"ऋषि दधीचि" सम बन तुम देवों को तारो
"चरैवेति-चरैवेति" का अमोध "मंत्र" उचारो
"पूर्ण समर्पण" कर सर्वस्व अराध्य पर वारो
बन जाओ तुम श्री कृष्ण सम--प्यारो-न्यारो
"नीलकण्ठ" सम बन कर पीयो हलहल सारो
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"देती रहती है नदी--मीठा जल होता है
लेता रहता है सागर--जल खारा होता है
ठहर कर नाली का जल मैला हीं रहता है
शीतलता दे कर भी चाँद कलंकित होता है
सुवासित पुष्प मुरझा कर- कूड़े पर दिखता है
दानवीर मानव वह है जो- चलता हीं रहता है
सद्-विप्र वही बन धर्म-युद्ध में विजयी होता है
*******डॉ. कवि कुमार निर्मल********