कई बार विचार शून्य हो जाते हैं. आज कुछ ऐसा ही दिन है. आज अन्दर बाहर एक मौन का अहसास है. अभी एक कव्वे ने कांव कांव की, फिर बगल की सड़क से एक मोटर साइकिल निकली, फिर दूर कहीं एक कार का हार्न बजा. मन चुपचाप रहा बस सुनता रहा. ऐसा बहुत कम होता है. अक्सर तो मन में हर पल विचारों के, कल्पनाओं के, आकांक्षाओं के तूफ़ान घुमड़ते ही रहते हैं. ये मौसम का असर भी हो सकता है क्योंकि ठंड अच्छी खासी पड़ रही है ।
अभी लिखते लिखते पहला विचार पैदा हुआ. कमाल है, मैं फोन की स्क्रीन पर टाइप रोमन में अंग्रेजी के की पेड पर कर रहा हूँ और सामने अक्षर हिन्दी के उभर रहे हैं. मैं नतमस्तक हूँ उन महान लोगों के चरणों में जिन्होंने हमें ऐसी तकनीकी सुविधाएं प्रदान की, वो भी एक दम निस्वार्थ भाव से - उनका कहीं नाम भी नहीं है। उन्हें या उन जैसे हज़ारों को जिन्होंने हमें आज रोज़ प्रयोग में आने वाले सेल फोन से लेकर कम्प्यूटर कार हवाई जहाज जैसे अनगिनत आविष्कार दिए और चुपचाप चले गए, हम अगर रोज़ सुबह शाम भी धन्यवाद करें तो भी कम है। वास्तविक ऋषि वो नही था जो खुद किसी यौगिक क्रिया द्वारा उड़ता था बल्कि वो था जिसने मनुष्य जाति की आने वाली सारी पीढ़ियों के लिए हज़ारों मील उड़ कर जाने के आविष्कार किये ।
धन्य हैं कल युग की नई ऋषि परंपरा जिसकी कृपा से आज वह भी हो रहा है जिसकी कल्पना भी कभी हमने बचपन में नहीं की थी। फोन पर हज़ारों मील दूर बैठे अपने अंतरंगों से मुफ्त में आमने सामने बात हो जाती है । हम कहीं भी हों, हमेशा सेल फोन से अपने प्रियजनों के संपर्क में रहते हैं । टी वी पर सारे संसार की घटनाएँ पल पल दिखती रहती हैं । जो दूरियां महीनों में तय होती थी वो घंटो में हो जाती है । जिस भोजन के लिए मनुष्य प्रजाति मारी मारी खतरनाक जंगली जानवरों के बीच पहाड़ों और जंगलों की खाक छानती थी वो उसके फ्रिज में हमेशा भरा रहता है । बटन दबाते ही घर ठंडे से गर्म और गर्म से ठंडा हो जाता है । पहले लोग अकाल भूख और महामारियों से मरते थे । आज लोग अनाप शनाप और ज्यादा खा कर बढ़े कोलेस्ट्रॉल और शुगर की वजह से दिल के दौरे और ब्रेन स्ट्रोक से मर रहे हैं ।
क्या उन ऋषि वैज्ञानिकों ने कभी अपनी मूर्ती किसी पार्क में लगाने की बात सोची ? क्या उन्होंने कभी किसी पुरुस्कार के लिए फाइल बगल में दबाए लॉबिंग की ? आज हमारे छोटे कद के ओछे राजनेता जिन्होंने बजाय किसी रचनात्मक कार्य के अक्सर भृष्टाचारपूर्ण विध्वंसात्मक कृत्य ही किये हैं, अपनी बड़ी बड़ी आदमकद मूर्तियाँ अपने ही जीवन काल में स्थापित करने को रात दिन बैचेन हैं ।
लो जी विचारों का रेला शुरू हो ही गया.....
कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा
07 जनवरी 2020सही बात है