*मानव जीवन में विचारों का बड़ा महत्व है | विचारों की शक्ति असीम होती है | यहां व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है क्योंकि उसके द्वारा हृदय में जैसे विचार किए जाते हैं उसी प्रकार कर्म भी संपादित होने लगते हैं क्योंकि विचार ही कर्म के बीज हैं , व्यवहार के प्रेरक हैं | जब मनुष्य व्यस्त होता है तो उस व्यस्तता के आगे कोई दूसरा विचार मन में कदापि नहीं आता है और जब कोई दूसरा विचार नहीं आता है तो मनुष्य के द्वारा कोई अवांछनीय कर्म भी नहीं किया जाता है इसलिए मनुष्य को स्वयं को व्यस्त रखना चाहिए | विचारों का स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण इसकी शक्ति व प्रभाव तत्काल मनुष्यों के समझ में नहीं आती और अपने विचारों का नकारात्मक ढंग से उपयोग कर बाद में उसका फल भुगतते हैं | यहाँ पर विचारों की सत्यता को पहचानना चाहिए क्योंकि सूक्ष्म स्तर पर काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , राग , द्वेष जैसे विकार मनुष्य की महान संभावनाओं को बाधित कर देते हैं तो इसका एक ही कारण होता है मनुष्य के नकारात्मक विचार | विचारों के इस नकारात्मक गहराइयों को समझ पाना , उन से बाहर निकलने की इच्छा करना एक बहुत बड़ा कार्य है जिसने भी अपने विचारों पर नियंत्रण कर लिया एवं सतत सकारात्मक विचार उसके हृदय में उत्पन्न होने लगे तो समझ लीजिए कि उसने अपने जीवन की चाबी को अपने हाथ में ले लिया है | प्राय: लोग कहा करते हैं कि मन में अनेकों विचार आते हैं , मन नहीं मानता है तो इसके लिए हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि मन कुछ विशेष नहीं बल्कि वह विचारों का प्रवाह भर है | वैसे ही जैसे नदी कुछ नहीं है बल्कि पानी का प्रवाह मात्र है | यदि पानी को शुद्ध कर ले तो नदी स्वत: निर्मल हो जाएगी वैसे ही विचारों को शुद्ध एवं नियंत्रित करते ही मन एवं जीवन भी शुद्ध एवं निर्मल हो जाते हैं |*
*आज समाज में चारों ओर जिस प्रकार का परिवेश हमको दिखाई पड़ रहा है उसको देखकर यह कहा जा सकता है कि आज मनुष्य अपने विचारों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा है | मनुष्य के मन मस्तिष्क में अच्छे विचार उत्पन्न नहीं हो पा रहे हैं | नकारात्मकता से भरा मन नीच एवं दुष्ट विचारों से परिपूर्ण हो करके सतत नकारात्मकता , सन्ताप एवं दुख मनुष्य को पहुंचा रहे हैं | साधारण सी बात है कि जिस दिन मनुष्य का मस्तिष्क निर्मल होता है उस दिन वह प्रसन्न होता है और जिस दिन उसके मन में उद्विग्नता होती है उस दिन उसको सारी सुख सुविधाएं स्वयं के विपरीत लगने लगती है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जीवन में विचारों की भूमिका स्पष्ट है , इसलिए स्वयं के जीवन में संतुलन , प्रसन्नता एवं संतोष प्राप्त करने के लिए विचारों का संयम परम आवश्यक है क्योंकि इसके बिना कोई भी अन्य क्रिया प्रभावी नहीं हो सकती है | मनुष्य कितने ही धार्मिक कर्मकांड कर ले , हठयोह की क्रिया एवं आसान - प्राणायाम कर ले इतना सब करने के बाद भी यदि उसने अपने विचारों को परिष्कृत और नियंत्रित नहीं किया तो उसके सारे प्रयास निष्फल तो होंगे ही साथ ही उसको अपनी क्रिया का वांछित फल कदापि नहीं प्राप्त हो सकता है | जीवन में मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए मनुष्य को अपने विचारों को संयमित एवं सकारात्मक करते हुए श्रेष्ठता का संवाहक बनाना होगा | परंतु आज मनुष्य दिन भर टीवी , मोबाइल एवं सोशल मीडिया पर अनेकों प्रकार के अवांछनीय कार्यक्रमों को देख करके वैसे ही विचारों को मन में प्रवेश दे रहा है जिसके कारण मनुष्य के द्वारा अनेक प्रकार की अवांछनीय कृत्य भी हो रहे हैं | यदि इनसे बचना है तो मनुष्य को अपने विचारों पर संयम करना ही होगा | विचारों की दिशा एवं दशा परिवर्तित करने के लिए महापुरुषों का सत्संग एवं सत्साहित्यों का स्वाध्याय एक सरल मार्ग हो सकता है | इस पर विचार करने की आवश्यकता है |*
*मनुष्य के लिए अपने जीवन को सकारात्मकता की ओर ले जाने के लिए अनुशासन एवं विचारों का अर्थ पूर्ण नियोजन परम आवश्यक है | जब स्वस्थ सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में मनुष्य व्यस्त होता है तो वह अनावश्यक विचारों से स्वयं को बचा लेता है इसलिए सदैव स्वस्थ एवं सकारात्मक चिंतन करने की आवश्यकता है |*