*इस धरा धाम जड़ - चेतन , देव , दानव , मानव या चराचर जगत की जितनी भी सृष्टि है सबकी अपनी अपनी मर्यादा है | मर्यादित जीवन सबके लिए बनाया गया है | इस धरती पर बुद्धिमान एवं विवेकवान होने के कारण अपनी मर्यादा का पालन करने के लिए मनुष्य का दायित्व सबसे अधिक है क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य के ही माध्यम से सकल संसार को मर्यादा का पाठ पढ़ाया है | अग्नि , जल और वायु मनुष्य के लिए परम आवश्यक है परंतु इनके द्वारा जब अपनी मर्यादा का उल्लंघन किया जाता है तो पृथ्वी पर त्राहि-त्राहि मच जाती है , इसलिए मर्यादा का होना परम आवश्यक है | मर्यादा का पालन करके मनुष्य एक सुंदर सुशिक्षित जीवन यापन करता है वहीं अमर्यादित व्यक्ति समाज में निंदा का पात्र बनता है | मनुष्यों के लिए अनेक प्रकार की मर्यादाओं का वर्णन हमारे शास्त्रों में किया गया है जिसमें मुख्य रूप से वाणी एवं इंद्रियों की मर्यादा है | जब मनुष्य के द्वारा मर्यादा भंग की जाती है तो उसके मस्तिष्क में मानव मात्र से द्वेष आरंभ हो जाता है साथ ही और भी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है | मानव जीवन विश्वास पर आधारित है जब तक मनुष्य की मर्यादा बनी रहती है तब तक उसके प्रति लोगों का विश्वास बना रहता है परंतु मर्यादा भंग होते ही वह विश्वास अविश्वास में बदल जाता है | मनुष्य का स्वभाव मूल रूप से वाणी पर आधारित होता है सरल एवं मधुर वाणी मनुष्य के स्वभाव की मर्यादा है जिसका उल्लंघन करने मनुष्य कटुभाषी माना जाता है | समाज में अधिक बहस करना , किसी की आलोचना या चापलूसी करना , किसी को प्रताड़ित करना मनुष्य की मर्यादा का उल्लंघन है | मोह , लोभ , काम , क्रोध , अहंकार , ईर्ष्या , घृणा , कुंठा , निराशा , आक्रोश , प्रेम , श्रद्धा , विश्वास , ईमानदारी , परोपकार , स्वार्थ , चापलूसी , आलोचना आदि कोई भी विषय जब तक मर्यादा में रहता है तब तक मनुष्य को कोई हानि नहीं होती परंतु समस्या तब उत्पन्न होने लगती है जब मर्यादा की सीमारेखा का उल्लंघन होता है | मनुष्य जब तक अपनी मर्यादा में रहता है तब तक उसका जीवन बहुत ही सुखी ढंग से व्यतीत होता है इसलिए मानव जीवन में मर्यादा का बहुत बड़ा महत्व है |*
*आज जिस प्रकार का परिवेश हमको देखने को मिल रहा है उसका वर्णन करना ही कठिन है | कहने को तो लोग कहते हैं कि हम आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग में जीवन जी रहे हैं परंतु समाज के क्रियाकलाप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हम धीरे-धीरे अमर्यादित युग में प्रवेश कर रहे हैं | आज किसी के भी पास मर्यादा के दर्शन बहुत ही कठिनता से हो रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि साधारण मनुष्यों की बात तो छोड़ ही दीजिए समाज के उच्च पदों पर बैठे हुए अनेक गणमान्य लोगों के द्वारा जिस तरह वाणी की मर्यादा का उल्लंघन हो रहा है उससे अनेक प्रकार के विवाद उत्पन्न हो रहे हैं और राष्ट्र व समाज आपस में कटुता का परिवेश निर्मित कर रहा है | आज मनुष्य अपने इंद्रियों की मर्यादा को भूल कर के समाज में अनेक प्रकार के ऐसे कृत्य कर रहा है जो मानव मात्र को लज्जित करने वाला है | एक विद्यार्थी का जीवन मर्यादित जीवन कहा जाता है | एक विद्यार्थी की मर्यादा होती है शिक्षा ग्रहण करना क्योंकि विद्यार्थी किसी भी राष्ट्र का भविष्य कहा जाता है परंतु आज विद्यार्थियों की मर्यादा सड़कों पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | ऐसा प्रतीत होता है मनुष्य अपनी मर्यादा को ना तो जानना चाहता है और ना ही मानना चाहता है | जिस प्रकार आज मनुष्य के द्वारा मर्यादा का उल्लंघन किया जा रहा है उसी प्रकार आज प्रकृति भी अमर्यादित होती जा रही है | जब परमात्मा का युवराज कहे जाने वाला मनुष्य अपनी मर्यादा को भूल गया है तो प्रकृति के मर्यादित रहने की आशा कैसे की जा सकती है | आज जगह-जगह भूकंप , भूस्खलन एवं समुद्रों में उठने वाली अनेक प्रकार की प्राणघातक लहरें यह बताने के लिए अधिक है कि आज मर्यादा का पालन यदि मनुष्य नहीं कर रहा है तो उसका प्रभाव प्रकृति के ऊपर भी पड़ रहा है |*
*प्रत्येक मनुष्य को अपनी मर्यादा की सीमा रेखा के भीतर रहकर ही कोई कार्य करना चाहिए क्योंकि इस जीवन को मर्यादित रख करके ही सुरक्षित रखा जा सकता है |*