*मानव जीवन में जिस प्रकार निडरता का होना आवश्यक है उसी प्रकार समय समय पर भय का होना परम आवश्यक है | जब मनुष्य को कोई भय नहीं जाता तब वह स्वछन्द एवं निर्द्वन्द होकर मनमाने कार्य करता हुआ अन्जाने में ही समाज के विपरीत क्रियाकलाप करने लगता है | भयभीत होना कोई अच्छी बात नहीं है परंतु कभी कभी परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि यह बहुत ही आवश्यक भी हो जाता है | मनुष्य को अपने आचरण से डरते रहना चाहिए कि कहीं उसके द्वारा कोई ऐसा कार्य न हो जाय जिससे स्वयं का , परिवार का या फिर एक बड़े समाज का अहित हो जाय | मनुष्य भयभीत होता नहीं है बल्कि उसे भय दिखाया जाता है | एक माता यद्यपि अपनी सन्तान से अथाह प्रेम करती है परंतु कोई अपराध करने पर उसे दण्ड देकर भविष्य में उस कार्य को न करने के लिए भयभीत भी करती है | माता के द्वारा अपने पुत्र को दिये गये दण्ड का यह अर्थ कदापि नहीं होता है कि अपनी सन्तान के प्रति उसका प्रेम कम हो जाता है | बिना भय दिखलाये कार्य कर देने वाले बहुत ही कम दिखाई पड़ते हैं | रामायण का एक प्रसंग स्मरणीय है जब मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम तीन दिन तक समुद्र से प्रार्थना करते रहे परन्तु समुद्र के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा तब उनको क्रोध आ गया और तुलसादास जी ने लिखा :- " विनय न मानत जलधि जड़ गये तीनि दिन बीति ! बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीति !!" जब भगवान श्रीराम ने समुद्र को दण्ड देने के लिए अपना धनुष उठाया तब भयभीत होकर समुद्र उनके समक्ष उपस्थित भी हुआ और मार्ग भी बताया | कहने का तात्पर्य यह है कि सठ के साथ विनय और कुटिल मनुष्य के लाथ प्रेम न तो करना चाहिए और न ही किया जा सकता है क्योंकि इनका प्रयोजन उनकी समझ में आ ही नहीं सकता | ऐसे लोगों के लिए ही (जो किसी की भी कोई विनती न सुनकरके अपनी मनमानी किया करते हैं ) दण्ड एवं भय का विधान बनाया गया है | कुछ लोगों की आदत होती है कि जब तक उनको दण्ड न दिया जाय तब तक सीधी बात उनकी समझ में आती ही नहीं है ! ऐसे क्रियाकलापों के द्वारा ऐसे लोग समय समय पर अपमानित होते रहते हैं |*
*आज संपूर्ण विश्व संकट से गुजर रहा है | विश्व के प्रत्येक देश में कोरोना नामक प्राणघातक विषाणु का संक्रमण लोगों को अनवरत मृत्यु की गोद में सुलाता चला जा रहा है | विश्व के प्रख्यात चिकित्सकों का मानना है कि यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति बहुत आसानी से पहुंच जाता है | ऐसे में यदि लोग एक दूसरे से दूर रहे तो इस संक्रमण को रोका जा सकता है | चिकित्सकों की इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे प्रधानमंत्री जी ने पूरे देश में तालाबंदी करते हुए लोगों को घरों में रहने के लिए निर्देश तो दिया है साथ ही ऐसा करने के लिए हाथ जोड़कर विनती भी की है | परंतु में "आचार्य अर्जुन तिवारी" टेलीविजन के माध्यम से संपूर्ण भारत देश में ऐसे लोगों को भी देख रहा हूं जो प्रधानमंत्री जी के निवेदन को ठुकरा कर के घरों के बाहर टहल रहे हैं | ऐसे कुछ लोगों को पुलिस प्रशासन के द्वारा लाठियां एवं गालियां भी मिल रही है | विचार कीजिए यदि हमारे देश के अगुआ ने हमको घर में रहने के लिए कहा है तो उसमें कोई द्वेष की भावना नहीं अपितु देशवासियों का कल्याण ही निहित है , परंतु भय बिनु होइ न प्रीति की उक्ति को सार्थक करते हुए कुछ लोग पुलिस की लाठियां खाकर ही घर में बैठने के लिए आमादा है और ऐसे लोगों की सेवा भी हो रही है | जहां प्राण जाने का खतरा है वहां यदि कुछ दिन घर पर रह लिया जाए तो किसी का क्या चला जाएगा ? परंतु कुछ बुद्धिजीवी ऐसे हैं जो बिना दंड के कुछ समझना ही नहीं चाहते हैं | शायद ऐसे ही लोगों के लिए तुलसीदास जी ने उपरोक्त दोहा लिखा होगा | आज आवश्यकता है कि जितना ज्यादा हो सके लोगों से दूरी बनाए रखते हुए स्वयं एवं अपने परिवार को इस प्राणघातक संक्रमण से बचाए रखें एवं साथ ही प्रशासन के द्वारा किसी भी प्रकार के दंड से बचते हुए अपने सम्मान की भी रक्षा करें अन्यथा विश्व के अन्य देशों की भांति हमारे देश में भी मृत्यु का भयावह तांडव होने लगेगा |*
*प्रत्येक मनुष्य विवेक वान है अपने विवेक का प्रयोग करके मानव मात्र एवं सर्वप्रथम तो स्वयं एवं स्वयं के परिवार के लिए सरकार के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करते हुए देश की सुरक्षा के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है |*