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बूढ़ा दरख्त

30 दिसम्बर 2019

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5 मिि



जाने कितने वर्षों से वह बरगद का वृक्ष उस चौपड पर खड़ा अतीत की न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी था, न जाने कितने जीव-जंतुओं, पथिकों की शरणस्थली था। आज उदासी से घिरा था, वर्तमान परिवेश में उसे अपने ऊपर आने वाले संकट का एहसास था, लोगों की बदली हुई मानसिकता ने उसे हिला दिया था ! सोच रहा था, क्या समय आया है जिससे स्वतंत्रता व ऐशोआराम में बाधा पडे, उसे रास्ते से हटा दो, चाहे वे हरे-भरे वृक्ष हों या फिर बूढ़े मां-बाप ! ऐसा ही हुआ था दिनेश जी के साथ।

बेचारे दिनेश जी जब गांव से शहर आए थे तो कुछ नहीं था उनके पास, बड़ी मेहनत की। बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने खुद को कर्म की भट्ठी में झोंक दिया था। उनकी पत्नी बच्चों के पालन-पोषण में व्यस्त थीं। एक-एक सुविधा का ध्यान रखा। दो बेटे और दो बेटी थे उनके। अपना जीवन तो उन्होंने जिया ही नहीं। बस बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, सुख-सुविधाओं के लिए कार्य करते रहे और यही सोचते रहे कि जब ये लोग अच्छी नौकरी कर लेंगे तो फिर वे आराम करेंगे। लोन लेकर घर बनाया। बेटियों का अच्छे परिवार में विवाह किया। दोनों बेटियां सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन गई थी और दोनों बेटे गजटेड आफिसर!उनकी शादियां भी अच्छे परिवार में हो गयी थी। दोनों बहुएं भी नौकरीपेशा थी। सब अच्छा चल रहा था। पर कबाड़ किसे अच्छा लगता है !

दिनेश जी और उनकी पत्नी का यूं खाली बैठना परिवार में खटकने लगा था। अब दोनों ही बुजुर्ग हो चुके थे। पूरी तरह से डिपेंडेंट हो गए थे। तबियत भी नासाज रहती थी।

उनकी देखभाल कौन करे ? इस बात पर घर में महाभारत मची रहती। कौन उनके लिए घर पर रूके ? नौकरों पर भरोसा नहीं कर सकते थे, घूमना-फिरना, पार्टी में जाना सब कुछ बाधित हो रहा था। दोनों बेटे भी पत्नियों की चिक-चिक से तंग आ चुके थे। बड़े बेटे का एक दोस्त विदेश में रहता था। वह आया हुआ था। बात चली तो माता-पिता की बातें भी हुईं। उसने कहा -भई मैंने तो अपने माता-पिता को आश्रम में छोड़ रखा है। सालाना पैसा भर देता हूं। वहां उनकी अच्छी सार-संभाल होती है।बीमार होने पर इलाज भी हो जाता है। साल में एक बार आ पाता हूं, तब मिल लेता हूं। वहां उन लोगों को हम उम्र लोगों की कंपनी भी मिल जाती है। सब सैटल है अपना। कोई टेंशन नहीं।

दोनों बहुएं बड़े गौर से सुन रही थी। तुरंत बोली-कहां है ये आश्रम। हम भी बात कर लेते हैं। मां-बाबूजी की वहां अच्छे से देखभाल होगी। जो पैसा लगेगा हम दोनों दे देंगे। अरे भाभी!ऐसे भी आश्रम हैं, जहां पैसा नहीं देना पड़ता। आप लोग तो यहीं हो, मिल लिया करना उनसे।

भाई तू क्या कहता है ? बड़े ने छोटे से पूछा। मैं क्या जानूं अब उनके लिए मैं तो छुट्टी लेकर नहीं बैठ सकता।

दिनेश जी और उनकी पत्नी अपने कमरे में बैठे यह वार्तालाप सुन रहे थे। आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। कलेजे के टुकड़ों ने कलेजा ही टूक-टूक कर दिया था।

मां ने बिटिया को फोन घुमाया और ये बातें बताई तो वो भी छूटते ही बोली-गलत क्या है इसमें मां, आप लोग घर में बोर हो जाते होंगे, वहां जाओ, हम उम्र लोगों के साथ रहो। मेरी सासू तो अपनी मर्जी से चली गई। ये कहते हुए उसने फोन रख दिया। अब किससे कहें और क्या कहें ?

चलो वे हमें निकाले, उससे पहले हम ही चले जाते हैं। लंबी सांस भरके दिनेश जी ने पत्नी को सामान समेटने का आदेश दिया।

सुबह घर में सन्नाटा था। दूध ऐसे ही पड़ा था। अखबार भी नहीं उठाया गया था। चाय भी नहीं बनी थी। बड़ी बहू का पारा सातवें आसमान पर पहुंचा हुआ था, बड़बड़ाते हुए -ये क्या मांजी आपने न दूध उठाया, न चाय बनाई। ये काम तो आपका था न, फिर भी, ऐसे कैसे चलेगा ?

कमरे में पहुंची तो देखा कमरा तो खाली था। अब ये कहां गए ? अरे सुनते हो, ये तुम्हारे मां-बाप नहीं है कमरे में।

सब भागकर आए, कमरा देखा एक मुड़ा-तुड़ा कागज रखा था। हम जा रहें हैं, कहां नहीं पता, पर ढूंढने की कोशिश न करना।

सब एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। चलो अच्छा हुआ बला टल गई। नहीं तो कैसे कहते उनसे ?

चलो भई, अब तो नौकरानी भी ढूंढनी पड़ेगी। काम कौन करेगा ? सब अपने में व्यस्त हो चुके। बर्ष़ो से लगा बरगद उखड़ चुका था, अब उसकी छांव बेमानी हो गई थी।

मैं यह सब देखकर जड़वत हो गई थी और सोचने लगी कि क्या वास्तव में हम राम-कृष्ण व श्रवण के देश में रहते हैं ? क्या यही हमारे नैतिक मूल्य हैं ? ये कैसे संस्कार हैं, जो वृद्ध माता-पिता को दर - दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं या वृद्धाश्रम जाने को मजबूर कर देते हैं। कहां गई हमारी मानवता जो ईश्वर तुल्य माता-पिता पर हाथ उठाने में भी किसी को शर्म नहीं आती ! माना वैचारिक मतभेद बढ़ रहे हैं संबंधों में तल्खियां बढ़ रही हैं तो इसका क्या यही समाधान है ?

आज जब कहीं ऐसा होते देखती हूं तो मन खून के आंसू रोता है। ये दरख्त या बूढे मां-बाप हमें सदा छांव देते आए हैं, सबके नसीब में यह सुख नहीं होता, छांव का महत्व रेगिस्तान में भटकने वालों से पूछो, किसी अनाथ से पूछो

इतने स्वार्थी न बनो क्योंकि इतिहास अपनेआप को दोहराता है, हम जैसा बोते हैं, वैसा ही काटते हैं इसलिए दरख्तों को आंगन में रहने दो। इनकी छांव बड़ी अनमोल है।

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जिंदगी सिगरेट-सी

27 जुलाई 2019
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धीमे-धीमे सुलगती,जिंदगी सिगरेट-सी।तनाव से जल रही,हो रही धुआं-धुआं।जिंदगी सिगरेट-सी,दुख की लगी तीली !भभक कर जल उठी,घुलने लगा जहर फिर!सांस-सांस घुट उठी,जिंदगी सिगरेट- सी ।रोग दोस्त बन गए,फिज़ा में जहर मिल गए।ग़म ने जब जकड़ लिया,खाट को पकड़ लिया।मति भ्रष्ट हो चली,जिंदगी सिगरेट- सी।धीमे-धीमे जल उठी,फूंक

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आखिर क्यों..???

27 जुलाई 2019
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तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्

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बूढ़ी औरत

29 जुलाई 2019
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वो बूढ़ी औरत बड़ी देर से व्याकुल सी स्टेशन पर किसी को ढूंढ रही थी। मालती बड़ी देर से उसे देख रही थी ,उसकी ट्रेन एक घंटा लेट थी । उसने महसूस किया कि वृद्धा का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं था ।दुबली-पतली, झुर्रियों से भरा चेहरा,उलझे हुए से बाल ,अजीब सी चोगे जैसी पोशाक पहने ,हाथ में एक पोटली थामे जमीन पर

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हूं मैं एक अबूझ पहेली

31 जुलाई 2019
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भीड़ से घिरी लेकिनबिल्कुल अकेली हूं मैंहां, एक अबूझ पहेली हूं मैंकहने को सब अपने मेरेरहे सदा मुझको हैं घेरेपर समझे कोई न मन मेराखामोशियो ने मुझको घेराढूंढूं मैं अपना स्थान...जिसका नहीं किसी को ज्ञानक्या अस्तित्व है घर में मेरा?क्या है अपनी मेरी पहचान?अपने दर्द में बिल्कुल अकेलीहूं मैं एक अबूझ पहेली

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गिद्ध

6 अगस्त 2019
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गिद्ध ये नाम सुनते ही वह पक्षी स्मरण होआता है,जो मृत प्राणियों को अपना आहारबनाता है।पर अब सुना है कि गिद्धों की संख्या कम हो गई है या यूं कहें कि आदमी मेंगिद्ध की प्रवृति ने जन्म ले लिया है,जो जिंदाइंसानों को भी अपना शिकार बना लेती है।शायद यही कारण है कि गिद्ध अब नहीं

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कीमो

20 अगस्त 2019
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आज-कल मुझे अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं,क्योंकि मेरी मां को कैंसर हुआ है और उनकी कीमोथेरेपीचल रही है,जीवन को बचाने की जद्दोजहद में लगी हूं। मैंआपको यह सब बता रही हूं,इसका ये मतलब बिल्कुलनहीं कि मैं अपना दुखड़ा रो रही हूं,बल्कि वहां जो मुझेअनुभव हुआ,उसे आपसे बा

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एहसास है मुझे

28 अगस्त 2019
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एहसास है मुझे,वह दर्द जो तूने जिया...वह जख्म जो तुझे ,दुनिया ने दिया।एहसास है मुझे,उस अकेलेपन का..उस तड़पते दिल का..जिसे चाह थी,बूंद भर प्यार की..परिवार के दुलार की..!एहसास है मुझे,उन आंसुओं का..जो तेरी आंख से बहे..उस टूटे हृदय का..उस वेदना का..उस तड़प का..।तेरा एहसास,जो दर्द बनकर,जख्म के रूप में जि

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दिल जिंदा रहा तो...!!

27 सितम्बर 2019
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क्यों बढ़ रही दिलों में दूरियां,क्या हो गई ऐसी मजबूरियां ।क्यों दिलों की बात कोई सुनता नहीं,क्यों स्वार्थ बन रहा कमजोरियां।भावनाओं को यूं दिल में दफन न करो,दिल की आवाज यूं अनसुनी न करो।यूं अकेले सफर कट सकता नहीं,अकेले रहने का यूं दिखावा न करो।दिल मुरझा गया तो कैसे जी पाओगे,जिंदगी का बोझ न इसतरह ढो प

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कल,आज और कल

29 सितम्बर 2019
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तीक्ष्ण वाणी के प्रहार,झेलता वह मासूम।सुबकता,सिसकता,आंसू पौंछता।खोजता अपने अपराध,शनै-शनै मरता बचपन!आक्रोश का ज्वालामुखी,उसके अंदर लेता आकार।शरीर पर चोटों की मार,बनाती उसे पत्थर!पनपता एक विष-वृक्षजलती प्रतिशोध की ज्वाला!पी जाती उसकी मासूमियत।वक्त से पहले ही होता बड़ा,समझता शत्रु समाज को,चल पड़ता पाप

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लेखक का मौत से साक्षात्कार

22 अक्टूबर 2019
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प्रकाश एक बेहतरीन लेखक था,पाठक उसकी रचनाओ की प्रतीक्षा करते थे। कहानी हो या उपन्यास या फिर कविता उसकी लेखनी कमाल की थी और पात्र-चयन तो और भी उत्तम।पिछले कुछ दिनों से वित्तीय समस्या के कारण वह तनाव में चल रहा था ,इससे उसका लेखन भी अछूता नहीं रहा था।वह एक कहानी लिख रहा

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बूढ़ा दरख्त

30 दिसम्बर 2019
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5 मििजाने कितने वर्षों से वह बरगद का वृक्ष उस चौपड पर खड़ा अतीत की न जाने कितनी घटनाओं का साक्षी था, न जाने कितने जीव-जंतुओं, पथिकों की शरणस्थली था। आज उदासी से घिरा था, वर्तमान परिवेश में उसे अपने ऊपर आने वाले संकट का एहसास था, लोगों की बदली हुई मानसिकता ने उसे हिला

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'अभि'की कुण्डलियाँ

30 दिसम्बर 2019
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टूटा कुनबा देख के, मुखिया हुआ निराश।तिनके जैसा उड़ गया,जीवन से विश्वास।जीवन से विश्वास,प्रेम जब उसका हारा।जीत गया है स्वार्थ,कहाँ अब रहा सहारा।कहती 'अभि' निज बात,पटाखा जैसे फूटा।उड़ी घृणा की धुंध,और फिर कुनबा टूटा।प्यारी पीहर की लगे ,मुझको सारी बात।पक्षी जैसी मैं उड़ी, छूटे भगिनी-भ्रात।छूटे भगिनी-भ्

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या

3 फरवरी 2020
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हिन्दी भाषा का मानक रूप आज अशुद्ध शब्दों के प्रयोग के कारण लुप्त सा होता जा रहा है।यह चिंतनीय विषय है।हिंदी विस्तृत भू-भाग की भाषा है। क्षेत्रीय बोलियों के संपर्क में आने से शुद्ध शब्दों का स्वरूप बदल जाता है।अहिंदी भाषियों के द्वारा भी हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में किया जाता हैजिसके कारण श

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हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या-2

9 फरवरी 2020
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आदरणीय मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत श्री संजय कौशिक'विज्ञात'जी और सखी नीतू ठाकुर'विदुषी'जी चाहते हैं कि मैं इस समस्या पर और कार्य करूँ।करना भी चाहती हूँ,पर सोचती हूँ क्या मेरे लिख देने मात्र से कोई क्रांति संभव है??मेरे विचार से इसका उत्तर"नहीं"है।आज लाखों लोग सोशल मीडिया पर साहित्य सेवा में लीन हैं।क

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जैसे सब कुछ भूल रहा था

31 मार्च 2020
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नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,नेह हृदय कुछ बोल रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरे,जैसे सबकुछ भूल रहा था।अम्बर पर बदरी छाई थी,दुख की गठरी लादे भागे।नयनों से सावन बरसे थाप्यासा मन क्यों तरस रहा था।खोया-खोया जीवन मेराचातक बन कर तड़प रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरेजैसे सब कुछ भ

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शब्द संपदा-कुछ दोहे

27 अप्रैल 2020
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गीतापार्थ उठाओ शस्त्र तुम,करो अधर्म का अंत।रणभूमि में कृष्ण कहे,गीता ज्ञान अनंत।।कर्मयोग के ज्ञान का,अनुपम दे संदेश।गीता जीवन सार है,जिससे कटते क्लेश।।पतवारसाहस की पतवार हो,संकल्पों को थाम।पाना अपने लक्ष्य को,करना अपना नाम।।अक्षरअक्षर अच्युत अजर हैं, कण-कण में विस्तार।वही अनादि अनंत हैं,इस जीवन का स

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कोरोना 'महामारी'

4 मई 2020
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विज्ञात छंदमुक्तक एक प्रयासदेख लगे न कोरोनाहाथ हमें सदा धोनादूर रहो करो बातेंजान कभी नहीं खोना।देख बड़ी महामारीजीवन पे पड़े भारीचूक गया जहाँ कोईसाथ चली नहीं हारी।अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'स्वरचित मौलिक

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शब्द संपदा -दोहावली

15 मई 2020
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*वक्तवक्त-वक्त की बात है,सबके बदले ढंग।वक्त पड़े ही बदलते,खरबूजे के रंग।*कविताकविता कवि की कल्पना,जन-मन की है आस।समय भले ही हो बुरा,कविता रहती खास।*भावभाव बिना जीवन नहीं,नीरस होते प्राण।ढोते बोझा व्यर्थ का,कैसे हो परित्राण।*प्रेम प्रेम समर्पण माँगता,जैसे चातक चाह।स्वाति बूँद की आस में,कितनी भरता आह

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शिव वंदना

19 मई 2020
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अक्षर अच्युत चंद्र शिरोमणिविष्णुवल्लभ योगी दिगंबरत्रिलोकेश श्रीकंठ शूल्पाणिअष्टमूर्ति शंभू शशिशेखर।ॐ प्रणव उदघोष अभ्यंतरऊर्जित परम करे उत्साहितअनादि अनंत अभेद शाश्वतकण-कण में वह सदा प्रवाहित।।अज सर्व भव शंभू महेश्वरनीलकंठ हे भीम पिनाकीत्रिलोकेश कवची गंगाधरपरशुहस्त हे जगद्वयापीॐ निनाद में शून्य सनातन

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अणु कोरोना हार चलेगा

21 मई 2020
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हाहाकार मचा है जग मेंकैसे बेड़ा पार लगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगालाशों के अंबार लगे हैंबिछड़ रहे अपनों से अपनेसाँसों की टूटी डोरी मेंटूट रहें हैं सपने कितनेबंदी जीवन भय का घेरालेकिन सुख का सूर्य उगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगा।।काल कठोर भयंकर भारीनिर्धन को अब भूख निगल

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और गांव की याद आई

27 मई 2020
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एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ

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शब्द संपदा-दोहावली

14 जून 2020
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पावस*पावस बूंँदों से हुई,शीतल धरती आज।चंचल चपला दामिनी,मेघों का है राज।*मानसून*मानसून ने कर दिया,जग जीवन खुशहाल।कृषक खेत में झूमता,बदला उसका काल।*वारिद*नभ में वारिद छा गए,देख नाचते मोर।विरहिन के नयना झरे,देख घटा घनघोर।*पछुआ*पछुआ ले बादल उड़ी,देख टूटती आस।हलधर बैठा खेत में,होता बड़ा निराश।*कृषक*ऋण के

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वो कली मासूम सी

26 दिसम्बर 2020
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बेड़ियों ने रूप बदलेरख दिया तन को सजाकरवो कली मासूम सी जोदेखती सब मुस्कुराकर।शूल बोए जा रहे थेरीतियों की आड़ में जबखेल सा लगता उसे थाजानती सच ये भला कबछिन रहा बचपन उसी कापड़ रहीं थीं सात भाँवर।।छूटता घर आँगना अबनयन से नदियाँ बहीं फिरहाथ में गुड़िया लिए थीबंधनों से अब गई घिरआज नन्हें पग दिखाएँघाव सा

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विश्व गुर्दा दिवस पर विशेष

10 मार्च 2021
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कल विश्व गुर्दा दिवस है।इसका उद्देश्य है लोगों में गुर्दे और गुर्दे से संबंधित बीमारियों को लेकर जागरूकता पैदा करना। ईश्वर न करे कभी किसी को गुर्दे से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़े और यदि ऐसा हो जाए तो अपनों के जीवन को बचाने के लिए हमें गुर्दा प्रत्यारोपण से पीछे नहीं हटना चाहिए।आज के इस युग

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वीरों के वीर राणा सांगा

23 नवम्बर 2021
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<p>राणा सांगा के जीवन की चंद झलकियां आल्हा छंद में चित्रित करने का प्रयास</p> <p>सबका वंदन मैं करुँ,

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शाश्वत सत्य

24 नवम्बर 2021
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<p><br> <br> जीवन ईश्वर की दी अनुपम कृति है और मनुष्य मन, वाणी और कर्म की एकरूपता रखने के कारण इस सृ

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