shabd-logo

क्या कहता है, ये विराम ........?

24 मार्च 2020

316 बार देखा गया 316
featured image

क्या कहता है, ये विराम ........?

article-image

आज पूरा विश्व जब कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है । चिकित्सीय दृष्टि से इसका कोई इलाज़ विकसित राष्ट्रों के पास भी नहीं है । आज विकसित राष्ट्र भी इस बीमारी के सामने घुटने टेक चुके हैं। ऐसे में बहुत ज़रूरी है ,संयम से काम लेना ।

लाचार और विफल हो रही व्यवस्था के सामने इस महामारी को ख़त्म करने का सबसे कारगार उपाय है सामाजिक सक्रियता ख़त्म करना/न के बराबर करना अर्थात संक्रमण के फैलने के साधन ख़त्म करना ।

अन्य देशों की तरह भारत ने भी इस स्थिति से निपटने के लिए सभी राज्य सरकारों को सतर्क करते हुए 31 मार्च तक जनता कर्फ़्यू लगा दिया है ।

आज पूरा विश्व एक तरह से विराम की स्थिति में आ गया है ।

क्या कहता है ये विराम ..?

क्या हम ठहर गए ? हताश, निराश कि आगे आने वाले समय कुछ भी हो सकता है ....!

साकात्मकता से सोचें तो यह विराम अंधी दौड़ से ठहर पुन: चिंतन और मनन के लिए है । संयम से काम लेने का है ।

अमीर, गरीब ,धर्म, संप्रदाय से निकाल आज इस संक्रमण ने पूरे विश्व को एक कर दिया तथा लगा दिया मानव की सोच पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न ......?

भारत में यह महामारी पैर न पसार सके इसलिए रविवार को जनता कर्फ़्यू लगाया गया । लोगों का योगदान सराहनीय रहा ।

22 मार्च को सबने अपने घरों से तालियाँ बजा कर उन डाक्टरों एवं रक्षा दलों का आभार तो व्यक्त किया मगर हमारे ये योद्धा सीमित संसाधनों के बीच हमारी रक्षा के लिए जुटे हैं । आज हमें इस स्थिति की गंभीरता को समझ सरकार द्वारा दिए निर्देशों का संजीदगी से पालन करना होगा । स्थिति अभी भी गंभीर है ।

संयम से काम लेते हुए अपने घर में सुरक्षित रह कर ही दूसरों को भी बचा सकते हैं ।

क्या सोचा है, आपने....? ये आपदाएँ कभी श्रेणियों में नहीं बाँटती !

हमें धर्म ,संप्रदाय से ऊपर उठकर अपने देश को मजबूत बनाना होगा ।

ये आपदाएँ तो परीक्षाओं की भांति आती रहेंगी ।

आज अपनी संकुचित सोच का विस्तार करने की आवश्यकता है ।

सोचिए ...हम अभी भी विकासशील देशों की श्रेणी में क्यों आते हैं ?

इस विराम का सही उपयोग होगा, तभी नया अध्याय लिखा जाएगा ।

एक बात कहना चाहूंगी .....

यह विराम निराशा नहीं , सबक है सशक्त निर्माण का .......

परमजीत कौर

24.03.2020

परमजीत कौर की अन्य किताबें

1

लोकतंत्र .......?

9 दिसम्बर 2019
0
3
0

कैसा है ये लोकतंत्र ?जहाँ जनता है, ओछी मानसिकता और भ्रष्ट राजनीति की शिकार !यहाँ हर दिन नया मुद्दा , मुद्दे पर बहस होती है ,मरती है तो केवल जनता , राजनीति आराम से सोती है। त्रस्त हो चुकी है जनता , अवसाद की शिकार, मासूम जल रहे हैं या जला दिए जा रहे हैं। इंसानियत को गिरता देखकर भी हम गूंगे , बहरे ब

2

समर्पण

11 दिसम्बर 2019
0
1
0

समर्पणमेरे समर्पण को मेरी दीवानगी ठहरा , आज तुम हँस लिए ,मगर ,यह वह आग है , जो अंधेरे को उजाले से मिला ही देगी।परमजीत कौर11 . 12 . 19

3

दोषी कौन.......?

12 दिसम्बर 2019
0
1
0

दोषी कौन.......? आज विद्यालय में बहुत चहल -पहल थी। विद्यार्थियों को अर्धवार्षिक परीक्षाओं के रिपोर्ट कार्ड मिल रहे थे। इस बदलते दौर में विकास को बहुत तेजी से छू लेने को आतुर बच्चे और उनके माता-पिता, रिपोर्ट कार्ड लेकर आगे बढ़ते जा रहे थे। कुछ में अपनी आशाओं के अनुरूप अंक न देखकर ,चेहरे पर ख़ुशी नहीं थ

4

शब्द ......!

16 दिसम्बर 2019
0
1
0

शब्द .....माेती भी हैं और पत्थर भी ,आरोप- प्रत्यारोप भी, हमेशा घिरे रहते हैं हम इनसे....,सीमाएँ बाँध कर भी ,जाे सीमित नहीं, वे ही ताे हैं शब्द, कभी उदास मन -में सूर्य की प्रथम किरण- सी ताज़गी और उमंग भर देते हैं ,ताे कहीं किसी की चीत्कार काे वहशी बन दबा देते हैं... काेई इन्हें ताेड़ -मरोड़ कर,

5

सृजन.....!

18 दिसम्बर 2019
0
2
0

सृजन.....! ज़िंदगी है ,बनती- बिगड़ती हसरतें , जो पूरी न होने पर भी नए सृजन की ओर इशारा करती हैं। सुबह की ओस की वे बूँदें , जो चंचलता से पत्तों पर थिरकती मिट्टी में समां जाती हैं , तो कहीं सूखे पत्तों- सी चरमराती ज़िंदगी, नया बीज पाकर फ़िर सेखिलखिलाती है। बचपन के किस्से ,कहानियों से निकल ,ज़िंदगी जैसे

6

मोहरा.....!

22 दिसम्बर 2019
0
2
0

मोहरा.....!फिर वही शोर ,भीतर , बाहरदौड़ है ,अजीब -सी कश्मकश है !कुछ दिख रहा है , कुछ दिखाया जा रहा है।फिसल रहा है समय, हाथ से रेत की तरह ,शतरंज की बिसात लगी हैहाथी ,घोड़े ,वज़ीर और राजा मस्त चल रहे हैं ,पिस रहा है तो केवल मोहरा !उसका वक्त कब आएगा ?क्या वह कभी अपनी बात क

7

दूरी...... !

26 दिसम्बर 2019
0
5
3

दूरी...... !उस कंपकंपाती रात में वह फटी चादर मेंसिमट- सिमट कर, सोने का प्रयास कर रही थी ,आँखों में नींद ही नहीं थी ,शरीर ठंड से कांप जो रहा था।एक ही चादर थी , जो ओढ़ी थी, दोनों बहनों ने ,तभी बाहर से आती मधुर आवाजों से,वह बेचैन हो ,खिंचती चली गई।झोपड़ी की बंद खिड़की के सुराख़ से दो आँखें बाहर झाँकने लगी

8

गुहार क्यों ?

27 दिसम्बर 2019
0
1
0

दोस्तों ,मेरी यह कविता समाज के उन वहशी गुनहगारों के लिए है, जो वहशियत की सीमाएँ लाँघने के बाद भी स्वयं के लिए माफ़ी की उम्मीद रखते हैं। गुहार क्यों ?साँप तुम सभ्य तो हुए नहीं ,फिर ये दया की गुहार क्यों ?हाँ , यह तेरा ज़हर ही है ,जो तुझे असभ्य बनाता है ,जो तेरे मस्तिष्क के साथ , हलक में आकर वहशियत फै

9

मैं......... क्यों ?

4 जनवरी 2020
0
2
0

मैं......... क्यों ?हम सबमें कहीं सशक्त है ‘मैं’,कहीं छिपी है, तो कहीं विकराल है। मूल्यों और भावनाओं को तोड़ती ,असंतुष्ट , स्वार्थी और संवेदनहीन बनाती ‘मैं ‘रिश्तों में फैलती, संक्रमण की तरह ,अहसासों को लगती दीमक की तरह , मय में अंधा, मर्यादाओं को लाँघ रहा है। खोकर इ

10

हिंदी …. हमारा स्वाभिमान!

10 जनवरी 2020
0
1
0

हिंदी …. हमारा स्वाभिमान!हिंदी , हमारी भाषा है , मात्र एक भाषा नहीं ,आधुनिकता के बहाव में हम आगे बढे जाते हैं ,अपनी ही भाषा के लिए हम ,आज भी एक दिन मनाते हैं। यह माँ है , बहुत उदार है , सबको अपनाती है ,फिर , आज अपने ही बच्चों से क्यों छली जाती है ?हिंदी केवल हिंदी शिक्षकों की ही भाषा नहीं है ,यह सबक

11

क्या !....... मुश्किल है ?

22 जनवरी 2020
0
1
0

क्या !....... मुश्किल है ?क्या...... मुश्किल है !स्वयं के विकास के लिए दूसरे को न गिराना?अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से निभाना ? भीड़ न बनकर कुछ अलग करना ?वह अलग ,जो दूसरों को राह दिखाए। क्या...... मुश्किल है !आज की पीढ़ी को अपने इतिहास के महान कवियों , लेखकों और महापुरुषों से

12

नम आँखें

25 जनवरी 2020
0
1
1

उसकी आँखें नम थी।पदक संभालते हुए हाथ भी काँप रहे थे।पर चेहरे पर गर्व था।शहीद की माँ जो थी।लोगों ने बहुत सम्मान दिया।मगर जैसे सब कल की बात हो गई।आज किसी के पास उस बुढ़िया के लिए समय नहीं था।किसी तरह पेंशन से गुजारा हो जाता था।अपने बेटे की आँखों में देश के लिए कुछ करने की चाह देखती ,तो गर्व होता था

13

है, जहाँ जीना कठिन, मरना जहाँ आसान है=, ..... क्या , यही हिंदोस्तान है ?

29 फरवरी 2020
0
1
0

है, जहाँ जीना कठिन, मरना जहाँ आसान है .....क्या .... यही हिंदोस्तान है ? पकड़ो, पकड़ो , .... मारो ,मारो , की आवाज़ों से वहकांप रहा था । एकाएक आवाज़ें नजदीक आने लगी । उसे कुछ समझ नहीं आ रहाथा। वह जड़ खड़ा था, तभीकिसी ने झपट कर उसे खींच लिया और छिपा लिया अपने आँचल में.....थोड़ी दूर का मंजर देखकर वह छटपट

14

है,जहाँ जीना कठिन, मरना जहाँ आसान है! क्या .... यही हिंदोस्तान है ?

29 फरवरी 2020
0
1
0

है,जहाँ जीना कठिन, मरना जहाँ आसान है! क्या .... यही हिंदोस्तान है ? पकड़ो, पकड़ो , .... मारो ,मारो , की आवाज़ों से वहकांप रहा था । एकाएक आवाज़ें नजदीक आने लगी । उसे कुछ समझ नहीं आ रहाथा। वह जड़ खड़ा था, तभीकिसी ने झपट कर उसे खींच लिया और छिपा लिया अपने आँचल में.....थोड़ी दूर का मंजर देखकर वह छटपटाने ल

15

आज की नारी

7 मार्च 2020
0
1
0

आज की नारीअपनी सोच को विराम न दूँगी , पंखों को आराम न दूँगी । इनकी शक्ति तो उड़ान है ,बुलंदियों को पाना ही मेरी पहचान है । हर पल बाधाएँ ही तो मिली थीं ,कुछ अपनों ने दी , कुछ समाज ने पर क्या मेरे सपनों को विराम लगा सके ? मंजूर नहीं , हर बार अपने अस्तित्व को यूँ कसौटी पर कसना !कहा था, बहुत ऊँची उड़ान क

16

ये शहर है… मेरा !

16 मार्च 2020
0
1
0

ये शहर है… मेरा !कल तक जहाँ रंगीनियाँ थीं , आज ख़ामोशी है , बेचैनी है । लगता है ,दस्तक दी है फिर किसी तूफ़ान ने ,हर तरफ़ भाग दौड़ है , आज ,धर्म -जाति से परे सब साथ हैं !इस तूफ़ान से लड़ने के लिए सब तैयार !वैसे , शक्ति तो साथ में ही है । तूफ़ान तो हर बार अलग- अलग वेश में आता

17

क्या कहता है, ये विराम ........?

24 मार्च 2020
0
1
0

क्या कहता है, ये विराम ........?<!--[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x0000_t75" coordsize="21600,21600" o:spt="75" o:preferrelative="t" path="m@4@5l@4@11@9@11@9@5xe" filled="f" stroked="f"> <v:stroke joinstyle="miter"/> <v:formulas> <v:f eqn="if lineDrawn pixelLineWidth 0"/> <v:f eqn="sum @0 1 0"/

18

अपना राष्ट्र बचाना है ....!

25 मार्च 2020
0
0
0

धैर्य और अनुशासन से, अपना राष्ट्र बचाना है ....! देखा नहीं था हमने कभी ,आज़ादी के परवानों को ,जो कफ़न बाँध कर निकले थे …… शहीद हुए , पर, आने वाली नस्लों को वे आज़ाद हवा देकर वे गए । सोचो , हम सब में भी तो भगत सिंह , राजगुरु, सुखदेव है खड़ा ,आज देश पर ही नहीं, मानवता पर सं

19

पैदल ही ......! क्यों ...?

27 मार्च 2020
0
1
0

पैदल ही ......!क्यों ...?देश के विकास में जिसने अहम योगदान दिया ,आज संकट के समय क्यों उसको इस तरह छोड़ दिया....?क्या उसको हक नहीं कि उसको भी दो वक़्त की रोटी के साथ सुरक्षित आश्रय मिल जाता ?वह भी देश की इस संकट की घड़ी में अपना कर्तव्य निभाता।अगर उस संक्रमण का एक कण भी उसके साथ चला गया ,तो सोचो , उस

20

सुबह जल्द ही मुस्कुराहट भरी होगी !

29 मार्च 2020
0
1
0

इस रात की सुबह जल्द ही मुस्कुराहटभरी होगी ! आज फिर ,उम्मीद को ओढ़े, सुबह बालकनी में बैठ गई ,पिछले कुछ दिनों की तरह, आज भी तो थी ... हर तरफ़ वही ख़ामोशी !बचपन भी तो सहम गया था ...इक्का- दुक्का लोग ही बाहर थे, टहलते हुए,रुक- रुक कर आती पक्षियों कीचहचहाहट प्रदूषण रहित, साफ़ हवा मगर मीठी- सी हलचल के बिना ..

21

संतुलन

15 अप्रैल 2020
0
1
0

संतुलनहर तरफ़ अफ़रा -तफ़री का माहौल था ,अचानक उठे तूफ़ान की थपेड़ों में जहाज़ हिचकोले खा रहा था । पूरा वातावरण बेचैनी और खौफ़ में सिमट गया था । तभी जहाज़ के कप्तान ने आकर कहा – यह बहुत मुश्किल का समय है , मगर धैर्य से स्थिति को नियंत्रण में किया जा सकता है । आप सब घबराएँ नहीं ,मैं जहाज़ को किनारे तक ले जाने

22

सबक..!

14 मई 2020
1
2
2

आज वह फिर खड़ा है ,कठघरे में ,दोषी बन!वह ,जिसनेइंसान के बड़े से बड़े घाव पर मरहम लगाया। आज उसी के आरोपों से घायल यहाँ आया । कहता है – मैंने हँसाया या रुलाया, हर बार,तुझे सबक ही सिखाया । अनुभव भी दिए, आगे बढ्ने का हुनर भी बताया । ये तो तूने मेरी कद्र नहीं की, अपनी नासमझियों के लिए, मुझे ही दोषी ठहराया

23

दस्तक

22 जून 2020
0
2
2

दस्तकफिर वही शोर .....बाहर भी और अंदर भी ....!अंतः करण में गूँजते शब्द दस्तक देने लगे ।विद्यालय में नए सत्र के कार्यों के लिए सबके नाम घोषित किए जा रहे थे ।अध्यापकों की भीड़ में बैठी …..कान अपने नाम को सुनने को आतुर थे ,मगर..... नाम, कहीं नहीं.....!क्यों...? बहुत से सवाल मन में आ रहे थे । आस -पास बह

24

न्याय के लिए क्या मरना ज़रूरी है ....?

1 अक्टूबर 2020
0
1
0

यह कौन -सा विकास हो रहा है ...? जहाँ ,गलत को सही ,और ,सही को दबा देने का प्रयास हो रहा है !वे कहते हैं ,साक्षरता बढ़ रही है । समाज की कुंठित सोच तो आज भी पनप रही है ।औरत आज भी है ,मात्र हाड़ -माँस की कहानी , शरीर की भूख मिटा , जिसे रौंद कर मिटा देने में है आसानी!हाँ ,यह लोकतंत्र है ...!अंधा क़ानून सबूत

25

कोई हमें पढ़ाने क्यों नहीं आता ...?

7 अक्टूबर 2020
0
0
0

वह अपनाबस्ता लेकर उचक- उचक कर उन कच्चे रास्तों के आगे बनी अपनी पाठशाला के दरवाज़े पर टकटकीलगाए देख रही थी । वह मुस्कुराकरबुदबुदाई – कितना अच्छा लगता था ,स्कूल जाना ! पता नहीं कब खुलेगा .....?अरी बिटिया,कहाँ चली गई....? माँ की आवाज़ सेवह बस्ता एक तरफ़ रख कर ,रसोई में जाकर, बेमन से, माँ की मदद करने लगी ।

26

प्रश्न नहीं ,अब परिभाषा बदलनी होगी !

11 अक्टूबर 2020
0
0
0

चाहतीहूँ ,उकेरना ,औरत के समग्र रूपको, इस असीमित आकाश में !जिसके विशालहृदय में जज़्बातों का अथाह सागर,जैसे संपूर्ण सृष्टि कीभावनाओं का प्रतिबिंब !उसकेव्यक्तित्व कीगहराई में कुछ रंग बिखर गए हैं । कहींव्यथा है ,कहीं मानसिक यंत्रणा तो कहींआत्म हीनता की टीस लिए!सदियोंसे आज

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए