आत्मसंयम
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः |
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ||
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः |
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ||
श्रीमद्भगवद्गीता 6/6,7
जिसने मन को वश में कर
लिया उसके लिए उसका अपना मन ही परम मित्र बन जाता है, लेकिन
जिसका मन ही वश में नहीं उसके लिए उसका मन ही परम शत्रु बन जाता है | मन को वश में
किये व्यक्ति को परम शान्ति स्वरूप परमात्मा का अनुभव होता है और उसके लिए
सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख, मानापमान सब एक
सामान हो जाते हैं |
इसी बात पर एक
बात का स्मरण हो आया | सुबह के काम काज से निबट कर चाय का प्याला लेकर बैठी ही थी
कि एक पड़ोसी महिला का फोन आ गया “पूर्णिमा जी, आपके यहाँ आ गई बाई ?” ऐसा आज ही नहीं हुआ, कई बार होता है | ज़रा सी भी देर हो जाए कामवाली के आने में तो फोन आने शुरू हो जाते
हैं | और यदि काम वाली
आ जाती है और उससे उन महिलाओं की बात कराते हैं तो फोन पर ही उसे डाटना शुरू हो
जाता है देर से आने के लिये | मैं सोचने लगती हूँ कि उनके इस गुस्से का कामवाली पर तो कोई असर हुआ नहीं
? सत्य तो यह है
कि उस पर कोई प्रभाव उनके गुस्से का नहीं होता, हाँ उन महिलाओं की अपनी ऊर्जा का
ह्रास अवश्य होता है | इसी तरह कहीं ट्रैफिक सिगनल पर देख लीजिये – लाल बत्ती होगी लेकिन पीछे खड़ी
गाड़ियों के हॉर्न बजने लगेंगे – जबकि निकलना होगा बत्ती हरी होने पर ही, पर सिगनल पर खीझ ज़रूर निकालेंगे | कई बार तो ऐसी
घटनाएँ भी सुन मिलती हैं कि किसी ने अपनी कार आगे निकाल ली तो उस पर जानलेवा हमला
ही कर दिया | ऐसे ही न जाने कितनी बातें दिन प्रतिदिन के जीवन में देखने को मिलती
हैं | और इस सबका कारण
बहुत हद तक लोगों में धैर्य का अभाव है, आत्मसंयम का अभाव है, जिसके कारण क्रोध तथा अन्य अनेक प्रकार के विकार जन्म लेते हैं |
आत्मसंयम अर्थात
मन को वश में करना, इन्द्रियों को वश में रखना | मन यदि वश में है तो किसी भी प्रकार का लोभ मोह व्यक्ति को पथ भ्रष्ट
नहीं कर सकता | मनुष्य की पहचान उसके मन से ही होती है और मन की गति बहुत तीव्र होती
है | मन पर नियन्त्रण
रखने वाला व्यक्ति आत्मसंयम के साथ जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करता है, किन्तु अनियन्त्रित
गति के साथ दौड़ रहे मन के साथ जो चलता है उसे भारी कष्ट उठाना पड़ सकता है, उसी
प्रकार जैसे अनियन्त्रित गति से वाहन दौड़ाने पर दुर्घटना की सम्भावना होती है | उदाहरण के लिये
एक छात्र को ही ले लीजिये | अपना कोर्स तैयार करते समय, परीक्षा की तैयारी करते समय यदि उसका मन इधर उधर भागेगा तो उसका मन
पढ़ाई में नहीं लगेगा और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने से वंचित रह जाएगा | परीक्षा भवन में
भी बहुत से विद्यार्थी सब कुछ याद होते हुए भी केवल इसीलिये मात खा जाते हैं कि
प्रश्नपत्र सामने आते ही धैर्य खो बैठते हैं और जल्दी जल्दी प्रश्नपत्र हल करने की
घबराहट में या तो आधा अधूरा करके आते हैं या फिर ग़लत उत्तर लिख कर आ जाते हैं | यदि पढ़ाई करते
समय ही उन्हें अपने मन पर नियन्त्रण रखना, भावनाओं पर नियन्त्रण रखना, धैर्य के साथ
प्रश्नों को समझ कर उनका उत्तर देने की शिक्षा दी जाए तो उनके प्रदर्शन में बहुत
सुधार हो सकता है |
इस प्रकार आत्म
संयम का अर्थ हुआ धैर्य | जीवन के हर क्षेत्र में धैर्यवान रहने की आवश्यकता है | प्रेम का
क्षेत्र हो, व्यवसाय का
क्षेत्र हो – कोई भी क्षेत्र हो – जब हम अपनी भावनाओं को उन्मुक्त रूप से प्रवाहित होने देते हैं तो
अपनी बहुत सारी ऊर्जा समाप्त कर देते हैं | जो शक्ति कार्य करने में व्यय होनी
चाहिये थी वह व्यर्थ की भावनाओं के प्रवाह में नष्ट हो जाती है | जब मन पूर्ण रूप
से स्थिर एवं एकाग्र होता है तभी उसकी शक्ति सकारात्मक कार्यों में व्यय होती है | क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, स्वार्थ ये सब
मन के भटकने के ही कारण हैं | और मन की इस भटकन के साथ कोई भी कार्य एकाग्रता से नहीं हो पाता |
अपने ध्येय की प्राप्ति के प्रयास में मन की एकाग्रता के लिए हम सभी सबसे पहले आत्म संयम का प्रयास करें यही कामना है...