आस्था बनाम अंध श्रद्धा
डॉ दिनेश शर्मा
आज सुबह ही सोसायटी पार्क में कुछ मित्रों से बड़ी
सार्थक चर्चा फेथ यानी आस्था को लेकर हुई । इधर उधर के मज़ाक और कुछ जेल के अंदर और
बाहर बाबाओं की चर्चा करते करते कुछ कमाल के निष्कर्ष भी निकले । हम मनुष्यों के
पास जीवन की अनसरटेनिटी या अनिश्चितता से पार पाने के लिए आस्था या फेथ का ही सबसे
बड़ा सहारा होता है । वो चाहे किसी गुरु में हो, मंदिर गुरुद्वारे में हो , अपने पूजा घर में हो,
किसी प्रसिद्ध तीर्थ स्थान में हो या अपनी खुद की प्रार्थनाओं में
हो । हमारी आस्था या फेथ कब अंधी श्रद्धा में बदल जाती है, हमें
पता ही नही लगता ।
आपको जानकर अजीब लगेगा कि ज़रूरी नही यह आस्था या
फेथ किसी देवता या मंदिर ही में हो । यह किसी कॉर्पोरेशन, पोलिटिकल सिस्टम या पोलिटिकल पर्सन में भी हो सकती है । पिछले सात दशकों
से चीन के लोगों ने कम्युनिज़्म को ही धर्म मानकर उसमे फेथ या आस्था रखते हुए बड़े
गज़ब की तरक्की की है और आज चीन दुनिया का सबसे धनी और ताकतवर देश बन गया है । आप
सब को तो पता ही है चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने सत्तर वर्ष पहले ही किसी भी प्रकार
के धर्म और धार्मिक पूजा को गैरकानूनी घोषित कर दिया था । चीनियों ने धीरे धीरे
माओत्से तुंग और कम्युनिस्ट पार्टी में ही सम्पूर्ण आस्था स्थापित कर दी । उइगर
में मुसलमानों को किसी भी प्रकार की धार्मिक अभियक्ति जैसे रोज़ा नमाज़ से रोकना उसी
नीति का हिस्सा है ।
हम में से ज्यादातर लोगों की प्रवृत्ति जानने के
बजाय मानने की होती है । और यहीं से अंध श्रद्धा पैदा होनी शुरू होती है । जैसे
मैं आपसे कहूँ कि ऋषिकेश में एक मनोकामना सिद्ध हनुमान जी का मंदिर है जहाँ कोई भी
मन्नत मांगने से पूरी हो जाती है । तो यदि आप किसी बात को लेकर परेशान या चिंतित
है और आपका कोई काम अटका हुआ है तो आप बिना ज्यादा विचार के वहां जाने को तत्पर हो
जाएंगे । इसे ही मानना कहते है । ज्यादातर लोग ऐसा ही करते है । कोई ही बिरला होता
है जो यह कहेगा कि भाई मेरे हनुमान जी तो मेरे अपने भीतर है , मुझे कहीं जाने की क्या ज़रूरत है ।
आज गुरुओं के डेरे हों या बाबाओं के आश्रम, यहां वहां के तीर्थ स्थल हों या साल दर साल बढ़ती कांवड़ियों की भीड़ इनके
सबके पीछे 'गतानुगता' वाली अंध श्रद्धा
ही है । यानि के तुम गए थे तो हम भी जाएंगे । एक मित्र ने एक बड़ा अच्छा उदाहरण
दिया कि रेलवे लाइन के ऊपर बने पुल पर अगर चार आदमी इकट्ठे होकर नीचे झांकना शुरू
कर दें, तो थोड़ी देर में वहां सैंकड़ो की भीड़ लग जाएगी,
स्कूटर कारें रुक जाएंगी और सब लोग एक दूसरे की देखा देखी नीचे
झांकना शुरू कर देंगे ।
यह भी 'अंध श्रद्धा' का ही एक रूप है ।