*इस धराधाम पर मनुष्य कर्मशील प्राणी है निरंतर कर्म करते रहना उसका स्वभाव है | मनुष्य शारीरिक श्रम के साथ-साथ मानसिक श्रम भी करता है जिससे उसे शारीरिक थकान के साथ-साथ मानसिक थकान का भी आभास होता है | इस थकान को दूर करने का सबसे सशक्त साधन कुछ देर के लिए मन को मनोरंजन में लगाना माना गया है | पूर्वकाल में भारतीय समाज में मनोरंजन के कई साधन स्थापित थे जिसके माध्यम से मनुष्य मनोरंजन तो करता ही था साथ ही उससे जीवन जीने के लिए कुछ शिक्षा भी प्राप्त होती थी | अधिकतर लोग ऐसी दशा में सत्संग कथाओं का आश्रय लिया करते थे इसके अतिरिक्त भारतीय समाज में सामूहिक समयानुकूल सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन करके शिक्षापरक मनोरंजन होता था जिससे आने वाली युवा पीढ़ी को एक दिशा एवं दशा प्राप्त होती थी | कुछ लोग यह भी कहते हैं कि पूर्वकाल में संसाधनों के अभाव में मनुष्य यह सब किया करता था परंतु यह भी सत्य है कि पूर्वकाल में किया गया मनोरंजन मनुष्य के जीवन को उज्ज्वल करने वाला होता था | धीरे-धीरे मनुष्य ने जैसे-जैसे विकास किया वैसे - वैसे उसके मनोरंजन के साधनों में भी परिवर्तन होता गया | सांस्कृतिक कार्यक्रमों का स्थान भारतीय दूरदर्शन ने ले लिया | दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम भी शिक्षा परक एवं ज्ञानवर्धक होते थे इनमें तनिक भी फूहड़ता एवं अश्लीलता नहीं होती थी | पूरे परिवार के साथ बैठ करके मनुष्य बड़े प्रेम से दूरदर्शन के कार्यक्रम को देखा करता था एवं युवा पीढ़ी ज्यादा नहीं तो कुछ शिक्षा अवश्य ग्रहण करती थी | परंतु अब समय बिल्कुल परिवर्तित हो गया है |*
*आज घर घर में टीवी एवं फिल्मों के बढ़ते प्रभाव से सभी परिचित हैं , सिनेमा जगत को किसी भी देश का आईना कहा जाता है | पूर्वकाल में भारतीय सिनेमा ने विश्व में अपना एक अलग स्थान बनाया था , उसका मुख्य कारण यह था कि फिल्म निर्माता मनोरंजन के साथ-साथ एक अच्छे उद्देश्य एवं समाज को दिशा देने वाले विषयों का चयन करके फिल्म का निर्माण करते थे , जिसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता था , परंतु आज जिस प्रकार की सामग्रियाँ परोसी जा रही है उसने मर्यादा के सारे बंधन को तोड़ दिया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" उन लोगों से पूछना चाहता हूं जो इसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम देते हैं कि क्या अश्लीलता एवं फूहड़ता के बिना फिल्में नहीं चल सकती हैं ?? कुछ लोग यह भी कहते कि आज के लोग यही देखना पसंद करते हैं तो मैं उनसे यही कहना चाहता हूं कि दर्शक तो वही देखेगा जो आप दिखाएंगे | यदि अश्लीलता एवं फूहड़ता न दिखाई जाय तो धीरे-धीरे दर्शकों की मानसिकता भी परिवर्तित हो सकती है , परंतु सस्ती लोकप्रियता एवं धन कमाने के चक्कर में आज के फिल्म निर्माता एवं टीवी चैनल घर-घर में अश्लीलता परोस रहे हैं | हत्या , लूट , डकैती एवं मारधाड़ से भरपूर फिल्में दिखाई जा रही है | ऐसा करके यह लोग देश को बुराइयों की खाई में धकेल रहे हैं | कभी-कभी मन में यह विचार उठता है कि क्या आज हमारे देश के फिल्मकारों एवं टीवी के शो निर्माताओं के पास अश्लीलता भरे शब्दों से सजे गीत एवं अश्लील दृश्य ही मनुष्य को इन कार्यक्रमों की और आकर्षित करने का विषय बचा है ?? आज हमारे देश का यह हाल है तो इसका एक प्रमुख कारण इस प्रकार की फिल्में भी कही जा सकती हैं | आज पूरे देश में बच्चे , युवा एवं सम्माननीय ग्रहणी भी इनके मकड़जाल में जकड़ी हुई दिखाई पड़ रही है | मनुष्य जिस प्रकार के कार्यक्रम देखता है उसी प्रकार उसकी मानसिकता भी बन जाती है इसलिए इन पर प्रतिबंध लगाना बहुत आवश्यक है |*
*जो भी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इस प्रकार के मनोरंजन के साधनों का निर्माण करके आम जनमानस को बुराई की ओर ढकेल रहे हैं ऐसे लोगों पर सरकार के द्वारा भी सख्त से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए |*