रंगारंग क्रांति का पंचम चहुंओर लहराया शंखनाद् गुँजायमान्, विह्वल मन हरषाया आनंद परिवार" का सुखद् युग है आया गुलाल-अबीर का खेल, बहुव्यंजन भी बहुत हीं
रे! भाया त्रस्त मानवता देख विद्रोही कवि क्रांतिमय गद्य ले आया 🔥🔥 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 सत् युग, द्वापर, त्रेता एवम् कलियुग ये चारों व्यक्तित्व के reflections हैं। जिस तरह श्वेत प्रकाश में सातों रंग समाहृत होते हैं, ठीक इसी तरह प्रत्येक मनुष्य में विप्रोचित्, क्षत्रियोचित, वैश्योचित् व शुद्रोचित्- सभी गुण कमोबेस समाहृत रहते हैं एक साथ। एक कम हो वा युक्त न हो तो मानव नहीं कहलाए कोई। श्वेत प्रकाश के सात रंगों में से जिस रंग का reflection होता है, वस्तु उसी रंग का दिखाई देती है। ठीक इसी तरह मनुष्य के जन्मजात, आरोपित व अर्जित संस्कारों के आधार पर उनमें मौजूद चार गुणों में से जिस गुण का अभिप्रकाश की अधिकता होती है उसकी पहचान उसी गुण के आधार पर होती है। अगर किसी में बुद्धि का अभिप्रकाश अधिक है तो वह विप्र है। लड़ाकू प्रवृति का ज्यादा है तो क्षत्रिय है। व्यवसाय के प्रति झुकाव अत्यधिक है तब वैश्य है। इन तीनों में से किसी भी गुण का अभिप्रकाश नहीं है तब शूद्र है। यदि किसी में चारो गुणों का संतुलित अभिप्रकाश दिखाई देता है तो निश्चय ही वह सद् विप्र है, महापुरुष बनने की योग्यता रखता है। यह वंशानुगत कभी नहीं हो सकता १००%।
हाँ! इनमें से जिसका वर्चस्व समाज में ज्यादा होता है, उस काल खंड को उस नाम से जाना जाता रहा है। जैसे:- विप्र युग, क्षत्रिय युग, वैश्य युग, एवं शुद्र युग। युग परिवर्तन क्रांति व विपल्व के द्वारा होता है। जो वर्ग शोषक बन जाता है, शेष वर्ग के लोग जंग छेड़ देते हैं, परिणाम समाज का नेतृत्व बदल जाता है।यह आंशिक परिवर्तन कहलाता है। यह क्रांति से होता है। यह अस्थायी परिवर्तन होता है। विपल्व के द्वारा स्थायी परिवर्तन होता है। विपल्व तारकब्रह्म के नेतृत्व में हीं संभव होता है। प्रथम विपल्लवी सदाशिव हुए। इन्होंने मानव को शूद्र युग से विप्र युग में प्रवेश कराया। *मनुष्य आदि मानव से महामानव बनने की यात्रा शिव के मार्गदर्शन में प्रारम्भ किया। सदाशिव से पहले मानव शूद्र युग में जी रहे थे। बाद में क्षत्रिय की प्रधानता बढ़ी। क्षत्रिय शोषक बन गए। भगवान श्रीकृष्ण "महाभारत" कराकर समाज को "विप्र युग" में पुन: प्रविष्ट कराया। कालान्तर में विप्र शोषक बन गए। अपने बुद्धि के बल पर समाज में ऐसा ताना-बाना बुने कि ये स्थायी शोषक बन गए। किंतु ज्ञानी लोग आलसी होते हैं। अतः ये लोग कुबेर के मलिकों के गुलाम बन गए। विप्र लोग अपने ही जाल में इस तरह फंस गए कि अब खूद भी शूद्र की श्रेणि में आ गए। क्षत्रिय लोग भी वैश्यों के जाल में फँसकर शूद्र के श्रेणि में आ गए। अभी वैश्यों की प्रधानता है। यही है "वैश्ययुग"। इनका जाल इतना मजबूत है कि तोड़ पाना आम आदमी के बूते की बात नहीं है। अतः तारक ब्रह्म फिर अवतरित हुए और "नभ्यमानववाद" ★ संपुष्ट स्थायी व्यवस्था दिए। ★प्रउत (प्रगतिशील उपयोगी तत्व) ब्रह्मास्त्र के माध्यम से विक्षुब्ध क्षुब्ध शूद्रा विपल्व का शंखनाद किया। विक्षुब्ध क्षुब्ध शूद्रा कौन हैं? आर्थिक दृष्टिकोण से विपण्ण विप्र और क्षत्रिय ही विक्षुब्ध क्षुब्ध शूद्रा हैं। इन्हें आतंकवादी, अलगाववादी, उग्रवादी आदि नाम देकर नष्ट करने का नकाम कोशिश की जा रही है। अतः यदि स्वेच्छा से वैश्य लोग जनसामान्य के सम्मान *पूर्वक सही जीवन जीने का अधिकार वापस नहीं करते हैं तो खून की नदियां अवश्य ही बहेंगी, रक्तपात होगा हीं। तृतीय विश्वयुद्ध होकर ही रहेगा, कोई रोक नहीं सकता; संकेत मिल रहें हैं पर मिडिया चिल्लाए, ये शोषक बहरे थे, हैं और भयावह त्रादसि तक यूँ हीं रहेंगे। महाविनाश को कोई नहीं टाल सकता है। सौभवत: कोरोना संकेतमात्र माना जाय तो अतिसयोक्ति न होगी। तभी सद् विप्र समाज कायम होगा विश्वस्तरीय जो सद् विप्रों द्वारा स्थापित होगा। कहा जाता है कि परमपुरुष की कृपा से रेतों के ढेर पर हरियाली पनपती है। ठीक इसी तरह लाशों के ढेर पर मानव सभ्यता मंजिल के नये मोकाम तक सफ़र करेगा। देवासुर संग्रामों की कड़ियाँ और कुरुक्षेत्र अंत नहीं, अंत अब सामने है अट्टाहास करता, दीखे न दिखे यह अलग बात है। लेकिन यह अटल सत्य है कि अंततः सत्य-धर्म का ध्वज विश्व में लहराएगा और तब न कोई जात होगी और न कोई सीमा---"वसुधैव कुटुम्बकम" दिखेगा चहुँदिसि।
मानव मन में जमा मैल निकल बह रहा है।तमसा का ताण्डव कोरोनाबन डोल रहा है।।माँस-मछली-प्याज-लहसनअब तो बँधु छोडों।कुकृत्य किए बहुत,भगवान् से नाता रे! जोड़ो।।दवा पुरानी पर जयपुर मेंकारगर सिद्ध हुई है।कोरोना ऐसों की जमातसीमा पर खड़ी है।।दिखते नहीं पर सारी पृथ्वीशत्रुओं से पटी हुई है।सात्विक बन योग वरो,समय बाक
★★★★★उल्फ़त★★★★★क़ायनात के मालिक का वारिस,भिखारी बन छुप अश्क बहाता है।सर्वनिगलु एक अमीरजादा,खोटे सिक्के की बोरी पाता है।।🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵सुना है इश्क 'खास महिने' मेंशिकार कर सवँरता हैं !हुश्न पे एतवार कर,"मुकम्मल" फना होता है!!🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂उड़ता रहा ख्यालों में तेरेउम्मीदों से गुल खिले मेरे💮💮💮💮💮�
🐚🐚 कहानी कृष्ण की 🐚🐚 🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️"कृष्ण जन्माष्टमी" हम हर्षित हो मनाते हैं।"कृष्ण लीला" आज हम सबको सुनाते हैं।।कारागृह में ''महासंभूति'' का अवतरण हुआ।दुष्ट कंस का कहर, जन जन का दमन हुआ।।जमुना पार बासु यशोधा के घर कृष्ण को पहुँचाये।''पालक माँ'' को ब्रह्माण्ड मुख गुहा में प्
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