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जैसी श्रद्धा वैसा फल

8 दिसम्बर 2019

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एक बार की बात है, हर जीवधारी में भगवान का रूप देखने वाले एकनाथ ने एक प्यासे साधारण से गधे के अंदर भगवान का रूप देखकर उसको गंगाजल पिला दिया। तो साथ चल रहे लोगों ने विरोध करना शुरू किया और आश्चर्य से कहने लगे, ‘महाराज! भगवान शंकर को जो जल चढ़ाना था, वह आप किसको पिला रहे हैं, जानवर को? आपकी पूजा कैसे स्वीकार होगी। संत एकनाथ थोड़ी देर मौन रहे फिर बोले ‘तुम्हारा जल भगवान स्वीकार करेंगे या नहीं इसमें संदेह है, लेकिन मेरा जल तो मेरे प्रभु ने स्वीकार कर लिया’ क्योंकि मैंने तो अपने गुरु के आदेश का पालन भर किया है। मेरे गुरु ने यही सिखाया भी है। गुरु की बात में परम्परा विधान बाधक कैसे हो सकता है। संत एकनाथ की इस गुरु श्रद्धा से सभी चकित तो थे, पर सहमत नहीं। बताते हैं तभी भगवान बोले नाथ का उस गधे से प्राकट्य हुआ। इस चमत्कार से सभी संत एकनाथ की जय-जयकार करने लगे।



वास्तव में संत एकनाथ को अपने गुरु के प्रति श्रद्धा थी, अतः वे गुरु आदेश से जीवन में सब प्राणियों को भगवान के रूप में देखने लगे। इसी प्रकार लोग डॉक्टरों पर विश्वास करते हैं। जो दवाई अपनी क्षमता के कारण असर करेगी, उससे कहीं ज्यादा उस डॉक्टर के प्रति रखी गयी श्रद्धा व विश्वास काम करेगा। यदि विश्वास नहीं है तो फिर अमृत भी मिले, तब भी लाभ होने वाला नहीं है। वास्तव में पूरा संसार भरोसे पर ही सब टिका है। इसी प्रकार जिस नौका में आप बैठे हैं, उसके मल्लाह पर आपको भरोसा करना पड़ेगा, चाहे वह किसी भी दिशा में लेकर जा रहा हो। वह तेजी से चलाए, उछाले, जो कुछ भी करे। अगर उस पर भरोसा नहीं करेंगे और हम अपने हाथ-पांव चलाएंगे, तब डूब भी सकते हैं। लेकिन विश्वास के सहारे पर जब मल्लाह पार लगा देता है, तब समझ में आता है कि उस नाविक के प्रति हमारी श्रद्धा, हमारी भावना या हमारा विश्वास बनाये रखना सही था।

इसी प्रकार कई बार व्यक्ति बनना कुछ चाहता है, लेकिन अपनी श्रद्धा व आस्था कुछ अन्य पर रखता है, ऐसे में वह निराश होकर बैठ जाता है। जबकि अपनी श्रद्धा रूपी अग्नि की उष्णता के कारण उसी दिशा में यदि आप बढ़ते रहते हैं, तो एक दिन मंजिल पर जरूर पहुंचते हैं। कवि गेटे कहते हैं ‘‘व्यक्ति की निष्ठा ही उसके जीवन को विशिष्ट बनाती है। इसलिए अपनी श्रद्धा को निरंतर गहरी करते रहिए। श्रद्धा ऊर्जा है, श्रद्धा विश्वास है, श्रद्धा ईमान है। इसलिए अपनी श्रद्धा को सदैव जिंदा रखिए।’’

अगर आपके भीतर सद्गुरु के प्रति श्रद्धा है, तो उसके प्रति अटूट विश्वास जमाने के लिए संकल्प कीजिए। जो संकल्प आपने अग्नि को साक्षी रखकर ले लिया, फिर आप अपना वचन नहीं तोड़ेंगे, तो एक दिन सफल होना ही है।

राष्ट्र ध्वज से राष्ट्र के प्रति श्रद्धा जगती है। और गुरु से अपने जीवन अनुशासन के प्रति। ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ हम कहते हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि मेरा कपड़ा ऊंचा रहे, अपितु राष्ट्र के प्रति मेरा विश्वास बढ़ता रहे, मेरी श्रद्धा बढ़ती रहे। वफ़ादारी बढ़ती रहे।

यदि वफ़ादारी है, तो वे लोग जो उसकी शान पर, गुरु के संकल्प के लिए उसके सिद्धांत के साथ जी रहे थे, वे उसे छोड़कर भागेंगे नहीं, अपनी जान पर खेलकर भी अपने मालिक का साथ देगें। श्रद्धा-विश्वास ही है जो वहां से भागने नहीं देगा, और यही श्रद्धा लख कठिनाइयों के बावजूद व्यक्ति को अपनी मंजिल तक पहुंचायेगी। इसीलिए कहते हैं, जैसी श्रद्धा वैसा ही फल मिलता है।

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प्रथम गुरु माँ

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