*ईश्वर ने सृष्टि के रचनाक्रम में पंचतत्वों (भूमि , जल , वायु , अग्नि एवं आकाश) की रचना की फिर इन्हीं पंचतत्वों के सहारे जीवों का सृजन किया | अनेक प्रकार के जीवों के मध्य मनुष्य का सृजन करके उसको असीमित शक्तियाँ भी प्रदान कीं | मनुष्य की इन शक्तियों में सर्वश्रेष्ठ ज्ञान एवं बुद्धि को बनाया , अपनी बुद्धि के अनुसार ज्ञानार्जन करके मनुष्य बलवान होता गया | ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों का सदुपयोग करके मनुष्य ईश्वर के सृष्टि सृजन में सहायक की भूमिका निभाता रहा , परंतु धीरे - धीरे मनुष्य की आवश्यकतायें बढ़ती गयीं और उन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के क्रम में मनुष्य स्वार्थी होता चला गया | अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए मनुष्यों ने प्रकृति पर भी प्रहार करना प्रारम्भ कर दिया | अपने ज्ञानबल , बाहुबल एवं धनबल में मदोन्मत्त मनुष्य ने स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा | जीवनक्रम में मनुष्य दिन रात कार्य करने लगा | दिन तो कार्य करने के लिए बना ही है परंतु विश्राम करने के लिए बनी रात को भी मनुष्य विश्राम न करके कार्य करता रहा | मनुष्यों की दशा धीरे - धीरे यह होने लगी कि वह प्रकृति एवं ईश्वर के नियम मानने को बाध्य नहीं रह गया | अपने युवराज (मनुष्य) के क्रियाकलाप प्रकृति मूक बनकर देखती रही , जिस प्रकार एक पिता अपने दुलारे पुत्र के छोटे - मोटे अपराध को पुत्रप्रेम में ध्यान नहीं देता परंतु पुत्र उसका उल्टा अर्थ समझने लगता है | उसी प्रकार बार बार प्रकृति पर प्रहार करने के बाद भी प्रकृति मनुष्यों को कुछ भी नहीं बोल रही थी | परंतु जब मनुष्यों ने सीमा का उल्लंघन करना प्रारम्भ कर दिया तो प्रकृति ने भी भूकम्प , भूस्खलन , बाढ , सूखा आदि के रूप में अपना विरोध दर्ज करने लगी | इतना होने के बाद भी मनुष्यों की आँख नहीं खुली और वह समस्त पृथ्वी पर एकछत्र राज्य करने के उद्देश्य से अनेकों प्रकार के हथियारों का निर्माण करने लगा | ईश्वर कब क्या कर दे यह किसी को नहीं पता बहुत ही सावधानी करने के बाद भी मनुष्य को सबक सिखाने के लिए ईश्वर ने उसी मनुष्य के माध्यम से "कोरोना" नामक एक ऐसे विषाणु का निर्माण कर दिया जो समस्त मानव जाति के लिए महामारी बनकर यमराज का रूप लेकर धराधाम पर ताण्डव मचा रहा है | प्रकृति को बार बार अपने विस्फोटों से दहलाकर झटके देने वाला एवं ईश्वर को अपवाद कहने वाला मनुष्य ईश्वर के एक ही झटके में घुटनों पर आ गया |*
*आज समस्त विश्व पर शासन करने की नीयत रखने वाली विश्व की महाशक्तियाँ अमेरिका , चीन , ईरान , इटली , फ्रांस , उत्तरी कोरिया आदि घुटनों के बल बैठ गयी हैं | स्वयं को विधाता मान लेने वाले इन देशों के शासनाध्यक्षों की आँख के आगे उनके देशवासियों के शव गिरते चले जा रहे हैं और वे कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं | संहार देवता का ताण्डव दिन प्रतिदिन विकराल होता चला जा रहा है | आज पूरी दुनिया के क्रियाकलाप थम से गये हैं | कुछ घण्टों में एक देश से सुदूर देशोंं की यात्रा करने का दम भरने वाला मनुष्य अपने ही देश में एक शहर से दूसरे शहर को नहीं जा पा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विचार करता हूँ कि दिन - रात चलने वाली हमारे देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई आज यदि निधवा की माँग की ही भाँति सूनी एवं बीरान दिख रही है तो इसके कारणों पर विचार करना होगा | आज प्रत्येक चेहरे पर मृत्यु का भय स्पष्ट देखा जा सकता है | इस कोरोना नामक संक्रमण से फैली महामारी किसको अपने साथ ले जायेगी और कौन बचेगा यह कोई नहीं जानता है | जहाँ एक समाज अपने बचाव के लिए अपने घरों में बैठकर स्वसं को सिरक्षित रखने का प्रयास करते हुए ईश्वर की प्रार्थना कर रहा है वहीं दूसरा समाज भी है जिसकी आँखें अभी तक नहीं खुली हैं और वह ईश्वरीय सत्ता एवं उसकी उपासना की खिल्ली उड़ा रहा है | ऐसे मूर्खों को क्या कहा जा सकता है ? यह वही लोग हो सकते हैं जिन्होंने अपने जन्म देने वाले माता - पिता को भी गालियां देकर तिरस्कृत कर दिया होगा | आज इस वैश्विक संकट के आपातराल में ईश्वर हम मनुष्यों के द्वारा किये गये अपराधों को क्षमा करते हुए समस्त मानवदाति पर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखें | यही ईश्वर से प्रार्थना है |*
*यद्यपि मनुष्य गलतियों का पुतला है , परंतु अभी भी समय है कि वह अपनी गलतियों से सबक लेते हुए भविष्य में उसे न देहराने के लिए कृतसंकल्प हो |*