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विश्व में हिंदी का महत्व

27 दिसम्बर 2019

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विश्व में हिंदी का महत्व

भाषा एक अर्थ में मनुष्य की अस्मिता है । भाषा ही निर्माण, विकास, सामाजिक - सांस्कृतिक पहचान का साधन है भाषा और साहित्य की समृद्धि तथा भाषा-भाषियों की संख्या आदि सभी दृष्टियों से हिंदी संसार की विशिष्ट एवं कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण भाषाओं में एक है । 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में यह निर्णय लिया गया कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी । जिसकी लिपि देवनागरी और अंको का रूप अंतर्राष्ट्रीय होगा {भारतीय संविधान भाग-17 के अध्याय की धारा 343(1) में वर्णित} इस निर्णय को राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर 1953 से भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। साथ ही हिन्दी के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के इतिहास में 10 जनवरी 1975 का दिन चिरस्मरणीय है। इस दिन नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हुआ था। इस अवसर पर हिन्दी के विश्वव्यापी स्वरूप को रेखांकित करते हुए मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री, शिवसागर रामगुलाम जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था - हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा तो है लेकिन हमारे लिए इस बात का अधिक महत्व है कि यह एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। मॉरीशस, सूरीनाम, फीजी, गुयाना, अफ्रीका के कई देश इस बात का मान करते हैं कि भारत की राष्ट्रभाषा को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने में उनका हाथ रहा है।

हिंदी एक समृद्ध भाषिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक परंपरा की वाहिनी है । वह संस्कृत जैसी संपन्न भाषा की उत्तराधिकारिणी है। क्योंकि यहां विश्व में हिंदी के महत्व को रेखांकित करना है, अत: यह उल्लेखनीय है कि हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य भी बड़ा विशाल है । आज विश्व स्तर पर हिंदी की स्वीकार्यता एवं व्याप्ति अनुभव की जा सकती है । आज जब हम हिंदी को विश्व भाषा में परिवर्तित होते हुए देख रहे हैं, तो यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम हम उन विशेषताओं को जान लें, जो किसी भाषा को वैश्विक संदर्भ प्रदान करती हैं ।

· सर्वप्रथम जिस भाषा को हम वैश्विक भाषा का दर्जा दे रहे हैं उस भाषा को जानने, समझने एवं लिखने वालों की संख्या अधिक से अधिक हो और वे विश्व के अनेक देशों में उस भाषा का प्रयोग कर रहे हों ।

· उस भाषा में साहित्य-सृजन की एक सुदीर्घ परंपरा हो और सभी विधाएं वैविध्यपूर्ण एवं समृद्ध हों । उस भाषा में सृजित कम से कम एक विधा का साहित्य विश्वस्तरीय हो ।

· उसकी शब्द संपदा विपुल एवं विराट हो तथा वह विश्व की अन्य बड़ी भाषाओं से विचार-विनिमय करते हुए एक-दूसरे को प्रेरित-प्रभावित करने में सक्षम हो ।

· उसकी शाब्दी एवं आर्थी संरचना तथा लिपि सरल, सुबोध एवं वैज्ञानिक हो। उसका पठन-पाठन और लेखन सहज एवं संभाव्य हो। उसमें निरंतर परिष्करण और परिवर्तन की सम्भावना हो ।

· उसमें ज्ञान, विज्ञान के तमाम अनुशासनों में वांग्मय सृजित एवं प्रकाशित हो तथा नये विषयों पर सामग्री तैयार करने की क्षमता हो ।

· वह नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के साथ अपने आपको पुरस्कृत एवं समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो ।

· वह अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक चिंताओं तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक हो ।

· वह जनसंचार माध्यमों में बड़े पैमाने पर देश विदेश में प्रयुक्त हो रही हो । वैश्विक मीडिया में उसका प्रभावी हस्तक्षेप हो ।

· उसका साहित्य अनुवाद के माध्यम से विश्व की दूसरी महत्वपूर्ण भाषाओं में उपलब्ध हो रहा हो । उसके पठन-पाठन तथा प्रसारण की सुविधा अनेक देशों में उपलब्ध हो ।

· उसमें उच्चकोटि की पारिभाषिक शब्दावली हो तथा वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के नवीनतम आविष्कारों को अभिव्यक्त करने में पूर्ण रूप से सक्षम हो ।

· वह विश्व चेतना की संवाहिका हो । वह स्थानीय आग्रहों से मुक्त, विश्व दृष्टि संपन्न कृतिकारों की भाषा हो, जिससे उनके द्वारा सृजित साहित्य विश्व बंधुत्व, विश्व मैत्री एवं विश्व कल्याण की भावना से अनुप्राणित हो।

जब हम उपर्युक्त प्रतिमानों पर हिंदी को परखते हैं तो यह प्रायः सभी मानकों पर खरी उतरती है ।

इस प्रकार सही अर्थों में विश्वभाषा उसे ही कहा जा सकता है जिसका चिंतन क्षेत्रीय परिधि को लांघ गया हो, जो राष्ट्र की सीमा का अतिक्रमण कर गया हो और समग्रतः विश्वमानव की चेतना में रूपांतरित हो रहा हो । यह तभी संभव हो पाता है, जब भाषा अपने क्षेत्र, वर्ग, जाति आदि के सामुदायिक चरित्र से ऊपर उठ जाती है ।

विश्व की प्रमुख भाषाओं की तुलना में हिंदी भाषा की स्थिति

संयुक्त राष्ट्र संघ की 6 आधिकारिक भाषाएं है - अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी, स्पेनिश । किन्तु आज विश्व स्तर पर हिंदी की इतनी मजबूत स्थिति होने के बावजूद भी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में हिंदी को स्थान नहीं मिल पाया है । जबकि यह सर्वविदित है कि हिंदी मात्र एक देश की ही भाषा नहीं है, वह विश्व-भर में फैले लाखों-करोड़ों प्रवासी भारतीयों और हिंदी-सेवियों के सांस्कृतिक पहचान की भाषा है ।

हिंदी भाषिक आंकड़ों की दृष्टि से सर्वाधिक प्रमाणिक ग्रंथों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ की 6 आधिकारिक भाषाओं की तुलना में हिंदी के मातृभाषा वक्ताओं की संख्या निम्न तालिका में प्रस्तुत की जा रही है। यह संख्या मिलियन (दस लाख) में है।

भाषा

स्रोत-1

स्रोत-2

स्रोत-3

स्रोत-4

चीनी

836

800

874

874

हिंदी

333

550

366

366

स्पेनिश

322

400

322-358

322-358

अंग्रेजी

322

400

341

341

अरबी

186

200

---

---

रूसी

170

170

167

167

फ्रांसीसी

072

090

077

077

इस तालिका से स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में हिंदी को भी स्थान मिलना चाहिए ।

इसके अतिरिक्त विश्वभर में 3500 भाषाओं और बोलियों का प्रयोग किया जाता है,जिनमें 16 भाषाएँ ऐसी हैं जिनका प्रयोग 5 करोड़ से अधिक लोग करते हैं। विश्व की ये 16 भाषाएँ हैं :-

हिन्दी

उर्दू

तेलुगु

मलय-बहासा

अरबी

चीनी

पुर्तगाली

रूसी

अंग्रेजी

जर्मन

फ्रांसीसी

स्पेनिश

इतालवी

तमिल

बांग्ला

चीनी

यह गौरव की बात है कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी पाँच भाषाएँ विश्व की 16 प्रमुख भाषाओं की सूची में शामिल हैं।

आज हिंदी भाषा का भूमंडलीकरण हो गया है । दिन-प्रतिदिन विश्व में हिंदी का महत्व बढ़ता ही जा रहा है । आज हिंदी को अपनी योग्यता प्रमाणित नहीं करनी है, वह स्वयं ही सर्वशक्ति संपन्न भाषा बनकर उभर रही है। हिंदी सर्वदा ही मूल्यों, आकांक्षाओं एवं मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती हुई विश्वबन्धुत्व के आदर्श को आत्मसात् किए हुए है । प्रसिद्ध भाषाविद् और विचारक ई.एम.सिओरन ने बड़े महत्व की बात कही है, कोई भी व्यक्ति किसी देश में निवास नहीं करता, बल्कि भाषा में निवास करता है। हिन्दी का वैश्विक स्वरूप मुख्य रूप से देशों के आधार पर चार वर्गों में विभाजित है जिनमें सर्वप्रथम फीजी, टोबेगो, त्रिनिदाद, गुयाना, मॉरीशस,एवं सूरीनाम देश आते हैं। दूसरे वर्ग में अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, इंग्लैंड, हालैंड, मलेशिया, सिंगापुर आदि देश हैं । तीसरे वर्ग में पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका हैं और अंतिम वर्ग में रूस, कोरिया, मंगोलिया, चीन, जापान, पोलैंड आदि देश हैं।

विश्व भर में हिंदी शैक्षणिक संस्थानों, संस्थाओं एवं प्रकाशनों की उपस्थिति

विश्व भर में हिंदी शैक्षणिक संस्थानों, संस्थाओं एवं प्रकाशनों की भरमार है, इनमें से कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :-

अमेरिका में 150 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों में, इंग्लैंड के 4 ( केम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, लंदन, यार्क ) विश्वविद्यालयों में, कोरिया के 2, नीदरलेंड और इट्ली के 4 एवं चीन के 20 विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन - अध्यापन काफी समय से हो रहा है। रूस और नार्वे में प्राथमिक पाठशालाओं से लेकर विश्वविद्यालय तक हिंदी पढ़ाई जाती है।

यू.के. में “गीतांजलि”, “यू.के. हिंदी समिति”, “भारतीय भाषा संगम”, “बहुभाषिक साहित्यिक समुदाय”, “हिंदी भाषा समिति”, “कृति यू.के”, चौपाल”, “कथा यू.के” एवं “कृति इंटरनेशनल” आदि अनेक हिंदी संस्थाएं कार्यरत हैं। कनाडा में “पनोरा”, “हिंदी साहित्य सभा”, “हिंदी प्रचारिणी सभा”, आदि हिंदी संस्थाएं कार्यरत हैं । नीदरलेंड में “हिंदी परिषद”, “डच हिंदी समिति”, “हिंदी प्रचार संस्था”, “गोपिया इंटरनेशनल”, सनातन एवं आर्यसमाजी संस्थाएं कार्य कर रही हैं ।

इन संस्थाओं के साथ-साथ विश्व के अनेक देशों से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी हो रहा है जिनमें मुख्य रूप से “विश्वा”, “हिन्दी जगत”, “विश्व विवेक”, “बाल भारती”, “हिन्दी चेतना”, “क्षितिज” अमेरिका से, “नमस्ते कनाडा”, “वसुधा”, “विश्व भारती”, “हिंदी टाइम्स”, “हिंदी अब्राड” आदि कनाडा से, “विश्व हिन्दी समाचार” मॉरिशस से, “अभिव्यक्ति” संयुक्त अरब अमीरात से एवं नार्वे में 1990 से “शांतिदूत” पत्रिका प्रकाशित हो रही है।

इन देशों में हिंदी सांस्कृतिक सेतु का ही काम करती है । यहां हिंदी के प्रति काफी रुचि दिखाई देती है । इन देशों के साथ अन्य देश भी हिंदी भाषा के माध्यम से इसके विपुल साहित्य का अध्ययन करना चाहते हैं, भारतीय दर्शन का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं और इस देश की प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता को समझना चाहते हैं। यही कारण है कि पूर्वी यूरोप के देशों में व्यापक स्तर पर हिंदी साहित्य का अनुवाद हो रहा है। अतः अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के कई रंग और कई पक्ष दिखाई देते हैं । हिन्दी आज भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के विराट फलक पर अपने अस्तित्व को आकार दे रही है, वह आज विश्व भाषा के रुप में प्रतिष्ठित है ।

आज विश्व में हिंदी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है । किन्तु इसे सर्वोच्च स्थान दिलाने के लिये निम्न कदम आवश्यक हैं :–

v हम विज्ञान, वाणिज्य, विधि तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पाठ्यसामग्री को हिंदी में उपलब्ध करायें ।

v सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी बोलने, लिखने, समझने वालों की सही संख्या निर्धारित करें ।

v भारत में हिंदी के सवेर्क्षण में हिंदी की उपभाषाओं को हिंदी से पृथक न करके हिंदी में शामिल करें ।

v हम संगठित होकर प्रयास करें कि हिंदी को शीघ्रातिशीघ्र संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रुप में मान्यता दिलाना मिले ।

v हिंदी प्रेमियों को हिंदी के प्रति देशवासियों को जागृत करना चाहिए । अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना है और इसे अपनाने में संकोच न करें ।

राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रतिष्ठा में जो समय लग रहा है वह हमारी निष्ठा की कमी को बताने वाला है । प्रसिद्ध निबन्धकार विद्यानिवास मिश्र जी ने कहा है कि हिन्दी भाषीजन स्वाति की प्रतीक्षा न करें। वे अपने तप के ताप से स्वय़ं को बादल के रुप में रुपांतरित करें । धरती को हिन्दी के पावस की प्रतीक्षा है हिंदी भाषा की किसी अन्य भाषा से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है कितुं मेरा मानना है कि भाषा की रक्षा सीमाओं की रक्षा जितनी ही जरुरी है। हिंदी में पूर्ण सामर्थ्य है और उसके पास विश्वबंधुत्व की शक्ति है ।

अंत में बस यही कहना है कि “हिंदी का प्रचार-प्रसार हिंदी पर लिखने से नहीं बल्कि हिंदी में लिखने से होगा”, अत: हिंदी का सर्वत्र प्रयोग करें एवं बिल्कुल भी संकोच न करें।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1.भाषा, विश्व हिन्दी सम्मेलन विशेषांक,केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय भारत सरकार

2.भाषा-प्रौद्यौगिकी एवं भाषा-प्रबंधन,सूर्यप्रसाद दीक्षित

3.हिन्दी राष्ट्रभाषा.राजभाषा,जनभाषा,शंकर दयाल सिंह

4.राजभाषा हिन्दी विचार और विश्लेषण,डॉ गोपाल शर्मा

5.आज की हिन्दी ,सुरेश कुमार जिन्दल, फूलदीप कुमार

6.हिन्दी का भाषिक और सामाजिक परिदृश्य,कृष्ण कुमार गोस्वामी

7. http://bharatdiscovery.com

8. http://sahityasamvad.com

9. http://drshashisingal.worldpress.com

10. http://makingindiaonline.in

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"शून्य से अनंत तक"

19 सितम्बर 2015
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भटकता है हर दिन इंसानशून्य से अनंत तक,खोजता स्वअस्तित्व कोजन्म से लेकर अंत तक ।अपनाये उसने कौन से न रुपसाधु, संत, महंत तकखोजते-खोजते पहुँच गया वह,राजा, प्रजा और रंक तक ।अपने अंदर जब झांका वह,आकाश की ओर जब ताका वह,पहचाना अपनी रिक्त्तता वह, सारी संभावनाओं के अंत तक । निष्कर्ष रहा उसका आज तक,शून्य ही श

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यत्र, तत्र, सर्वत्र

20 सितम्बर 2015
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. यत्र, तत्र, सर्वत्रयदि तुम बिखेर दो स्वयं कोयत्र, तत्र, सर्वत्रपुष्पों की तरह !यदि तुम महकने लगोयत्र, तत्र, सर्वत्रगुलाबों की तरह !यदि तुम छाया दो हर पथिक कोवृक्षों की तरह !शीतलता के लिए बहोहवा के झोंकों की तरह !चहको, चिड़ियों की तरह।चमको, चाँद-तारों की तरह !कुछ नहीं, सिर्फ मनोबल दोदीन-दुखियों कोसं

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भोर की पहली किरण

22 सितम्बर 2015
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भोर की पहली किरणआती है रोज अंधकार के बाद भोर की पहली किरण लाती है संदेशएक नयी सुबह कानव जागरण कानयी उमंगों का नयी आशाओं का । वह कहती है देखो मैं आ गयी घोर अंधकार को चीरकरतुम भी करो ऐसाअंधकार ने समेटना चाहा मुझेकिंतु मुझमें अंश है अग्नि का,छिपाया नहीं जा सकता अग्नि को और मैं आ गयी ।उठो, जागोसारे अं

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ई - ईश्वर

27 नवम्बर 2015
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ई-ईश्वरहम समुद्र में बढ़े जा रहे थेआगे और आगेतेज गति से,नाव में सवार…ले रहे थे आनंद…समुद्री हवाओं काकर रहे अवलोकनगुजरते द्वीपों का,लुभावनेसुहावनेदृश्यों का।चाँद भी बढ़ रहा थासाथ-साथ हमारे,अचानकटकराई नावएक बड़ी शिला से-उलट गई वहतंद्रा हटीऔरघबराए हम ।अब क्या होगा ???किंतुथैंक्स टू ई-ई-ईश्वर ।ईश्वर था सा

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निमंत्रण

3 अप्रैल 2016
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सूर्य और समय

24 अप्रैल 2016
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सूर्य औरसमयजंगल,जिसमें हम खोज रहे थेप्राकृतिक सुंदरता कुछ पल पूर्वओढ़ता जा रहा हैभयावह आवरणअंधकार का !.... और हम भागना चाहते हैंदूर, कहीं दूर ।इस अंधकार से,इस जंगल से ।सूरज का आनाऔर सूरज का जानाबदल जाता नितजंगल के विभिन्न रूप।जंगल तो वहीबस,चमत्कार सूर्य का ।समय का गुजर जानाबदल जाता ज्योंशरीर के विभिन

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दृष्टिकोण

24 अप्रैल 2016
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दृष्टिकोणसूर्य आधाउदित है,या फिरआधा ढला ?घट है आधाखाली,या फिरआधा भरा?नैन थेअर्द्धरात्रि में,अधजगे याअधसोये ?अंतर‘दृष्टिकोण’ का सिर्फबताइये,हम क्यों मुसकराये ?        --x--    

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याराडा बीच, विशाखापतनम !

6 अगस्त 2016
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विशाखापतनम !

6 अगस्त 2016
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प्रत्याशा

4 नवम्बर 2016
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प्रत्याशा नई सदी, नई पवन,नव जीवन, नव मानव मन,नव उमंग, नव अभिलाषा करते ये ज्यों स्वागत-सा।नव शीर्षक नव परिभाषा,नव दृष्टि नव जिज्ञासा,शून्य से अनंत तक,नई आशा, नई प्रत्याशा।मंजरी यह एक तुलसी की?या फल एक साधना का?है अरुणिमा रूपी आशा,या जननी की अमृताशा?फैली आज ब्रह्मांड में, न

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जानना

4 नवम्बर 2016
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जाननाएक ने कहा- वह विद्वान है । दूसरे ने कहा - वह सरल है। तीसरे ने कहा- वह पागल है ।मैं उससे मिला-मैंने उसे हर दृष्टि से देखा परखा।मैंने पाया- वह ‘ईमानदार’ है। उसको तो मैं जाना हीसाथ ही बाकी तीनों को भी जान गया।

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कन्याकुमारी

10 दिसम्बर 2017
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संस्कृत हिंदी और विज्ञान

12 अगस्त 2018
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संस्कृत, हिंदी और विज्ञान स्वामी विवेकानन्दके अनुसार – दुनियाभर के वैज्ञानिक अपने नूतन परीक्षणों से जो परिणाम प्राप्त कररहे हैं, उनमें से अधिकांशहमारे ग्रंथों मे समाहित हैं। हमारी परम्परायें विकसित विज्ञान का पर्याय हैं ।हमारे ग्रंथ मूलत: संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं ।

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मातृभाषा एवम विदेशी भाषा

19 सितम्बर 2018
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मातृभाषा एवम विदेशी भाषा

18 जुलाई 2019
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बच्चे की भाषा को माँ औरमाँ की भाषा को बच्चा कब से समझता है ?आपको पता है न ?जन्म से...शायद जन्म से भी पहले से ?..तब से ...जब बच्चा बोल भी नहीं पाता ।किंतु वह समझता है माँ की भाषा माँ समझती है बच्चे की भाषा । वह भाषा कौन सी होती है ?वह भाषा जो भी होती है,बच्चे का माँ से संवाद उसी भाषामें होता है ।

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सम्मान समारोह

26 अगस्त 2019
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पटेल टाइम्स मीडिया सम्मान समारोह

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मीडिया सम्मान समारोह

26 अगस्त 2019
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पटेल टाइम्स मीडिया सम्मान समारोह

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मीडिया सम्मान

26 अगस्त 2019
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सम्मान समारोह

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आशा "क्षमा" द्वारा सम्पादित प्रबंध -काव्य "भारतीय शौर्य गाथा" का विमोचन

26 अगस्त 2019
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आशा "क्षमा" द्वारा सम्पादित प्रबंध -काव्य "भारतीय शौर्य गाथा" का विमोचन

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सुश्री आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित "रामायण" (सचित्र काव्य ) का विमोचन

26 अगस्त 2019
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आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित "रामायण"

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"रामायण" का विमोचन

26 अगस्त 2019
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सुश्री आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित -"रामायण" का विमोचन

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्यरचयिता - स्व. श्री दया शंकर द्विवेदी सम्पादक - श्रीमति आशा त्रिपाठी "क्षमा"

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

26 अगस्त 2019
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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

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ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी

1 सितम्बर 2019
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ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी”*श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है शूद्रों और नारी का अपमान।भगवान श्रीराम के चित्रों को जूतों से पीटने वाले भारत के राजनैतिक को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में

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विश्व में हिंदी का महत्व

27 दिसम्बर 2019
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मेरा गाँव, मेरा देश

27 दिसम्बर 2019
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जय हिंद, जय हिंदी

27 दिसम्बर 2019
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आ, अब घर लौट चलें

30 मार्च 2020
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आ, अब घर लौट चलें

30 मार्च 2020
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मेरी मां - मेरा ईश्वर

31 मार्च 2020
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मेरी मां - मेरा ईश्वर आजकाफी अरसे बाद,बैठी मैं फुरसत मेंअपनी मां के पास ।कुछ अपनी सुनायीकुछ उनकी सुनी ....देखा,मेरी मांअब बूढ़ी हो चुकी है !हाथ-पैर कमजोर,आखों की रोशनी कमजोर,शरीर शिथिल,हर काम के लिये,चाहियेसहाराउनकी सेवा करते हुएमन में विचार आते रहे -यही वे हाथ हैंजिन्होंन

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भारतीय संस्कृति, हिन्दी और भारत का बाल एवम् युवा वर्ग

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जीवन

10 मई 2020
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विश्व विजेता भारत

23 अप्रैल 2021
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आ, अब घर लौट चलें

23 अप्रैल 2021
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भारतीय संस्कृति एवं कोरोना

23 अप्रैल 2021
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हिंदी वैज्ञानिक भाषा है

23 अप्रैल 2021
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ओम

23 अप्रैल 2021
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लिखना है अब हिंदी में

24 अप्रैल 2021
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हिंदी हिंदुस्तान की

24 अप्रैल 2021
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कोरोना का एक वर्ष

25 अप्रैल 2021
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जीवन को पुनर्जीवित कियाधन्यवाद तुमको कोरोना ।जीवन में महत्वपूर्ण क्या ?बताया तुमने कोरोना ।।1।।कैसे बढ़े प्रतिरोधक क्षमता ?सिखलाया तुमने कोरोना ।करो संघर्ष, पर डरो ना,पढ़ाया तुमने कोरोना ।।2।।तकनीक ने क्या दिया ?तकनीक की भूमिका क्या ?तकनीक का प्रयोग करके,आगे बढ़ो, कभी ठ्हरों ना ।।3।।घर बार हो कैसा?जीवन

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हिंदी

27 अप्रैल 2021
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आह्वान

3 मई 2021
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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक

12 अगस्त 2022
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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक भाषा का महत्व सभी जानते हैं । जिस प्रकार एक मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन, उसके व्यवहार, प्रकृति इत्यादि में वातावरण, परिवेश, उसके पूर्वजों, जलवायु इत्यादि जिन अ

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विश्व विजेता भारत

12 अगस्त 2022
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 विश्व विजेता भारत  हम तो विश्व विजेता थे .....  ये हम कहां से कहां आ गये ?  स्व शास्त्र भूले, वेद, उपनिषद भूले,  कैसे हमें विदेशी राग भा गये ?  क्या नहीं हमारे पास ? सब कुछ तो है,  दृष्टि

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स्वदेशी ही पर होगा बल

15 अगस्त 2022
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 मिली हमे आजादी मगर   योजना हमारी न हुई सफल।   सपना महान भारत का जिस पर होना अभी अमल ।।1।।     सपना अपनी भाषा का   संस्कृति के प्रचार का ।  विश्व गुरु बनने का,   सभी रहे अब तक विफल।।2।। 

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एक बार फिर

15 अगस्त 2022
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 एक बार फिर....*  *----------------*     *एक बार फिर* जानी -   नश्वर जीवन की नश्वरता !  रिश्ते सारे बनावटी लगते,   कब कौन जाये, क्या पता ?     *एक बार फिर* याद आया ....  हमको भी जाना एक द

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माँ

15 अगस्त 2022
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 माँ जन्म देती है बेटी को,    फिर स्वयं बेटी बन जाती है  !  तन हैं दो, पर मन हैं एक   ये शिक्षा दे के जाती है  !!  

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