*सनातन धर्म में नित्य पूजन एवं त्रिकाल संध्या का विधान आदिकाल से चला आ रहा है | त्रिकाल संध्या करके मनुष्य स्वयं में ऊर्जा प्राप्त करता चला आया है | किसी भी पूजन / अनुष्ठान का मुख्य अंग है तिलक धारण करना क्योंकि बिना तिलक लगाये किया जाने वाला कोई भी पूजा / पाठ - शुभकार्य फलीभूत नहीं होता है | हमारे शास्त्रों में तिलक विहीन मस्तक का दर्शन करना भी निषेध माना गया है | तिलक के महत्त्व को दर्शाते हुए लिखा गया है कि :-- "स्नाने दाने जपे होमो , देवता पितृकर्म च ! तत्सर्वं निष्फलं यान्ति , ललाटे तिलकं बिना !!" अर्थात :- तिलक किये बिना तीर्थ स्नान जपकर्म , दान , यज्ञ होमादि , पितरों के श्राद्धादि , तथा देनताओं के लिए की जाने वाली उपासना आदि सब निष्फल हो जाता है | तिलक का महत्त्व मात्र पौराणिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी है | हमारे मनीषियों का मानना था कि दोनों भौंहों के बीच जहाँ मुख्य तिलक धारण किया जाता है वहाँ आज्ञाचक्र होता है यहाँ तिलक करने से मस्तिष्क नियंत्रित रहता है | मस्तक के अतिरिक्त शरीर के अन्य अंगों पर भी तिलक करने का विधान बताया है क्योंकि ये अंग भी शरीर के चेतना केन्द्र कहे गये हैं | जिस प्रकार मस्तक पर तिलक लगाना आध्यात्मिक मार्ग की ओर अग्रसारित करता हैं वहीं शरीर के अन्य अंगों पर भी मनुष्य के चेतना केन्द्र बताये गये हैं | मनुष्य शरीर में बारह स्थानों पर तिलक लगाने का विधान है जिसे द्वादश तिलक कहा जाता है | इन स्थानों पर तिलक करते समय भगवान के विभिन्न नामों का उच्चारण भी करना चाहिए | तिलक प्रत्येक सम्प्रदायों में एक मुख्य अंग है | इनके स्वरूप तो भिन्न हैं परंतु बिना तिलक के कोई भी सम्प्रदाय नहीं है |*
*आज मनुष्य इतना आधुनिक हो गया है कि अपनी सनातन परंपराओं एवं मान्यताओं को मानने में या उनके प्रतीक चिन्हों को धारण करने में उसको लज्जा प्रतीत होती है | आज तिलक लगाना एक स्वप्न बनता चला जा रहा है | तिलक लगाने वालों को ढोंगी तक भी कह दिया जाता है | ऐसा कहने वाले शायद तिलक के महत्त्व को ही नहीं जानते हैं जिस प्रकार शिखा सूत्र का त्याग मनुष्य ने कर दिया उसी प्रकार आज लोग तिलक से भी किनारा कर रहे हैं | स्वयं को वैज्ञानिक युग का प्राणी बताने वाला आज का मनुष्य शायद वैज्ञानिकों की धारणा का ध्यान भी नहीं रख रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि वैज्ञानिकों ने भी माना है कि भृकुटी के बीच में तिलक धारण करने से मस्तिष्क संतुलित रहता है इसके साथ ही मनुष्य के मुख्य मंडल की शोभा भी देदीप्यमान हो जाती है | यदि तिलक लगाने के लिए व्यवस्था ना हो तो पानी का ही चन्दन लगा लेना चाहिए क्योंकि बिना तिलक चंदन के कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जा सकता है | आज कुछ युवाओं को देखकर हृदय आनंदित हो जाता है कि उन्होंने तिलक धारणा को महत्व दिया है | वे भले ही तिलक को आधुनिक श्रृंगार मानकर लगा रहे हैं परंतु किसी न किसी तरह सनातन परंपरा को बचाए हुए हैं | शरीर के बारह अंगो पर तिलक लगाने का महत्व बताते हुए हमारे शास्त्रों में लिखा है कि मनुष्य के शरीर के बारह चेतना केंद्र होते हैं इनको जागृत रखने के लिए इन अंगों पर नित्य तिलक लगाना परम आवश्यक है , जैसा कि वैष्णव जन करते भी हैं | इसे ही द्वादश तिलक की संज्ञा दी गई है | सनातन धर्म की दिव्यता यही है कि इसका कोई भी कर्म निराधार नहीं होता है सनातन के प्रत्येक कर्मकाण्ड में वैज्ञानिकता का समावेश अवश्य मिलता है |*
*तिलक धारण हो या सनातन के अन्य कर्मकांड यदि इनका दर्शन सूक्ष्मता से किया जाए तो सनातन के प्रत्येक कर्मकांड में वैज्ञानिकता छुपी हुई होती है जिसको आज के वैज्ञानिक भी मानने को विवश हैं |*