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सोशल मीडिया के खतरे

28 मार्च 2020

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सोशल मीडिया के खतरे

संचार के प्राचीन साधनों में सर्वाधिक प्रचलित,पत्रों से जो माहौल आज से बीस साल पहले बनता था,आज उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है.उत्साह, भय और रोमांच से भरकर जब पत्र को पढ़ा जाता था,तो सारा परिवार एक साथ उसे सुनता था.रिश्तेदारों में से किसी के परीक्षा के परिणाम,नये शिशु के जन्म या विवाह के पक्का होने की ख़बर सुनकर सभी साथ में खुश होते और किसी के निधन या दुर्घटना की ख़बर से एक साथ मातम फैल जाता.परंतु अफ़वाह फैलाने के लिये कभी पत्रों का इस्तेमाल नहीं किया गया.विदेशी सभ्यता से प्रभावित होकर अप्रैल फूल दिवस मनाने के लिये निर्दोष मज़ाक से शुरू कर भद्दे स्तरहीन मज़ाक के लिये पत्रों का इस्तेमाल सामने आया.किन्तु यह केवल किसी एक परिवार को कुछ काल के लिये प्रभावित करता था.फिर दूर-ध्वनि यंत्रों का आविष्कार हुआ.संचार की गति तेज हो गयी.फोन की घंटी हंसी-खुशी,रोना- धोना साथ लेकर आने लगी.दूरसंचार के विकास के विभिन्न चरणों में तकनीक तेजी से बढ़कर एक-दूसरे को जोड़ने लगी.इंटरनेट के आगमन के बाद ई-मेल ने पत्रों का स्थान लेना प्रारम्भ कर दिया.डेटा ट्रांसफर की स्पीड बढ़ी तो कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म उभर कर सामने आये.सभी लगभग एक ही विचार के साथ कि लोगों का एक-दूसरे से संपर्क के लिये इंटरनेट आधारित एक मंच हो जहाँ रिश्तेदारों,मित्रों को भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में,दूरियों की बाधा से मुक्त होकर कुछ पल एक -दूसरे से मिलने-जुलने का सुअवसर मिल सके.फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम,यूट्यूब व ऐसी अनेक कम्पनियों ने मोबाइल एप्लीकेशन के जरिये और वेबसाइट पर डेस्कटॉप पी सी,लैपटॉप, टैबलेट,स्मार्ट घड़ियों और न जाने किन-किन साधनों द्वारा आम आदमी तक अपनी पहुँच बना ली.शौक़ से शुरू हुआ यह सफर घातक रूप ले चुका है.एक -दूसरे परिचित से मेल-जोल का यह मंच एक बीमारी बन चुका है.अब फ़ेसबुक,, व्हाट्सएप, ट्विटर और अन्य एप्लीकेशन आपके मस्तिष्क को नियंत्रित कर रहे हैं. अफ़वाह फैलाने के लिये, गढ़े हुए कथानकों को फिल्मों में ढ़ालकर उसे विभिन्न प्लेटफॉर्म पर शेयर कर समाज में जातिवाद,सम्प्रदायवाद आदि का ज़हर घोला जा रहा है.आंखों देखी हर बात सच नहीं होती,यह जानते हुये भी लोग ऐसे वीडियो को आगे फॉरवर्ड, शेयर कर देते हैं,जिससे उन्हें कोई फ़ायदा नहीं होता है,उल्टे विभिन्न समाज व वर्गों के मित्रों से अनबन हो जाती है.बाद में तो अफ़सोस होता है,परन्तु तरकश से निकला तीर तबतक कितनों का कलेजा छलनी कर चुका होता है.नेपथ्य में बैठा सूत्रधार हमें कठपुतली की भांति नचाता रहता है.और ऐसा वह सप्रयोजन करता है.फ़ेसबुक लाईक बेचे और खरीदे जाते हैं.यह केवल समाज ही नहीं, राष्ट्र की शासन व्यवस्था को भी प्रभावित कर रहा है.2018 के फेसबुक-कैम्ब्रिज एनेलाइटिका के डेटा स्कैंडल ने लोगों की प्राइवेसी में सेंध लगा कर खूब बदनामी बटोरी.भारत विविध धर्मों को पालन करनेवाले समुदायों का एक सुदंर गुलदस्ता है जिसमें लोग अपने त्योहारों को खुशी-खुशी मनाते हैं और परधर्मावलम्बी मित्रों का भी साथ-सहकार मिलता है.निहित स्वार्थवश कुछ लोग सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर आपस में लड़ाई झगड़ा लगाना चाहते हैं.इससे माहौल तनावपूर्ण हो जाता है. साथ रहने वाले पड़ोसी एक दूसरे को संदेह की नजरों से देखने लगते हैं.आम चुनावों के दौरान जातियों के बीच तनाव का माहौल बनाया जाता है.सोशल मीडिया की व्यापक पहुँच के कारण इसे समाज में विष घोलने में चंद मिनट ही लगते हैं.इसकी मारक क्षमता मिसाइलों को भी मात दे सकती है. विश्व के कट्टरपंथी संगठन इसका उपयोग अपने कुविचारों को फ़ैलाने व उसके द्वारा नयी भर्तियों के लिये करते हैं|यह सोशल मीडिया का सबसे ख़तरनाक पक्ष है|


सोशल मीडिया आर्थिक धोखाधड़ी का भी मंच बन रहा है.डिजिटल अर्थव्यवस्था के कई फायदे हैं,परंतु छोटी सी चूक आपका पूरा अकाउंट खाली कर सकती है.


एक सज्जन ने मेगा सिटी में भीड़ के बीच अपने अकेलेपन को दूर करने के लिये फेसबुक पर अपने से आधी उम्र के एक लडकी से दोस्ती कर ली.जाहिर है,उन्हौंने अपने प्रोफाइल में अपनी उम्र कम बताई होगी,बाकी विवरण भी झूठे होंगे.लड़की की भी पहचान झूठी थी. कुछ माह के पश्चात किसी बाग़ में मिलना निश्चित हुआ.एक-दूसरे को पहचानने के लिये वस्त्रों का रंग व कुछ संकेत तय हुए.बाग़ में निश्चित समय पर पहुंचे तो दोनों भौंचक्का थे और मन में शर्मशार भी.पिता और दुहिता बिना मिले वापस घर लौटे.पुत्री नये विचारों वाली थी,पर पिता का संस्कार उन्हें धिक्कारने लगा.किस मुंह से पुत्री के सामने आयें,और उसे डांटने का तो सवाल ही नहीं.आभाषी दुनिया में विचरण कर जीवन का आनंद पाना चाहते थे.परंतु झूठ के इस ब्यापार ने जीवन भर की पूंजी लूट ली. बेचारे अवसाद का शिकार् हो घुट-घुट कर जीने लगे और एक दिन स्वयं इहलीला समाप्त कर ली.


निजी कंपनियों में बीमारी या अन्य अपरिहार्य कार्य के लिये अवकाश पर जाने वाले कर्मचारियों व अधिकारियों पर सोशल मीडिया के जरिये उनके बॉस नज़र रख रहे हैं.किसी पर्यटन स्थल पर खिंची तस्वीर शेयर करने से आपका भंडाफोड़ हो सकता है.यह तस्वीर चोरों को भी न्योता दे सकती है.आज शहर में एक ही बिल्डिंग के आमने-सामने के फ़्लैट में रहने वाले एक-दूसरे अनजान हैं.ऐसे में सोशल मीडिया पर आपकी घर से अनुपस्थिति नुकसानदेह हो सकती है.ट्रिप से लौटकर आराम से फोटो अपलोड करें.कार्यस्थल पर सोशल मीडिया के अनावश्यक व अति उपयोग से उत्पादकता भी प्रभावित होती है.फ़ेसबुक,व्हाट्सएप,टमब्लर,पिंटरेस्ट और अन्य कई ऐसी ही सोशल मीडिया मंच कर्मचारियों का ध्यान भटका कर उन्हें कार्य के प्रति लापरवाह बना रही हैं.कंपनी के कंप्यूटर पर इसका इस्तमाल कंपनी की गोपनीयता के लिये भी खतरा साबित हो सकती हैं.क्योंकि जाने-अन्जाने सिस्टम पर ऐसी फाईलें भी डाउनलोड हो जाती हैं जो वायरस से ग्रसित हों,जो कंप्यूटर से डेटा चोरी कर उनका बेजा इस्तेमाल भी कर सकती हैं.इससे कम्पनी पर सिस्टम को अपग्रेड करने,एंटीवायरस आदि पर खर्च करने का आर्थिक बोझ भी बढ़ता है.फ़ेसबुक पर हनी ट्रैप के कितने मामले प्रकाश में आते रहते हैं.इसका गैर-जिम्मेदाराना इस्तेमाल साइबर-एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत कानूनी पचड़े में भी फंसा सकता है. विज्ञान ने हमें सुविधा दी है,परंतु हमें इसका सकारात्मक उपयोग करना चाहिये.राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर ने भी कहा है-

सावधान मनुष्य,यह विज्ञानं है तलवार,काट लेगा अंग तीखी है बहुत यह धार.दो-धारी तलवार जैसी इन सोशल मीडिया मंचों का सुविचारित व सीमित इस्तेमाल ही श्रेयस्कर है.

विनय कुमार सिंह

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