*इस विश्व का सबसे प्राचीन एवं पुरातन धर्म यदि कोई है तो वह सनातन है | सनातन धर्म की प्रत्येक मान्यता एवं परंपरा मानव मात्र के कल्याण के लिए तो है ही साथ ही सनातन धर्म के प्रत्येक क्रियाकलाप में प्रकृति का सामंजस्य एवं वैज्ञानिकता का समावेश भी रहता है | यह सृष्टि निरंतर चलायमान है दिन बीतते जाते हैं समय परिवर्तित होता जाता है , इसी क्रम में कालगणना को व्यवस्थित रखने के लिए समय को वर्ष , माह , सप्ताह एवं दिन में विभाजित किया गया है | जब एक वर्ष व्यतीत हो जाता है तो नया वर्ष अपने निश्चित समय पर प्रारंभ भी होता है | नववर्ष मनाने का अभिप्राय यह है कि हम एक नवीन एवं हर्षोल्लास से युक्त प्राकृतिक वातावरण में नए वर्ष में प्रवेश करें , इसी को दृष्टिगत रखते हुए हमारे महापुरुषों ने वह समय चुना जब प्रकृति फूलों से लदी रहती है , शीतकालीन सत्र अपने अंतिम पड़ाव पर होता है तथा मनुष्य आलस्य का त्याग करके नए युग का स्वागत करने के लिए स्वयं को तैयार करता है , वह समय होता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का | हिंदू धर्म के अतिरिक्त अन्य सभी धर्मों में भी लगभग मार्च एवं अप्रैल में ही नववर्ष मनाने का इतिहास देखने को मिलता है | नव वर्ष मनाने का अर्थ है कि प्रकृति एवं परिवेश में कुछ नवीनता की झलक अवश्य मिलनी चाहिए परंतु आज जो नववर्ष की तैयारियां की जा रही है उसमें नवीनता तो नहीं दिखाई पड़ती है वरन् आलस्य , ठिठुरन एवं मलिनता का ही साम्राज्य इस प्राकृतिक ठंड में दिखाई पड़ रहा है | ऐसे में कौन सी नवीनता एवं कौन सा उल्लास / उत्साह मनुष्य स्वयं में जागृत कर पाएगा ? इसीलिए सनातन धर्म आदिकाल से ही दिव्य रहा है क्योंकि सनातन के पुरोधाओं ने विज्ञान , प्रकृति एवं मानवीय परिवेश को मिला करके ही किसी पर्व एवं त्यौहार की आधारशिला रखी है |*
*आज कुछ लोगों के मतानुसार नववर्ष रात्रि १२:०० बजे प्रारम्भ हो जायेगा | क्योंकि आज वर्ष २०१९ व्यतीत हो जाएगा एवं २०२० ईसवी सन प्रारंभ हो जाएगा | ईस्वीय मान्यता सनातन मान्यता नहीं है | सनातन धर्म कभी नहीं मानता है कि अर्धरात्रि को तिथि परिवर्तित हो सकती है , सनातन धर्म की मान्यता सूर्योदय से लेकर सूर्योदय तक मानी गई है | सनातन ही नहीं विज्ञान भी आज तर्क दे रहा है कि दिन अर्धरात्रि को नहीं परिवर्तित हो सकता क्योंकि दिन तभी माना जाता है जब सूर्योदय होता है तो आधी रात को भला दिन कैसे परिवर्तित हो सकता है | आज भी वित्तीय वर्ष इस जनवरी से न प्रारम्भ होकर अप्रैल से ही होता है | समस्त सरकारी कार्यालयों में अप्रैल से ही नया कार्यदिवस माना जाता है तो भला यह कैसा नववर्ष है ? मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" हर्षोल्लास के साथ आज नववर्ष मनाने वालों से इतना ही कहना चाहता हूं कि आप पूरे मनोयोग से से नववर्ष को मनाइए परंतु ईसाई नववर्ष के इतिहास को भी जान लेना परम आवश्यक है जहां ईसाई लोग भी अप्रैल में ही अपना नववर्ष मनाया करते थे , परंतु आज के कुछ वर्ष पहले किसी रोमन तानाशाह ने अपनी जिद को पूरी करने के लिए एक जनवरी को नववर्ष की घोषणा कर दी और पूरा विश्व उसी के पीछे चल पड़ा | आज आधुनिकता एवं पाश्चात्य संस्कृति का इतना प्रभाव है कि अन्य धर्म के अनुयायी भी अपने धर्म के आदेशों को ना मानकर के भीड़ का हिस्सा बनते हुए अपने क्रियाकलाप कर रहे हैं | दूसरों की संस्कृति को अपनाने वालों का मैं कदापि विरोधी नहीं हूं परंतु ऐसा करने वालों को मैं यही बताना चाहूंगा कि उनको अपनी भी संस्कृति का ध्यान अवश्य रखना चाहिए अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब आप यह भी भूल जाएंगे कि आप क्या थे और आपका इतिहास क्या रहा है |*
*जहां विश्व के सभी धर्म मार्च-अप्रैल की खिलती धूप एवं आनंदमय वातावरण नववर्ष मनाते हैं | वहीं ठिठुरन भरी ठंडी में रात को १२:०० बजे नववर्ष के आगमन की खुशी में ओछे नृत्य एवं मदिरापान देखकर बरबस हंसी ही छूट जाती है |*