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घुन्चापाली का चंडी मंदिर

25 जनवरी 2015

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वृत्त चित्र घुन्चापाली का चंडी मंदिर आलेख- विभाष कुमार झा यदि ये कहा जाये कि छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने एक साथ दो वरदान दिए हैं- तो कुछ गलत नहीं होगा. ये दो वरदान हैं- यहाँ की दुर्लभ प्राकृतिक सुंदरता और धरती के गर्भ में छिपे अपार प्राकृतिक संसाधन. चाहे प्रकृति की अनुपम सुंदरता हो या हरे-भरे जंगल हों, नदी-तालाब और सरोवर हों, या फिर झरनों के संगीत से सराबोर पहाड़ी इलाके- ये सब छत्तीसगढ़ की छटा को इन्द्रधनुषी बनाते हैं, और आगंतुकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं. प्रकृति के इस अनमोल उपहार और वरदान से आच्छादित ये प्रदेश अपनी धार्मिक आस्था के लिए भी देश भर में जाना जाता है. छत्तीसगढ़ में शक्ति पूजा की परंपरा बहुत पुरानी है. यहाँ के कलचुरि राजा भी शक्ति के ही उपासक थे. अपने गढों की रक्षा के लिए उन्होंने हर महत्वपूर्ण स्थान पर शक्ति उपासना के केन्द्र के रूप में देवी मंदिर स्थापित किये. इसी तरह पौराणिक मान्यता है कि असुरों का नाश करते समय आदि शक्ति माँ दुर्गा का रक्त-अंश धरती पर गिरा वहां उनके नाम से एक मंदिर स्थापित हो गया. इन मंदिरों को सिद्ध शक्ति पीठ के रूप में भी मान्यता मिली. समय के साथ यहाँ देवी की उपासना के लिए नए-नए अनुष्ठान भी जुड़ने लगे और श्रद्धालुओं की आस्था भी अलग अलग रूप में प्रकट होने लगी. अपने साम्राज्य की सीमा की रक्षा के लिए कलचुरि राजाओं ने जो मंदिर बनवाये थे, आज उन्ही मंदिरों से छत्तीसगढ़ को शक्ति उपासना के केन्द्र की तरह पहचाना जा रहा है. इन मंदिरों के नाम भी महामाया, चंद्रहासिनी, विंध्यवासिनी, बम्लेश्वरी, समलेश्वरी, शीतला, सत-बहिनिया, काली और चंडी जैसे रूपों के आधार पर रखे गए हैं. राजधानी सहित प्रदेश के अन्य स्थानों की तरह, महासमुंद जिले में भी ऐसा ही मंदिर है, जो अपनी विशेष पहचान रखता है. राष्ट्रीय राजमार्ग पर रायपुर से पचपन किलोमीटर दूर है महासमुंद. रास्ते में दोनों तरफ मैदानी जंगल है, जो प्रकृति की अनुपम सुंदरता का अहसास कराते हैं. इतने सुन्दर वातावरण में यात्रा की थकान भला किसे महसूस होगी ? महासमुंद पहुंचने पर यहाँ से बागबाहरा का रास्ता भी सुखद है. करीब बीस किलोमीटर आगे बढ़ने पर हम बार-नवापारा अभ्यारण्य के करीब पहुँच जाते हैं. और बागबाहरा से करीब छब्बीस किलोमीटर दूरी पर बना है घुन्चापाली का प्रसिद्ध चंडी मंदिर. छोटे से गाँव में स्थापित होने के बावजूद इस मंदिर की कीर्ति देश भर में फैली हुई है, और दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ अपनी मुरादें लेकर आते हैं. इस मंदिर को तंत्र परंपरा के लिहाज से सिद्ध माना जाता है. तंत्र पद्धति से अनुप्राणित और स्थापित यह चंडी मंदिर वैसे तो कलचुरि राजाओं के समय भी था. लेकिन कालांतर में जीर्ण-शीर्ण होने के कारण लगभग चालीस साल पहले इसका जीर्णोद्धार किया गया. आज नए स्वरुप में स्थापित यह मंदिर महासमुंद जिले में ही नहीं, बल्कि पूरे देश और प्रदेश में श्रद्धालुओं की आस्था और उपासना का केन्द्र बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि अपनी मनोकामना लेकर यहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. यहाँ भी शारदीय और चैत्र नवरात्रि के समय मनोकामना ज्योति कलश की स्थापना की जाती है. जवारा रखा जाता है, और पूरे नौ दिनों तक भक्ति रस में डूबे अनुष्ठान भी वैसे ही होते हैं, जैसे कि अन्य देवी मंदिरों में देखे जाते हैं. लेकिन इन सब से अलग चंडी मंदिर की एक विशेषता ऐसी है, जो इसे प्रदेश के सभी मंदिरों से एकदम अलग पहचान देती है. यहाँ हर शाम आरती के समय पास के जंगल से भालू आते हैं और अपने हाथ से उठाकर भक्तों का दिया हुआ प्रसाद ग्रहण करते हैं. आश्चर्य की बात ये है कि आम तौर पर मनुष्यों की गंध से ही उत्तेजित हो जाने वाले भालू, यहाँ कभी इंसानों पर हमला करते नहीं देखे गए. मंदिर में आने वाले भालुओं द्वारा मनुष्यों पर हमले की यहाँ एक भी घटना नहीं हुई. सच तो ये है, चंडी मंदिर में आने वाले भालू इंसानों को खरोंच भी नहीं लगाते. ऐसा महसूस होता है कि जिस तरह दूर दूर से भक्त जन घुन्चापाली के चंडी मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, उसी तरह भालू भी इस मंदिर में अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए आते हैं. अग्रसेन महाविद्यालय पुरानी बस्ती के पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों ने भी अपने शैक्षणिक भ्रमण के तहत इस मंदिर के ऐतिहासिक पहलुओं का अध्ययन किया. बागबाहरा से छब्बीस किलोमीटर दूर स्थित छोटे से गाँव घुन्चापाली का ये चंडी मंदिर भी प्रदेश के दूसरे शक्ति पीठों की तरह प्रसिद्ध है. मंदिर के मुख्य द्वार पर अंकित शब्द ये बताते हैं कि तंत्र विधि से स्थापित ये चंडी मंदिर गहन साधना करने वाले साधुओं और साधकों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है. इसी तंत्र की शक्ति के कारण इसे सिद्ध मंदिर माना जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि हर एक सिद्ध मंदिर से जुड़ी कोई विशेष परंपरा और कहानी भी जरूर होती है. घुन्चापाली के चंडी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ भालुओं का आना देश का अकेला उदाहरण है, जो कहीं और देखने को नहीं मिलता. यूं तो देश के कई स्थानों पर मंदिर के आसपार बन्दर और भालू या कभी कभी शेरों के आने से सम्बंधित किस्से कहानी गढे जाते हैं, लेकिन चंडी मंदिर में तो हर दिन श्रद्धालु ये नजारा खुद अपनी आँखों से देख सकते हैं. इतना ही नहीं, आप चाहें तो अपने ही हाथों से भालुओं को प्रसाद खिला सकते हैं. इस परंपरा के बारे में मंदिर के मुख्य पुजारी ....... बताते हैं कि अब तो चंडी मंदिर की पहचान ही इन भालुओं से बन चुकी है. इस लिहाज से कई बार तो श्रद्धालु सिर्फ भालुओं को देखने और उन्हें अपने हाथों से प्रसाद खिलाने के लिए ही यहाँ चले आते हैं. ======== बाईट- पुजारी ======= श्रद्धालु भी चंडी मंदिर आकर देवी का आशीर्वाद तो लेते ही हैं. साथ ही वे भालुओं को करीब से देखने और उनको अपने हाथ से प्रसाद खिलाने का अनुभव लेना भी नहीं भूलते. मनुष्य और जंगली जानवरों के बीच का रिश्ता इतना सुखद हो सकता है, ये चंडी मंदिर आकर ही मालूम होता है. इसमें एक सन्देश भी छिपा है कि प्रेम- इन्सान को इन्सान से ही नहीं, बल्कि इन्सान और जानवर को भी जोड़ देता है, और ये मूक जानवर भी प्रेम की मौन भाषा को बखूबी समझते हैं. तभी तो चंडी मंदिर में रोज आरती के समय आने वाले भालू किसी भी श्रद्धालु को नुकसान नहीं पहुंचाते. ====== पीस टू कैमरा ====== चंडी मंदिर की विशेषताओं को अपनी स्मृति में संजोने के बाद, लौटने का रास्ता अनुभव से और भी समृद्ध हो जाता है. श्रद्धा, भक्ति, सिद्धि और आस्था की तरंगों से मन न केवल आनंदित हो जाता है, बल्कि यहाँ बार-बार आने का संकल्प भी लेने लगता है. चंडी मंदिर से तन और मन को जो आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है, वहीँ लौटते समय हमें खल्लारी तक ले जाती है. यहाँ पहाड़ी पर करीब एक हजार सीढ़ी चढ़ने के बाद दर्शन होते हैं माता खल्लारी के. कलचुरि राजाओं ने अपने शासनकाल में जो छत्तीसगढ़ बनाए थे, उनमें से एक गढ़ यानी किला खल्लारी में भी था. इसलिए यहाँ भी शक्ति पीठ की स्थापना की गई थी. यहाँ आज भी दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए ज्योति कलश स्थापित करते हैं. यहाँ का मेला भी बहुत प्रसिद्ध है. माघ पूर्णिमा के दिन लगने वाला ये मेला छत्तीसगढ़ के प्रमुख उत्सवों में से एक माना जाता है. अब तो खल्लारी को धार्मिक पर्यटन केन्द्र के रूप में भी विकसित किया जा रहा है. ==== पीस टू कैमरा ==== छत्तीसगढ़ के आस्था केन्द्रों को देखकर ये महसूस होता है कि यहाँ की सरल-सहज जीवन शैली में रचे-बसे लोग अपनी जरूरतों को बहुत ही सीमित रखते हैं, और जो कुछ प्रकृति से उन्हें मिला है, उसी में संतोष करते हुए अपने जीवन की तमाम चुनौतियों से हर दिन संघर्ष करते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ की इस सरलता को यहाँ की कमजोरी कतई नहीं माना जा सकता. क्योंकि इन्हें शक्ति पीठों से आशीर्वाद मिला हुआ है. इसीलिए छत्तीसगढ़ को हर लिहाज से सुरक्षित अंचल माना जाता है. चाहे घुन्चापाली का चंडी मंदिर हो या फिर खल्लारी का देवी मंदिर- प्रदेश सभी शक्ति पीठों से यहाँ के लोग गहरी आस्था रखते हैं. यही आस्था हम सबको एक दूसरे से जोड़ती है. यूं भी, भौतिक समृद्धि चाहे जितनी भी आ जाये, जब तक आंतरिक शांति नहीं हो, तब तक जीवन सार्थक नहीं हो पता. इस लिहाज से छत्तीसगढ़ बहुत ही सौभाग्यशाली है कि यहाँ हर थोड़ी दूर पर देवी मंदिर या कोई शक्ति पीठ मौजूद है, जो हमें जीवन की आपाधापी में भटकने से बचाता है, और जब कभी हम अपने संघर्ष से थक जाते हैं, और टूटने-बिखरने लगते हैं; तो यही शक्ति पीठ हमारे भीतर आस्था की ज्योति जगाते हैं. और हम एक बार फिर नए जोश के साथ चल पड़ते हैं, अपनी मंजिल की तलाश में.... वहां... जहाँ कामयाबी हमारा इंतजार कर रही है. और इस कामयाबी के सफर में हमारे भीतर शक्ति पीठों से मिली ऊर्जा एक अनुगूँज तरह महसूस होती है- या देवी सर्व भूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ========================

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