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क्या जिंदगी जीने के मायने बदल जाएंगे

21 अप्रैल 2020

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आज ऐसा समय आ गया है की भविष्य खतरे में नज़र आ रहा है | मनुष्य जाति सामाजिक प्राणी है जिसे समूहों में रहने की आदत है आदिकाल से चली आ रही है | पहले आदम जात जंगलो में कबिलो के रूप में समूह में रहता था की वो मिलकर दूसरे कबीलो से सुरक्षा कर सके जंगली जानवरो से अपनी रक्षा कर सके | खाने पीने की व्यवस्था कर सके | उसके बाद अविष्कारों ने जन्म लिया और गांव बसने लगे उसके बाद अधिक विकास के कारण गाँवों से विकसित होकर शहर बन गए | तब भी मनुष्य को समाज की आवयश्कता तो थी और सभी आवशयक कार्यो के लिए मेल-मिलाप का दौर चरम सीमा पर था चाहे कोई राजनीतिक क्रिया कलाप हो तब भीड भाड बहुत होती थी | चाहे किसी व्यवसाय के सम्बन्ध में वार्तालाप हो तब ही मीटिंगे होती थी शादी समारोह या परिवार में किसी की मृत्यु में सभी रिश्ते नातेदारो का मेल-मिलाप होता था |

बाज़ारों में भीड़ भाड आवश्यक-अनाव्यशक वस्तुओ की खरीद में देखी जा सकती थी | क्या आज की स्थिति में दुनिया वैसे ही चल पायेगी, जैसे पहले चल रही थी या फिर हमको समय के अनुसार बदलाव लाने पड सकते है ?

इसपर गौर करना पड़ेगा क्योंकि कोरोना काल में स्थितियाँ विपरीत दिशा की ओर ले जाने का इशारा कर रही है |

लॉकडाउन और सोशल डिस्टन्सिंग के पालन का कोई समय निर्धारित नज़र नहीं आ रहा | लॉकडाउन तो कुछ समय बाद शायद कम हो जाये लेकिन सामाजिक प्राणी मनुष्य जाति को सोशल डिस्टन्सिंग का पालन तो शायद महीनों या बरसों तक भी करना पड सकता है |

बचपन में स्कूलों में पढ़ाया जाता था की एक जुटता साथ में रहने में फायदा है | अध्यापक दो-तीन बच्चों के हाथ में पतली लकड़ी एक-एक देते थे और कहते थे बच्चो से की इनको तोड़ो तो बच्चे उन्हें आसानी से तोड़ देते थे परन्तु जब लकड़ियों का गट्ठर बनाके बच्चों को दिया जाता था तो कोई बच्चा उसे तोड़ नहीं सकता था आज वो समय याद आ रहा है कि एकता में कितनी शक्ति है | लेकिन क्या एकता को उसी प्रकार से कायम रखा जा सकता है इस प्रकार भी सवालिया निशान है | एकता केवल मोबाइल के माध्यम से ही रखी जा सकती है | समय-स्थान-परिस्थितियों के अनुसार बदलाव आता था लेकिन आज सारी दुनिया को इस महामारी ने एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है जो एक ही नियमो की पालना के लिए बाध्य है |

१. कुछ बदलाव नहीं, बड़ा बदलाव आएगा हमारे जीवन में सिनेमाघरों यानि बड़े पर्दे पर पिक्चर देखना बहुत कम या बंद हो सकता है |

२ शादी-समारोह एवं मृत्यु के समय रिश्तेदारो का जमावड़ा सीमित हो सकता है |

३. जो व्यवसायी है उन्हें आपसी मेल मुलाकात नही कर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये व्यवसाय सम्बन्धी जानकारियां या व्यवसाय का आदान-प्रदान करना पड सकता है |अनावश्यक यात्रा टाली जा सकती है |

४. भीड़-भाड वाले बाज़ारो में सीमित लोग देखने को मिल सकते है, आवश्यक सामान खरीदने के लिए |

५. स्कूलों और महाविधालयो की जगह इंटरनेट पैर क्लासेज लगाई जा सकती है |

६. रेस्तरां-होटल्स में खाने-पीने का चलन बहुत कम हो सकता है |

७. चाट-पकौड़ी, इडली-डोसा, चाऊमीन आदि के ठेलो पर बहुत कम लोगो को देखा जा सकेगा |

८. डॉक्टर, डायरेक्ट इलाज़ न कर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से इलाज़ करते नज़र आएंगे |

९. सोशल मीडिया पर जो फालतू की बाते होती थी जो अब आपस में ज़रूरी कामों में काम आ सकता है |

१०. छोटी-मोटी जोकि आईटी या अन्य क्षेत्रों से जुडी है वे वर्क-फ्रॉम होम का आदेश दे सकती है |

११. लगातार सफाई पर पूर्ण ध्यान दिया जा सकेगा |

१२. नेट-बैंकिंग, ऑनलाइन-पर्चेसिंग , ऑनलाइन -क्लासेज को बढ़ावा मिल सकता है |

१३. जिम आदि में जाना बहुत कम नज़र आएगा |


हमें अपने में सुधार करना है हिंदुस्तान को वही पुराना तरीका अपनाना पड़ेगा जो की ऋषि-मुनियो के द्वारा बताया गया था | घर पर स्वच्छ खाना, योग, प्राणायाम, समय पर खाना, स्वछता रखना, दूरियां बनाये रखना एवं बार -बार सही ढंग से हाथों को धोना |


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