछ नियम हैं। 👇 इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है। सुन्दर वाक्यों की रचना के लिए निर्देश:-👇 (क) क्रम (order), (ख) अन्वय (co-ordination) और (ग) प्रयोग (using) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है। (क) क्रम:-👇 किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को 'क्रम' अथवा 'पदक्रम' कहते हैं। इसके कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं- (i) हिंदी वाक्य के आरम्भ में 'कर्ता, मध्य में 'कर्म' और अन्त में 'क्रिया' होनी चाहिए। जैसे- मोहन ने भोजन किया। यहाँ कर्ता 'मोहन', कर्म 'भोजन' और अन्त में किया 'क्रिया' है। (ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए।👇 जैसे-अच्छे लड़के धीरे-धीरे पढ़ते हैं। (iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं। जैसे- मोहन ने घर में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) राम के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) पुस्तक निकाली। (iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है। जैसे- हे प्रभु, मुझ पर दया करें। (v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है। जैसे- मेरी नीली कमीज कहीं खो गयी। (vi) क्रियाविशेषण क्रिया के पहले आता है। जैसे- वह तेज दौड़ता है। (vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय। जैसे- क्या बालक सो रहा है ? टिप्पणी- यदि संस्कृत की तरह हिन्दी में वाक्य रचना के साधारण क्रम का पालन न किया जाय, तो इससे कोई क्षति अथवा अशुद्धि नहीं होती। फिर भी, उसमें विचारों का एक तार्किक क्रम ऐसा होता है, जो एक विशेष रीति के अनुसार एक-दूसरे के पीछे आता है। (ख) अन्वय (मेल) 'अन्वय' में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं। कर्ता और क्रिया का मेल (i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्ति रहित है, तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होंगे। जैसे- करीम किताब पढ़ता है। सोहन मिठाई खाता है। रीता घर जाती है।👇 __________________________________________ ⬇☣⬇🌸 (ii) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्ति रहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले 'और' संयोजक आया हो, तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी जैसे-👇 मोहन और सोहन सोते हैं। आशा, उषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं। (iii) यदि वाक्य में दो भिन्न लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्वसमास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुल्लिंग बहुवचन में होगी। जैसे- नर-नारी गये। राजा-रानी आये। स्त्री-पुरुष मिले। माता-पिता बैठे हैं। (iv) यदि वाक्य में दो भिन्न-भिन्न विभक्ति रहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच 'और' संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुल्लिंग और बहुवचन में होगी। जैसे:- राधा और कृष्ण रास रचते हैं। बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं। (v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों, तो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा। जैसे-👇 १-एक लड़का, दो बूढ़े और अनेक लड़कियाँ आती हैं। २-एक बकरी, दो गायें और बहुत-से बैल मैदान में चरते हैं। (vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय 'या' अथवा 'वा' रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी। जैसे- ३-घनश्याम की पाँच दरियाँ वा एक कम्बल बिकेगा। ४-हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी। ५-मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी। (vii) यदि उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तमपुरुष के अनुसार होगी। जैसे-👇 १-वह और हम जायेंगे। २-हरि, तुम और हम सिनेमा देखने चलेंगे। ३-वह, आप और मैं चलूँगा। 🌸↔विद्वानों का मत है कि वाक्य में पहले मध्यमपुरुष प्रयुक्त होता है, उसके बाद अन्यपुरुष और अन्त में उत्तमपुरुष; जैसे- तुम, वह और मैं जाऊँगा। कर्म और क्रिया का मेल (i) यदि वाक्य में कर्ता 'ने' विभक्ति से युक्त हो और कर्म की 'को' विभक्ति न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार ही होगी। जैसे- पिपासा ने पुस्तक पढ़ी। हमने लड़ाई जीती। उसने गाली दी। मैंने रूपये दिये। तुमने क्षमा माँगी। (ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति चिह्नों से युक्त हों, तो क्रिया सदा एकवचन पुल्लिंग और अन्यपुरुष में होगी। जैसे- मैंने कृष्ण को बुलाया। तुमने उसे देखा। स्त्रियों ने पुरुषों को ध्यान से देखा। (iii) यदि कर्ता 'को' प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुल्लिंग, एकवचन और अन्यपुरुष में होगी। जैसे- तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता। अलिका को रसोई बनाना नहीं आता। उसे (उसको) समझ कर बात करना नहीं आता। (iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्ति रहित कर्म एक साथ आएँ, तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी। जैसे-👇 श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए। तुमने गाय और भैंस मोल ली। (v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें, तो क्रिया भी एकवचन में होगी। जैसे- मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी। सोहन ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी। मोहन ने एक घोड़ा और एक हाथी बेचा। (vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे 'और' से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी। जैसे-👇 मैंने मिठाई और पापड़ खाये। उसने दूध और रोटी खिलाई। संज्ञा और सर्वनाम का मेल- (i) सर्वनाम में उसी संज्ञा के लिंग और वचन होते हैं, जिसके बदले वह आता है; परन्तु कारकों में भेद रहता है। जैसे- शेखर ने कहा कि मैं जाऊँगा। शीला ने कहा कि मैं यहीं रूकूँगी। (ii) सम्पादक, ग्रन्थ कार, किसी सभा का प्रतिनिधि और बड़े-बड़े अधिकारी अपने लिए 'मैं' की जगह 'हम' का प्रयोग करते हैं। जैसे- हमने पहले अंक में ऐसा कहा था। हम अपने राज्य की सड़कों को स्वच्छ रखेंगे। (iii) एक प्रसंग में किसी एक संज्ञा के बदले पहली बार जिस वचन में सर्वनाम का प्रयोग करे, आगे के लिए भी वही वचन रखना उचित है। जैसे- 🌸↔अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा। तुमने हमारी पुस्तक लौटा दी हैं। मैं तुमसे बहुत नाराज नहीं हूँ। (अशुद्ध वाक्य है।) पहली बार अंकित के लिए 'मैं' का और संजय के लिए 'तू' का प्रयोग हुआ है तो अगली बार भी 'तुमने' की जगह 'तूने', 'हमारी' की जगह 'मेरी' और 'तुमसे' की जगह 'तुझसे' का प्रयोग होना चाहिए :👇 🌸↔अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा। तूने मेरी पुस्तक लौटा दी है। मैं तुझसे बहुत नाराज नहीं हूँ। (शुद्ध वाक्य) (iv) संज्ञाओं के बदले का एक सर्वनाम वही लिंग और वचन लगेंगे जो उनके समूह से समझे जाएँगे। जैसे- शरद और संदीप खेलने गए हैं; परन्तु वे शीघ्र ही आएँगे। श्रोताओं ने जो उत्साह और आनंद प्रकट किया उसका वर्णन नहीं हो सकता। (v) 'तू' का प्रयोग अनादर और प्यार के लिए भी होता है। जैसे-👇 रे नृप बालक, कालबस बोलत तोहि न संभार। धनुही सम त्रिपुरारिधनु विदित सकल संसार।। (गोस्वामी तुलसीदास) तोहि- तुझसे अरे मूर्ख ! तू यह क्या कर रहा है ?(अनादर के लिए) अरे बेटा, तू मुझसे क्यों रूठा है ? (प्यार के लिए) तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूँ। (vi) मध्यम पुरुष में सार्वनामिक शब्द की अपेक्षा अधिक आदर सूचित करने लिए किसी संज्ञा के बदले ये प्रयुक्त होते हैं-👇 (a) पुरुषों के लिए : महाशय, महोदय, श्रीमान्, महानुभाव, हुजूर, हुजुरेवाला, साहब, जनाब इत्यादि। (b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, महाशया, महोदया, देवी, बीबीजी मुसम्मात सुश्री आदि। (vii) आदरार्थ अन्य पुरुष में 'आप' के बदले ये शब्द आते हैं- (a) पुरुषों के लिए : श्रीमान्, मान्यवर, हुजूर आदि। (b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, देवी आदि। संबंध और संबंधी में मेल (1) संबंध के चिह्न में वही लिंग-वचन होते हैं, जो संबंधी के। जैसे- रामू का घर श्यामू की बकरी (2) यदि संबंधी में कई संज्ञाएँ बिना समास के आए तो संबंध का चिह्न उस संज्ञा के अनुसार होगा, जिसके पहले वह रहेगा। जैसे- मेरी माता और पिता जीवित हैं। (बिना समास के) मेरे माता-पिता जीवित है। (समास होने पर) क्रम-संबंधी कुछ अन्य बातें (1) प्रश्नवाचक शब्द को उसी के पहले रखना चाहिए, जिसके विषय में मुख्यतः प्रश्न किया जाता है। जैसे- वह कौन व्यक्ति है ? वह क्या बनाता है ? (2) यदि पूरा वाक्य ही प्रश्नवाचक हो तो ऐसे शब्द (प्रश्नसूचक) वाक्यारंभ में रखना चाहिए। जैसे- क्या आपको यही बनना था ? (3) यदि 'न' का प्रयोग आदर के लिए आए तो प्रश्नवाचक का चिह्न नहीं आएगा और 'न' का प्रयोग वाक्य में अन्त में होगा। जैसे- आप बैठिए न। आप मेरे यहाँ पधारिए न। (4) यदि 'न' क्या का अर्थ व्यक्त करे तो अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए और 'न' वाक्यान्त में होगा। जैसे-👇 वह आज-कल स्वस्थ है न ? आप वहाँ जाते हैं न ? (5) पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के पहले आती है। जैसे-👇 वह खाकर विद्यालय जाता है। शिक्षक पढ़ाकर घर जाते हैं। (6) विस्मयादिबोधक शब्द प्रायः वाक्यारम्भ में आता है। जैसे- वाह ! आपने भी खूब कहा है। ओह ! यह दर्द सहा नहीं जा रहा है। (ग) वाक्यगत प्रयोग- वाक्य का सारा सौन्दर्य पदों अथवा शब्दों के समुचित प्रयोग पर आश्रित है। पदों के स्वरूप और औचित्य पर ध्यान रखे बिना शिष्ट और सुन्दर वाक्यों की रचना नहीं होती। प्रयोग-सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश निम्नलिखित हैं-👇 कुछ आवश्यक निर्देश:– (i) एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो। (ii) शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो। (iii) वाक्यरचना में अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये। (iv) वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो। (v) वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल में, एक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए। (vi) वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए। (vii) वाक्य में व्यर्थ शब्द न आने पायें। (viii) वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो। (ix) वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं 'यह' और कहीं 'वह', कहीं 'आप' और कहीं 'तुम', कहीं 'इसे' और कहीं 'इन्हें', कहीं 'उसे' और कहीं 'उन्हें', कहीं 'उसका' और कहीं 'उनका', कहीं 'इनका' और कहीं 'इसका' प्रयोग नहीं होना चाहिए। (x) वाक्य में पुनरुक्तिदोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए। (xi) वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए। __________________________________________ (xii) परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। परन्तु फिर भी इसका प्रयोग कर सकते है । यह वाक्य अशुद्ध है- उसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 'उसे' के स्थान पर 'मुझे' होना चाहिए। अन्य ध्यातव्य बातें (1) 'प्रत्येक', 'किसी', 'कोई' का प्रयोग- ये सदा एकवचन में प्रयुक्त होते है, बहुवचन में प्रयोग अशुद्ध है। जैसे- प्रत्येक- प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है। प्रत्येक पुरुष से मेरा निवेदन है। कोई- मैंने अब तक कोई काम नहीं किया। कोई ऐसा भी कह सकता है। किसी- किसी व्यक्ति का वश नहीं चलता। किसी-किसी का ऐसा कहना है। किसी ने कहा था। टिप्पणी- 'कोई' और 'किसी' के साथ 'भी' अव्यय का प्रयोग अशुद्ध है। जैसे- कोई भी होगा, तब काम चल जायेगा। यहाँ 'भी' अनावश्यक है। कोई संस्कृत 'कोऽपि' का तद्भव है। ' कोई' और 'किसी' में 'भी' का भाव वर्तमान है। (2) 'द्वारा' का प्रयोग- किसी व्यक्ति के माध्यम (through) से जब कोई काम होता है, तब संज्ञा के बाद 'द्वारा' का प्रयोग होता है; वस्तु (संज्ञा) के बाद 'से' लगता है। जैसे- सुरेश द्वारा यह कार्य सम्पत्र हुआ। युद्ध से देश पर संकट छाता है। (3) 'सब' और 'लोग' का प्रयोग- सामान्यतः दोनों बहुवचन हैं। पर कभी-कभी 'सब' का समुच्चय-रूप में एकवचन में भी प्रयोग होता है। जैसे- तुम्हारा सब काम गलत होता है। यदि काम की अधिकता का बोध हो तो 'सब' का प्रयोग बहुवचन में होगा। जैसे- सब यही कहते हैं। हिंदी में 'सब' समुच्चय और संख्या- दोनों का बोध कराता है। 👇 'लोग' सदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है। जैसे- लोग अन्धे नहीं हैं। लोग ठीक ही कहते हैं। कभी-कभी 'सब लोग' का प्रयोग बहुवचन में होता है। 'लोग' कहने से कुछ व्यक्तियों का और 'सब लोग' कहने से अनगिनत और अधिक व्यक्तियों का बोध होता है। जैसे- सब लोगों का ऐसा विचार है। सब लोग कहते है कि गाँधीजी महापुरुष थे। (4) व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल- यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता है, तो उसके लिंग और वचन के अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे। जैसे- काशी सदा भारतीय संस्कृति का केन्द्र रही है। यहाँ कर्ता (काशी) स्त्रीलिंग है। पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था। यहाँ कर्ता (कलकत्ता) पुल्लिंग है। उसका ज्ञान ही उसकी पूँजी था। यहाँ कर्ता पुल्लिंग है। (5) समयसूचक समुच्चय का प्रयोग- ''तीन बजे हैं। आठ बजे हैं।'' इन वाक्यों में तीन और आठ बजने का बोध समुच्चय में हुआ है। (6) 'पर' और 'ऊपर' का प्रयोग- 'ऊपर' और 'पर' व्यक्ति और वस्तु दोनों के साथ प्रयुक्त होते हैं। किन्तु 'पर' सामान्य ऊँचाई का और 'ऊपर' विशेष ऊँचाई का बोधक है। जैसे- पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है। इस विभाग में मैं सबसे ऊपर हूँ। हिंदी में 'ऊपर' की अपेक्षा 'पर' का व्यवहार अधिक होता है। जैसे- मुझ पर कृपा करो। छत पर लोग बैठे हैं। गोपाल पर अभियोग है। मुझ पर तुम्हारे एहसान हैं। (7) 'बाद' और 'पीछे' का प्रयोग- यदि काल का अन्तर बताना हो, तो 'बाद' का और यदि स्थान का अन्तर सूचित करना हो, तो 'पीछे' का प्रयोग होता है। जैसे- उसके बाद वह आया- काल का अन्तर। मेरे बाद इसका नम्बर आया- काल का अन्तर। गाड़ी पीछे रह गयी- स्थान का अन्तर। मैं उससे बहुत पीछे हूँ- स्थान का अन्तर। (8) (क) नए, नये, नई, नयी का शुद्ध प्रयोग- जिस शब्द का अन्तिम वर्ण 'या' है उसका बहुवचन 'ये' होगा। 'नया' मूल शब्द है, इसका बहुवचन 'नये' और स्त्रीलिंग 'नयी' होगा। (ख) गए, गई, गये, गयी का शुद्ध प्रयोग- मूल शब्द 'गया' है। उपरिलिखित नियम के अनुसार 'गया' का बहुवचन 'गये' और स्त्रीलिंग 'गयी' होगा। (ग) हुये, हुए, हुयी, हुई का शुद्ध प्रयोग- मूल शब्द 'हुआ' है, एकवचन में। इसका बहुवचन होगा 'हुए'; ' हुये' नहीं 'हुए' का स्त्रीलिंग 'हुई' होगा; 'हुयी' नहीं। (घ) किए, किये, का शुद्ध प्रयोग- 'किया' मूल शब्द है; इसका बहुवचन 'किये' होगा। (ड़) लिए, लिये, का शुद्ध प्रयोग- दोनों शुद्ध रूप हैं। किन्तु जहाँ अव्यय व्यवहृत होगा वहाँ 'लिए' आयेगा; जैसे- मेरे लिए उसने जान दी। क्रिया के अर्थ में 'लिये' का प्रयोग होगा; क्योंकि इसका मूल शब्द 'लिया' है। (च) चाहिये, चाहिए का शुद्ध प्रयोग- 'चाहिए' अव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। इसलिए 'चाहिए' का प्रयोग शुद्ध है; 'चाहिये' का नहीं। 'इसलिए' के साथ भी ऐसी ही बात है। _________________________________________                          

Yadav Yogesh kumar -Rohi- की अन्य किताबें

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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश

10 फरवरी 2018
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अहीरों के इतिहास को मिटाने की साज़िश ____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात्  उन पापकर्म करनेवाले तथा लोभ से पतित चित्त वाले ! अशुभ -दर्शी अहीरों ने एकत्रित होकर वृष्णि वंशी यादवों को लूटने की सलाह की ।४७। बौद्ध

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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण

10 फरवरी 2018
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सत्य का अवलोकन -- आभीर ,गोप , यादव कृष्ण की सनातन उपाधि परक विशेषण । कृष्ण का वास्तविक वंश ---____________________________________कृष्ण वास्तविक रूप में आभीर (गोप) ही थे ।क्योंकि महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप ही कहा गया है ।और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर ) परिवार में हुआ यादव

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कृष्ण का यथार्थ जीवन-दर्शन

10 फरवरी 2018
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श्री कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं । जिनका सम्बन्ध असीरियन तथा द्रविड सभ्यता से भी है । द्रविड (तमिल) रूप अय्यर अहीर से विकसित रूप है।_________________________________________कृष्ण का स्पष्ट प्रमाण हमें छान्दोग्य उपनिषद के एक श्लोक में मिलता है। छान्दोग्य उपनिषद  :--(3.17.6 ) कल्पभेदादिप्रायेणैव “

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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं अपितु शूद्र होते हैं ; ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के अनुसार और क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं ।

13 फरवरी 2018
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यदुवंशी क्षत्रिय नहीं शूद्र हैं ; क्षत्रिय तो ब्राह्मणों की अवैध सन्तानें हैं_________________________________________जब यदु को ही वेदों में दास अथवा शूद्र कहा है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा में यदु और तुर्वसु को स्पष्टत: दास के रूप में सम्बोधित किया गया है।  वह भी गोपों को र

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--

13 फरवरी 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________(यादव योगेश कुमार'रोहि)'शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ....-यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषणनवीन गवेषणाओं पर आधारित  🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🌃🌃🗼🗼🗼🗼🗼🗼🌃🗼🌅🌅🎠🎠🎠🎠      शूद्र कौन थे ? और इनक

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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।

13 फरवरी 2018
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प्राय:  कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने वाले महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह प्रक्षिप्त (नकली) श्लोक उद्धृत करते हैं ।____________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थ

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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________

16 फरवरी 2018
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आत्मा के साथ कर्म और प्रारब्ध करते हैं जीवन की व्याख्या--__________________________________________सृष्टि -सञ्चालन का सिद्धान्त बडा़ अद्भुत है ।जिसे मानवीय बुद्धि अहंत्ता पूर्ण विधि से कदापि नहीं समझ सकती है ।विश्वात्मा ही सम्पूर्ण चराचर जगत् की प्रेरक सत्ता है । और आत्मा प्राणी जीवन की , इसी सन्दर्

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अफगानिस्तान में जादौन पठानों का खिताब तक्वुर (ठक्कुर) और भारत में जादौन ठाकुर ..

13 अप्रैल 2018
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---जो लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे । जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यद्यपि पाश्चात्य इतिहास विदों के अनुसार यहुदह् ही यदु:  शब्द का रूप है ।एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में भी मिलता है । जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ?

3 मई 2018
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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढ़कर कृपया प्रतिक्रिया दें आपका बन्धु यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० ______________________________________________गोपों ने प्रभा

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गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? एक विचार विश्लेषण ---

6 मई 2018
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है ।---मैं भी असली घोषी अहीर हूँ ।मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूतोंलोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है इन लोगों हम्हें समाज में कभी भी

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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।

8 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य .....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है।भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे ।जैसे यूरोप में पाँचवीं

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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।

10 मई 2018
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आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।यादवों के इतिहास को बिगाड़ने के षड्यन्त्र तो खूब किया गया परन्तु  फिर भी सफल न हो पाए षड्यन्त्रकारी ! सत्य विकल्प रहित निर्भीक एक रूप होता है ।जबकि असत्य बहुरूप धारण करने वाला बहुरूपिया ।आभीर (अहीर) तथा गोप दौनों विशेषण केवल यादवों के हैं ।जाट और

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सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:-- यादव योगेश कुमार 'रोहि'

12 मई 2018
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स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ।. ....यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी ; संस्कृत साहित्य में देव संस्कृति के अनुयायी ब्राह्मणों ने भरत शब्द  का अर्थ जंगली या असभ्य किया है । और भारत देश के नाम करण का कारण भी यही भरत जन जाति थी। भारत में आगत देव स

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भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं । जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।

30 मई 2018
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टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में हुआ था ।भारतीय भाषाओं में प्रचलित शब्द टैंगॉर, ठाकरे तथा ठाकुर इसी तुर्की ईरानी मूल के टेक्फुर शब्द का रूपान्तरण हैं ।जिसका प्रयोग तुर्की सल्तनत में" स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय। असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग द्वित्तीय।

4 जुलाई 2018
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इतिहास के बिखरे हुए पन्ने " कुछ कथा- वाचक ---जो कृष्ण चरित्र के विवरण के लिए भागवतपुराण को आधार मानते हैं तो भागवतपुराण भी स्वयं ही परस्पर विरोधाभासी तथ्यों को समायोजित किए हुए है ।👇रोहिण्यास्तनय: प्रोक्तो राम: संकर्षस्त्वया ।देवक्या गर्भसम्बन्ध: कुतो देहान्त विना ।।८(भागवतपुराण दशम् स्कन्ध अध

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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण

12 जुलाई 2018
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असली यदुवंशी कौन ? अहीर अथवा जादौन ! एक विश्लेषण --भाग प्रथम __________________________________________भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ! जो भार

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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -

24 अगस्त 2018
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शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐैतिहासिक सन्दर्भ -यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण एवं नवीन गवेषणाओं पर आधारित शोध है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआइन्हीं तथ्यों की एक विस्तृत विवेचना :- -------------

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ऋग्वेद का पुरुष-सूक्त है ! पाणिनीय कालीन पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी पुरोहितों द्वारा रचित -- देखें प्रमाण- युक्त विश्लेषण " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 सितम्बर 2018
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वर्ण-व्यवस्था की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले ऋग्वेद के पुरुष सूक्त की वास्तविकताओं पर कुछ प्रकाशन:--- वैदिक भाषा (छान्दस्) और लौकिक भाषा (संस्कृत) को तुलनानात्मक रूप में सन्दर्भित करते हुए --__________________________________________ऋग्वेद को आप्तग्रन्थ एवं अपौरुषेय भारतीय रूढि वादी ब्राह्मण समा

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गणेश , विष्णु और श्री इन पौराणिक पात्रों का तादात्म्य रोमनों के देवता जेनस सुमेरियन पिस्क-नु तथा रोमनों सुमेरियन देवी ईष्टर

2 अक्टूबर 2018
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यजुर्वेद में गणेश का वर्णन ऋग्वेद के सादृश्य परगणपति रूप में  प्राप्त होता है । देखें👇“ओ३म् गणानांत्वां गणपतिगूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूँ हवामहे !निधीनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्।।”उपर्युक्त ऋचा यजुर्वेद (23/19) में  है।यहाँ देव गणेश वर्णित हैं।यद्यप

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क्या कृष्ण अहीर थे ?

9 अक्टूबर 2018
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-क्या कृष्ण अहीर थे ?विचार-विश्लेषण---  यादव योगेश कुमार "रोहि" ग्राम- आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद- अलीगढ़---सम्पर्क सूत्र --8077160219...../_________________________________________संस्कृत भाषा में आभीरः, पुल्लिंग विशेषण शब्द है ---जैसे कि वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में उद्धृत किसानों है वाचस्पत्

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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ।

18 अक्टूबर 2018
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शूद्र और आर्यों का एक यथार्थ ऐतिहासिक सन्दर्भ। यादव योगेश कुमार 'रोहि' का एक मौलिक विश्लेषण नवीन गवेषणाओं पर आधारित है ।शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ।आर्य विशेषण किस जन-जाति का प्रवृत्ति-मूलक विशेषण था ? -------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही

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भारतीय पुराणों में महापुराणों मे परिगणित भविष्य पुराण आठारहवीं सदी की रचना है । जिसमे आदम और हव्वा का वर्णन है

13 नवम्बर 2018
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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इतिहास लेखक डॉ मोहन लाल गुप्ता के अनुसार करौली के यदुवंशी अपने नाम के बाद 'सिंह' विशेषण न लगाकर 'पाल' विशेषण लगाते थे ; क्यों कि ये स्वयं को गोपाल, गोप तथा आभीरया या गौश्चर मानते थे और बंगाल का पाल वंश भी इन्हीं से सम्बद्ध है ।करौली शब्द स्वयं कुकुरावलि का तद्भव है :- कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली

25 नवम्बर 2018
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी ।ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश ज

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करौली का इतिहास और वहाँ के शासकों का वंश व व्यवसाय --- अद्यतन संस्करण--

25 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे  । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में ।जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित

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भरतपुर के जाट जिन्हें अपना पूर्वज मानते हैं । धर्म्मपाल के बाद पैंतालीसवाँ पाल शासक अर्जुन पाल हुआ ।ये सभी पाल शासक पाल उपाधि का ही प्रयोग करते थे । क्यों कि इनका विश्वास था कि हमारे पूर्व पुरुष यदु ने गोपालन की वृत्ति को ही स्वीकार किया था । अतः पाल उपाधि गौश्चर गोप तथा अभीरों की आज तक है ।

26 नवम्बर 2018
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प्राचीन काल में यादवों की एकशाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशजमाने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित र

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यादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास--- धर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ---- प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

26 नवम्बर 2018
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________________________१-धर्म्मपाल२-सिंहपाल३-जगपाल ४- नरपाल५-संग्रामपाल६-कुन्तपाल७-भौमपाल८-सोचपाल९-पोचपाल१०-ब्रह्मपाल११-जैतपाल । करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---यह बारहवाँ पाल शासक था ---1030 ई०सन् विजयपाल १२- विजयपाल (1030)१३- त्रिभुवनपाल(1000)१४-धर्मपाल (1090)१५- कुँवरपाल (1120)१६-

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संस्कृत व हिन्दी वर्णमाला का ध्वनि वैज्ञानिक विवेचन नवीनत्तम गवेषणाओं पर आधारित ----- यादव योगेश कुमार "रोहि"

3 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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हिन्दी वर्णमाला का वैज्ञानिक विवेचन (संशेधित संस्करण)

22 दिसम्बर 2018
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माहेश्वर सूत्र  को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से वैदिक भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों को  ध्वनि-विभाग के रूप अर्थात् (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद (विभक्ति युक्त वाक्य

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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर " _________________________________________

29 दिसम्बर 2018
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कृष्ण और राधा एक परिचय                           वैदिक धरातल पर "_________________________________________प्रस्तुति-करण :-  यादव योगेश कुमार 'रोहि' प्रेम सृष्टि का  एक वह अनुभव है ।--जो उसके निर्माण की आधार -शिला है ।प्रेम अनेक उन  भावनाओं का समुच्चय है । जो पारस्परिक स्नेह से प्रस्फुटित होकर लेकर भ

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यादव इतिहास

15 फरवरी 2019
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा राजपूत समुदाय के अल्पज्ञानी लोग आभीर और यादवों को पृथक दिखाने के लिए महाभारत के मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं 👇________________________________________ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।अर्थात् वे

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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अलंकार विवेचना - भाग प्रथम --

23 फरवरी 2019
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अलंकार (Figure of speech) का स्वरूप और भेद ---__________________________________________भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुन्दर बनाने वाले कुशलतापूर्ण मनोरञ्जक ढंग को अलंकार कहते है।जैसे "कोई स्त्री आभूषण पहन कर सौभाग्यवती व समाज में शोभनीय प्रतीत होती है ।और यदि आभूषण न पहने हों तो विधवा के समान अश

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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । यादव योगेश कुमार "रोहि"

27 फरवरी 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों। वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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💥 भागवत धर्म के संस्थापक आभीर जन-जाति के लोग 💥

5 मार्च 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आरा

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मनुःस्मृति और श्रीमद्भगवत् गीता का पारम्परिक विरोध :-

7 मार्च 2019
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सामवेद की महत्ता को लेकर श्रीमद्भगवद् गीता और मनुःस्मृति का पारस्परिक विरोध सिद्ध करता है ;या तो तो मनुःस्मृति ही मनु की रचना नहीं है ।या फिर  श्रीमद्भगवद् गीता कृ़ष्ण का उपदेश नहीं ।परन्तु इसका बात के -परोक्ष संकेत प्राप्त होते हैं कि कृष्ण देव संस्कृति के विद्रोही पुरुष थे । जिन्हें ऋग्वेद के अष्ट

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ।

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की साधना है ! परन्तु स्वास्थ्य क्या है ? जाने !

15 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है । अब योग क्या है ? और स्वास्थ्य क्या है ? इनकी व्याख्यापरक परिभाषा पर भी विचार आवश्यक है 👇

16 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: (Soul) श्वस्आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa-; swījēnMeaning: own, relation1-Gothic: swēs (a) `own'; swēs n. (a) `property'2-Old Norse: svās-s `lieb, traut'3-Old Danish: Run. dat. sg. suasum4-Old English: swǟs `lieb, eigen'5-Old Frisian: swēs `verwandt'; sīa

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सत्य जो किया ने कहा नहीं !

22 मार्च 2019
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राक्षसों को महाभारत में धर्मज्ञ कहा है । ______________________________________राक्षस शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा में होता है ।धर्म की रक्षा करने वाला " धर्मस्य रक्षयति इति "राक्षस रक्षस् एव स्वार्थे अण् । इति राक्षस “क्वचित् स्वार्थिका अपि प्रत्ययाः प्रकृतितो लिङ्गवचनान्यतिवर्त्तन्ते ।_______________

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धर्म पहले क्या था ? और अब क्या है ?

23 मार्च 2019
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आप जानते हो जब कोई वस्त्र नया होता है ।वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है ।अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं ।तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है ।आधुनिक धर्म -पद

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पश्चिमी एशिया की संस्कृतियों में ईश्वर वाची शब्द–

26 मार्च 2019
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जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। ________________________________________---- विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि' जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्

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"योग आत्म-साक्षात्कार की कुञ्जिका " यादव योगेश कुमार "रोहि"

31 मार्च 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है ।परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् का ही रूप है ।आद्य-जर्मनिक भाषाओं:- swḗsa( स्वेसा )तथाswījēn( स्वजेन) शब्द आत्म बोधक हैं । अर्थात् own, relation प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक में: 1-swēs (a) 2-`own'; swēs n. (b) `property' 2-

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"चौधरी, ठाकुर तथा चौहान जैसी उपाधियों के श्रोत " यादव योगेश कुमार "रोहि"

2 अप्रैल 2019
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चौधरी शब्द पुल्लिंग विशेषण-पद के रूप में हिन्दी में विद्यमान है यह शब्द जिसका सम्बन्ध संस्कृत भाषा के चक्रधारिन् ( चक्रधारी)  शब्द से तद्भूत है-👇जो मध्यकालीन कौरवी तथा बाँगड़ू बोलीयों में चौधरी शब्द के रूप में विकसित हुआ ।संस्कृत कोश -ग्रन्थों में चक्रधारि कृष्ण का विशेषण रहा है ।कालान्तरण में चक्र

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भविष्य पुराण अठारहवीं सदी की रचना है । परन्तु अन्ध भक्त रहते है यह महर्षि वेद - व्यास- की रचना है !

7 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।_______________________________________प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्

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ठाकुर उपाधि न तो वंश गत है । यह तुर्को और मुगलों की उतरन के रूप में एक । जमीदारीय खिताब था ।. प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

8 अप्रैल 2019
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_____________________________________टेकफुर शब्द का जन्म खिताबुक और प्रारम्भिक तुर्क काल में किया गया था ।जिसका प्रयोग " स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र अल्पसंख्यक व ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बीजान्टिन गवर्नरों के सन्दर्भ में किया गया था ।उत्पत्ति और अर्थ की दृष्टि सेइस शीर्षक (उपा

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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है । गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।

9 अप्रैल 2019
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गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् प्रत्यय । अर्थात्‌ --जो गाय की सेवा करता है ।गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” “ शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ । अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत

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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है । विचार-विश्लषेण--- यादव योगेश कुमार "रोहि"

12 अप्रैल 2019
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अहीरों का ऐैतिहासिक परिचय "पश्चिमीय एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के सूत्रधारकों के रूप में अहीरों का वर्णन अबीर रूप में है ।और अहीर -रेजीमेण्ट इस मार्शल आर्ट प्रायोजकों के लिए एक प्रायौगिक संस्था बनकर देश की सुरक्षात्मक गतिविधियों को सुदृढ़ता प्रदान करेगी।एेसा मेरा विश्वास है ।इस लि

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घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।

12 अप्रैल 2019
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यद्यपि हम घोष हैं परन्तु घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण या पर्याय रहा है ।और यह किसी वंश का सूचक कभी नहीं था ।क्यों कि हैहय वंशी यादव राजा दमघोष से पहले भी घोष यादवों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण रहा।इस विषय में वेद प्रमाण हैं; उसमे भी ऋग्वेद और उसमे भी इसके चतुर्थ और षष्ठम् मण्डल मध्यप्रदेश

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मध्यप्रदेश के घोष समाज को ठाकुर उपाधि की अपेक्षा यादव लिखना चाहिए ! क्यों कि ठाकुर उपाधि तुर्को और मुगलों की सामन्तीय उपाधि!

13 अप्रैल 2019
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''''''''''''""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""यद्यपि हम घोष हैं परन्तु लोग हम्हें अहीर अथवा गोप कहकर भी पुकारा जाता हैं । क्यों कि ये सभी विशेषण शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं घोष शब्द वैदिक काल से गोपों का विशेषण व पर्याय वाची  है।परन्तु गोष: शब्द के रूप में -और यह किसी वंश की सूचक उपाधि

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वर्ण-व्यवस्था और मनु का ऐैतिहासिक विवेचन एस नवीनत्तम व्याख्या-

19 अप्रैल 2019
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वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया  कभी प्रचलन में थी।परन्तु कालान्तरण में लोग इस अर्थ को भूल गये।भ्रान्ति वश एक नये अर्थ का उदय हो गया।जिस पर

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व्यवस्थित मानव सभ्यता के प्रथम प्रकाशक के रूप में ऋग्वेद के कुछ सूक्त साक्ष्य के रूप में हैं ।

19 अप्रैल 2019
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भारतीयों में प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक तथ्यों का एक मात्र श्रोत ऋग्वेद के 2,3,4,5,6,7, मण्डल है ।आर्य समाज के विद्वान् भले ही वेदों में इतिहास न मानते हों ।तो भीउनका यह मत पूर्व-दुराग्रहों से प्रेरित ही है। यह यथार्थ की असंगत रूप से व्याख्या करने की चेष्टा है परन्तु हमारी मान्यता इससे सर्वथा विपरीत ही ह

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चौहान ,परमार ,प्रतिहार,सोलंकी शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण :–यादव योगेश कुमार "रोहि"

20 अप्रैल 2019
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भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________ प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरु

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पाखण्ड शब्द का इतिहास .... ही निर्धारित करता है । पुराणों और महाभारत रामायण आदि के लेखन का काल निर्धारण ....👇

6 मई 2019
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पाखण्ड शब्द का इतिहास ....ही पोल खोलता है । ब्राह्मणों के पाखण्डी की..________________________________________जैन परम्पराओं में पाषण्ड शब्द को पासंडिय अथवा पासंडी रूप में उद्धृत किया गया है । जैसा कि निम्न प्राकृत भाषा की पक्तियाँ लिपिबद्ध हैं 👇क्रमांक ३ "समयसार" की गाथा क्रमांक ४०८, ४१० एवं ४१३ म

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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ? यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

6 मई 2019
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अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से तालुकात रखता  हूँ । मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत समुदाय के लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ? वह मुझे सब याद है

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समग्र महाभारत का एक समग्र विश्लेषण मूलक अध्ययन"

15 मई 2019
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"एक कथन शाश्वत सत्य है कि --जो  तथ्य या कथ्य अपने आप में पूर्ण होते हैं ; उन्हें क्रम-बद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।परन्तु भारतीय संस्कृति के अभिभावक और आधार भूत वेदों और  उनके व्याख्या कर्ता या विवेचक ग्रन्थों पुराणों, रामायण तथा महाभारत आदि में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न कथाओं का वर्णन  त

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भारत में भागवत धर्म का उदय और विकास -

23 मई 2019
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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है ।यद्यपि प्रारम्भ में यह भागवत धर्म के रूप में ही गुप्त काल में  मान्य था कालान्तरण में ब्राह्मणों ने इसे वैष्णवधर्म बना कर हिन्दू धर्म में विलय कर लिया ।भागवत धर्म में वर्ण-व्यवस्था के लिए कोई स्थानान्तरण नहीं था।'भागवत धर्म' का तात्प

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जादौन चारण बंजारों का इतिहास-

27 मई 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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कर्म की उत्पत्ति और उसका स्वरूप-

2 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।हमने किसी शास्त्र को पढ़ा नहीं परन्तु हमने विचार करना प्रारम्भ किया

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जादौन जन-जाति के आयाम -

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं ।परन्तु उनका तो पौराणिक ग्रन्थों में किसी प्रकार का इतिहास नहीं क्यों कि इनका

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जादौन चारण बंजारों का ऐैतिहासिक विवरण -उद्धृत अंश भारत की बंजारा जाति और जनजाति -3" लेखक S.G.DeoGaonkar शैलजा एस. देवगांवकर पृष्ठ संख्या- (18)चैप्टर द्वितीय...

9 जून 2019
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__________________________________________अभी तक जादौन , राठौर और भाटी आदि राजपूत पुष्य-मित्र सुंग कालीन काल्पनिक स्मृतियों और पुराणों तथा महाभारत आदि के हबाले से अहीरों को शूद्र तथा म्लेच्‍छ और दस्यु के रूप में दिखाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्यों कि पुराणों या स्मृतियों ने जिन वेदों को आप

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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ" एक समीक्षात्मक लेख .../

9 जून 2019
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महाभारत के लेखक गणेश देवता "भाग चतुर्थ"__________________________________________महाभारत बौद्ध कालीन संस्कृतियों का प्रकाशन करने वाला अधिक है ।-जैसे चाण्यक नीति से प्रभावित निम्न श्लोक देखे:-👇सतां साप्तपदं मैत्रं स सखा मे८सि पण्डित:।सांवास्यकं करिष्यामि नास्ति ते भयमद्य वै।56।( महाभारत शान्ति पर्व

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शब्दों की अर्थावनति - राँड़ और रड़ुआ --

9 जून 2019
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रडुओं का  क्या हाल होता है भक्तो                     सुनो- क्वार कनागत कुत्ता रोवे।तिरिया रोवे तीज त्यौहार ।                 आधी रात पै रडुआ रोवे सुनके पायल  की झंकार ।।_____________________________________________भावार्थ:- अश्वनी मास अर्थात क्वार के महीने में जब कनागत आते हैं यानी सूर्य कन्या राशि

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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।

9 जून 2019
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जन्म जन्मान्तरण के अहंकारों का सञ्चित रूप ही तो नास्तिकता है जो जीवन को निराशाओं के अन्धेरों से आच्छादित कर देती है।समझने की आवश्यकता है कि नास्तिकता क्या है ?अपने अस्तित्व को न मानना ही नास्तिकता है ।क्यों कि लोग अहं में जीते है ।परन्तु यदि वे स्वयं में जी कर देखें तो वे परम आस्तिक हैं ।बुद्ध ने भी

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मनस् सिन्धु की विचार लहरें ! जहाँ ज्ञान के बुद्बुद ठहरें !

9 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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कर्म का जन्म और सृष्टि का विस्तार- एक आध्यात्मिक विवेचना

9 जून 2019
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एक सतसंग में निरंकारी मिशन के महापुरुष-जब मंच पर खुल कर विचार करने की हम्हें अनुमति देते हैं ।और प्रश्न करते हैं कि कर्म-- क्या है ? और यह किस प्रकार उत्पन्न होता है ?कई विद्वानों से यह प्रश्न किया जाता है ।मुझे भी अनुमति मिलती है ।मुझे भी आश्चर्य होता है !कि जिस प्रश्न को हम पर कोई उत्तर नहीं है ।फ

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भागवत धर्म के प्रणयिता -

9 जून 2019
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वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में व्याप्त हैं ।केवल हरिवंशपुराण को छोड़ कर सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकरयादवों की गरिमा को

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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गुर्ज्जरः जाट अहीर ! इन जैसा नहीं कोई वीर !!

12 जून 2019
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।महाभारत आदि ग्रन्थों से उद्धृत प्रमाणों द्वाराप्रथम वार अद्भुत प्रमाणित इतिहास ________________________________________________दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है इस इतिहास कार का पूरा ना

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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।

14 जून 2019
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आज गायत्री जयन्ती के पावन पर्व पर श्रृद्धा प्रवण हृदय से हम सब माता गायत्री को नमन और भाव-- पूर्ण स्मरण करते हैं।____________________________________________वेद की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर की कन्या थीं और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी आभीर( गोप) वसुदेव के पुत्र थे ।ऐसा महाभारत के खिल-भाग हरिवंश प

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भागवत धर्म का स्वरूप-भाग प्रथम एवं द्वितीय -प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

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भागवत धर्म वैष्णव धर्म का अत्यन्त प्रख्यात तथा लोकप्रिय स्वरूप है । 'भागवत धर्म' का तात्पर्य उस धर्म से है जिसके उपास्य स्वयं भगवान्‌ श्री कृष्ण हों ; वासुदेव कृष्ण ही 'भगवान्‌' शब्द के वाच्य हैं "कृष्णस्तु भगवान्‌ स्वयम्‌ (भागवत पुराण १/३/२८) अत: भागवत धर्म में कृष्ण ही परमोपास्य तत्व हैं; जिनकी आर

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कृष्ण के मौलिक आध्यात्मिक सिद्धान्त सदैव पुरोहित वाद और वैदिक यज्ञ मूलक कर्म--काण्डों ते विरुद्ध हैं ।

15 जून 2019
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भागवत धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाला एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद् गीता थी ।--जो उपनिषद् रूप है । परन्तु पाँचवी शताब्दी के बाद से अनेक ब्राह्मण वादी रूपों को समायोजित कर चुका है --जो वस्तुत भागवत धर्म के पूर्ण रूपेण विरुद्ध व असंगत हैं ।--जो अब अधिकांशत: प्रक्षिप्त रूप में महाभारत क

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कर्म और धर्म के सिद्धान्त - यादव योगेश कुमार" रोहि"

15 जून 2019
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कर्म का स्वरूप और जीवन का प्रारूप :- विचारक यादव योगेश कुमार 'रोहि' कर्म का अपरिहार्य सिद्धान्त - श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 का श्लोक 5 भागवत धर्म के सार- गर्भित सिद्धान्त--जैसे कर्म सृष्टि और जीवन का मूलाधार है निम्न श्लोक देखें-_________________________________________न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्

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कर्म धर्म और जाति की सुन्दर व्याख्या - यादव योगेश कुमार "रोहि"

15 जून 2019
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गुप्त काल में -जब ब्राह्मण वाद का विखण्डन होने लगा तो परास्त ब्राह्मण वाद ने अपने प्रतिद्वन्द्वी भागवत धर्म को स्वयं में समायोजित कर लिया ।यह भागवत धर्म अहीरों का भक्ति मूलक धर्म था ।और ब्राह्मणों का धर्म था - वर्ण व्यवस्था मूलक व स्वर्ग एवं भोग प्राप्ति हेतु पशु बलि व यज्ञ परक कर्म काण्डों पर आधार

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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर

19 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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अहीर ही यादव होते हैं !

20 जून 2019
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यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते हैं । दाशार्ह देशबाल -दशवार , ,सात्वत ,जो कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली क्रमशः सावत ,सावन्त , कुक्कुर कुर्रा , कुर्रू आदि रूपों परिवर्तित हो गये । ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश जहाँ

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साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

22 जून 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल ,गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार ह

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

23 जून 2019
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर कर सकता है ।यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं ।क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिछाया है ।वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु का साथ साथ

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।

25 जून 2019
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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के र

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श्रीमद्भगवत् गीता का उचित स्थान महाभारत का भीष्म पर्व नहीं अपितु शान्ति पर्व होना चाहिए था ।

30 जून 2019
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कृष्ण का यथार्थ जीवन- दर्शन ,भागवत धर्म का स्वरूप व उत्पत्ति का विश्लेषण यथार्थ के धरातल पर -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'  की गहन मीमांसाओं पर आधारित-भागवत धर्म के जन्मदाता आभीर जन-जाति के लोग थे प्राचीन भारत के इतिहास एवं पुरातत्व विशेषज्ञ सर राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर-जैसे विद्वानों ने ईस्वी सन् 1877 क

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"राम विश्व संस्कृतियों में " एस संक्षिप्त परिचय- " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

30 जून 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है ________________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है:

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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।

1 जुलाई 2019
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आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक है ।और पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों  शब्द प्राप्त हैं ।परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित रूप है ।अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है ।दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -प्रस्तुति-करण :-यादव योगेश कुमार  'रोहि'_

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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत प्राच्य और पाश्चात्य इतिहासकारों के हवाले से...

4 जुलाई 2019
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हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत- शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है।यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने ...शायद आप नहीं जानते हो

6 जुलाई 2019
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यूनानीयों तथा ट्रॉय वासी -जब एगमेम्नन और प्रियम के नैतृत्व में यौद्धिक गतिविधियों में संलग्न थे ।तब उनकी संस्कृतियों में वैदिक परम्पराओं के सादृश्य कुछ संस्कार थे ।जैसे मृतक का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण-सिक्का रखकर किया जाने तथा बारह दिनों तक शोक होना....यह समय ई०पू० बारहवीं सदी है होमर ई०पू० अ

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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित ।

18 जुलाई 2019
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शूद्र और आर्य शब्दों की यथार्थ व्युत्पत्ति ऐैतिहासिक सन्दर्भों पर आधारित --------------------------------------------------------- भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत् शोध "यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित तथ्य विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः

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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप के अन्तर्गत वर्णमाला की व्युत्पत्ति मूलक विवेचना। रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)

4 अगस्त 2019
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हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग पञ्चम्)__________________________________________________माहेश्वर सूत्र को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है।पाणिनि ने वैदिक भाषा (छान्दस्) के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत अर्थात् संस्कारित एवं नियमित करने के उद्देश्य से माहेश्वर सूत्रों का न

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राम और सीता पश्चिमीय संस्कृतियों में....

15 अगस्त 2019
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राम और सीता के भाई-बहिन माना जाने के मूल में अर्थों का प्रासंगिक न होना ही है __________________________________________ प्राचीन संस्कृत में बन्धु शब्द का अर्थ भाई और पति दौनों के लिए प्रयोग होता था। कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के 14 वे सर्ग के 33 वें श्लोक में श्री राम को सीता का बन्धु कहा है: ‘वैदे

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राम और सीता ऋग्वेद में तो हैं ही ; ये प्राचीनत्तम पात्र सुमेरियन तथा मिश्र की संस्कृतियों में भी

17 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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राम सीता लक्ष्मण और भरत सुमेरियन और मिश्र की संस्कृतियों में...

18 अगस्त 2019
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आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर जोकि (सत्रहवीं सदी ईस्वी) के संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार और भाष्य कार भी हैं ।जो सम्पूर्ण महाभारत की टीका के लिए विशेष प्रख्यात हैं।आचार्य नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के दशम मण्डल के अन्तर्गत तृतीय सूक्त की तृतीय ऋचा में राम और सीता के होने का वर्णन किया है।☣⬇देखें--

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मित्रों ब्राह्मणों का कृषि और गौपालन से क्या वास्ता ? मन्दिर तक है इन पुरोहितों का रास्ता !

20 अगस्त 2019
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ब्राह्मण समाज केवल कर्म-काण्ड मूलक पृथाओं का सदीयों से संवाहक रहे है ।और धार्मिक क्रियाऐं करने वाला यौद्धिक गतिविधियों से परे ही कहता है ।वैसे ब्राह्मण शब्द सभी महान संस्कृतियों में विद्यमान है ।जिसका अर्थ होता है केवल और केवल " मन्त्र -पाठ करने वाला पुजारी "पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित यूरोपीय

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

25 अगस्त 2019
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अंग्रेजी व्याकरण में इट और देयर का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-Use of It and There and question Words___________________________________________Use of It and There When a sentence has no subject, then 'It and There' are used as an Introductory Word. e.g. (exempli gratia)( for exam

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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !

25 अगस्त 2019
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कृष्ण जीवन को कलंकित करने वाले षड्यन्त्र कारक पक्ष- जिनका सृजन कृष्ण को चरित्र हीन बनाकर देवसंस्कृति के अनुयायी पुरोहितों ने किया !परिचय :-- यादव योगेश कुमार'रोहि'_______________________________________________ कामी वासनामयी मलिन हृदय ब्राह्मणी संस्कृति ने हि

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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-

1 सितम्बर 2019
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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में वासुदेव कृष्ण का वर्णन:-_________________________________________ऋग्वेद के प्रथम मण्डल अध्याय दश सूक्त चौबन 1/54/ 6-7-8-9- वी ऋचाओं तक यदु और तुर्वशु का वर्णन है ।और इसी सूक्त में राधा तथा वासुदेव कृष्ण आदि का वर्णन है ।परन्तु यहाँ भी परम्परागत रूप से  देव संस्कृतियों के पु

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ऋग्वेद में कृष्ण का वर्णन है परन्तु आर्य्य समाजी मानसिकता के लोग वैदिक ऋचाओं की यौगिग शब्द मूलक अर्थ व्यञ्जन करते हैं और ये भी मानवीय वेद को अपौरुषेय बनाते हैं ।

5 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है । यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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अहीर विश्व संस्कृतियों में प्रतिभासित रूप --

9 सितम्बर 2019
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आज के समय से लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने चरावाहों के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उन्हें अभीरु अथवा अभीर कहा । क्योंकि यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "एवीर" / अबीरमें अभीर की ध्वनि सुनायी दी ।अहीर हिब्रू-भाषाओं में बीर/ बर से विकसित है ।जो अबी

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कृष्ण के चरित्र को पतित करने का एक षड्यन्त्र ...

10 सितम्बर 2019
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महानुभाव ! षड्यन्त्र प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक क्रिया है ।जिसे जन साधारण  निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहता है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दिया गया ।श्रृँगार  वैराग्य का सनातन प्रतिद्वन्द्वी भाव है. इसी

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तुमको हम इतना समझा दें कि धर्म वास्तव में क्या है ? धर्म साधना है मन की , इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|

15 सितम्बर 2019
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जिस घर में रोहि संस्कार नहीं, और शिक्षा का प्रसार नहीं ||*********************उन्मुक्त Sex का ताण्डव है , वहाँ चरित्र सलामत कब है||***********************इस काम की उच्छ्रंखलता से दुनियाँ में जो कुकर्म है ,पाप पतन कारी कितना .? आदमी अब बेशर्म है ||*********************इन सभी विकृतियों की

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कुछ प्रथाऐं जो अब समाज के लिए अनावश्यक और अर्थ हीन हैं !

16 सितम्बर 2019
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एक परम्परागत पण्डित जी कहते हैं ; कि ये त्रयोदशी- भोग राज परिवारों की प्रथा है।तो हमारा उनसे कहना कि फिर जनता इसका अनुकरण क्यों करती है ?क्या राजा के समान सुविधाऐं जनता के पास हैं ?नहीं !और आज राज तन्त्र है क्या ?नहीं !तो इस मूर्खता पूर्ण पृथा को राजपरिवारों के साथ समाप्त कर दो !गरीब जनता क्यों

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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।।

19 सितम्बर 2019
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१-साहित्य गूँगे इतिहास का वक्ता है । परन्तु इसे नादान कोई नहीं समझता है ।। साहित्य किसी समय विशेष का प्रतिबिम्ब तथा तत्कालिक परिस्थितियों का खाका है । ये पूर्ण चन्द्र की धवल चाँदनी है जैसे अतीत कोई राका है ।। इतिहास है भूत का एक दर्पण।गुजरा हुआ कल गुजरा हुआ क्षण -क्षण ।।२- कोई नहीं किसी का मददगार हो

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आभीरों का भागवत धर्म ( आत्मा की खोज और जीवन का रहस्य )

27 सितम्बर 2019
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आत्मा को वैदिक सन्दर्भों में स्वर् अथवा स्व: कह कर वर्णित किया है । परवर्ती तद्भव रूप में श्वस् धातु भी स्वर् धातु का ही रूप है । आद्य-जर्मनिक भाषाओं में यह रूप :- swḗsa( स्वेसा ) तथा swījēn( स्विजेन) शब्द के रूप में आत्मा का बोधक हैं । अर्थात् own, relation ।प्राचीनत्तम जर्मन- गोथिक भाषा में: 1-sw

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योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है । तृतीय चरण की प्रस्तुति ... _______________________________________________

1 अक्टूबर 2019
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_______________________________________________योग स्वास्थ्य की सम्यक् साधना है ; इसीलिए योग और स्वास्थ्य इन दौनों का पारस्परिक सातत्य समन्वय अथवा एकता अपेक्षित  है ।तृतीय चरण की प्रस्तुति ..._______________________________________________योग’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की  ‘युजँ समाधौ’ संयमने

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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -

4 अक्टूबर 2019
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भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -__________________________________________संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।  गुरू ! की

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चारण और भाटों का साहित्यिक परिचय...

5 अक्टूबर 2019
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पिंगल और डिंगल -राजस्थान की पूर्वीय और पश्चिमीय बोलीयों का सीमांकन करती हैं ।'डिंगल' पश्चिमीय राजपूताने की वह राजस्थानी भाषा गत शैली है; जिसमें चारण लोग आज तक काव्य और वंशावली आदि लिखते चले आ रहे  हैं । विशेषत: चारण लोग डिंगल भाषा में काव्य रचनाऐं करते रहे हैं।'यह' भाषाशैली कृत्रिम होते हुए भी कलात

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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)

2 नवम्बर 2019
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यादवों का इतिहास "द्वितीय भाग" ( नवीन संस्करण)____________________________________________वैदिक साहित्य में असुरों के विशाल तथा दृढ़ दुर्गों एव प्रासादों ( भवनों)के वर्णन मिलते हैं ।संभवतः लवण-पिता मधु या उनके किसी पूर्वज ने यमुना के तटवर्ती प्रदेश पर अधिकार कर लिया हो ; यह अधिकार लवण के समय से समाप

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"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " संशोधित संस्करण (भाग एक)

6 नवम्बर 2019
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।उसने  अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना वही  भाषा है ।मनुष्य कभी शब्दों से तो कभी संकेतों द्वारा  संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य सदीयों से करता रहा है।अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता रहा है ।किन्तु भाषा उसे

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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है !

6 नवम्बर 2019
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ये हुश़्न भी "कोई " ख़ूबसूरत ब़ला है ! _______________________________ बड़े बड़े आलिमों को , इसने छला है !!इसके आगे ज़ोर किसी चलता नहीं भाई! ना इससे पहले किसी का चला है !!ये आँधी है , तूफान है ये हर ब़ला है!परछाँयियों का खेल ये सदीयों का सिलस़िला है !आश़िकों को जलाने के लिए इसकी

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मेरी अनुभूतियों के पल और बीते हुए कल...

31 दिसम्बर 2019
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हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है !सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है ।मुझे हर तरफ मोड़ा उन हालातों ने मेरे रुहानी जज्बातों ने या विरोधीयों की बातों ने ।मेरा व्यक्तित्व बस परिस्थियों की सौगात है ।ये मेरा प्रारब्ध है किसी गैर की कहाँ औख़ात है ये परिस्थियाँ हैं मेरे ग़म से नातों क

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अनुभतियों के पल मेरे बीते हुए पल ...

2 जनवरी 2020
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गलतीयाँ सामाजिक विसंगतियाँ ।और भूल मनुष्यगत भौतिक विस्मृतियाँ ।दौनों की ही अलग-अलग हैं गतियाँ।।हमने बहुत समझा औरों को दिल में बहुत कुछ और था ।हमको अपना समझा गैरों ने जिन पर हमारा नहीं गौर था हर कर्म की प्रेरक मेरी ये हालात है ! सहायक प्रवृत्ति या परिवेश ये संस्कार दूसरी बात है । मुझे हर तरफ मोड़ा

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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।

4 जनवरी 2020
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मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।फिर क्यों ये मेरा मन, उदास है ।मुझे एहसास है, प्रभु मेरे पास है।मेरे प्रभु तेरी खुशबू , बड़ी अद्भुत और ख़ास है- मैं एक पापी तू सर्वव्यापी मेरा विश्वास है- ।है तेरा शमा तू 'न जन्मा न तेरा नाश है ।मुझे एहसास है प्रभु मेरे पास है ।××××××××××××××××××××××××××××××सत्कर्

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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है। तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।

6 जनवरी 2020
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मेरे कान्हा तेरी महिमा, अपरम्पार है।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार... है ।___________________________तेरी बातें ये सौगातें ,जीवन का एक सार हैं ।तू मेरा सरकार है ,तू मेरा सरकार है ।तू मेरा सरकार है, तू मेरा सरकार... है ।मेरे प्रभू तेरा बजूह , मन में जो भी संजोता ।

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उसूल सदियों सदियों पुराने हैं

6 फरवरी 2020
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धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब ज़हर खुराने हैं ।।धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।अब मन्दिर ही मक्कारों के ठिकाने हैं ।शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।ईमानदारी जहालत के मायनेहा

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"सत्य विकल्प रहित और सर्वथा एक रूप होता है जबकि असत्य बहुरूपिया और बहुत से विकल्पों में उद्भासित होता है "

16 फरवरी 2020
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किसी की महानता और प्रसिद्धि कुछ अहंवादी व्यक्तियों को सहन नहीं हुई तो उन्होंने अपने अहं को तुष्ट करने के लिए उनके इतिहास और वंश-व्युत्पत्ति को इस प्रकार से सम्पादित किया कि उन्हें सर्वथा हीन और हेय रूप में समाज की दृष्टि में सिद्ध किया जा सके !ये महान और वीरतापूर्ण प्रवृत्तियों से सम्पन्न जनजातिय

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छलावा ...

18 फरवरी 2020
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धर्म बनाया ढ़कोसला ! तिलक ,छाप ठगने की कला ।इनका ईश्वर पैसे भी लेता ।आज हमको ये पता चला।।और देव दासीयाँ को 'रोहि' ।पुजारियों ने हरपल छला ।।सुन्दरता नाम नहीं 'रोहि' किसी के गोरे होने का ।और पवित्रता नाम नहीं ,केवल शरीर के धोने का ।।काला हो या हो श्यामल और लम्पट, चंचल ना हो कभी ।।गोरा भी कुरूप हो जात

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अर्जुन को नारायणी सेना के वीरों ने परास्त कर दिया ..

21 फरवरी 2020
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कारण एक सुभद्रा का हरण ।।वह भी चुपके से न किया रण।। नारायणी सेना के यौद्धा शान्त कारण था कृष्ण का संरक्षण ।जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।तब अर्जुन की औकात नहीं ।।सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैंयादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।जो लोभी लालची और कामी

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अहीर जाट और गूजरों की समान खापें ...

21 फरवरी 2020
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अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट हैं।आज इसी तथ्य का विश्लेषण करते हैं ।अब कुछ जाट तो जो स्वयं को भरत पुर के राजा सूरजमल से जोड़ते हैं ।जिसका समय सत्रहवीं सदी है ।अपने को सिनसिनीवार जाट कहते हैं ।राजस्थानी क्षेत्र में भरत पुर में एक सूरजमल की प्रतिमा के

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"घर घर की घटना अजब अजब बनी हालात "

22 फरवरी 2020
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घर घर की घटना अजब ।अजब बनी हालात ।एक बार कोई महानुभाव ।कोलेब में रहते गात ।स्टार मेकर पर करते । महिलाओं संग मुलाकात ।सुना रहे थे पत्नी को अपने स्वरों की सौगात ।पत्नी जरि कौयला भई ,सुन पर तिरियन की बात ।कोलर पकड़ रगड़ पति को धरि दीनी दो लात ।और पूछती इतनी देर तककहाँ बिताते रात ।कई दिनों से दूर दूर तु

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गोप ,गोपाल, गौधुक ,आभीर यादव गुप्त गौश्चर पल्लव घोष आदि....

24 फरवरी 2020
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यादव शब्द एक वंशमूलक विशेषण है ।जब कि गोप गोपालन वृत्ति( व्यवसाय) मूलक विशेषण और आभीर( अभीर शब्द से अण् तद्धित प्रत्यय करने पर निर्मित हुआ आभीर एक प्रवृत्ति मूलक विशेषण है ) जिसका अर्थ है वीर अथवा निर्भीक यौद्धा परन्तु षड्यन्त्र पूर्वक पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने यादवों को वंश के आधा

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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।।

29 फरवरी 2020
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देश आज फिर घायल है । झूँठे अपवाह विवादों में ।। ऊँच नीच और छुआछूत । है अहंकार संवादों में । हिन्दू हो या मुसलमान , अब नेकी नहीं इरादों में । सब एक वृक्ष के पौधे थे । था एक सूत्र परदादों में ।।विचार ,उम्र और , समान सम्पदा ।ये सम्बन्ध सफल है सर्वदा ।। समय ,परिस्थिति और देश में

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बोला शब्द की अवधारणा का श्रोत ...

3 मार्च 2020
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होलि शब्द की अवधारणा का श्रोत मूलत: संस्कृत भाषा के स्वृ= तापे उपतापे च धातु से निष्पन्न है । य: स्वरयति तापयति सर्वान् लोकान् इति सूर्य: कथ्यते "अर्थात् जो सम्पूर्ण लोगों को तपाता है वह सूर्य है " होली एक वसन्त सम्पातीय ऋतु-सम्बन्धी अग्नि का स्वागत उत्सव है ---जो ग्रीष्म ऋतु के आगमन रूप फाल्गुनी

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हरे कृष्णा हरे रामा रामा हरे हरे...गीत

5 मार्च 2020
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हरे कृष्णा हरे रामा ~~ रामा रामा हरे - हरे कृष्णा हरे !हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे ..🎼🎼हरे रामाँ~~ हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे रामा हरे ।(दीर्घ )-हरे कृष्णाँ आँ हरे रामाँ आँआँ .... हरे कृष्णा हरे हरे हरे रामा हरे ---हरे रामाँ हरे कृष्णा कृष्णा- कृष्णा हरे हरे कृष्णा हरे ~~_______

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"कृष्ण का धर्म भागवत और उनका व्यक्तित्व " एक संक्षिप्त परिचय

6 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश दिया। उनकी इस कूट राजनीति में एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा पर उत्पन्न हुआ जिसन

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कृष्ण का व्यक्तित्व और उनका भागवत धर्म "एक प्रस्तावना " प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'

8 मार्च 2020
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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ही मुख्य भूमिका में हैं ।कृष्ण ने स्वयं तो पाण्डवों का साथ दिया  ,जबकि अपनी अहीरों अथवा गोपों की नारायणी सेना को दुर्योधन का साथ देने का आदेश किया। उनकी इस कूट राजनैतिक गतिविधि में  एक श्रेष्ठ सामाजिक व्यक्तित्व का संयोजन है । कृष्ण  ही एक एेसा महामानव इस भारतीय धरा प

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भागवत पुराण के प्रक्षेप ...(भाग प्रथम )

14 मार्च 2020
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सत्य और यथार्थ यद्यपि समानार्थक प्रतीत होने वाले नाम हैं ।'परन्तु सत्य हमारी कल्याण मूलक अवधारणाओं पर अवलम्बित है ।समय , परिस्थिति और देश के अनुकूलता पर जो उचित है- वही सत्य है ।सत्य मे यद्यपि कल्याण का भाव विद्यमान है।यथार्थ में नहीं...यथार्थ को पुराण कार व्यक्त न कर सके ।इसी लिए तत्कालीन पुरोहि

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भागवत पुराण और श्रीमद्भगवदगीता का काल निर्धारण ...

17 मार्च 2020
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श्रीमद्भगवदगीता में पञ्चम सदी में मिलाबट की गयी जिसमें वर्ण व्यवस्था और याज्ञिक 'कर्म' काण्डों को समायोजित कर दिया गया । वर्ण- व्यवस्था कृष्ण का प्रतिपाद्य विषय नहीं था ,अपितु इसके खण्डन करने के लिए ही उन्होंने नया मार्ग भागवत धर्म के नाम से प्रसारित किया ।जिसके उपदेश श्रीमद्भगवदगीता उपनिषत् को रूप

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लोक-तन्त्र हुआ डम्प ...

19 मार्च 2020
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अभिवञ्चन अधिकारों का हो ! क्या कर्तव्य भावना के मायने ?तस्वीर बदलती है रोहि ,अक्श नहीं बदलते आयने । लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है केवल शोषण का सब मंत्र है जूस डाला आम-जन को अवशेष केवल अन्त्र हैं !नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परा

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नन्द और वसुदेव दौनों सगे सजातीय गोप बन्धु थे ।

29 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त तथा गोप अथवा गोपाल नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्ति के कारण हुए ...______________________________________________(हरिवंशपुराण एक समीक्षात्मक अवलोकन ...)हरिवंशपुराण के हरिवंश पर्व में दशम अध्याय का 36वाँ वह श्लोक देखें -रेवत के प्रसंंग में यह श्लोक विचारणीय है 👇__________

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इतिहास के कुछ बिखरे हुए पन्ने .... हैहयवंश और शक यवन हूण पारद किरात पह्लव आदि की विलय गाथा ... भाग प्रथम

31 मार्च 2020
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यादवों का गुप्त और गोप नामक विशेषण उनकी गो पालन व रक्षण प्रवृत्तियों के कारण हुआशक यवन हूण पारद और पह्लवों से हैहयवंश के यादवों का सामंजस्य व विलय ... भाग प्रथम______________________________________________(हरिवंशपुराण के एक समीक्षात्मक अवलोकन सन्दर्भ में हमने पाया कि भारतीय पौराणिक कथाऐं पश्चिमीय

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अवर जन जाति का इतिहास ....

1 अप्रैल 2020
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the avars were a confederation ofheterogeneous (diverse or varied) people consisting of Rouran, Hephthalites, and Turkic-Oghuric races who migrated to the region of the Pontic Grass Steppe (an area corresponding to modern-day Ukraine, Russia, Kazakhstan) from Central Asia after the fall of the Asiat

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इतिहास लेखन के पूर्वाग्रह...

11 अप्रैल 2020
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प्रत्येक काल में इतिहास पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर लिखा जाता रहा है ; आधुनिक इतिहास हो या फिर प्राचीन इतिहास या पौराणिक आख्यानकों में वर्णित कल्पना रञ्जित कथाऐं !सभी में लेखकों के पूर्वाग्रह समाहित रहे हैं ।अहीरों की निर्भीकता और पक्षपात विरोधी प्रवृत्ति के कारण या 'कहें' उनका बागी प्रवृत्ति के का

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जीवन की अनन्त यात्रा ...

13 अप्रैल 2020
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जीवन की अनन्त यात्रा ...__________________________________अभिशाप है अकेलापन 'रोहि' इस जहान का !अनन्त के द्वार से लौट आया।- दीदार किया भगवान का ।।एकान्त जो शान्त है । इस संसार का वरदान है कोई ।नये जोश और जज्बात को । विश्राम लेता थका बटोही ।।ये एकान्त और अकेलापन दौनों एक स्थिति के ,प्रवाह है

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दास और दस्यु के सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक है ।वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल में आते -आत

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दास और दस्यु के वैदिक कालीन सन्दर्भ ...

14 अप्रैल 2020
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दास और दस्यु यद्यपि अपने प्रारम्भिक रूप में समानार्थक शब्द रहे हैं । वैदिक कालीन सन्दर्भ सूची में दास का अर्थ देव संस्कृति के विरोधी असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है । और जो दक्षता की पराकाष्ठा पर प्रतिष्ठित होकर अपने अधिकारों के लिए बागी या द्रोही हो गये वे दस्यु कहलाऐ और जिन्होंने उत्तर वैदिक काल

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आज का ये हाल है ...

16 अप्रैल 2020
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अजब चाल है अजब हाल है । क्या बताऊँ सब बेमिसाल है ।विवाह से पूर्व सम्बन्ध बनाना ! लड़के लड़कियों की मजाल है ।ये गैंग-रेप किडनैप के तरीके । अन्धा हो जाना फिर दारू पीके ।आज वस्त्रों में अब सब तन दीखे। और क्रिया कलाप भी बे सलीके ।नैतिकता अब बि

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अहीर ,गूर्जर ,जाट और राजपूतों का इतिहास में विवरण विभिन्न सन्दर्भों में ...

18 अप्रैल 2020
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____________________________________ इतिहास अपने आप को पुनः दोहराता है।____________________________________ महान होने वाले ही सभी ख़य्याम नहीं होते ।उनकी महानता के 'रोहि' इनाम नहीं होते । फर्क नहीं पढ़ता उनकी शख्सियत में कुछ भी ,ग़मों में सम्हल जाते हैं जो कभी नाकाम नहीं होते।।बड़ी सिद्दत से संजोया

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मिथक और यथार्थ के समकक्ष ...

25 अप्रैल 2020
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प्रश्न (1)कुछ लोग जो आज भी पूर्व दुराग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी सड़ी-गली मानसिकता से समन्वित होकर जी रहे हैं ।ले सत्य के प्रकाश ले बचकर असत्य के अँधेरे में ही जी रहे हैं ।उन्हें प्रकाश से भय या चौंद भी लगती हैं ।उन्हें 'हम क्या 'कहें' उनका इस प्रवृत्ति के कारण उल्लू या चमकादर या एकाक्ष कौआ वे लोग अक्

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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है ।

2 मई 2020
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कोर्ट ऐैतिहासिक फैसले साक्ष्यों के आधार पर ही कर सकता है । यादवों के इतिहास के साक्ष्य वेदों के आधार पर ही मान्य हैं । क्यों कि पुराण भी वैदिक सिद्धान्तों की प्रतिच्छाया है । वेदों में भी ऋग्वेद प्राचीनत्तम साक्ष्य है । अर्थात् ई०पू० २५०० से १५००के काल तक-- इसी ऋग्वेद में बहुतायत से यदु और तुर्वसु क

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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।

5 मई 2020
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प्रभु की शरण में आके ,सिर चरणों में झुकाके ।मन को तसल्ली मिलती है , प्रभु का भजन गाके ।समय के पथ पर जिन्दगी जा रही है यों ही ।फिर कुछ हासिल नहीं होगा रोहि पछिताके।________________________________________कौन है बनाने वाला इस संसार का -२कौन है खिवैया मेरी मझधार का -2धड़कनों की तालों में श्वाँसों की ल

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गुर्जर ,जाट और अहीरों का समन्वय...

10 मई 2020
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ब्राह्मणस्य द्विजस्य वा भार्या शूद्रा धर्म्मार्थे न भवेत् क्वचित्।रत्यर्थ नैव सा यस्य रागान्धस्य प्रकीर्तिता ।। (विष्णु- स्मृति)___________________________________________अर्थात्‌ ब्राह्मण के लिए शूद्रा स्त्री धर्म कार्य के लिए नही अपितु वासना तृप्ति के लिए होनी चाहिए अत:

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भागवत धर्म की प्रस्तावना...

14 मई 2020
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जब जैन-धर्म तथा बौद्ध-धर्म ह्रास के मार्ग पर बढ़ रहे थे तब दूसरी ओर इन्हीं के समानान्तरण भागवत धर्म भी वैदिक-धर्म की प्रतिक्रिया स्वरूप उदय हो रहा था ।वैदिक-धर्म भी अपने पुनरुत्थान में लगा था। उसने गुप्त काल के प्रारम्भ में भागवत धर्म को अपना में आत्मसात् करने का प्रयास किया।ब्राह्मण-चिंतकों ने खर्च

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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....

19 मई 2020
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गूजरों से राजपूत संघ तक .... गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज....________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारह वीं सदी तक सम्पादित भविष्य पुराण के प

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चौहानों का गूजरों और जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)

21 मई 2020
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चौहानों का गूजरों ,जाटों से लेकर राजपूत संघ तक का सफर (गुर्जर पृथ्वीराज बनाम राजपूत पृथ्वीराज...)________________________________________________यद्यपि चौहान शब्द मूलत: चीनी भाषा परिवार मैण्डोरिन का है। चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में भारतीय इतिहास में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं । अठारहवीं सदी तक स

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वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।( तेरी राहों खड़े हैं दिल थाम के )

4 जून 2020
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ओ३म्' ओ .....वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।तू ही मेरा हुजूर , मुझसे क्यों है दूर ।तेरा ही है ये नूर , फिर कैसी ये गुरूर ।।वारगाहों में खड़े हैं एहतराम से प्रभु ! हम हैं पुजारी तेरे धाम के ।आज देश

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हरि का भजन कर , मत चल तनकर । हरि का भजन कर , मत चल तनकर । जीवन का है लम्बा सफर ... ( दिल दे दिया है )

4 जून 2020
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हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ...हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ... 'हरि बोल 'हरि बोल .....ओ--- रे मुसाफिर तेरा बड़ी दूर घर ..हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।हरि का भजन कर , मत चल तनकर ।जीवन का है लम्बा सफर ..._

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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने वाले....

4 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे !देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले इसी प्रकार के दूषित प्रवृत्ति के लोग थे । श्रीमदभगवद् गीता पञ्चम सदी में महाभार

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यादव इतिहास के बिखरे हुए पन्ने....

5 जून 2020
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कृष्ण के चरित्र को दूषित करने के षड्यन्त्र को रचने वाले अगर पूछा जाय तो कोई और नहीं थे ! देव संस्कृति के उपासक इन्द्र के आराधक वर्ण व्यवस्था वादी कर्म काण्ड को धर्म कहने वाले व्यभिचार मूलक नियोग को ईश्वरीय विधान बताने वाले कुछ इसी प्रकार की दूषित प्रवृत्ति के लोग थे ।यह घटना है पुष्यमित्र सुंग कालीन

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक ...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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भारतीय भाषाओं में ठाकुर शब्द का प्रयोग तेरहवीं सदी से अब तक...

8 जून 2020
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हवेली शब्द अरबी भाषा से फारसी होते हुए भारतीय भाषाओं में आया जिसका अर्थ हरम ( हर्म्य) और विलासिनी स्त्री है ।और ठाकुर शब्द भी उसी समय सहवर्ती रूप में तुर्की, आर्मेनियन और ईरानी भाषाओं से नवी सदी में आया जो सामन्त अथवा माण्डलिक का लकब था । कालान्तरण में  विशेषत: भारतीय मध्य काल में इनके हरम अय्याशी क

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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यदु , जरासन्ध और दमघोष आभीर जन-जाति....

16 जून 2020
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यह सत्य है कि यादवों का इतिहास कि़स प्रकार विकृत हुआ यद्यपि जरासन्ध और दमघोष हैहयवंश के यादव ही थे 'परन्तु उन्हें यादव कहकर कितनी बार सम्बोधित किया गया ?सायद नहीं के बरावर ...इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है हरिवंशपुराण से यह विश्लेषण ...और किस प्रकार परवर्ती पुराण कारों 'ने यदु को ही सूर्य वंश में घ

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भागवत धर्म की रूप रेखा ...

17 जून 2020
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भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म का पारस्परिक विरोध निरूपण-संशोधित संस्करण -___________________________________________भागवत धर्म के अधिष्ठात्री देवता के रूप में बलदाऊ का वर्णन हरिवंशपुराण में है ।एक प्रसंग के अनुसार जब एक यादव भक्त यमुना जी के इस कुण्ड के जल में प्रवेश करके दिव्य भागवत मन्त्रों द्वारा

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सोमवंशी ययाति पुत्र यदु बनाम सूर्य वंशी हर्यश्व पुत्र यदु ...

5 जुलाई 2020
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महाभारत का सम्पादन बृहद् रूप पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुआ ।भारत की प्राचीनत्तम ऐैतिहासिक राजधानी मगध थी ।जो आधुनिक विहार है ।मगध से विहार बनने के सन्दर्भ में ये तथ्य विदित हैं कि महात्मा बुद्ध के नवीनत्तम सम्प्रदाय पाषण्ड में जो नव दीक्षित श्रमण थे उनके आश्रमों को विहार कहा गया था ।पाषण्ड श

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पुराणों में दो यदु हुए ययाति पुत्र और हर्यश्व पुत्र .. अहीर ययाति पुत्र यदु के वंशज हैं ।

6 जुलाई 2020
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महाभारत की कथाऐं जन- किंवदंतियों पर आधारित आख्यानकों का बृहद् संकलन हैं।जिसे महर्षि व्यास के नाम पर सम्पादित किया गया और इसे जय संहिता का नाम दिया गया ।कोई भा मानवीय ग्रन्थ पूर्व दुराग्रह से रहित नहीं होता है ।दुराग्रह कहीं न कहीं मोह और हठों से समन्वित रूप से प्रेरित होते हैं ।और हठों और मोह दौनों'

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दो यदु ,दो ययाति, दो नहुष जिसमें एक सूर्य के और एक सोम वंश के सूर्यवंश के अम्बरीष पुत्र नहुष , ययाति और हर्यश्व पुत्र यदु का अस्तित्व ही कल्पना प्रसूत है ।...

7 जुलाई 2020
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यदु जब दो हैं । तो फिर अहीर कौन से यदु के वंशज यादव हैं ?ययाति और देवयानि के पुत्र यदु जो तुर्वशु के भाई हैं ।या इक्ष्वाकु वंशी राजा हर्यश्व और उनका पत्नी मधुमती के गर्भ से उत्पन्न यदु के वंशज यादव हैं !हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 37 श्लोक 41-45 पर वर्णन है कि⬇पुत्र की इच्छा रखने वाले

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गोप कृष्ण की लीला .... हरिवशं पुराण

9 जुलाई 2020
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गोपों अथवा अहीरों के साथ भारतीय ग्रन्थों में दोगले विधान कहीं उन्हें क्षत्रिय तो कहीं वैश्य तो कहीं शूद्र कहा गया यह शसब क्रमोत्तर रूप से हुआ ....____________________________________________इसी सन्दर्भ में हरिवशं पुराण में एक आख्यानक है ⬇एक बार जब कृष्ण हिमालय पर्वत के कैलास शिखर पर तप करने तथा भूत

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यदु के लिए गोप और उनके वंशज गोप अहीर आदि नामों से जाने गये ...

10 जुलाई 2020
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यादवों ने कभी वर्ण -व्यवस्था को नहीं माना ।कारण वह राजतंत्र की व्यवस्था का अंग थी और ये किसी के द्वारा परास्त नहीं हुए ।क्योंकि इनकी गोपों'की नारायणी सेना अजेय थी ।इसी नवीन भागवत धर्म की अवधारणा का भी जन्म हुआ था ।इसलिए ब्राह्मणों ने द्वेष वश अहीरों या यादवों को शूद्र वर्ण में निर्धारित करने की असफल

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🌸– •यादव –यादव– यादव– यादव– यादव •–🌸

13 जुलाई 2020
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यादव" भारत में ही नहीं अपितु पश्चिमी एशिया, मध्य अफ्रीका , तथा यूरोप का प्रवेश द्वार समझे जाने वाले यूनान तक अपनी धाक दर्ज कराने वाली आभीर जन-जाति का प्रतिनिधि समुदाय है। पारम्परिक रूप से इन्हें इनके वृत्ति (व्यवसाय) मूलक विशेषण के तौर पर गोप , गोपाल कहा जाता है ।यद्यपि वंशमूलक रूप से भारतीय पुराणों

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कायस्थः कासाइट कार्थेज काशी और कशमीर तक ...

16 जुलाई 2020
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भारतीय समाज ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण मानव समाजों में संस्कृतियों की भित्तियाँ ( दीवारें) धर्म की आधार-शिलाओं पर प्रतिष्ठित हुईं । भाषा जो परम्परागत रूप से अर्जित सम्पदा है वह भी मानव समाजों के सांस्कृतिक , धार्मिक और व्यावहारिक जीवन के संवादों की संवाहिका रही है । संस्कृतियों 'ने समय के अन्तर

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यादवों का इतिहास ...

22 जुलाई 2020
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प्राय: कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मण अथवा भ्रान्त -मति राजपूत समुदाय के लोग यादवों को आभीरों (गोपों) से पृथक बताने के लिए महाभारत के मूसल पर्व अष्टम् अध्याय से यह श्लोक उद्धृत करते हैं । ____________________________________ ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: । आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७। अर्था

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शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-   --------------------------------------------------------------

23 जुलाई 2020
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  शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति पर  एक प्रासंगिक विश्लेषण-  --------------------------------------------------------------भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का प्रथम अद्भुत शोध " यादव योगेश कुमार 'रोहि ' के द्वारा अनुसन्धानित.भारत में वर्ण व्यवस्था के नियामक शूद्रजातीया शब्द और इस नाम से सूचित जनज

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ब्राह्मण बकरे के सजातीय वैश्य गाय के सजातीय क्षत्रिय भेड़े (मेढ़ा)के और शूद्र घोड़े के सजातीय है । अब बताओ सबसे श्रेष्ठ पशु कौन है ?

26 जुलाई 2020
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कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन है कि ______________________________________________प्रश्न किया श्रोता ने " यत्पुरुषं व्यदधु: कतिधा व्यकल्पयन् ?मुखं किमस्य कौ बाहू कावूरू पादा उच्येते ? 10/90/11जिस पुरुष का विधान क्या गया ?उसका कितने प्रकार कल्पना की गयी अर्थात

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शूद्र ऐर आर्य शब्दों की अवधारणा इतिहास में ----

29 जुलाई 2020
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  शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय--13 फरवरी 2018 | Yadav Yogesh kumar -Rohi- (324 बार पढ़ा जा चुका है) लेख शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय-- शूद्र और आर्य एक विस्तृत परिचय -_________________________________________🎠शूद्र कौन थे ? और इनका प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ --------------------------------

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भरद्वाज के पिता

30 जुलाई 2020
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भरत से पहले देशका नाम क्या हो सकता है?क्यों कि कुछ बातें तर्क की कषौटी पर खरी नहीं उतरती हैं ।भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भरत ने ममता के पुत्र दीर्घतमा को अपना पुरोहित बनाकर अनेक अश्वमेध यज्ञ किये ।भागवत पुराण के नवे स्कन्ध के बीसवें अध्याय के श्लोकों तीस में में वर्णन है कि भरत ने दिग्विजय के

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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कृष्ण असुर क्यों ? कृष्ण का समय

20 सितम्बर 2020
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पुरातत्तवेत्ता (अरनेष्ट मैके ) के प्रमाणों के अनुसार कृष्ण का समय ई०पू० 900 कुछ वर्ष पूर्व सिद्ध होता है ।कृष्ण को क्यों साढ़े पाँच हजार वर्ष प्राचीन घसीटा जाता हैसिन्धु घाटी की सभ्यता के उत्खनन के सन्दर्भ कृष्ण की यमलार्जुन वृक्षों में समन्वित उलूखल दामोदर मूर्ति की प्राप्त हुयी है जिसकी कार्बन

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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur) और भारत में राजपूतो साथ ठाकुर शब्द का सम्बन्ध ...

8 अक्टूबर 2020
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नवी सदी में तुर्कों और पठानों का ख़िताब था ”ठाकुर” ‘ताक्वुर’ (Tekvur)_______________________________________तुर्कों और पठानों का खिताब था तक्वुर हिन्दुस्तानी भाषाओं मे विशेषत: व्रज भाषा में आने पर यह ठक्कुर हो गया यद्यपि संस्कृत पुट देने के लिए इसे ठक्कुर रूप में प्रतिष्ठित किया गया  ठाकुर  शब्द नवी

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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सनातन धर्म और सम्प्रदायों की रूप रेखा ...

12 अक्टूबर 2020
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(प्रथम अध्याय)in 1550 Senturies, "goal, end, final point," from Latin terminus (plural termini) "an end, a limit, boundary line," from PIE *ter-men- "peg, post," from root *ter-, base of words meaning "peg, post; boundary, marker, goal" (source also of Sanskrit tarati "passes over, crosses over," ta

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दुर्गा भारतीय और अशीरियन मिथकों में ...

20 अक्टूबर 2020
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भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न नन्द आभीर की पुत्री कहा गया है ये देवी यशोदा के उदर से जन्म धारण करती हैं हम आपको मार्कण्डेय पुराण से सन्दर्भ देते हैं देखें निम्न श्लोक ...वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|______________________

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देव संस्कृति और कृष्ण ...

28 अक्टूबर 2020
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महानुभावों ! षड्यन्त्र सदीयों से प्रत्यक्ष प्रशंसात्मक उपक्रियाओं के रूप में अपना विस्तार करते रहे हैं । जिसे जन साधारण भी सदा ही निष्ठामूलक अनुष्ठान समझ कर भ्रमित होता रहा है ।यही कृष्ण के साथ पुष्य-मित्र सुँग कालीन ब्राह्मणों ने किया इसी लिए कृष्ण चरित्र को पतित करने के लिए श्रृँगार में डुबो दि

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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है इन्द्र सूर्य और अग्नि भी असुर है और कृष्ण ो भी असुर कहा गया है

5 नवम्बर 2020
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ऋग्वेद में असुर का अर्थ प्रज्ञावान और बलवान भी है ऋग्वेद में ही वरुण को महद् असुर कहा इन्द्र को भी असुर कहा है मह् पूजायाम् धातु से महत् शब्द विकसित हुआ वह जो पूजा के योग्य है फारसी जो वैदिक भाषा की सहोदरा है वहाँ महत् का रूप मज्दा हो गया है सूर्य को उसके प्रकाश और ऊर्जा के लिए वेदों में असुर कहा

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गोप यादव और आभीर सदैव से एक वंश के विशेषण थे ...

19 दिसम्बर 2020
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यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया है |भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|______नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः । वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले ग

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यादवों के आदि पूर्वज...

22 दिसम्बर 2020
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यादवों के इतिहास के सबसे बड़े विश्लेषक और अध्येता परम श्रृद्धेय गुरुवर सुमन्त कुमार यादव के श्री चरणों मे श्रृद्धानवत होते हुए यह यादवों के पूर्वज व यादव संस्कृति के प्रवर्तक  यदु का पौराणिक विवरण जिज्ञासुओं में प्रेषित है प्रस्तुति करण :-यादव योगेश कुमार रोहिसम्पर्क सूत्र 8077160219..._____________

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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-

27 अक्टूबर 2022
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पुङ्गव और उससे विकसित पौंगा शब्द का जीवन चरित-आज कल टीवी चैनल वाले चाहे जिस पौंगा पण्डित को पकड़ लाते हैं और उसका परिचय धर्मगुरू अथवा शंकराचार्य कहकर सारी दुनियाँ से कराते हैं। उनकी ब

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