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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹
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*मनुष्य की पहचान उसके संस्कार से होती हैं ! मनुष्य को जैसे संस्कार मिले होते हैं उसकी वैसी ही मानसिकता भी हो जाती है | जहाँ सकारात्म मानसिकता मनुष्य को सच्चरित्रवान बनाती है वहीं नकारात्मक एवं दूषित मानसिकता के चलते मनुष्य दुष्चरित्र हो जाता है | आज समाज में जिस प्रकार संस्कारों का पतन हो रहा है उसी अनुपात में दूषित व नकारात्मक मानसिकता के दर्शन भी अधिक संख्या में हो रहे हैं | गाँव से लेकर समाज तक शहरों से लेकर देश तक आज जिस प्रकार अनाचार पापाचार एवं व्यभिचार की खबरें सुनने को मिल रही हैं उसका मूल कारण सिर्फ और सिर्फ संस्कार विहीन नकारात्मक मानसिकता ही है | यदि समाज को पुन: सकारात्मक बनना है तो उसे स्वयं में व अपनी संतानों में सन्तन के संस्कारों का आरोपण करने के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं है |*
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*शुभम् करोति कल्याणम्*
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