टेसू
- प्रेम और प्यार का रंग
कल यानी आठ मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस
है – सशक्त नारी शक्ति को बधाई और शुभकामनाएँ... इस कामना के साथ कि अभी भी जो
महिलाएँ दुर्बल हैं उन्हें सशक्त बनाने में उनकी मदद करेंगे...
इसके साथ ही नौ व दस मार्च को होली का रंगारंग
त्यौहार – कोरोना के डर ने जिसके रंग फीके कर दिए हैं | लेकिन कोरोना से डरने के
बजाए यदि सुरक्षात्मक उपाय – जैसे बाहर भीतर सफाई रखना, घर का बना सन्तुलित आहार लेना – इत्यादि का पालन किया जाए तो कोरोना ही
क्या, कोई भी वायरस डरकर दूर भाग जाएगा | वैसे भी पारम्परिक
रूप से यदि होली का त्यौहार मनाया जाए तो किसी भी तरह के वायरस अपने आप ही नष्ट हो
जाते हैं | जैसे होलिका दहन की अग्नि यज्ञ की सामग्री से प्रज्वलित करने की प्रथा
रही है | यज्ञ की सामग्री में सभी प्रकार के कीटाणु समाप्त करने की क्षमता होती है
– सम्भवतः इसीलिए हमारे पूर्वज इस प्रथा का पालन करते थे | साथ ही, जिन टेसू के
पूलों को पकाकर उनके रंग से होली खेली जाती थी उनमें भी बहुत से गुण हैं |
टेसू को कई नामों से जाना जाता है : पलाश, परसा, ढाक, किंशुक (इनका आकार तोते की लाल चोंच सा होने के
कारण इन्हें संस्कृत में किंशुक – कहीं ये तोता तो नहीं ? कहा जाता है) वग़ैरा
वग़ैरा | इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है | संस्कृत साहित्य में बड़ा ख़ूबसूरत प्रयोग कई जगहों पर इस “जंगल की आग” का
हुआ है - ख़ासतौर पर प्रेम के उद्दीपन और विरह के वर्णनों में | इसके अतिरिक्त, जब तक उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश में
शामिल था तब तक ब्रह्मकमल उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प कहलाता था, उसके बाद से टेसू का पुष्प उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प घोषित किया गया |
ये तो एक पेड़ होता है, इसी नाम की एक लता भी है जिस पर भी
सफेद और लाल दोनों फूल आते हैं और उसे लता पलाश कहते हैं और उससे आयुर्वेदिक
औषधियाँ बनाई जाती हैं |
इसका वर्णन वैदिक काल से ही उपलब्ध होता है तथा इसे पवित्र वृक्ष माना जाता
है | श्रौतसूत्रों में कई यज्ञपात्र इसी की लकड़ी से बनाए जाने का वर्णन है | उपनयन
के समय भी इसी की लकड़ी का दण्ड ब्रह्मचारी को दिया जाता था | और संस्कृत तथा
हिन्दी के कवियों ने तो इसके सौन्दर्य पर न जाने कितनी रचनाएँ रच दी हैं |
माघ मास की समाप्ति पर ठण्ड की विदाई के साथ जब वसन्त ऋतु का आगमन होता है
उस समय मानों ऋतुराज के स्वागत हेतु समस्त धरा अपने हरे घाघरे के साथ पलाश के पीत
पुष्पों की चूनर ओढ़ लेती है और वृक्षों की टहनियों रूपी अपने हाथों में ढाक के इन
श्वेत पुष्पों के चन्दन से ऋतुराज के माथे पर तिलक लगाकर लाल पुष्पों के दीपों से
कामदेव के प्रिय मित्र का आरता उतारती है | वास्तव में अत्यन्त मनोहारी दृश्य होता
है यह | होली के मौसम में जब टेसू के वृक्ष रक्तपुष्पों से लद जाते हैं तब ऐसा जान
पड़ता है जैसे होली की उत्सव में मुख्य अतिथि ये ही हैं | प्रकृति नटी के चतुर
चितेरे कालिदास को तो वसन्त ऋतु में पवन के झोंकों से हिलती हुई पलाश की टहनियाँ
वन में धधक उठी दावानल की लपटों जैसी प्रतीत होती हैं और इनसे घिरी हुई धरा ऐसी
प्रतीत होती है मानो रक्तिम वस्त्रों में लिपटी कोई नववधू हो |
टेसू के पुष्पों का केवल वैदिक या सांस्कृतिक महत्त्व हो ऐसा भी नहीं है |
इनका आयुर्वेद की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्व है | टेसू के पेड़ के लाल फूल जिनसे
होली का रंग बनता है उन्हें भी इंफेक्शन वग़ैरा दूर करने वाला माना जाता है | इसके अलावा,
कहते हैं इसके पानी में स्नान करने से गर्मी दूर भागती है और ताज़गी
का अहसास होता | ब्यूटी प्रोडक्ट्स में इसका उपयोग होता है | माना जाता है कि बहुत से चर्मरोग दूर करने में इसका पानी लाभ पहुँचाता है
| कषैले और चरपरे स्वाद का यह वृक्ष तथा इसके सभी अंग ज्वर
तथा कृमिनाशक होते हैं | खाँसी कफ इत्यादि में लाभदायक होता है |
तो इसलिए, क्यों न कोरोना से भयभीत हुए बिना टेसू के रंग
में प्रेम और प्यार के रंगों को मिलाकर उनमें सराबोर होकर होली की मस्ती में डूब
जाएँ...
होली है, हुडदंग मचा लो, सारे बन्धन तोड़
दो |
और नियम संयम की सारी आज दीवारें तोड़ दो ||
कैसा नखरा, किसका नखरा, आज
सभी को रंग डालो |
जो होगा देखा जाएगा, आज न रंग में भंग डालो ||
माना गोरी सर से पल्ला खिसकाके देगी गाली
तीखी धार कटारी की है, मत समझो भोली भाली |
पर टेसू के रंग में इसको सराबोर तुम आज करो
शहद पगी गाली के बदले मुख गुलाल से लाल करो ||
पूरा बरस दबा रक्खी थी साध, उसे पूरी कर लो
जी भरके गाली दो, मन की हर कालिख़ बाहर फेंको ||
नहीं कोई है रीत, नहीं है कोई बन्दिश होली में
मन को जिसमें ख़ुशी मिले, बस ऐसी तुम मस्ती भर लो ||
जो रूठा हो, आगे बढ़के उसको गले लगा लो आज
बाँहों में भरके आँखों से मन की तुम कह डालो आज |
शरम हया की बात करो मत, बन्धन ढीले आज करो
नाचो गाओ धूम मचाओ, पिचकारी में रंग भरो ||
गोरी चाहे प्यार के रंग में रंगना, उसका मान रखो
कान्हा चाहे निज बाँहों में भरना, उसका दिल रख लो |
डालो ऐसा रंग, न छूटे बार बार जो धुलकर भी
तन मन पुलकित हो, कुछ ऐसा प्रेम प्यार का रंग भर दो ||
सभी के जीवन में सुख, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य, प्रेम, उल्लास और हर्ष के इन्द्रधनुषी रंग बिखरते रहें, इसी भावना के साथ सभी को महिला दिवस के साथ साथ अबीर की चमक, गुलाल के रंग और टेसू की भीनी भीनी ख़ुशबू से युक्त रंग और सुगन्ध के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ…