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ऋतुराज बसंत -गीत

25 जनवरी 2015

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भोर की किरण फूटी कोयल जब कूकी मन बरबस हरषा गया लगा बसंत आ गया यादों के पृष्ठ पलट डाले दिन याद आये लड़कपन वाले उपवन का हर फूल हर्षा गया लगा बसंत आ गया दिन में सूरज गरमाने लगा सर्द मौसम भी शर्माने लगा ह्रदय में फिर अनुराग छा गया लगा बसंत आ गया खेतों में रंग बिखरे पीली सरसों और निखरे पीला वर्ण नभ तक छा गया लगा बसंत आ गया गीतकार -प्रकाश पाण्डेय
शब्दनगरी संगठन

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9 अप्रैल 2015

सच्चिदानंद तिवारी

सच्चिदानंद तिवारी

बहुत सुंदर , सुंदरता है जैसे समंदर के अंदर।

5 फरवरी 2015

prakashpandey

prakashpandey

आपका धन्यवाद

30 जनवरी 2015

ओंकार जायसवाल

ओंकार जायसवाल

अति सुन्दर !!!!

29 जनवरी 2015

27 जनवरी 2015

दयाशंकर सिंह

दयाशंकर सिंह

बसंत की याद आ गई।

27 जनवरी 2015

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गीत कहीं जन्मे

25 जनवरी 2015
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ब्रह्म नाद के मोहक स्वर जब गूंजे मन में आत्म चेतना की घाटी में गीत कहीं जन्मे जानी पहचानी एक सूरत जब दृश्य घाटी से उभरे डूब गया सागर सा मन सुधियों में गहरे -गहरे संदली पवन महक गयी फिर इस तन की धड़कन में मन मोहिनी एक छवि ने इस मन को बाँध लिया निर्झर झरने सा संगीत उठा अंतर में गीतों ने

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ऋतुराज बसंत -गीत

25 जनवरी 2015
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भोर की किरण फूटी कोयल जब कूकी मन बरबस हरषा गया लगा बसंत आ गया यादों के पृष्ठ पलट डाले दिन याद आये लड़कपन वाले उपवन का हर फूल हर्षा गया लगा बसंत आ गया दिन में सूरज गरमाने लगा सर्द मौसम भी शर्माने लगा ह्रदय में फिर अनुराग छा गया लगा बसंत आ गया खेतों में रंग बिखरे पीली सरसों और निखरे पील

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रात भर मुस्कराती रही

31 जनवरी 2015
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बादलों में छिपी चांदनी रात भर मुस्कराती रही यूँ अन्जाने भुजपाश में ज़िन्दगी कसमसाती रही गीत गाने लगे फिर सुमन प्यार के उपवनों में उठे राग मल्हार के बांसुरी में छिपी रागनी रात भर सुर जगाती रही घटा काली गगन में छाने लगी ये प्यासी धरा मुस्कराने लगी बादलों की छमक रात भर प्यासा तन -मन भिगात

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