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महाशिवरात्रि

14 फरवरी 2020

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★★★★★शिवरात्रि के शुभ अवसर पर★★★★★
★शिव का रहस्यमयी एवम् गौरवमयी इतिहास★

2020 ई. में 21 फरवरी को यह शुभ दिन आ रहा है।

ऋग्वेद लगभग 15 (पंद्रह) हजार वर्ष पूर्व रचित होना प्रारम्भ हुआ था। अनुमानतः सात हजार वर्ष पूर्व प्रथम महासंभुति तारक ब्रह्म भगवान शिव इस धरा धाम पर मानव के रूप में अवतरित हुए थे।

वह समय ऋग्वेदीय युग का अंतिम चरण तथा यजुर्वेदीय युग का प्रारंभिक काल था। इसका प्रमाण इस प्रकार मिलता है कि ऋग्वेद के आरम्भ में भगवान् शिव की चर्चा नहीं है किन्तु अंतिम काल यथेष्ट उपलब्ध है। उन दिनों, आर्यो का आगमन मध्य एशिया से भारत वर्ष में हो रहा था। भारतवर्ष की भूमि उर्वर थी जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य को स्थायित्व प्रदान करती थी। "शिव पुराण" में मात्र शिव विवाह की चर्चा है। पुराण में कही पर शिव को अजन्मा तो कही पर शिवलिंग के रूप में चर्चा की गई है जो अपने-आप में विरोधाभास है।

भगवान शिव का जन्म इंडो - तिब्बती गोष्ठी में हुआ था। भगवान शिव के माता-पिता का उल्लेख इतिहास में नहीं किया गया है क्योकि भगवान शिव से पहले समाज में विवाह की प्रथा नहीं थी। इस समय मानव गणगोष्ठी व्यवस्था में पहाड़ की गुफा में रहता था जो सबसे शक्तिशाली पुरुष होता था वही उस गणगोष्ठी का गणपति अर्थात गणेश होता था। एक गणपति के पास एक से अधिक स्त्रियां रहती थी। अपने - अपने गोष्ठियों की जनसंख्या वृद्धि हेतु स्त्रीयाँ अपने गणपति से जब सम्भोग करती थी तब उसे क्षणिक सुख अनुभव होता था जिसके फलस्वरुप गणगोष्ठी में धीरे धीरे लिंग पूजा का प्रचलन आया। शिव के जाने के बहुत बाद पुराणकारों ने लिंग पूजा को भगवान शिव से जोड़ दिया गया जो अनुचित है। चुकि भगवान शिव ने "लिंग पूजा" का विरोध किया था और इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए सर्वप्रथम "विवाह पद्धति" का सूत्रपात किया था। इस प्रकार विवाह व्यवस्था का परिवर्तन हुआ समाज में। इसलिए उन्हें आदिपिता भी कहा जाता है कारण पहले परिवार का अस्तित्व था हीं नहीं। एतदर्थ शिव ने पशुवत समाज को एक व्यवस्थित रूप दिया। इसके लिए मानव समाज सदा उनका ऋणी रहेगा।

मध्य अमेरिका, उत्तरी अमेरिका में भी इस लिंग पूजा का प्रचलन था। मध्य अमेरिका जो इस प्रकार की लिंग पूजा करते थे उनकी सभ्यता को "मायासभ्यता" के नाम से जाना जाता है । उस समय लिंग की पूजा शिव के रूप में नहीं होती थी, बल्कि प्रतीक के रूप में होती थी। यह एक सामाजिक संस्कार था, इससे अध्यात्मिकता से कोई संबंध नही था। लिंग पूजा का संबंध शिवपूजा मानकर करने का प्रवर्तन आज से संभवतः मात्र ढाई हजार वर्ष पूर्व हुआ था। जैन युग में शिव लिंग पूजा आरम्भ हुई। आज भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेषकर राढ़ (झारखण्ड-बिहार-बंगाल सीमांचल क्षेत्र) की जमीन खोदने पर अनेक बड़े-बड़े शिवलिंग मिलते हैं। सब के सब जैन युग के शिवलिंग हैं। पौराणिक शिवचर में युग में भी शिव लिंग की पूजा निरंतर होती रही। जैन युग के बाइस प्रकार के शिवलिंग हैं जैसे आदिलिंग, ज्योतिलिंग, अनादिलिंग इत्यादि।
जो भी हो लिंग पूजा या शिवलिंग पूजा एक प्रकार का जड़ पूजा है। इससे आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं। आध्यात्मिक उन्नति के लिए मनुष्य को भगवान शिव द्वारा प्रदत्त "विद्यामाया आष्टंग योग क्रिया पर आधारित तंत्र साधना का अभ्यास करना होगा एवं अपने अंदर उस विराट सत्ता को अनुभव करना होगा ऋणात्मक वृत्तियों से निजाद पा कर।

★भगवान शिव के काल में समाजिक परिवेश★
शिवकाल में समाज नाम की कोई चीज नहीं थी।
मनुष्य गोष्टीबद्ध थे। एक - एक गोष्ठी एक - एक पहाड़ी पर रहती थी जिनके प्रधान के रूप में एक ऋषि होते थे। जैसे ऋषि भारद्वाज, कश्यप, वशिष्ठ (चीन सें तंत्र साधना सीख इसका भारत क्षेत्र में प्रचार-प्रसार किए) आदि।

उस प्रधान के नाम पर गोत्र होता था तथा उस पहाड़ी पर रहने वाले सभी का वही गोत्र होता था। इन गोत्रगत् गोष्टियों में हमेशा वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी। जो गोष्टी जीत जाती थी वह दूसरी गोष्टी की महिलाओं को जबरन अपनी भोग्या स्त्रि बना लेती थी। विरोध करने पर अस्त्रसस्त्रादि व्यवहृत कर हिंसा होती। वे लाठी का प्रहार कर, हाथ में कड़ी पहन कर खीच कर ले जाई जाती थीं अत: प्रकोष्ठ में जो बाद में परिस्कृत हो गंदर्भ विवाह के रुप में प्रचलित हुआ ऐयाश देवादि एवम् राजाओं द्वारा। लाठी के प्रहार के कारण सिर से रक्तपात होता था जो बाद में कस्टम के रूप में "सिंदूर" लगाने की प्रथा हो गई और यह आज भी प्रचलित है। वह कड़ी आज "चूड़ी" बन गई जो आज सभी महिलाएँ पहनती है। ये सुहागिन के चिन्ह अधिकृत हो रह गये।

भगवान शिव गोष्टिगत भाव को समाप्त कर एक जाति-वर्णरहित "वृहद मानव समाज" बनाने के लिए कई नियम बनाए और उन्होंने कहा "आत्मगोत्रम परित्ज्य शिव गोत्र प्रविशितु" अर्थात-- सभी का गोत्र एक है और वह है "शिव गोत्र"।

उन्होंने क्षुद्र भावनाओं जैसे जिओ-सेन्टीमेन्ट अथवा सोसिओ-सेन्टीमेन्ट को हटाकर "एक मानव समाज" बनाने की भावना दी। 'हरमे पिता गौरी माता स्वदेशो भुवनत्रयम' अर्थात परमपुरुष हमारे पिता है प्रकृति हमारी माता है, यह ब्रह्मांड हमारा देश है और हम सभी बन्धु है। भगवान् शिव ने "विश्व बंधुत्व" का संदेश मानव समाज को दिया।

भगवान शिव के समय में आर्य भारत में आ चुके थे। और आ भी रहे थे। भारत वर्ष के लोग जो गेहुआ रंग के थे उन्हें आर्य हेय दृष्टि से देखते थे और उन्हें "अनार्य" कहते थे। आर्य उत्तर -पश्चिम कोण के रास्ते मध्य एशिया से भारत आ रहे थे, कारण अत्यंत शीत और बर्फीले तूफान के कारण वहाँ मनुष्य और पशु को जीवित रहना कठिन था। उस समय आर्य और भारतीय अर्थात अष्ट्रिक -मंगोल - निग्रोएड के बीच संघर्ष हुआ करता था। भगवान शिव ने संघर्ष को समाप्त करने के लिए तीनो जाति के स्त्रियों यथा आर्य कन्या पार्वती, अनार्य कन्या काली और मंगोल कन्या गंगा से वैवाहिक संबंध स्थापित किये। उनका उदेश्य एक सुदृढ़ समाज स्थापित करना था।

★★★★★शिव पार्वती विवाह★★★★★
वह पर्वतराज की कन्या थी इसलिए उन्हें "पार्वती" कहा जाता था। उनका नाम "गौरी" था क्योंकि वह गोरे रंग की थी। पार्वती आर्यो के राजा दक्ष जो हिमालय के पहाड़ी अंचल में रहते रहते थे, यह उनकी हीं पुत्री थी। पार्वती शिव के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थी अतः वे शिव से विवाह करना चाहती थी पर राजा दक्ष इसके विरोधी थे क्योंकि शिव यद्यपि एक विराट व्यक्ति थे पर वे अनार्य थे। अतः दक्ष नहीं चाहते थे कि उनकि पुत्री की शादी एक अनार्य व्यक्ति से हो। परंतु विजई पार्वती ह़ी हुईं। उनकी विल्व पत्र पर की हुई आराधना फलित हुई और दोनों में विवाह संपन्न हो गया। ऐसा कहा जाता है कि विवाह के समय उनके साथ गण, किन्नर, भुत - प्रेतादि बारात के रूप में गए थे परंतु उनके साथ उनके गण अर्थात शिष्य थे जो अनार्य थे। आर्यो ने उन्हें "भुत-प्रेत" कहा। शिव के साथ पार्वती का विवाह तो हो गया परंतु यह विवाह बहुत समय तक टिक न सका। पार्वती से एक पुत्र "भैरव" पैदा हुआ। जो अपने पिता शिव से बहुत प्रभावित थे। राजा दक्ष ने बड़े पैमाने पर अनार्यो पर अत्याचार करना प्रारम्भ किया और भगवान शिव के विरोध में तरह -तरह की योजनाए बनाते रहे। उसी में एक योजना थी कि उन्हों ने एक विराट यज्ञ आयोजित किया पर उन्हों ने शिव को आमंत्रित नहीं किया। ऐसे यज्ञ में शिव नहीं जा सकते थे अतः पार्वती को भी नहीं जाना चाहिए था। पर उस अवहेलना का विरोध करने के लिए पार्वती ने वहाँ जाना निश्चित किया। वहाँ जाकर पार्वती ने विरोध तो किया पर स्वंय "आत्मदाह" तक कर लिया। इसका नतीजा कुछ अच्छा हुआ। धीरे-धीरे अब आर्यो तथा अनार्यो में सम्बन्ध अच्छा होना प्रारम्भ हो गया।

★★★★★★भगवान शिव और काली★★★★★★
भगवान शिव अनार्य कन्या श्याम वर्ण "काली" से भी विवाह किये थे 【बहुविवाह की विधिवत् सुव्यवस्था...संभवत: उस काल में स्त्रियाँ अधिक और पुरुष कम रहे होंगे। काली एक उत्कृष्ट श्रेणि की सिद्व साधिका थी। आर्य कन्या गौर वर्ण पार्वती से एक पुत्र भैरव और काली से एक पुत्री "भैरवी" ने जन्म लिए थे। दोनों भगवान शिव के साथ श्मशान में साधना (उच्चतर तंत्र साधना) करते थे। श्मशान में आम लोग कम जाते है जिससे वहाँ मानस तरंग वातावरण में विरल रहता है फलस्वरुप साधना में मन को बाधा नही होती है और इस कारण श्मशान में साधना अच्छी होती है। कहा जाता है कि एक दिन काली भगवान शिव के बगैर अनुमति के अपने पुत्री को देखने श्मशान चली आई। जहाँ पूर्व से ही शिव, भैरव और भैरवी के साथ साधना कर रहे थे इसी दौरान रात के अँधेरे में काली का पैर शिव को स्पर्श किया तत्पश्चात शिव ने कहा "त्वम् किम्", फलस्वरुप काली से संकोचवश दांत तले जीभ निकल गई। बहुत बाद में पुराणकार ने इस घटना को काल्पनिक कथा द्वारा एक अलग रूप और कहानी में जाना गया जो समाज में वर्तमान में प्रचलित है।

★★★★★★भगवान शिव और गंगा★★★★★★
भगवान शिव और गंगा नदी का कोई सम्बन्ध नही है। "गंगा" एक पीत वर्ण की मंगोल कन्या थी जो शिव की पत्नी थी। गंगा से "कार्तिक" पुत्र पैदा हुए। कार्तिक बचपन से ही आलसी और बहिर्मुखी स्वभाव का था। मन से चँचल था जिससे इसका मन आध्यात्मिक साधना में नही लगता था जबकि पार्वती पुत्र भैरव और काली पुत्री भैरवी अपने पिता शिव के बताये मार्ग का अनुपालन कठोरतम तरीके से किया करते थे। कार्तिक के चंचलता और बहिर्मुखी स्वभाव से गंगा काफी चिंतित रहती थी। भगवान शिव उनके मानसिक चिंताओं को दूर करने के लिए समाज के नजर में सबसे ज्यादा मान सम्मान देते थे। जिसके फलस्वरुप शिव के पारिवारिक सदस्य और आमजन कहते थे कि शिव पत्नी गंगा को अपने सर पर बैठा लिए है। बाद में पुराणकार इस धारणा को विकृत रूप देकर शिव के सर और जटा से गंगा नदी को ही निकाल दिया जो अप्रकृत है। कार्तिक की पत्नी का नाम देवसेना थी, इसलिए कार्तिक को देवसेनापति भी कहा जाता है।
इस प्रकार भगवान शिव को अपने तीन पत्नी से उपन्न मात्र तीन संतान भैरव, भैरवी और कार्तिक थे। गणेश या गणपति शिव का पुत्र नही था। गणपति गण गोष्ठी के प्रधान होते थे। उस समय आम गण की अपने गणपति से अपेक्षा करता था कि हमारा गणपति हाथी जैसा विशाल और बलवान हो और हमारे गण गोष्ठी का प्रजनन चूहे के समान त्वरित हो। उस समय के गण गोष्ठी की इसी धारणा को मूर्त रूप में पुराणकार गणपति या गणेश को शिव से संबंध जोड़ दिया। इसी तरह शिव के हाथ में त्रिशूल दिखाया जाता है जबकि विदित है कि उस समय लोह आदि मेटालिक खनिजों की खोज नही हुई थी। पार्वती को रेशमी साड़ी में दिखाया जाता है जबकि साड़ी उस समय बनाने का खोज नही हुआ था। वास्तविकता है कि उस समय के लोग पेड़ो के पत्ते और जानवर का खाल जैसे मृग वा व्यध्र आदि हीं पहनते थे। पत्थर का औजार व हथियार रखते थे। पहिया या चक्र का भी अविष्कार नही हुआ था इसलिए भगवान शिव जंगली पशु याक पर चढ़ते थे क्योकि याक दूर से ही दलदली और बर्फीली क्षेत्र को अनुभव कर लेता है। याक की सवारी कर शिव ने आल्प्स पर्वत तक का भ्रमण किये और मानवता कल्याणार्थ अपने अवदान व धर्मोपदेश को प्रचारित किये। इसी तरह उस समय जब दो गण लड़ते थे तो पराजित गण से 'बम' बोलवाने की प्रथा थी। जो आज के लोग तीर्थ कावड़िया यात्रा के दौरान ★बोल बम★ का नारा देते हैं। भगवान शिव पशु से भी बहुत प्रेम करते थे इसलिए शिव को पशुपति भी कहा जाता है। पुराणकार शिव के पशु प्रेम को गले में नाग लपेटकर दिखाया है। सच्चाई है कि शिव सभी पशु से प्रेम करते थे न की केवल नाग से। चुकी शिव के समय भाषा थी लेकिन लिपि नही था जिससे शिव के अवदानों को लिपिबद्ध नही किया जा सका। एकमात्र श्रुतिकर्ता इतिहास का माध्यम होता था जो कि उनके स्मरण व कथन पर आधारित था। फलस्वरुप शिव का इतिहास कालखंड के अनुसार पौराणिक (काल्पनिक) व विकृत होता गया। भगवान शिव के पश्चात भाव चित्रात्मक लिपि अस्तित्व में आयी जो लिपिबद्ध के लिए यथोपयोग नही हो सका।भगवान शिव से प्रभावित सिंधु सभ्यता का उद्भव हुआ था। इस सभ्यता की लिपि भी भावचित्रात्मक थी।

★★★भगवान शिव का मानवता के लिए अवदान★★★

◆भगवान शिव ने संगीत के सप्त स्वर 'सा रे ग म प ध नी' की रचना सात अलग अलग पशु के स्वर के अनुसार किये थे। संगीत, नृत्य, छंद, मुद्रा आदि समाज को उपहार स्वरूप शिव ने ही दिए, इसलिए शिव को ★नटराज★ भी कहा जाता है। मानव के शीघ्र बुद्धि विकसित हेतु शिव ने तांडव नृत्य दिए। आधुनिक ★आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति★ शिव का ही देन है। इसलिए शिव को ★बैद्यनाथ★ भी कहते है। शिव का सबसे अमूल्य देन आध्यात्म क्षेत्र में ★तंत्र साधना★ पद्धति है। समाजिक क्षेत्र में शिव ने सर्वप्रथम वैवाहिक ★दाम्पत्य व्यवस्था★ मानव समाज को दिए। समाज में स्त्रियां उचित सम्मान की हक़दार बनी। शिवकाल में स्त्रियों को पुरुषों के समान सभी अधिकार प्राप्त थे इसलिए शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में प्रतिबिम्बित किया गया। तीन अलग अलग रेस की महिलाओ से वैवाहिक संबंध स्थापित कर मानव समाज में एकता का सूत्रपात किया। आर्य -अनार्य के द्वैष को खत्म करने और मानवता के रक्षा हेतु शिव को विष वमन भी करना पड़ा इस कारण इन्हें ★नीलकंठ★ भी कहा जाता है। शिव ने उस समय के गण के वर्तमान और भविष्य को देखते हुए सभी समस्याओ का उचित समाधान दिए जो मानव समाज के लिए सदैव स्मरणीय रहेगा। शिव के बिना मानव सभ्यता का इतिहास नही लिखा जा सकता है।
★शिव ने मनुष्य को साहसी बनने , धर्मनिष्ठ बनने की शिक्षा दी थी, इसलिए शिव को ★वीरेश्वर★ भी कहते है। साथ ही कहा था ऋजुता का त्याग मत करना, सदैव सीधे और उचित पथ पर चलना। शिव सरलता के प्रतीक थे। इस कारण मनुष्य ने शिव में देवत्व का अभिप्रकाश देखा था। धरती के सरल मनुष्य ने शिव में समस्त ऐश्वर्यों का समावेश पाया था। इस कारण जाति - वर्ण, विद्वान - अविद्वान के भेद के बिना सभी मनुष्यों ने शिव के चरणों पर अपने को समर्पित कर कहा था -
।।निवेदयामि चात्मानं त्वं गति :परमेश्वर।।

★★★★★शिव की शिक्षा★★★★★
1. वर्त्तमानेषु वर्तेत।
2. कर्मणा बद्धते जीव: विद्यया तु प्रमुच्यते।
3. यद् भर्तुरेव हितमिच्छति तद् कलत्रम्।
4. प्रतिकूलवेदनीयं दु:खम्।
5. क्रोध एव महान् शत्रु:।
6. लोभ: पापस्य हेतुभूत:।
7. अहंकार पतनस्य मूलम्।
8. परिश्रमेण बिना कार्य सिद्धिर्भवति दुर्लभा।
9. धर्म: स: न यत्र न सत्यमस्ति।
10. मिथ्यावादी सदा दु:खी।
11. पापस्य कुटिला गति:।
12. धर्मस्य सूक्ष्मा गति।
13. आत्ममोक्षार्थम जगतहिताय च।
14. कुर्वन्तु विश्वम तंत्रिकम
15. फलिषयतीति विश्वास: सिद्धेरप्रथम लक्षणम, द्वितीयं श्रद्धया युक्तम, तृतीयम गुरुपूजनम, चतुर्थ: समताभावो, पंचमेन्द्रीयनिग्रह, षष्ठमच प्रमिताहार:, सप्तम नैव विद्यते 【भगवान शिव इस सात सूत्र को सफलता का सूत्र माना है 】
भगवान शिव का इतिहास लिखना किसी के वश में नही है। संक्षेप में शिव की शक्ति से ही कुछ लिख पाया हूँ, चुकि "शक्ति सा शिवष्य शक्ति"।
🕉️🕉️🕉️नमः शिवाय शान्ताय🕉️🕉️

🐚🐚शिवरात्रि की अग्रिम शुभकामनाएं🐚🐚


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खिचाव

3 अक्टूबर 2019
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मुझसे आँख मिलाठहर सकते नहीं।आगोश में भर करझिटक सकते नहीं।।जुनून है तो सात समन्दरपार आ गले लग जाओ।वरना झूठी चकाचौंध मेंबस कर मिट जाओ।।डॉ. कवि कुमार निर्मल

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रिश्ते

11 अक्टूबर 2019
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चाहतों का पहाड़बनाया पर चढ़ न सकाखून से हुआ जुदा,किस्मत भी दे गई दगाडॉ. कवि कुमार निर्मल

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अध्यात्म

22 अक्टूबर 2019
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स्वप्न की गहराई में देखा कितुम मेरे बारे में सोच रहे हो!🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️ओ’ मेरे परम प्रिय,ओ’ परम पुरुष! तुम्हारी कृपा सेमैंने अपनी प्रगाढ़ निद्रा की गहराई में देखा कितुम मेरे बारे में सोच रहे हो!हे मेरे परम अराध्य!तुम सचमुच कितने कृपालु हो!! अब तक मैं तुम्हारीप्राप्ति हेतु तरस रहा था!अपने आप को तुम

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भाषा और साहित्य

24 अक्टूबर 2019
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💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓भाषा में "साहित्य" छुपा है💓💓भाषाविद् "हित" करता है💓💓काव्य सरीता का अविरल प्रवाह💓💓"क्षिर सागर" से जा मिलता है।💓💓💓डॉ कवि कुमार निर्मल💓💓

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खोई यादें

28 अक्टूबर 2019
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"खोई यादें"अपनों का काफ़िला संग चुपचाप चल रहाअकेला पड़ गया गर्दिशों में जो, वो रो रहाहम अलविदा कह रुख्सत जब हो जाएंगेकिताबों के पन्नों में सिमट सब रह जाएंगेअफसोस कर कहेगा आने वाला जमानादीमक और सीलन से पन्ने बिखर- उड़ रहेयादों में न उलझ, नई डगर पे सब चल रहेडॉ. कवि कुमार निर्मल

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चाँद और सूरज

31 अक्टूबर 2019
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'चाँद' को लख- मन को बहुत हीं सुकून मिलता है।'सूरज' को लख कर पत्थर भी पिधल बह जाता है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल

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अश्क और खुदा

1 नवम्बर 2019
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😭😭😭😭😭😭अश्कों से परेशान न होसमझ जैसे मेहमान होगम गतल करना हो तोखुदा संग जरा बात हो🤓🤓🤓🤓🤓🤓डॉ. कवि कुमार निर्मल

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आज की कवायत

6 नवम्बर 2019
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''कवायत आज की"जख़्म से दिल जार - जार हुआअपने भी पराये समझ रहे,मन में फ़कीरी का ख़्याल हुआदुनिया का अज़ुबा इंतिहा हुआ★★★★★★★★★★★★ख़्वाब का क्या (?) है भरोसा-कब (?) टूट कर बिखर जाएँयादों का गुबार तक गुम होअलविदा कह जाएतन नहीं दिल बनदिल में समा जाओतूंफा झेल कर किया कबूल,गहरी ख़ंदक नफ़रत की न बनाओ★★★★★★★★★★★★★

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चराग़

12 नवम्बर 2019
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चराग़ जलता रहा रात भर।मदहोश परवाना न मंडराया मगर।।बाति उजाला देख बुझने को थी।बातें बहुत मगर ख़्वाबों की थी।।तेल में दम था बहुत मगर।एक फूंक से अँधेरे में डुबा शहर।।डॉ. कवि कुमार निर्मल

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मानव समाज

14 नवम्बर 2019
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मानव समाज एक और अविभाज्य हैजाति-पाति रंग-भेज शोषण का अलाप हैदासिता-प्रतारण-दूहन का ताण्डव व्याप्त हैदग्ध मानव आक्रांत अब सुद्र विप्लव तैयार हैमानव समाज एक और अविभाज्य हैजाति-पाति रंग-भेज शोषण का अलाप हैडॉ. कवि कुमार निर्मल

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प्यारा घर

18 नवम्बर 2019
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झोपड़ी हो या फिर महल चौबारा,अपना घर प्यारा लगता है।तीर्थ करो या जाओ माया नगरी,अपने घर में हीं सुख मिलता है।।डॉ. कवि कूमार निर्मल

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परम लक्ष्य

22 नवम्बर 2019
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घनात्मक भाव मन में प्रविष्ट कर संचित हो पायेंऋणभाव निकस कर गंगा धार संग बह जायेंजागतिक् एषणाएं पोषित कर नहीं ललचायेंसहज जीवन यापन कर सद् गति पायेंअनंत भुभुक्षा त्याग हरिपद में रम जायेंडॉ. कवि कुमार निर्मल

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हुनर

24 नवम्बर 2019
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अपनी आभा बिखेरते चलो तो मानूंअँधेरा मिटा खुशबुएँ फैला दो तो जानूंगुरुर किस हुनर का तुम हो पाले,मोहब्बत का फर्ज़ संभालोतो खुदा मानूंडॉ. कवि कुमार निर्मल

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कलम की कहानी

27 नवम्बर 2019
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कलम की कहानीडॉ. कवि कुमार निर्मल

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अध्यात्मवाद्

28 नवम्बर 2019
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⚜️⚜️⚜️🔱⚜️⚜️⚜️''नव चक्रों'' का गूढ़ रहस्यजब मानव समझ पाएगा।अनादि - अनंत परम - सत्ता लख आह्लादित हो जाएगा।।"ब्रह्म" है सत्य"- शास्रोक्तिजगत् को ''सापेक्षिक सत्य''समझ प्रेम सुधा बरसायेगा।पाप-पुण्य का अंतर जानमुक्ति-मोक्ष सहज पायेगा।।⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️डॉ. कवि कुमार निर्मल

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खुदा

29 नवम्बर 2019
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खुदा बेरहम हो नहीं सकता!क़ायनात का दम घुट नहीं सकता!!फक़त औजार हैं हम तेरे,बेगुनाह पर वार हो नहीं सकता!!!डॉ. कवि कुमार निर्मल

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सच

4 दिसम्बर 2019
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सच मिठा होता गर तो-हलाहल तक पी जाता।खारे शब्द सारे मगर-समन्दर में बहा आता।।डॉ. कवि कुमार निर्मल

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नफ़रत और मोहब्बत

4 दिसम्बर 2019
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💕 💕💕💕💕💕💕💕 💕💓 नफ़रत करने वालों को 💓💓💓गले मैं लागाता हूँ।💓💓 💓💓रक़ीब गर हो,💓💓अहबाब समझ सर झुकाता हूँ।।💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕 💕 निर्मल 💕 💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕

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आहत मानवता

5 दिसम्बर 2019
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"आहत मानवता"यह सदी भी यूँ हींव्यतीत हो आदतन चिढ़ायेगी।माँ क गोद सूनी कीसूनी हीं रह जीभ बिलाएगी॥सपूतहीन बंजर हींभूमि यह रे रह जाएगी।अहिंसा के नावेंबली रोज चढ़ाई जायेगी॥सत्यवादिता पर मिथ्या कीहवि आहुति बन राख बनेगी।सदाचारियों पर चापलूसी कीसरकार कल थी, आज चलेगी॥हाहाकार चहुदिसि व्याप्त,"त्राहिमाम्" गुँजा

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जीवन साथी

10 दिसम्बर 2019
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प्रकृति में भांति-भांति के रंगबिखेरमन को मेरे- छोड़ दिए प्रभुसादामनमोहक संध्या हो या सुहानी भोरप्रिये बिन न रखना कभी मुझे तुम आधाडॉ. कवि कुमार निर्मल©®

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विप्लव

12 दिसम्बर 2019
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🌺 🌻 🌹🌷🌹 🌻 🌺गदा - अग्निवाण - सुदर्शन चक्र -ब्रह्मास्त्र अवतारों ने बहुत चलाया🌺🌸🌻🌹🌹🌻🌸🌺लाखों शवों से 'कुरुक्षेत्र' को पटायासुर्य देव अस्त होते होते उगते ठहर गया🌺 🌸🌻🌹🌹🌻🌸 🌺'रुद्रावतार' ध्वज पर चड़ा, चक्का धस गयाधर्म का झंडा फिर गड़ा, महाभारत बन गया🌺🌸🌻🌹🌷🌹🌷🌹🌻🌸🌺ऋषियों के तपो

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आसपास

18 दिसम्बर 2019
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जब वे न पास हों, तुम आते हो!जब वे पास हों, चले जाते हो!!शर्म इतनी कि शर्म भी शर्माए,अपने साये से भी शर्माते हो!!!पास नहीं- छटक दूर जाते हो तुम,इशारों-इशारों से मुझे भगाते हो!रक़ीब नहीं, पर मेहरबां हो कर,क्यों (?) बिना बात यूँ जलाते हो!!मैं जब मुख़ातिब तो चुप होते,मैं सो जाऊँ तब बात करते हो!!!डॉ. कवि

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स्वतंत्रता

19 दिसम्बर 2019
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बंद पिंजड़े से निकल जब पँक्षिआजाद हो गगन पार जाता है।मन की समस्त 'कुण्ठाओं' कोपिंजड़े में छोड़ वह आह्लादितहो गुनगुनाते उड़ता जाता है।।बँधनों से मुक्त हो- घुटन से निकस वहमुक्त प्राणी बन अराध्य तक जाता है।।।डॉ. कवि कुमार निर्मल

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नेह

23 दिसम्बर 2019
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नेहरंग-कद-नाम-जुबान-जात-देश मत तूं देखछलकते हुनर को, रुहानी ओज को रे परखबहाया नेकी का उछलता जहाँ में दरियाबदी को मैंने कबका कह दिया अलविदाहौसला है चाँद-सितारों के पार जाने काबेवफाई को नज़र-अंदाज़ करते रहानेह का फ़कीर मैं, सिद्दतें करता हीं रहाडॉ. कवि कुमार निर्मल

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घर संसार

26 दिसम्बर 2019
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घर संसार बनाने में जीवन सारा बीताआगे - आगे राम पीछे चल रहीं सीतामहाभारत युद्ध नहीं- है सास्वत गीता'सद्गुरु' बिन जीवन रह जाता रीतानव - चक्र जागृत कर हीं कोई जीताघर - संसार बनाने में जीवन सारा बीताआगे - आगे राम पीछे चल रहीं सीताडॉ. कवि कुमार निर्मलhttps://hindi.pratilipi.com/story/qnbzgcm2iwvw?utm

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शंखनाद्

3 जनवरी 2020
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शंखनाद्शुभदिन आज भी आह्लादित कर जाएगापरम अराध्य का सामिप्य मन पा जाएगाप्रचण्ठ तृष्णा- सानिध्य की एषणा गहराई,सद्गुरु कृपा से सांजुज्य पा यह भक्त तर जाएगामैली चादर मन की धुल, आभा से भर जाएगाडॉ. कवि कुमार निर्मल

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आजादी

4 जनवरी 2020
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💐💐💐💐💐💐💐💐💐चित्तौड़ का राणा प्रताप कहाँ है? झाँसी की लक्ष्मी बाई कहाँ है??क्षत्रपति शिवाजी की तलवार कहाँ है? असली आजादी का जुनून गया कहाँ है?? शहिद दिवस पर श्रद्धांजलि मिल कर देते रहना! 'राजनीतिक आजादी' को झंडा फहराते रहना!!"सहोदर भाई" की प्रीत नहीं जब जानी! भूखे-नंगे की नम आँखें भी न पहचान

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मेरा अपना

7 जनवरी 2020
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सुबह हो या फिर शाम होलबों पे बस तेरा नाम होहर काम में हम साथ होसपनों के तुम राजदार होलोगबाग तुझे भले महाकौल कहें,तुम बस एक मेरे श्याम होडॉ. कवि कुमार निर्मल

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अराध्य

8 जनवरी 2020
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"इति" और "अंत"समाहृत जीवन पर्यंतमैं कोई हूँ नहीं- संतहै यही-"वाक्य आप्त"सद् गति करुँगा प्राप्तयह है मेरे ''मन की बात''चक्र 'नौ' है, नहीं हैं 'सात'दिन हो या फिर हो- रातकरना उसी एक बस बात"मानव" मेरी एक है जातसत्-संग यही, आज बाँटडॉ. कवि कुमार निर्मल

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जग

9 जनवरी 2020
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लद्द-फद्द हो,जग को देते हीं रहते हैं!क्या जग भीइनको भी उतना हीं देता है?जड़ से पत्तों तकऔषधीय गुण रहता है!हम मृदु वाणी त्याग कटु वचन का संबल लेते हैं!!फलों का स्वाद तुष्ट करता है!हम जीवन को ध्रिणा से भरते हैं!!लद्द-फद्द हो,जग को देते हीं रहते हैं!क्या जग भीइनको भी उतना हीं देता है?डॉ. कवि कुमार नि

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तुम कौन हो?

18 जनवरी 2020
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🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚बाल रूप में तुम प्रभु,एक जैसे हीं लगते हो।गुरुकुल में तुम अलग-अलग से हीं दिखते हो।।कभी "बरसाने" में रास रचातेकभी लंका दहन करवाते हो।कभी सुदामा के कच्चे चावल खाते,कभी भीलनी के जूठे बैर खाते हो।।शांत समाधि में कभी दिखते,कभी ''त्रिनेत्रधारी'' बनते हो।कभी दानव का वध तुम करते,कभी भस्मास

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साईं

19 जनवरी 2020
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अमीरों के भगवान,महलों में पूूूूजे जाते है!भिक्षा-पात्र वाले साईं भक्त,झोपड़-पट्टी में धुनी रमाते हैं!!डॉ. कवि कुमार निर्मल

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महाशिवरात्रि

14 फरवरी 2020
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★★★★★शिवरात्रि के शुभ अवसर पर★★★★★★शिव का रहस्यमयी एवम् गौरवमयी इतिहास★2020 ई. में 21 फरवरी को यह शुभ दिन आ रहा है।ऋग्वेद लगभग 15 (पंद्रह) हजार वर्ष पूर्व रचित होना प्रारम्भ हुआ था। अनुमानतः सात हजार वर्ष पूर्व प्रथम महासंभुति तारक ब्रह्म भगवान शिव इस धरा धाम पर मानव के रूप में अवतरित हुए थे।वह समय

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वख़्त बचता नहीं

20 फरवरी 2020
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वख़्त बचता नहींवख़्त बचता हीं नहीं उफ! खुद के लिये,हदों के पार जा- ख़ुद को कुछ सँवार लूँ!गुलशन में तुम्हारे मशगूल हुए इस कदर,कैसे (?) कुछ लम्हें तेरी तवज़्जो में,'गुफ़्तगू' कर ताजिंदगी गुजार दूँ!!डॉ. कवि कुमार निर्मल

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शुद्ध स्वर

22 फरवरी 2020
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बांस की डाल चुन गुहा बनाईसात छिद्र कर होठों से लगाईसा-रे-ग-म-प-ध-नी★ सुर से हटी तन्हाईप्रिय बाँसुरिया तक राधा के हाथों में थमाईतंत्र साधना की जटिल गुत्थी सहज सुलझाईपर राधा थी कि बस कृष्ण नाम की रट लगाईनिर्मल★संगीत के सात शुद्धस्वर:---षड्ज (सा)ऋषभ (रे)गंधार (ग)मध्यम (म)पंचम (प)धैवत (ध)निषाद (नी)स्वर

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प्रेम और कृष्ण

26 फरवरी 2020
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💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓 कृष्ण 💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓महाभारत का पार्थ-सारथी नहीं,हमें तो ब्रज का कृष्ण चाहिए।राधा भाव से आह्लादितमित्रों का-साथ,चिर-परिचित लय-धुन-ताल चाहिए।।प्रेम की डोर तन कर,टूटी नहीं है कभी।अंत: युद्ध का,हमें दीर्ध विश्राम चाहिए।।।प्रेम सरिता में आप्लावन,अतिरेक प्या

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पृथ्वी बचाओ

12 अप्रैल 2020
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🌳🌴🎋🌳🌲🌳🎋🌴 🌳🌳🌴🌲 पृथ्वी बचाओ🌲🌴🌳🌳🌴🎋🌳🌲🌳🎋🌴 🌳निरीह पशु-पँछियों को अपनीक्षुधा का समान मत बनाओइनमें जीवन है, इनको अपनोंसे वंचित कर रे नहीं तड़पाओखाद्यान्न प्रचूर है, और उगाओ"अहिंसा" का सुमार्ग अपनाओ🌳 🌲🌼🌺🌺🌼🌲 🌳सौन्दर्य वर्धन हो धरा - धाम का"शुन्य" पर मत सब रे! ले जाओपशु

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जीवन साथी

14 अप्रैल 2020
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जीवन साथीरिश्तों में समझौता जरुरी है।ज़िंदगी ज़ख्मों से भरी,कारगर मरहम जरुरी है।।हर ज़ुम्बिश ओ' साँसों परतवज़्ज़ो करने वाले,अपने हीं ख़ुद-परस्त हुए!सही डगर पे लाना जरुरी है।हर ज़ायज़-नाज़ायज़ काम कापक्का हिसाब करना जरुरी है।।मंज़ूर किया ग़र सरयामताज़िंदगी साथ निभाना जरुरी है।वख़्त-बेवख़्त हर उसूलनिभाना भी तो होता

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राधा भाव और कृष्ण

18 अप्रैल 2020
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"राधा भाव और कृष्ण"माधुर्य भाव तीव्र हो,जब आकर्षित करता है!राधा भाव में भक्त जबभाव-विभोर होता है!!बिछोह क्षण-मात्र का भीवह सह नहीं सकता है!तिश्णा से शुष्क हो,क्षुब्द बहुत वह तब होता है!!तन-मन अवसान-शोकग्रषस्त,मृत प्राय: वह हो जाता है!व्याकुल-आकुल हो,मृग-तृष्णा सापीड़ादायक होता है!!कृष्ण प्राण-केन्द

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आनंद पूर्णिमा महोत्सव

7 मई 2020
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आज झूम - झूम प्रगति के गीत गाना हैअवतरण हुआ प्रभु का, कथा सुनाना हैप्रथम महासंभूति सदाशिव जब आए थेमानव समाज में मानव पशुवत् छाए थेतंत्र साधना दे अध्यात्मिकता का परचम लहरायाबुद्धिहीन मानव को ज्ञान दिया बुद्धिजीवी बनायादानव समस्त धरातल

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गणपति बप्पा मोरिया

8 मई 2020
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कथा गणपति बप्पा मोरिया की🕉️ 🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️गणपति-बप्पा-मोरिया की प्रतिमायें सुशोभित हैं।गणेश कथा सुन, भक्त आह्लादित प्रफुल्लित हैं।।आएं आज- 'पंद्रह हजार वर्ष' पुर्व हम चलते हैं।पर्वतों पर बसे ऋषियों की चर्चा आज करते हैं।।"ऋषि कुल" को ऋग्वेद में "गोष्ठी" कहा करते थे।'"गोष्ठी" के श्रेष्टतम्

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संबंध

17 मई 2020
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"संबंधों" की महिमा- न्यारीबात मगर लगेगी यह खारीमहाभारत में देखी पटिदारीभारत में भी छाई पटिदारीपटिदारी मानवता की परम शत्रु,उजड़ी बागीचे की हर सुन्दर क्यारीसीमाओं का यह व्यर्थ जाल बहुत दुखदाईमानवीय मुल्यों की अब कैसे होगी भरपाईयुग पुरुष का अवतरण हो तो पट पाए खाईमानो बँधु- सबका मालिक वही है एक साईं

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अथ पत्नी सोपानम्

24 जून 2020
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🌺🌷अथ पत्नी सोपानम्🌷🌺 किसी भी श्रेष्ट कवि की लुगाई मसलन, शायर की हो वो मोहतरमाखासमखास को भलिभांति वह पहचानती है हर हर्फ- ओ'- लब्ज में, किसके लिए? कह कर पारा सौ पार उछालती है 😄🙂🙂बेचारा कवि🙂🙂😄मगन देख एन्ड्रॉयड में पतिदेव को!अनसुनी कर टीपते व्यस्त पतिदेव को!!जासुसी करने का अब फाइनल

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भक्ति सर्वश्रेष्ठ धन है

26 जून 2020
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भक्ति सर्वश्रेष्ठ धन🌹🌹🌹🌹🌹🌹मन है अति चंचल,आलोढ़ित चितवन,मन तो आखिर है मन-डोलेगा हीं, वो डोलेगामन अति आह्लादित-नयन हैं अश्रुप्लावितएक को ठहरा कर हीं-दूजा कुछ बोलेगाप्रसव-पीड़ा के आँसूजन्म के आँसूसुख के आँसूदुख के आँसूप्रतारणा के आँसूपठन-पाठन के आँसूधुयें के आँसूंप्रेम के आँसूभक्ति के आँसूआसक्ति

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आत्मकथा एक फूल की

24 अगस्त 2020
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आत्म कथा एक फूल कीमैं फूल एक डाल से लटका खिल उठाअपने आपको- कभी बागान को देख रहाखुशबुएँ लुटा सबको रिझा रिझा पास बुलायाछू कर अँगुलियों से ललच तोड़ अपने घर ले आयामहक कई बार मुझे एक गमले में लगा सजायादेखता रहा परिवार संसार, बहुत हीं भायापर शुद्व हवा बिन, धीरे धीरे कुंभलायाहवा का एक तेज झोंका आयापर स

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प्रभुकृपा कवि हूँ

15 जुलाई 2021
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प्रभुकृपा कवि हूँउभयहस्‍तकुशल, सव्यसाची हूँ मैं,प्रभुकृपा हूँ एक अकिंचन कवि।कटु हो या मृदु भाव- लकिरेंउकेर लिखता सत्य कवि।हिन्दू हिन्दुस्तान तुम्हारा है१९५७ में लिखा यह कवि। संविधान कहता देशद्रोही-क्रांति दूत बना था कवि।नेता जाते लुकछुपमंदीर-मस्जिद-चर्च सभी।ईद में गले मिल सेवई खाने जाता म कवि।होली-द

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साया

28 अगस्त 2021
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<p><strong>【१】</strong></p> <p><strong>शौहरत कूचे से शरहदों के पार हुई।</strong></p> <p><strong>न जा

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नंद गोपाला

28 अगस्त 2021
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<h6><strong>🙏 🙏"नंद गोपाला"🙏🙏</strong></h6> <h6><strong>हर कवि कृष्ण भक्त श्रेष्ठ होता है।</stro

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कान्हां तूं जल्दी आना

29 अगस्त 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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गज़ल

31 अगस्त 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c

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गज़ल

31 अगस्त 2021
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<p><strong>【१】</strong></p> <p><strong>गुमान हम भी करते हैं मगर,</strong></p> <p><strong>शरहदों का फ़

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प्रगति

1 सितम्बर 2021
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<p><strong>राग रागनी सुन तंद्रा उनकी भागे,</strong></p> <p><strong>टूट जायें स्वप्न के जाल निराले।</

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महामना जयंति २०२१

15 दिसम्बर 2021
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<h3>प्रयागराज महातीर्थ के पं. ब्रजनाथ व मूनादेवी बढ़भागी,</h3> <p>25 दिसम्बर 1861 को मालवीय जी का &n

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जेसस बौद्ध तांत्रिक

18 दिसम्बर 2021
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<p><br></p> <p><strong>⚜️वैश्विक धर्म नाभि भारत⚜️</strong></p> <p><strong>⚜️⚜️⚜️ ☆🔱☆ ⚜️⚜️⚜️</strong

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